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Thursday, April 30, 2020

सुतपा के इरफान

कैंसर से हुई मौत मुझे विचलित करती है, क्योंकि सभी की आँखें जैसे मुझसे कहती हैं- बहुत लिखती हो न सेलेब्रैटिंग कैंसर! देखो! मैं कहता/कहती हूँ न कि कैंसर खा जाता है सभी को। खुद की हजान बच गई है न, इसलिए।
मैं विचलित हो जाती हूँ। अपने को सकारात्मक बनाए रखने के सारे प्रयास व्यर्थ होने लगते हैं। सचमुच ऐसा ही है क्या?
लेकिन मन तुरंत कहता है- ऐसा नहीं है। सही है कि लाखों लोग गए हैं कैंसर से। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि करोड़ों लोग कैंसर से निकलकर अपने जीवन को जी रहे हैं और लोगों के बीच अलग-अलग तरह से सकारात्मकता के संदेश पहुंचा रहे हैं।
लेकिन, जीवन का एक परम और चरम सती है-
"मौत से किसकी यारी है, आज उसकी, कल मेरी बारी है।"
कह सकते हैं, कि मौत का एक दिन तय है। उस दिन वह किसी न किसी बहाने हमारे पास आ ही जाती है। लेकिन, कैंसर अंत अंत तक कैंसर फाइटरों को जीवन की जिजीविषा देता रहता है। कभी कोई इससे निराश होकर मरने की बात नहीं करता। यहीं पर कैंसर हमसे हार जाता है। वह व्यक्ति को तो ले जाता है, लेकिन उसकी अदम्य जिजीविषा हमारे लिए संदेश के रूप में छोड़ जाता है। इसलिए मन कभी भी यह कहने को नहीं करता कि "वह कैंसर से हार गया।" या "कैंसर ने उसे पराजित कर दिया।"
जैसे अन्य किसी भी कारण से लोग हमसे बिछुयड़ते हैं, कैंसर से भी बिछुड़ते हैं। मौत तभी है, जबतक जीवन है। जीवन शाश्वत है, मौत की तरह। लेकिन, जीवन से बढ़कर नहीं।
देश और दुनिया ने एक कलाकार खोया है। सुतपा ने अपने मन का साथी। और, मैंने एक और कैंसर योद्धा, जो जीवन का फलसफा दे गया है हम सबके लिए - "आपके पास सकारात्मक होने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।"
हाँ इरफान! आपने सही कहा आहै कि "सकारात्मक होने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।" इसलिए, मैं सकारात्मक हूँ और रहूँगी। आपके कहे अनुसार सभी को इस सकारात्मकता के संदेश देती रहूँगी।
#बोलेविभा44 में आज सुतपा के इरफान के साथ।
https://www.youtube.com/watch?v=S5xUSVyyfyo

Wednesday, April 29, 2020

फूड कल्चर विथ वडी- पापड़!

आम तौर पर जब हम किसी से मिलते हैं तो एक दो मुलाक़ात के बाद सबसे पहले यही पूछते हैं कि हो गया खाना-पीना? यहाँ तक कि दफ्तर में भी। खासकर लंच टाइम पर या उसके तुरंत बाद।
शादी-ब्याह और अन्य आयोजनों में भी हम यह देखते सुनते पाए जाते हैं कि कैसा था खाना-पीना?
भावी दुल्हन से तो सबसे पहले यह पूछा जाता आता कि क्या-क्या जानती है वह बनाना?
यानी, हम सब खाते-पीते तो हैं, लेकिन शायद ही कभी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि हमारा फूड कल्चर यानी खान-पान की संस्कृति क्या है!
तो आइये, बात करते हैं खान-पान की संस्कृति यानी फूड कल्चर पर। हम तो अपनी मिथिला के वडी-पापड़, चूड़ा- तीसी के साथ आए हैं। और आप? अपनी बातें हमारे साथ हमारे चैनल के कमेन्ट बॉक्स में साझा कीजिएऔर अपने फूड कल्चर से हमें वाकिफ कराइये। लगे हाथों चैनल subscribe भी कर लीजिएगा।
https://www.youtube.com/watch?v=CZwzIjdDCbQ&t=31s

Tuesday, April 28, 2020

नाम में क्या रखा है!

मेरे नाम के आगे कोई सरनेम नहीं है। यहाँ तक कि मेरे माँ के नाम और भाइयों और बाउजी के नामों में सरनेम का कोई चक्कर नहीं है। बचपन में तो मुझे पता भी नहीं था कि नाम और सरनेम का कोई चक्कर भी होता है। समाज बच्चों के मन को जितना चाहे, बदल दे।
मैने अपनी बड़ी बेटी के नाम में भी नहीं लगाया। स्कूल की नोटिस झेली। उनकी धमकियों का सामना किया। छोटी के स्कूल में नाम लिखाते समय ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा पति को कि तंग आकर उन्होने अपना नाम और सरनेम बेटी के नाम के साथ लगा दिया।
लोग कहते हैं, नाम में क्या रखा है! हम भी कहते हैं, नाम में क्या रखा है! फिर क्यों हमारे लिए अनिवार्य हो जाता है नाम या सरनेम बदलना?
क्या आपको लगता है,
1. स्त्रियॉं का नाम या सरनेम बदलना जरूरी है-
a) हाँ
b) नहीं
c) पता नहीं
d) मेरी राय-
हमारे यूट्यूब चैनल #बोलेविभा42 पर आपके विचार ऊपर लिखे फ़ारमैट में चैनल पर आमंत्रित हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=oduNfSxCmUk

Sunday, April 26, 2020

रमज़ान में हम


मेरे शादी को सैंतीस साल हो गए। मेरा एक देवर मेरे ख्याल से पिछले 40 साल से रोजा रखते हैं, मेरी शादी के पहले से ही। तब वे बहुत छोटे थे। मैंने तनिक हैरानगी जताई। वे बोले- "देखते हैं न कि कैसे वे लोग एक महीने तक रोज दिन भूखा रहते हैं। हमलोग तो अपने यहाँ उपवास में दिन भर खाते ही रहते हैं। मेरे मुहल्ले में भी कई लोग रोजे रखते थे। आपलोगों के यहाँ कोई रखता है क्या? अपने किस्से, अपनी यादें साझा कीजिये, इस वीडियो को देखते हुए। जरा सोच, समझकर जवाब दीजिएगा- 
सुनो रमज़ान की दास्ताँ तो सुनो,
रहमतों का बयां है, बयां तो सुनो....
फिल्म 'आलंम आरा' का गीत मोहम्मद रफी की आवाज में सुनते हुए हम खो गए ... फिर याद आने लगे रमज़ान से संबन्धित अपनी बातें, लोग, समय....
सुनिए #बोलेविभा40 #यूट्यूब पर।
https://www.youtube.com/watch?v=WwzVIOO55_Q&t=299s

Saturday, April 25, 2020

पान खाए सैयां हमार....

हंसी-हंसी पनवाँ, खियौले बेइमनवा ......
हाहाहा! बताइये तो, कौन कौन पान खाने के शौकीन हैं या पान खाने के अभ्यस्त हैं? या आपके घर के सदस्य पान खाते हैं? थोड़ा फनी सवाल है, मगर है बहुत मजेदार। बचपन में हमलोगों के लिए आधे पत्ते का छोटा पान बनाता था। हमारे मोहल्ले में दो पानवाले थे- दो ध्रुव वाले। कपिलेश्वर चाचा मनुष्य के रूप में भगवान और जमुना एकदम शैतान! जाने कितनी लड़कियों के पास होंगे उसकी बदनीयती और ईव टीजिंग के किस्से।
कभी-कभी पान की वजह बहुत दुखदाई भी हो जाती है। डॉक्टर्स के अनुसार, अधिक पान-तंबाकू का सेवन कैंसर की संभावना को बढ़ाता है। फिर भी, भारतीय परिदृश्य में पान के संदर्भ और इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता, इतना तक कि हम स्वच्छ भारत अभियान में अपने सभी धर्म के भगवानों को काम पर लगा देते हैं कि वे म्यूरल बने रहें और टाइल्स बनाकर हर संभावनावान जगहों पर चिपकाकर खड़े हो जाएँ ताकि लोग उन्हें प्रणाम करके अपने मुंह की लाली वहाँ न्बरसाएँ और स्वच्छ भारत अति स्वच्छ बना रहे।
मिथिला में तो पान सेवन की पुरानी संस्कृति है। छठी से लेकर पूजा-पाठ या कोई भी शुभ काम पान के बिना सम्पन्न नहीं होता, यहाँ तक कि श्राद्ध कर्म में भी इसकी जरूरत पड़ती है। तो, जन्म से मरण तक पान हमारे साथ चलता है।
पान खाने के किस्से, गीत, रस्में, यादें सभी होंगे न आपके पास। तो साझा कीजिये न बोले विभा के इस एपिसोड को देखते- सुनते हुए। आपकी टिप्पणियों की बाट जोहेंगे हम अपने यूट्यूब चैनल पर !
https://www.youtube.com/watch?v=jWMn_LEEd24
#BoleVibha #Paan #Youtube #YoutubeChannel