Tensions in life leap our peace. Chhammakchhallo gives a comic relief through its satire, stories, poems and other relevance. Leave your pain somewhere aside and be happy with me, via chhammakchhallokahis.
Tuesday, July 14, 2009
ओह, यह जकड़न
लोग और शास्त्र माँ को जाने क्या-क्या कहते है, किस-किस रूप में पूजते हैं. मगर वही माँ जब अपने बच्चे के प्रति निर्मम हो जाए तो उसे क्या कहेंगे. वह भी ऎसी-वैसी निर्ममता नहीं, उसके व्यक्तित्व, चत्रित्र व् शील के प्रति निर्ममता. अभी-अभी एक ऎसी माँ के बारे में पता चला जो अपने बेटे से अपनी यौन इच्छा की संतुष्टि चाहती है. बेटा दिग्भ्रमित है. यह वर्जित फल उसे आकर्षित भी कर रहा है और दारा भी रहा है. वह पूछ भी नही पा रहा है की यह उसका भ्रम है कावल, माँ के व्यवहार कोदेखा कर या वह खुद ही ऐसा-वैसा कुछ सोच बैठा है. बेटा राम भी जाना चाह रहा है. उम्र के इस मोड़ पर है की इस वर्जित फल का स्वाद भी चखना चाह रहा है. लेकिन आनेवाले परिणामों के प्रति सचेत भी नही होना चाह रहा है. माँ की अपनी बात है. पति परदेश में है. उसकी भी तो इच्छा है ही. अपनी इस इच्छा की पूर्ती वह कैसे करे, वह भी शायद तय नही कर पा रही. जभी तो वह भी कुछ खुल कर नही बता पा रही. समाज का दवाब दोनों पर है, कुछ नैतिक तकाजे से दोनों जकडे हुए हैं. आप से कोई राय नही मांगी जा रही है. बस यह एक स्थिति है, किसी के जीवन की, हो सकता है, बहुतों के जीवन की यह स्थिति हो. वैसों को शायद इससे कोई अपनी ज़बान मिल जाए. मन का कोई समाधान मिल जाए. या तो समाज की फ़िक्र करें, या आनेवाली किसी भी स्थिति से निपटने के लिए खुद को तैयार कर लें. मन की बात सच्ची होती है. मन की मानें और जो मन कहे, उसे करें. पर कराने से पहले एक बार ठंढे दिमाग से ज़रूर सोच लें. ऐसा ना हो की कानून और समाज का सामना ना कर सकें और फिर खुद को गाली देते रहें.
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2 comments:
विभा रानी जी,
मनुष्यो़ के समाज मे़ कही़ भी किसी भी देश मे़ ना तो ये कानूनन ना ही समाजिक रूप से स्वीकार किया जाता है. कहा़ भी ये है इसे इन्सेस्ट कहा जाता है और उए वर्जित है.
इसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ निन्दा की जा सकती है.
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