Tensions in life leap our peace. Chhammakchhallo gives a comic relief through its satire, stories, poems and other relevance. Leave your pain somewhere aside and be happy with me, via chhammakchhallokahis.
Saturday, July 18, 2009
सच का सामना?मुश्किल है दिल को थामना?
आपको पता है की छाम्माक्छाल्लो जेल बंदिउयों के लिए काम करती है. एक बार वह महिला जेल में थिएटर वर्कशाप के लिए गई. वहा एक महिला से पूछा की वह कैसे यहाँ आ पहुँची? उसने जवाब दिया, "ड्रग पहुंचाने के सिलसिले में." "कितने पैसे मिले थे>" "ढाई हज़ार पर बात हुई थी." इतने पैसे मिल रहे थे तो तुम्हे लगा नहीं की किसी गलत काम के लिए हो इतने पैसे दिए जा रहे हैं? वह बोली," दीद्दी, जब जब पेट में आग लगी हो तो गलत-सही कुछ नहीं दीखता. फिर दो-चार बार कर लिया था तो हिम्मत बढ़ गई थी. फिर इतने पैसे कौन किसी काम के लिए देता है?" यह है आसान तरीके से पैसे कमाने की इच्छा, जिससे हम आक्रान्त हैं. हर कोई आज ईजी मानी चाहता है. इसलिए गलत-सही वह नहीं देखता. छाम्माक्छाल्लो दो-तीन दिन पहक्ले शुरू हुए एक टी वि शो "सच का सामना" के सन्दर्भ से बोल रही है. किसी एक ब्लॉगर भाई ने इसे अश्लील, नंगा बताते हुए किसी के निजी जीवन में दखल अंदाजी बताते हुए इसे तुंरत बंद करने की मांग की है. वाह जाना, वाह! क्या बात है? कार्यक्रम के स्वरूप को देखे समझे बगैर ऐसा कह देना? सहभागी क्या अबोध बच्चा है? क्या उसे नहीं मालूम की उससे क्या पूछा जानेवालाहाई? उससे तो उन्हीं ५० सवाल में से २१ सवाल पूछे जाने हैं, जिसे पहले पूछा जा चुका है. अब उनमे से कौन से सवाल चुने जाते हैं, इसे तो वे ही तय करेंगे. जब पहले दौर में आपसे सवाल किये गए और आपको अगर नागवार गुजरा तो एपी निकल आये होते. किसी ने किसी संविधान के तहत यह बाध्यता तो नही लगाईं थी की आपको खेलना ही है. यहाँ तक की शो के दौरान भी होस्ट बार-बार यह कहता है की आप न चाहें तो यही से खेल छोड़कर जा सकते हैं. सहभागी के एनी रिश्तेदारों के लिए बाजार भी है. अगर उन्हें नागवार गुजरता है यह सवाल तो वे बाजार दबाकर उस सवाल को छोड़ने के लिए कह सकते हैं. यह सब नहीं होता है और खेल अबाध गति से आगे बढ़ता है तो सहभागी की हिम्मत की दाद दीजिये की उसमे ऐसे सच का सामना करने की हिम्मत है. अपरिवारावाले की हौसला आफजाई कीजिए की वे सच सुनाने, उसे फेस करने का साहस रखते हैं. यह एक प्रकार का कन्फेशन है. फर्क यह है की इसे करोडों के सामने स्वीकार किया जा रहा है. यह अपनी आत्म कथा लिखने जैसा है. सभी के भीतर यह हिम्मत नही होती. फिर पैसे का भी सवाल है. अगर २१ सच बोलकर एक करोड़ रुपये मिलते हैं तो बहुत से लोग इसमे भाग लेना चाहेंगे. और भाग ले भी रहे हैं. साध्हरण जनता भी और सेलेब्रेटी भी. स्लेब्रेती के लिए तो आप बोल देंगे की उनकी तो लाइफ ही ऎसी है, सर्व साधारण के जीवन के लिए मुश्किल है. तो जनाब, सर्व साधारण जो उसमें गए हैं, या जा रहे हैं, वे वयस्क है, अपना भला-बुरा सोच समझ सकते हैं. खतरा लेने के लिए तैयार हैं, तो आपको क्या दिक्कत है? कही आप यह तो नही दर रहे की कल को कोई आपका अपना इस सच के सामना में शामिल ना हो जाए? झूठ तो हम बहित बोलते हैं, कभी सच का सामना करने की हिम्मत भी जुटाइये. दुनिया इतनी बुरी भी नही है. हां, यह लेख चैअनल के प्रोमोशन के लिए नहीं लिखा जा रहा है. यह स्मिता मथाई के कार्यक्रम के बाद लोगों के विचार पर अपने विचार हैं. चैनल की अपनी बदमाशिया हैं. सूना की एक क्रिकेटर को दूसरे के खिलाफ बोलने के लिए पैसे दी गए हैं, ताकि खबर बन सके. चैनल को अपना मॉल बेचना है तो उसे इस तरह के हथकंडे अपनाने हैं. आप होटल का अगुआरा देखते हैं ना. होटल का पिछुआरा नहीं. उसी तरह से आपके पास एक फिनिश्ड प्रोडक्ट पहुचता है. उसके पीछे क्या-क्या होते हैं, हमें नहीं पता. चीनी को साफ़ करने के पीछे किन-किन रासायनिक का इस्तेमाल होता है, पता नहीं. बचपन में सुनते थे की इसे साफ़ करने के लिए हड्डियों का इस्तेमाल किया जाता था. कार्यक्रमों का भी यही हाल है. सर्व साधारण पर किसी का भी ख्याल नही है. उसे टारगेट बनाय्या जाता है, तो तय हमें करना है की हम टारगेट बनाना पसंद करते हैं या नहीं. आखिर को आप वयस्क हैं. खुद तय कीजिए की सच का सामना करना है या नहीं?
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4 comments:
आपने सच कहा की चेनल वाले अपनी साख बढ़ने के चक्कर में नए नए हथकंडे अपनाते हैं...वो जाल फैलाने में माहिर हैं और हम फंसने में...सच का सामना में प्रतियोगी से ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जो हम सब के साथ बैठकर नहीं सुन सकते...अभी युसूफ साहेब को उन्होंने सिवाय उनकी सेक्स लाईफ के और कोई ढंग के सवाल ही नहीं पूछे...क्या हमारे जीवन में सेक्स ही छुपाने लायक है बाकि और कुछ नहीं...अगर इस कार्यक्रम को अधिक लोकप्रिय बनाना है तो सवालों का स्तर उठाना होगा...
नीरज
गोस्वामी जी से सहमत, पश्चिम के भौंडे भौतिकतावादी आईडिया भारत में दिखाना कहाँ तक उचित है? इस कार्यक्रम में "असली" सवाल सेक्स या प्रायवेट लाइफ़ से सम्बन्धित होते हैं… देखना तो यह है कि किसी प्रतियोगी से उसके भ्रष्टाचार, उसकी नीचता, उसके द्वारा किये गये अत्याचारों पर सवाल होते हैं या नहीं, देखना है कि किसी नेता से उसके स्विस बैंक अकाउंट के बारे में पूछा जाता है या किसी क्रिकेट खिलाड़ी से यह पूछा जाता है कि क्या उसने चयनकर्ताओं को टीम में चुनने के लिये कितने लाख रुपये दिये या खेल में कितनी बेईमानी की… वरना यह सिर्फ़ माल बेचने के लिए नंगापन फ़ैलाना है…। और वैसे भी वेलेंटाइन, समलैंगिकता, लिव-इन रिलेशन आदि के नाम पर भारतीय संस्कृति पर लगातार हमले जारी हैं यह एक और सही, कौन उनका क्या बिगाड़ लेगा? सभी तो प्रगतिशील(?) हो चुके हैं… और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता(?) के पक्षधर बने बैठे हैं…। कुछ ही "पागल" लोग हैं जो धारा के विपरीत कहते रहते हैं…
भौंडा सच सच नहीं होता !!
http://specials.digitaltoday.in/specials/sexsurvey/
हर कोई सेक्स के बाजार से पैसा कमाना चाहता है चाहे वो फिल्म हो सीरियल हो अखबार या पत्रिका हो एक नजर इंडिया टुडे ग्रुप के लिंक पर डाल लें
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