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Thursday, November 12, 2015

प्रेम रतन धन (कितना?) पायो।

"प्रेम रतन धन पायो"
बहुत दिन बाद, शायद "नदिया के पार" के बाद सिनेमा के स्क्रीन पर राजश्री प्रोडक्शन्स की फ़िल्म देखी-"प्रेम रतन धन पायो।" राजश्री के संस्थापक  ताराचंद बड़जात्या को समर्पित। बेहद स्वाभाविक समर्पण।
प्रेम एक रतन है और रतन याने रत्न एक धन। मीराबाई के पद से लिया गया अंश। बेहद प्रचलित पद। भक्तिमय प्रेम की व्याख्या करता।
यहाँ फ़िल्म है। जाहिर है कि इसके लिए कई प्रतिमान ढीले पड़ेंगे। सो
1 राजश्री की परंपरा के उलट सारे कास्ट व क्र्यू के नाम अंग्रेजी में।
2 संवाद तो ऐसी हिंगलिश में कि हिंगलिश की ईजाद करनेवाले भी शर्मा जाएं।
3 फ़िल्म की लंबाई बढ़ने का अर्थ समझ से परे।
4 कहानी की शाही थीम। तो सेट से लेकर सबकुछ शाही। भव्य। अखरने की हद तक भव्यता का शीशमहल।
5 आज के बदले माहौल में दर्शको और आज के दर्शकों को कैसे बटोरा जाए, इसका उलझाव और भटकाव।
6 राजे रजवाड़े की कहानी। आज के समय में आकर्षित नहीं करती। मगर शायद भव्यता लाने के लिए इसे रखा गया हो। बिजनेस टायकून में वह भव्यता नज़र नहीं आती।
बावजूद इनके, फ़िल्म का साफ सुथरापन, अश्लीलता से बचाव, आम जन की ओर शाही घराने की वापसी में जन संवेदना को भावात्मक आधार- ये कुछ बातें हैं जो फ़िल्म आपको बोर होने से बचा देती है। सोनम कपूर के अपने व्यक्तित्व में एक गरिमा की तराश उसे बहुत् अलग और भव्य बनाता है। उन्हें इस फ़िल्म के लिए शाही लुक देता है। सलमान खान आम जन के बीच के नायक हैं- दैवीय भव्यता से परे। हम आप के बीच का कोई एक- थोडा अपना सा भी। थोडा बेगाना सा भी। थोडा हंसोड़ भी। थोडा बेवकूफ भी। यह हम आम जन का अपना कद है जिसमे सलमान फिट होकर हम आप जैसे ही लगने लगते हैं। दीपक डोबरियाल बेहतर अभिनेता हैं। मगर बड़े नामों के सायों के बीच ऐसे कलाकार छुप जाते हैं। बड़े कलाकार थोड़ी दरियादिली दिखाएँ तो ऐसे कलाकारों की प्रतिभा भी खुलकर सामने आ जाए। सुहासिनी मुले दो फ्रेम में ही अपना राजसीपन दिखा जाती हैं। स्वरा भास्कर बहुत अच्छी अभिनेत्री हैं। चहरे के तनाव को थोडा स्वाभाविक रखें तो अभिनय की सहजता में वे बहुत ऊपर जा सकती हैं।
प्रेम को इन सबमे थोड़ा थोडा तलाशिये। पन्द्रह् मिनट के इंटरवल समेत तीन घंटे आप इस रूप में प्रेम रतन धन को पाते हुए रह सकते हैं कि फ़िल्म बहुत सी फुहड़ताओं से बच गई है-भाषाई हिंगलिश के अखरनेवाले रूप को छोड़कर। ####

Tuesday, September 22, 2015

एक निर्गुण- आए जोग सिखावन...

बहुत दिन बाद फिर से मुखातिब! आज आपको सुना रही हूँ एक निर्गुण। इसका प्रयोग मैंने भीष्म साहनी की कहानी "समाधि भाई रामसिंह" पर तैयार अपने सोलो नाटक में किया है। पूरे नाटक के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं- gonujha.jha@gmail.com पर !

आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।
अम्मा कहे मोरे पूत को भेजो
ढोए मोरे कान्हे की गठरिया रे,
बहना कहे मोरे बीरन को भेजो
झीनी झीनी बीनी जिन चदरिया

बेटी कहे मोरे बाबुल को भेजो,
रंगेंगे लगन की चुनरिया रे,
सांवर ड्योढ़ी से टुक-टुक निहारे
छोड़ गयो हिया की नगरिया रे। 

आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।

 https://www.youtube.com/watch?v=_TyFGWFChFE



Monday, April 13, 2015

CAN series poems-4. गाँठ


गाँठ
गाँठ
मन पर पड़े या तन पर
उठाते हैं खामियाजे तन और मन दोनों ही
एक के उठने या दूसरे के बैठने से
नहीं हो जाती है हार या जीत किसी एक या दोनों की।
गाँठ पड़ती है कभी
पेड़ों के पत्तों पर भी
और नदी के छिलकों पर भी।
गाँठ जीवन से जितनी जल्दी निकले
उतना अच्छा ।
पड़ गए शगुन के पीले चावल
चलो उठाओ गीत कोई।
गाँठ हल्दी तो है नहीं
पिघल ही जाएगी
कभी न कभी
बर्फ की तरह।

Thursday, April 9, 2015

CAN- Poem from the series- Celebrating Cancer

What does it matter

if the breasts are flattened or curved?

If the face is beautiful or botched?

Is there anything as

captivating,

sensuous, or youthful

as life itself?

Let's celebrate life's growing pains!

Let's celebrate Life!

Saturday, April 4, 2015

CAN-3. मोबाइल और केमो


मोबाईल कभी रही होगी लक्जरी
अब है उनकी अनिवार्य ज़रूरत।
केमो के बेड पर लेटी औरतें
चलाती हैं गृहस्थी- मोबाइल से
सब्जी काटने से लेकर कपडे सुखाने तक
बच्चे की फीस से लेकर पति के टिफिन तक
दरजी के नाप से लेकर चिट फंड तक
एकादशी से लेकर सिद्दिविनायक 
और वैष्णोदेवी तक
पूजा से लेकर मन्नत तक
हरे से लेकर सफ़ेद तक
दफ्तर की मीटिंग से लेकर इन्स्पेक्शन तक
देश की पोलिटिक्स से लेकर जीवन की राजनीति तक।
जीवन का कोइ कोना नहीं है ऐसा
जो छूटा हो औरतों से- केमो के बेड पर।
जीवन से भरी और ड्यूटी से पगी इन औरतों को
कोई भगा सकता है कहीं?
जबतक ये खुद न चाहें भागना।
घर गृहस्थी, पति, बच्चे और 
संसार के मोह से होकर पस्त
औरतें - खुश हैं मोह के इस आवरण में
चलाती हैं गृहस्थी- केमो के बेड से 
लेटकर, बैठकर, नींद से जागकर।

Friday, April 3, 2015

कैंसर के घर में गृहस्थी


कैंसर के घर में गृहस्थी

औरतें-
बसा लेती हैं अपनी गृहस्थी कहीं भी
मकान में, दूकान में,
खेत में, खलिहान में
यहाँ तक कि सड़क और अस्पताल में भी।
उन्हें कोई फर्क़ नहीं पडता,
क्या सोचता है अगल-बगल
वे सांस लेती हैं निश्चिंतता की
और सो जाती हैं केमो के बेड पर गहरी नीन्द
दवा काम कर रही है,
मन भी कर चुका काम
समझाकर सभी को घर के सारे सरंजाम!
कहीं भी हों औरतें,
छूटती नहीं उनसे घर की रीत


अपनों पर प्रीत!

Thursday, March 26, 2015

कैंसर और जीवन! A series of poems under the title of "CAN: Cancer and Nightingale"


"CAN: Cancer and Nightingale" इस शीर्षक से कविताओं की शृंखला शुरू कर रही हूँ। उद्देश्य- कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना और इसके प्रति अतिरिक्त डर को समाप्त करना है। कैंसर से निजात पाया जा सकता है, अगर आप पहले से सचेत रहें, अपने शरीर पर ध्यान देते रहें, शरीर में आई किसी भी असामान्यता पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। कैंसर अगर हो ही गया है तो घबड़ाइए नहीं, वैसे ही डटकर उसका मुक़ाबला कीजिए, जितना सीमा पर मौजूद हमारे जवान दुश्मनों का करते हैं। और सबसे ऊपर है आपकी सकारात्मक सोच। आप ही खुद को अपनी सोच से ठीक कर सकते हैं और अपने घर व आसपास के माहौल को ज़िंदादिल बनाए रख सकते हैं- कैंसर के बावजूद। तो आइये, कहें कि Yes! I can. and lets celebrate Cancer. 
You will get these poems in Hindi and English both. Your views, experiences and opinions are welcome!   
क्या फर्क पड़ता है!
सीना  सपाट हो या उभरा
चेहरा सलोना हो या बिगड़ा
सर घनबाल हो या गंजा!
ज़िन्दगी से सुंदर, गुदाज़
और यौवनमय
नहीं है कुछ भी।
आओ, मनाओ, जश्न इस यौवन का
 जश्न इस जीवन का! 

Thursday, March 12, 2015

नि:शब्द!- पूर्णिमा अवस्थी



नि:शब्द!
जिस कार्यक्रम से आप झूमते मुस्कुराते बाहर निकलें ,उस कार्यक्रम और उसके आयोजक को क्या कहेंगे?

कल 7 मार्च 2015 को ऐसा ही एक कार्यक्रम अवितोको रूम थिएटर की पहली वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में
 आयोजित किया गया था मुंबई के मणिबेन नानावटी महिला कॉलेज में.
सुबह का सत्र डिस्कशन और बाद का सत्र कविता पाठ और सांस्कृतक कार्यक्रम का. इतना सुनियोजित, सादगीपूर्ण तरीके से मनाया गया कही कोई खामी नहीं! सब समय पर !
मुझे भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला। वरिष्ठ पत्रकार सुदर्शना द्विवेदीजी, डॉ. शशि शर्मा, मेनका शिवदासानी, सीमा कपूर और शशि दंभारे! इन सबके साथ मंच पर बैठने का रोमांच वर्णन करना संभव नहीं। 
अपनी गज़लों से मन मोहनेवाली मालती जोशीजी! जिनके पिताजी अगर कवि सम्मलेन में हैं, तो भैय्या पास का जुगाड़ लगाने लग जाते थे, ऐसे आदरणीय शरद जोशी जी की बिटिया वो नेहा शरद, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री उषा जाधव राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कॉस्ट्यूम डिजाइनर माला डे जी, युवा पायलट अदिति गुप्ता नागपाल, कवयित्री कविता गुप्ता, शशि दंभारे, मनीषा लाखे, अर्चना जौहरी, छाउ डांसर और सिने एक्ट्रेस माधुरी भाटिया! इन सबके साथ दिन बिताना बहुत ही रोमांचकारी रहा। 
मेरे फेसबुक मित्र मधु अरोड़ा, पत्रकार चण्डीदत्त शुक्ल से मिलना भी कम रोमांचकारी नहीं था।
कार्यक्रम में जान फूंक दी झंकार और मेघा श्रीराम के मैथिली और झारखंडी लोक गीतों ने.!
आज महिला दिवस में क्या करूँ ,कैसे मनाऊँ ? कल के उल्लास से बाहर निकलूं तब ना ?
      इस सबका सारा श्रेय विभा रानी, अजय ब्रह्मात्मज जी को! इतनी ऊर्जावान, प्रतिभावान होते हुए भी कितनी विनम्र !
      दिमाग मन को सिग्नल देता है कि आदर भाव से उनके प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने के लिए, जिन्होने ये मौका और क्षण उपलब्ध कराये। 
      आभार विभाजी और बधाई हमारे अवितोको रूम थिएटर के जन्मदिवस की और शुभकामनाएं इसके तरक्की की।
-पूर्णिमा अवस्थी 

Wednesday, March 11, 2015

स्‍वस्‍थ शुरुआत...... “निषेधों के पार: सृजन का संसार!”- मधु अरोड़ा

अवितोको रूम थियेटर के “निषेधों के पार: सृजन का संसार!” पर हिन्दी की लेखक मधु अरोड़ा के विचार और "दबंग दुनिया" अखबार में उसकी रिपोर्ट। आइये, जुड़िये, अपनी सृजनात्मकता को अपनी आवाज व पहचान दीजिये। संपर्क- 09820619161/ gonujha.jha@gmail.com
 
मार्च, 2015 को अवितोको रूम थियेटर का एक वर्ष पूर्ण होना और अंतर्राष्‍ट्रीय महिला वर्ष का आना एकसाथ हुआ। सो इन दोनों को उत्‍सव रूप प्रदान करने हेतु अवितोको रूम थियेटर ने मणिबेन नानावटी महिला कॉलेज के साथ एक दिवसीय कार्यक्रम “निषेधों के पार: सृजन का संसार!” शीर्षक के तहत आयोजित किया। जिसमें दो पैनल चर्चां, काव्‍य पाठ, लोकगीत व सोलो नाटकों का समावेश था....

 कार्यक्रम का उद्घाटन नेशनल अवार्ड से सम्‍मानित अभिनेत्री उषा जाधव ने किया। पत्रकार अजय ब्रह्मात्‍मज ने सभी ागतों का स्‍वागत किया। उषा जाधव ने अपने संघर्ष के सफ़र का ज़िक्र किया, तो दूसरी ओर गो -एअर की पायलट अदिति गुप्‍ता नागपाल ने अपनी मनचाही मंज़िल पाने का श्रेय अपने माता-पिता को दिया। कॉस्‍ट्यूम डिज़ाइनर माला डे ने स्‍वीकारा कि उन्‍होने भी अपने दिल की बात सुनी और यह क्षेत्र चुना। निष्‍कर्षत: तीनों महिलाओं का एक ही मानना था कि अपने मन का काम करने से सफलता मिलती है और इसके लिये शिद्दत, धैर्य व मज़बूत मनोबल की ज़रूरत है।

 दूसरी पैनल चर्चा में महिलाओं के अधिकारों की बात की अपने जमाने की महत्वपूर्ण पत्रिका धर्मयुग की प्रखर पत्रकार डॉक्‍टर सुदर्शना द्विवेदी, वरिष्ठ एडवोकेट पूर्णिमा अवस्‍थी, अङ्ग्रेज़ी कवि व पत्रकार मेनका शिवदासानी, मराठी कवि शशि दंभारे फिल्म, टीवी, रंगमंच निर्देशक सीमा कपूर ने। उनके अनुसार हर महिला को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। यदि महिलाएं अपने साथ हुई ज्‍य़ादतियों को पुलिस तक या महिला प्रकोष्‍ठों में नहीं कह पातीं और वह भी सामाजिक परिवेश की वजह से...तो यह कारा उन्‍हें तोड़नी होगी।

 काव्‍यपाठ में कवियत्री मालती जोशी, नेहा शरद, मेनका शिवदासानी, शशि दंभारे, मनीषा लाखे, अर्चना जौहरी, कविता गुप्ता के साथ-साथ कॉलेज की छात्राओं की कविताएं खूब पसंद की गई। मालती जोशी के “तेरे नाम का खत महकता बहुत है” ने सभी का मन मोह लिया।

झंकार व मेघा श्रीराम ने अपने लोकगीतों से माहौल को सम्मोहित कर दिया। अभिनेत्री  माधुरी भाटिया ने पश्चिमी व छानृत्‍य व गीत के माध्यम से 'आई एम वूमन, मैं औरत हूं' की एकल नाट्य प्रस्तुति की, जिसपर दर्शक मुग्‍ध हो गये। पुणे की कलाकार मीनाक्षी सासने ने एकल नाटक प्रस्‍तुत किया। विभा जी के जीवट को सलाम करना ही होगा कि वे इतना श्रम करती हैं और इतने कलाकारों को मंच प्रदान किया है, ताकि नये- पुराने कलाकार अपनी प्रतिभा से एक दूसरे के साथ साक्षात्कार कर सकें। मैंने महसूस किया कि हिंदी साहित्‍यकारों को इस प्रकार के कार्यक्रमों में अपनी उपस्‍थिति दर्ज़ करानी चाहिये, ताकि नई पीढ़ी की नब्‍ज़ को पहचाना जा सके और वे अपना सर्वोत्तम नई पीढ़ी को दे सकें।

 -मधु अरोड़ा.....लेखिका.....मुंबई

 

Sunday, March 8, 2015

'रूम थिएटर' के तहत अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- नौरंगी नटनी-आज शाम 7 बजे


आइये, मनाते हैं 'रूम थिएटर' के तहत अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस- नौरंगी नटनी के साथ। आज शाम 7 बजे- कम्यूनिटी सेंटर, सेक्टर 3, वाशी पुलिस स्टेशन के पास। आयोजक- नवी मुंबई म्यूजिक एंड ड्रामा सर्कल। शुक्रिया ग्रुप और Vivek Bhagat

इस नाटक पर दर्शकों और सुधिजनों के विचार!

आपका प्ले बहुत बढ़िया लगा, इतनी बारीकी और खूबियों से नटनी और राजा को अलग से देख पा रहे थे आप में, बहुत वर्सेटाईल! कमाल! कभी फुर्सत से बैठेंगे।मनीषा कुलश्रेष्ठ  

adbhud!koi shabd hi nahin mil raha...... bemisaal abhinay aapka.......uspar aapka diya hua prasad....maza aa gaya.- मृदुला प्रधान
baap re.ettek neh appan gamak lok e de sakai chai kono aur nai.Vibha rani didi hammar.adbhut programme.a geet sab dil k bhitar samagel..bahut badhiya.nagarjun,gorakh Pandey..ahhhha...- रूपा सिन्ह


विभा जी, आपके अभिनय में बाकई बहुत सी,बहुत ही बारीक़-बारीक खूबियाँ हैं ;वो,क्या खूब थी , नौरंगी नटनी की भाव भंगिमाएं, और भिन्न -भिन्न पात्रों की क्षण प्रति क्षण बदलती मुख मुत्राएँ फिर चाहें राजा हो या राजा का भेजा गया संदेश वाहक के बीच नटनी के मध्य सम्बाद …,कमाल देखने का यह है कि मात्र एक ओढ़नी और एक कपड़े की कमर बन्ध को साथ में लेकर आपने तमाम पात्रों को अपने आप में उतार दिया बहुत खूब -बहुत खूब … ! विभा जी आपके सन्निकट बिताया गया क्षणिक वक्त स्मरणीय है हम सब उन लोगों के लिए जो दिनांक २६,,२०१३ को दिल्ली विश्व विद्यालय के प्रांगण सर शंकरलाल सभागार में आप दवरा अभिनीत नाटक "नौरंगी नटनी " के साक्षी थे,यहाँ आपको एक रोचक प्रसंग बताना चाहूंगी,सभागार में जब मैं पहुंची थी उस वक्त मात्र कुछ लोग ही थे मेरे अगली बाली पंक्ति में एक सुश्री बैठी थी,मेरे बैठने के कुछ देर बाद उन्होंने पलट कर देखा और पूछने लगी मैं कहाँ से आई ?मेरा जबाव सुनकर उन्हें हैरानी हुई, उसके कुछ देर बाद ,कुछ और सोचते हुए पुन:उनका प्रश्न था क्या आप यह भाषा समझतीं हैं मेरा जबाव इस बार वही था … ; कला और कलाकार किसी भाषा,देश, जाति की सीमाओं में बंधा नहीं होता जैसाकि आपने अपना अनुभव बांटते हुए कहा था,बहुत ही सुंदर विचारों की आप मालिक हैं,मुझे याद है ,आखिरी क्षणों में मंच पर हम बहुत से लोग आ गये थे,आप पसीने में …;और आपको जोरों की प्यास लगी थी हम में से किसी ने अपने पास का पानी बावजूद इसके आपमें उत्साह और आंतरिक उर्जा देखने लायक थी,और क्या कहूँ मैंने आप द्वारा भेंट " जो मंच की प्रस्तुती में प्रार्थना के साथ आपने अपने जादुई हाथों से हममें से,कुछ एक को प्रसाद के तौर पे सफेद - सफेद मीठे -मीठे गोल-गोल " को सहेज कर रख छोड़े हैं ,उन्हें देखिएगा ,जो फोटू आपके फेसबुक पर डाले हैं ! आपकी पूरी टीम को नौरंगी नटनी की सफलतम प्रस्तुती के लिए बधाई सहित धन्यवाद ! विभा जी,अगर आप की और आपके अभिनय की बात करें, मुझे सस्पष्ट दर्शयाभाव याद हैं एक पात्र शायद वह राजा का स्वभाव था जिसमें आपने क्या खूब अदा से मूछों पर ताव दिया था वह गजब का भाव -अभिनय था,एक जगह जब नौरंगी नटनी जहाँ अपने एक मात्र शिशु पुत्र को मालिश कर रही होती है,उस द्रश्य में आपके चेहरे पर क्या गजब की मंमता और करुणा का मिला-जुला स्वरूप था वो द्रश्य देखने और दिल से महसूस करने जैसा था,हाँ याद आया नाटक के लगभग अंतिम पढ़ाव पर नौरंगी नटनी का पति जब उसे पहाड़ की ऊंचाई से नीचे उतर आने का आग्रह करता है वह द्रश्य भी यादगार द्रश्य था,कमाल तो इस बात का था मंच पर कोई भी नहीं शिवाय एक मात्र विभा रानी के और हलचल,गहमा गहमी इतनी कि मानों साद्रश्य नौरंगी राजा का पूरा दरबार सजा हो दूसरी तरफ नौरंगी नटनी अपने मामूली से झोपड़े में स्वाभिमान के दम पर एक ताकतवर राजा का सामना कर अपने -आप को कही कमजोर नहीं पड़ने देती,यहाँ एक ध्यान देने की यह है , नौरंगी नटनी के मुख्य पात्र, नटनी के माध्यम से,आपने अपने अभिनय के द्वारा एक नारी शक्ति की ताकत की सफलतम पहचान कराने में एक तरह से समस्त नारी समाज का प्रतिनिधित्व किया है ,निश्चित ही आपने अपने अभिनय की बारीकियों से, यहाँ मौजूद तमाम दर्शक जनों को मन्त्र मुग्ध कर दिया,ऐसा आपने स्वयं भी महसूस किया होगा,कितनी ही बार दर्शकों की तालियाँ इस बात की गवाही दे रहीं थी ,यकीनन आप अपने विषय में सिद्धहस्त,पारंगत और निपुण है,विभा जी यहाँ दिल्ली का अनुभव कैसा रहा जरुर बताएं,यदि आपके स्वागत-सत्कार में कोई कोताही रह गयी हो वो भी जरुर बताइयेगा,आखिर पता कैसे चलेगा कि हम दिल्ली बालों की मेजबानी का तौर-तरीका कैसा है,कहते हैं ना कि निंदक नियरे राखिये …;विभा जी भूल-चूक मांफ,शुभकामनाओ सहित धन्यवाद ! विभा जी,यह जो भी कुछ लिखा वह सब आपकी एक तरह से sprit थी मैंने तो बस अपनी भाषा में शब्द दे दिए !- सीमा सिंह