कैंसर से हुई मौत मुझे विचलित करती है, क्योंकि सभी की आँखें जैसे मुझसे कहती हैं- बहुत लिखती हो न सेलेब्रैटिंग कैंसर! देखो! मैं कहता/कहती हूँ न कि कैंसर खा जाता है सभी को। खुद की हजान बच गई है न, इसलिए।
मैं विचलित हो जाती हूँ। अपने को सकारात्मक बनाए रखने के सारे प्रयास व्यर्थ होने लगते हैं। सचमुच ऐसा ही है क्या?
लेकिन मन तुरंत कहता है- ऐसा नहीं है। सही है कि लाखों लोग गए हैं कैंसर से। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि करोड़ों लोग कैंसर से निकलकर अपने जीवन को जी रहे हैं और लोगों के बीच अलग-अलग तरह से सकारात्मकता के संदेश पहुंचा रहे हैं।
लेकिन, जीवन का एक परम और चरम सती है-
"मौत से किसकी यारी है, आज उसकी, कल मेरी बारी है।"
कह सकते हैं, कि मौत का एक दिन तय है। उस दिन वह किसी न किसी बहाने हमारे पास आ ही जाती है। लेकिन, कैंसर अंत अंत तक कैंसर फाइटरों को जीवन की जिजीविषा देता रहता है। कभी कोई इससे निराश होकर मरने की बात नहीं करता। यहीं पर कैंसर हमसे हार जाता है। वह व्यक्ति को तो ले जाता है, लेकिन उसकी अदम्य जिजीविषा हमारे लिए संदेश के रूप में छोड़ जाता है। इसलिए मन कभी भी यह कहने को नहीं करता कि "वह कैंसर से हार गया।" या "कैंसर ने उसे पराजित कर दिया।"
जैसे अन्य किसी भी कारण से लोग हमसे बिछुयड़ते हैं, कैंसर से भी बिछुड़ते हैं। मौत तभी है, जबतक जीवन है। जीवन शाश्वत है, मौत की तरह। लेकिन, जीवन से बढ़कर नहीं।
देश और दुनिया ने एक कलाकार खोया है। सुतपा ने अपने मन का साथी। और, मैंने एक और कैंसर योद्धा, जो जीवन का फलसफा दे गया है हम सबके लिए - "आपके पास सकारात्मक होने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।"
हाँ इरफान! आपने सही कहा आहै कि "सकारात्मक होने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।" इसलिए, मैं सकारात्मक हूँ और रहूँगी। आपके कहे अनुसार सभी को इस सकारात्मकता के संदेश देती रहूँगी।
#बोलेविभा44 में आज सुतपा के इरफान के साथ।
https://www.youtube.com/watch?v=S5xUSVyyfyo