गोनू झा के किस्से
मिथिला भूमि अपने ज्ञान, विशिष्ट जीवन शैली, जीवन मूल्य, अप्रतिम लोक कला, चित्रकला, हस्तकला, विद्यापति और स्नेहलता के गीतों, स्त्रियॉं के मुख से फूटते संस्कार और गाली गीतों और गोनू झा के किस्सों से सर्वज्ञात व विख्यात है। यह विख्यात है सीता, मल्लिनाथा, भामाती, भारती मिश्र जैसी विदुषियों और त्यागमयी मूरतों से।
गोनू झा कोई काल्पनिक चरित्र नहीं, बल्कि एक जीता-जागता व्यक्तित्व थे। इनका जन्म बिहार के दरभंगा जिले के भरौड़ा (भड़वारा) नामक गाँव में 14वीं शताब्दी में हुआ, जब मिथिला में राजा भव सिंह का राज्य था। मैथिली अकादमी, पटना द्वारा प्रकाशित पंजी के अनुसार गोनू झा संस्कृत के विद्वान तथा महोपाध्याय की उपाधि से विभूषित थे।
बावजूद इसके, उन्हें धूर्त शिरोमणि की उपाधि कुछ तथाकथित विद्वानों ने दे दी, जो सर्वथा अनुचित है। वे बुद्धिमान थे और अपने ज्ञान व बुद्धि कौशल का उपयोग करके सभी को चकित कर डालते थे या प्रभावित या अपने काम का प्रयोजन सिद्ध कराते थे। सुविधा के लिए गोनू झा को हम तेनाली रामा, बीरबल, आफ़न्ती, गोपाल भांड आदि के सामने रख सकते हैं।
गोनू झा के नाम से प्रचलित किस्से अभी भी मौखिक स्तर पर हैं। मैंने उनके कुछ किस्से अपनी यादों के सहारे या इधर- उधर से सुनकर संकलित किए, जो 2002 में वाणी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा 'गोनू झा के किस्से' शीर्षक के प्रकाशित हुए। इसके
संस्कारण छप चुके हैं।
गोनू झा की दो कहानियाँ आपके लिए। लिंक है- https://youtu.be/IPQMYuHwl50
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