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Thursday, July 16, 2009

कौमार्य परीक्षण -लड़कों का?

आज कल मुझे बहुत आनंद आ रहा है. हमारा देश तरक्की के रास्ते पर पूरे जोर-शोर से बढ़ रहा है. वह संसार के किसी भी देश, किसी भी पार्टी, किसी भी दल, किसी भी संगठन से पीछे नही रहना चाहता है. उसे डर है कि कही वह पीछे छूट गया और कोई दूसरा उस मौके को ले उड़ा तो उसका क्या होगा? यह व्यक्तिगत स्तर पर, पार्टी स्तर पर, जातिगत, दलगत और देशगत स्तर पर होता रहता है, होता रहा है.
अब देखिए न, कहने को हम हिन्दू हैं, हिन्दू संस्कृति हमारे खून में रची बसी है, इतनी कि जब-तब हमारा यह हिन्दू खून खौल उठता है/ यह तब खौल उठता है, जब हमारे देवी देवता पर कोई आक्रमण (?) कर देता है, उसे अपने विज्ञापन का आधार बना देता है. हमारा खून खौल उठता है, जब कोई विधर्मी (?) हमारी बेटी को अपनी बहू या बीबी बनाना चाहता है.
हम उससे भी आगे होते हैं, जब हम किसी भी लड़की को छेड़ना अपना बेसिक आनंद मान लेते हैं. किसी लड़की को छेड़ना और उसका डर कर, सहम कर वहां से चुप-चाप निकल जाना- वल्लाह! क्या आनंददायी दृश्य होता है. मैं तो अपने सभी भाई- बन्धु से कहूंगी कि छेडो और मजे ले-ले कर छेड़ो, ऐसा फोकटिया और आत्मा को तृप्त कर देनेवाला निर्मल आनंद और कहाँ मिलेगा? कोई अगर आवाज़ निकाले तो उसे ही गलत बता कर उसी पर इतना चीखो, चिल्लाओ कि हिन्दी फिल्म की नायिका की तरह वह दुबक कर बैठ जाये या हिन्दी फिल्म की नायिका की तरह सभी उसे दोष देने लगें.
बलात्कार तो और भी स्वर्गीय आनंद है. आप कल्पना नही कर सकते कि इसमें बलात्कार करनेवाला कितना दिग्विजयी का भाव महसूस करता होगा? कही तो कुछ ऐसा है जो उसे तृप्त करता है, जिस कारण वह इस काम को लिए प्रवृत्त होता है. उसे यह बिलकुल घिनौना नहीं लगता होगा, मेरा दावा है.
इन सब मामलों में लड़कियों की सुनना तो और भी निरी बेवकूफी है. इसलिए हे बंधुओ, कभी भी इन सब मामलों में किसी लड़की की मत सुनो. यह सब उनकी बदतमीजी का फल है. लोग ठीक ही तो कहते हैं कि वे ऐसे देह उघाडू कपडे पहनेंगी तो लोगों का मन तो मचलेगा ही. इसलिए उन्हें सात परदों में रखो. लडके अधनगे घूमते है तो घूमने दो. उसमें कोई बुराई नहीं. लड़की ओ देख कर लडके बेकाबू हो जाते हैं तो यह सरासर लड़कियों का दोष है. और अगर लड़कों को देख कर लड़कियां अपने मन के बहकने की बात कहें तो भी दोष उन्ही का है. हिम्मत कैसे कर सकती हैं ये लड़कियां, कमजात! घर की इज्ज़त का कोई ख्याल ही नही. पता नही कैसे भूल जाने की हिम्मत कर लेती हैं ये कि घर की इज्ज़त लड़कियां ही हैं. शायद लड़कों के आवारा निकलने पर माँ-बाप की इज्ज़त में चार चाँद लग जाते हैं.
बहुत अच्छी बात है कि अपने सारे नीति-नियम लड़कियों पर डालो. जैसे घर के सारे काम के साथ-साथ पूजा-पाठ से लेकर नियम, रस्म, तीज त्यौहार लड़कियों- औरतों को जिम्मे छोड़ दिए जाते हैं, उसी तरह पहनने- ओढ़ने के कायदे कानून भी उन पर डाल दो. उसके बाद कहते रहो, "ये औरतें और उनके दस चोंचले ". मेरा मन तो यह सब सुन कर इतना प्रफुल्लित हो उठता है कि मन करता है उन लोगों के चरण धो-धो कर पियूं.
आखिर औरतें होती ही हैं सभी तरह की जिम्मेदारियों को ढोने के लिए और सभी कुछ के लिए उन्हें जिम्मेदार माने जाने के लिए. घर का बच्चा जब पास होता है तो बाप कहता है, मेरा बच्चा है." अगर फेल होता है या कम नंबर आते हैं तो कहता है, "कैसी माँ हो?" पति बहुत गर्व से कहते हैं, "बच्चा माँ की खूबसूरती ले ले, कोई बात नहीं, मगर दिमाग बाप का ले. " यानी यह तय है कि माँ जो है वह कम अक्ल की ही होगी. और यह सब देख सुन कर आत्मा बड़ी प्रसन्न होती है कि यह हमारी उस हिन्दू संस्क्रती में रहनेवाले लोग कहते हैं जो संस्कृति असुरों से रक्क्षा के लिए देवी की गुहार लगाती है, जो यह कहती है कि जहा नारी की पूजा होती है वहा देवता निवास करते हैं. चूंकि पूजा नहीं होती, इसलिए देवता अब बीडी तो कच्छे-बनियान तो कुछ और के विज्ञापन में खपा दिए जाते हैं.
सच मानिए, मैं बहुत खुश हूँ, अपनी हिन्दू संस्कृति की यह उन्नति देख कर. अभी समलैंगिकता पर बहस चल रही है. हम शिखंडी जैसे महाभारत को चरित्र को भूल जाते हैं, विष्णु के मोहिनी रूप को दरकिनार कर देते हैं. अब एक और बहस चल गई है. सुना है कि मध्य प्रदेश में अब लड़कियों के कौमार्य का परीक्षण किया जानेवाला है. मेरा तो मन मयूर नाच उठा. आखिर घर की इज्ज़त हैं नारियां. तो कौमार्य नष्ट करके आनेवाली लड़कियों के चरित्र का क्या भरोसा? आगे जा कर क्या पता वह क्या गुल खिलाये, ससुराल की इज्ज़त को धूल धूसरित कर दे. इसलिए पहले से ही जांच कर घर लाओ.
मुझे केवल एक ही सवाल परेशान कर रहा है. करता रहता है. अब क्या कीजियेगा इस मूढ़ मगज का कि कोई सीधी सी बात मेरे भेजे में घुसती ही नही. यह कौमार्य परीक्षण केवल लड़कियों का ही क्यों? लड़कों का क्यों नही? क्या कौमार्य नष्ट करने या होने में लड़कों की कोई भूमिका नहीं? क्या कौमार्य घर के पुराने बर्तन -कपडे हैं जो उसे अकेले भी कोई नष्ट कर दे सकता है? क्या लड़कों के पास कौमार्य जैसा कोई तत्व नही होता? क्या लड़कों का कोई चरित्र नही होता? चलिए मान लिया कि कौमार्य परीक्षण में फेल लड़की की शादी नही होगी, जैसीकरानी, वैसी भरनी, तो उसके कौमार्य को नष्ट करने में जो वीर बालक सहायक की भूमिका निभा रहा होगा, उसके कौमार्य का क्या होगा? या यह मान लिया जाय कि लड़कों में या तो कौमार्य होता ही नहीं या उसके कौमार्य की चिंता की ही नही जानी चाहिए. आखिर को वह मर्द बच्चा है और इस तरह के तोहमत उस पर लगाना ठीक नहीं. यह हमारी हिन्दू संस्कृति का वीर बालक है. और वीर बालकों और वीर पुरुषों के बारे में कहा जाता है कि वे दस द्वार से भी आयें तो भी उन पर तोहमत नही लगाईं जा सकती. मेरा ही दिमाग खराब है. उल-जलूल बातें सोचने लगता है.

7 comments:

Arvind Mishra said...

यदि जरूरत हो तो होना ही चाहिए ,मगर क्या कोई तकनीक विकसित की गयी है ? कुदरत भी लड़कों के साथ इतनी उदार क्यों रही है ? कोई ऐसी संरचना नहीं दी जो उसके कौमार्य को परीक्षित कर सके ! सचमुच यह एक विवशता है ! यह बिंदु गहरे विवेचन की मांग करता है पर आपकी पीडा समझी जा सकती है !

डॉ .अनुराग said...

ऐसा लगता है मीडिया ने बाईट की हड़बड़ी में त्वरित प्रतिक्रिया दी ओर खबर ऐसे दी जैसे वाकई कोमार्य परिक्षण चल रहा हो.दरअसल वहां इससे पूर्व कुछ हज़ार रुपियो की खातिर ओर कुछ सुविधायों की खातिर पूर्व में कई विवाहित जोडो ने अपने आप को शादीशुदा न दिखाकर दोबारा शादी कर ली थी .ये सीधा सादा भ्रष्टचार ओर चार सौ बीसी का मामला था .जिसे पकड़ने के लिए जो कवायद की गयी .शायद उसे या तो सही जगह से प्रचारित नहीं किया गया या फिर वो केवल उन लोगो के हाथ में दिया गया जो बेसिक कमर्चारी होते है लगभग पांचवी क्लास पढ़े.आंगनवाडी वर्कर ....जाहिर है मामले को थोडा अलग ओर सवेदनशीलता से हेंडल करने की करूरत थी.....पर मीडिया बात की तह पर क्यों नहीं जाता ...
वैसे आपकी इस बात में दम है की पुरुष का कोमार्य क्यों नहीं जांचा जाता ...

L.Goswami said...

मैं भी यही सोंच रही थी.

kuldip said...

I do not understand why virginity is put on a pedstal.

Vibha Rani said...

Dr Anurag saahab,
aapka kahna sahi ho sakata hai. chaliye maan liya ki paiso ke laalach me koi shadishuda joda fir se shadi rachane pahunch jatat hai. magar isaka kaumaary parikshan se kya nata rishta? char sau biisi ki alag saza ho sakati hai. man lijiye, koi ladaki bachapan mein ya bad me yaun yatana ki shikar hui ho to kya use shadi karane ka koi haq nahin? kai baar kai ladake sabz bag dikha kar bhag jate hain. kya aisiyo ko shadi nahi kar leni chahiye? kai baar vivah poorv hi jode yaun sambandh bana lete hain to kya iunhe shadi nahi karani chahiye. dar asal kaumary parikhsan ka in sabase koi lena dena nahi. doosari baat, saari pavitrata, shuchita ki mang ladakiyon se hi kyo?

Vibha Rani said...

Arvind ji,
is parikshan ki kisi ko koi zaroorat hi nahi hai. sanrachanagat maang yah nahi hai, yah kunthit vivashata bhari maang hai, jisaka shikar ladakiyan banai jati hain. ek or ham ati mahatvapoorn mudde sex education ki zaroorat ko nakarate hain aur doosari or is tarah ke parikshan ko jaayaj thaharate hain. vichar is par ho.

dev said...

gujraat ke dango ke baad akhbaar mein padha tha maine,ek netaji ne ek garbhwati stri ke pet ko cheer kar uska shishu nikal pheka tha.netaji ka kehna tha ki us pal wah maharana pratap ki tarah mehsus kar rahe the.

blatkar ke baad shayad blatkari bhi aisa hi mehsus karte honge.

main arvind mishra ji ke comment pe bhi kuch kehna chahunga.kudrat ne sachmuch purusho ke sath udarta dikhayi.garbh aur masik dharm se lekar kaumarya tak ki jimmedari stri ko de dali.leki sach to yahi hai ki purush ko ishwar ne iss layak nahi samjha aur isliye jimmedariya nahi di.purush garbh ki peeda kaise jhelte, masik dharm ke samay pajama ya underwear pehne kaise ghum pate apne ghar ki chhat pe, jabki jyadatar purush to aise hote hain ki apne sharir ke khas hisse ko khujlane se bhi nahi rok pate khud ko aur sarvjanik jagah pe bhi aisa karna apni shaan aur mardangi samajhte hain.