chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Monday, July 27, 2009

नारी को निर्वस्‍त्र करना तो हमारी परंपरा रही है

mओहाल्ला लाइव पर पढ़े एक छाम्माक्छाल्लो का एक और आलेख। लिंक है- http://mohallalive.com/2009/07/27/naked-women-n-our-tradition/

लोग खामखां चिल्ला रहे हैं, शोर मचा रहे हैं! अख़बारों में लेख लिख रहे हैं, धरने-प्रदर्शन कर रहे हैं, कानूनी जाच और कार्रवाई की मांग कर रहे हैं! क्‍यों भई, तो महज एक नारी को निर्वस्त्र करने के लिए! यह भी कोई बात हुई? यह कोई इतना बड़ा मसला है कि लोग उसके लिए सत्ता पर बरस पड़ें!
सुना कि छत्तीसगढ़ में एक महिला शिक्षक को निर्वस्त्र करके उसके साथ होली खेली गयी। फिर सुना-देखा कि पटना में भी किसी महिला को निर्वस्त्र कर दिया गया। यह तो मूल प्रवृत्ति की ओर जाने की बात है। आखिर में हम पैदा तो नंगे ही होते हैं न! तो फिर इस नंगी को बार-बार देखने की जुगुप्सा हमसे यह काम करवा देती है। दरअसल हम चाहते नहीं हैं। मगर हो जाता है, क्या कीजिएगा… यह दिल की बात है, दिल से सीए-वैसे काम हो जाते हैं।
बात नारी को निर्वस्त्र करने की रही है। यह इसलिए होता आ रहा है, क्योंकि हमने नारी को ही घर की इज्ज़त मान लिया है। यह भी मान लिया है कि उसके वस्त्र उतरते ही उसकी और उसके पूरे खानदान की मान-प्रतिष्ठा भी उतर जाती है। कभी सुना कि किसी ने किसी पुरुष को निर्वस्त्र कर दिया? जी नहीं, यह मान लिया जाता है कि ऐसा कर भी दिया जाए, तो उसकी इज्ज़त नहीं जाएगी। और जब इज्ज़त ही नहीं गयी तो उस पर मेहनत कर के फायदा? इंसान का स्वभाव है, कम मेहनत में ज़्यादा लाभ हासिल करना। नारी को निर्वस्त्र कर देना सबसे सस्ता, सरल, सुहावना और कम मेहनत का काम है। लो जी, हमने काम भी कर दिया और फल भी एकदम चंगा मिल गया।
लोग यूं ही परेशान होते रहते हैं, इन सब बातों पर। यह तो हमारी परंपरा में आता है। कहते हैं कि तीनों देवता यानी ब्रह्म, विष्णु और महेश सती अनुसूया के रूप पर बड़े मोहित थे। एक दिन वे तीनों अनुसूया के पास पहुंचे। अनुसूया ने तीनों की आवभगत की और फिर आगमन का उद्देश्य पूछा। तीनों ने कहा कि वे उन्हें निर्वस्त्र देखना चाहते हैं। अब घर आये अतिथि की मांग पूरा करना धर्म माना जाता था। अनुसूया में शायद वो तेज रहा हो, इसलिए कहते हैं कि उन्‍होंने अपने ताप के बल पर तीनों को बाल रूप में परिवर्तित कर दिया और खुद निर्वस्त्र हो गयीं। बच्चे के सामने मां जिस भी रूप में रहे, वह मां ही रहती है।
महाभारत में आ जाइए। दुर्योधन की जीवट इच्छा थी कि वह पांचाली को निर्वस्त्र करे। कह सकते हैं आप कि पांचाली ने उसका अपमान किया था, तो किसी के अपमान की सज़ा उसे निर्वस्त्र करना तो नहीं है। लेकिन यह हुआ।
आज भी यही हो रहा है। नारी को निर्वस्त्र दो कारणों से किया जा रहा है। या तो उसके प्रति नफ़रत हो या उससे या उसके घरवालों से बदला लेना हो। नारी बदला लेने का औज़ार बन गयी है। यह महाभारत काल से चला आ रहा है। युद्ध में भी बलात्कार युद्ध की रणनीति का एक अघोषित पहलू हुआ करता है, जो आज तक बदस्तूर कायम है।
मैं यह नहीं समझ पाती कि एक ओर तो समाज नारी को कमज़ोर, अबला दुर्बल समझता है, दूसरी ओर अपनी विजय का हेतु भी उसे ही बनाता है। यह सोचने की बात है कि एक कमज़ोर पर विजय हासिल कर के हम कौन सी जीत हासिल करते हैं?
दूसरी बात कि बदलाकारियों के लिए सबसे आसान होता है घर की इज्ज़त नारी की मर्यादा का भंगन। तारीफ़ है कि इससे हम सभी अभी तक उबरने की कौन कहे, इसकी ओर सोचते तक नहीं हैं।
तीसरी बात है – नंगेपन की ओर हमारा आकर्षण। हम चाहे जितने भी सभ्‍य हो लें, हो लेने का दावा करें, मन में एक आदम प्रवृत्ति छुपी रहती है और यह आदम प्रवृत्ति यह काम करवाती है। मुझे लगता है कि निर्वस्त्र करनेवालों से यह सवाल ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि ऐसा करके आप अपने भीतर कैसा संतोष और खुशी महसूस करते हैं। और अगर करते हैं, तो क्या वे तब भी यही महसूस करेंगे, अगर कोई उनके घर की स्त्रियों के साथ ऐसा करे? और अगर नहीं तो फिर वे दूसरों की स्त्रियों के साथ ऐसा क्यों करते हैं?
बहरहाल। एक जवाब तो यह लगता है कि वे यह ज़रूर कहेंगे कि ऐसा कर के हम अपनी परंपरा का पालन कर रहे हैं। आखिर हजारों साल पुरानी, समृद्ध परंपरा को छोड़ा भी कैसे जा सकता है? आइए, हम भी इसी परंपरा के हवन में कुछ समिधा डाल आएं। कुछ और को निर्वस्त्र कर आएं। परंपरा का निर्वहन पुण्य का काम है और आइए, इस पुण्य के हम सब सहभागी बनें।

11 comments:

अनिल कान्त said...

अन्य तमाम तरह के आन्दोलन...आरक्षण के खिलाफ धरने प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन नारी के आत्मसम्मान, उनकी सुरक्षा और इस तरह के मामलों के लिए कोई एकत्रित नहीं होता और ना ही कोई धरना प्रदर्शन होता....जिसका राष्ट्रीय स्तर पर नहीं तो कम से कम जमीनी स्तर कुछ फर्क पड़े

M VERMA said...

धारदार लेखन --- ज्वलंत मुद्दे
वाकई यह एक परम्परा ही है -- हमारा समाज परमपरा निर्वहन मे माहिर है.

अर्कजेश said...

जैसा की आपने कहा एकदम सही है |
नारी को नग्न करना उसके अपमान से भी जुडा हुआ है और उसे नग्न देखने की पुरुष की इच्छा से भी |
वजहें और भी बहुत हैं |

अमिताभ श्रीवास्तव said...

uff/

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तीसरी बात है – नंगेपन की ओर हमारा आकर्षण। हम चाहे जितने भी सभ्‍य हो लें, हो लेने का दावा करें, मन में एक आदम प्रवृत्ति छुपी रहती है और यह आदम प्रवृत्ति यह काम करवाती है।


baat to sahi hai.........

Udan Tashtari said...

दुखद करते घटनाक्रम..आपका लेखन बहुत सशक्त है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

यह हमारी छिपी हुई सांस्कृतिक परंपरा है।

बवाल said...

ऐसा मत कहिए जी। दुखद है दुखद है।

Unknown said...

aapki dhaardaar lekhni aur aapka bold subject
prabhaavit karta hai
badhaai !
haardik badhaai !

रेखा श्रीवास्तव said...

नारी को निर्वस्त्र करने का जो सुख पुरुष उठा रहे हैं, वह सुख उठाने के लिए खुद अपनी जाति पर हाथ कैसे डाल सकते हैं. यह तो बिरादरी का सवाल है न, बिरादरी वाले सौ खून कर दें माफ लेकिन गैर बिरादरी वाले को सजा-ये-मौत खुद ही दे डालें.
हम कब तक अपने को इतिहास से बांधे रखेंगे वैसे यह सच है कि इतिहास अपने को दुहराता है और यही फिर हो रहा है. दबंगों की परिभाषा हम नियत कर चुके हैं और ये दबंग किसी से दबने वाले नहीं या फिर कहिये कि ये पुरुष जाति सिर्फ नारी को दबाने में ही विश्वास रखते हैं बाकी सब को खुली छूट है कि कुछ भी करें.
अरे इस परम्परा को खत्म भी करेंगे कि नहीं सारी परम्पराएँ समय के साथ बदल गयीं, लेकिन नारी के साथ यह व्यवहार करके प्रतिशोध लेने की यह भावना कब जायेगी. कब आप उसको पत्नी के साथ माँ और बहन की नजर से देख पायेंगे. क्या सिर्फ आपकी ही माँ और बहन है बाकी सब की माँ-बहनें समाज के लिए तमाशे की चीज बन रही हैं. क्या इन अराजकताओं का विरोध करने का ठेका सिर्फ हम लोगों का है, आप भी एक जुट होकर साथ आइये और दण्डित कीजिये इन सिरफिरों को, यह परंपरा भी बदल जायेगी.
वह माँ बहन किसी और की होती है लेकिन जब निर्वस्त्र की जाती है तो सिर मानवता का ही झुक जाता है और शायद हम सभी मानव है और इस लिए उन्हें भी इस समाज में इज्जत से रहने का हक़ उसका भी है.

rashmi ravija said...

jaise anusuya ne un teeno mahanubhavo ko bachhon me parivartit kar diya...waise hi aisa jaghanya kritya karne wale ko aur maatr darshak bane dekhte rahnewalo ko pagal karaar dete huye pagalkhane me daal dena chahiye...in kunthit aur kroor mansikta wale logo ko psychiatric help ki sakht jaroorat hai..