chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Friday, July 17, 2009

देवी-देवताओं के अपमान से पहले

छाम्माक्छाल्लो आजकल बहुत उदास है। वह एक सच्ची हिन्दू है और इसलिए उसका मन फूल से भी कोमल है. उसकी भावना इतनी कमजोर है की बार-बार लगातार उसे झटके दिए जाते हैं और उन झटकों से उसके मन की कोमल भावनाएं आहात होती रहती हैं. पहले उसकी भावना लोगों के नाम पर आहत हो जाती थी. एक पॉप सिंगर हैं- पार्वती खान. कहते हैं की वे मशहूर लेखक राही मासूम राजा की पुत्रवधू हैं. अब माँ- बाप ने नाम रख दिया पार्वती. उन्हें पता नही था की वे बाद में किसी खान से शादी कर लेंगी और नाम हो जाएगा पार्वती खान. छाम्माक्छाल्लो के कोमल ह्रदय की तरह ही किसी एक सच्चे हिन्दू ह्रदय की कोमल भावना इतनी आहात हुई थी की अखबारों तक में लिख मारा कि देवी के नाम के आगे विधर्मी नाम लगाने से उनका मन बहुत आहत हो रहा है। हिन्दी और मैथिली की मशहूर लेखक हैं- उषा किरण खान। शुद्ध मैथिल ब्राह्मण हैं। (उषा जी इस जातिसूचक संबोधन के लिए माफ़ करें।) इतना ही नहीं, वे बाबा नागार्जुन की भतीजी है। उनकी शादी आई पी एस अधिकारी रामचंद्र खान से हुई। रामचंद्र खान भी शुद्ध ब्रह्मण हैं। (फ़िर से माफी)। मगर आजतक उनके नाम को ले कर किसी की भावना आहत नही हुई। अब बिहार के लोग ऐसे ही पागल हैं तो क्या कीजियेगा? रामचंद्र के आगे खान लगाने पर भी आत्मा आहत नही हुई।

अंडा सेहत के लिए लाभदायक है. लेकिन मेरा सच्चा हिन्दू मन इसका विज्ञापन देख कर बहुत आहत हो जाता है. यह दूसरी बात है कि अंडा खाने के समय यह आहत नहीं होता. छाम्माक्छाल्लो की तरह ही देश और संसार की बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू मांसाहार का सेवन करते होंगे. मगर वे सब सच्चे हिन्दू हैं. मांस खाने से उनका मन आहत नही होता, मगर मांस वाले बर्गर के विज्ञापन पर देवी माँ लक्ष्मी की तस्वीर से आहत हो-हो कर लास्ट-पस्त हो गया. एक सच्ची हिन्दू की तरह छाम्माक्छाल्लो का मन देवी -देवता को कभी जूते के तो कभी कच्छे- बनियान के तो कभी किस्सी और के विज्ञापन पर देख कर आहत होता रहता है। छाम्माक्छाल्लो अपने देवी-देवता से पूछना चाहती है कि क्या उन्हें पता है कि उनका पमान हो रहा है या वे यीशु मसीह की तरह कहना चाहेंगे कि इन्हें क्षमा कर दो, ये नही जानते कि ये क्या कर /कह रहे हैं.

छाम्माक्छाल्लो को लगता है कि उसका सच्चा हिन्दू मन एक अबोध बच्चे की तरह हो गया है. जिस तरह एक बच्चे को छेड़ दो तो वह यह समझ नहीं पाटा कि उसे छेड़ा जा रहा है. वह रोना, ठुनकना, बिसूरना शुरू कर देता है. चिधानेवाले को बच्चे की इस हरकत पर मजा आता है. वह इसका आनंद लेने लगता है. बच्चा जब ज्यादा ठुनकता है तो चिधानेवाला उसे प्यार से गोद में उठा लेता है, उसे थपकियाँ देता है, उसे सौरी भी बोलता है. बच्चा मान जाता है. चिधानेवाला फिर कुछ देर बाद अपनी हरकत शुरू कर देता है.छाम्माक्छाल्लो का सच्चा मन भी इसी बालक की तरह है. देवी-देवता के नाम पर लोग तरह-तरह के खेल कर देते हैं. हम अपमानित होने लगते हैं, गुस्से में भभकने लगते हैं. गुस्सा दिलानेवाले इसका मज़ा लेता रहते हैं और जब गुस्सा फूटने के कगार पर पहुंचता है तब झट से माफी मांग लेते हैं. यह उनके लिए एक मनोरंजक खेल हो जाता है. मगर छाम्माक्छाल्लो क्या करे. वह तो एक सच्ची हिन्दू है. वह आहत और अपमानित होती रहती है. छाम्माक्छाल्लो अपनीसंसार ही के तरह संसार के सभी हिन्दुओं से कहना चाहती है कि हे महामानव सच्चे हिन्दुगन, आप सब पहले मांस खाना छोड़ दीजिये ताकि मांस पर जब हमारे देवी देवता को बिठाया जाए तो हम उस पर और दूनी-चौगुनी तेजी से प्रतिक्रया दे सकें, वरना यह तो दिखावा सा लगता है. विश्व के शीत प्रदेशों के क्लाइमेट के कारण वहा रहनेवाले लोगों के लिए maanasaahaar आपद धर्म की बात हो जाती है, छाम्माक्छाल्लो इसी आपद केकारण मांसाहारी बनी। वैसी जगहों में बसनेवाले हमारे ये भोले-भाले सच्चे हिन्दू अपने धर्म के अपमान की बात करते हैं तो समझ में नहीं आता कि यह कौन सा धर्म है? क्या यह वह धर्म है जहा, जीव ह्त्या की बात अपराध मानी जाती है. तो अब बलि को देवी का प्रसाद कहकर उसे हत्या जैसे शब्द से बचा लें तो अलग बात है। बहरहाल छाम्माक्छाल्लो बहुत दुखी और उदास है। आप उसकी उदासी को दूर करने में थोड़ी सहायता कीजिए ना.

4 comments:

Yunus Khan said...

कुछ बरस पहले पार्वती खान और उनके पति नदीम मिले । उनके संघर्षों का पता चला । फिर हम उन्‍हें भूल गए आज आपने हमें भी उदास कर दिया । इत्‍ते सारे देवी देवताओं का अपमान हम नहीं सह सकते । हम अभी झंडा लहराते हैं । हम अभी फतवे जारी करते हैं । हम अभी.....।
जाने दीजिए पार्वती खान की 'गजलें' (पॉप नहीं )वो भी राही साहब की लिखी..सुननी हों तो जे रहीं
http://radiovani.blogspot.com/2007/11/blog-post_18.html

Neeraj Rohilla said...

आहत होना भी तो ह्यूमन राईट है, राईट ही है कि लेफ़्ट भी हो सकता है।
चचा गालिब से मुआफ़ी के साथ:

पहले हर बात पे होते थे आहत,
अब किसी बात पे नहीं होते।

श्यामल सुमन said...

उदास ही सही लेकिन छम्मकछल्लो के सोच की दाद देनी होगी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

dev said...

devi devta ke bare mein kya kahe...unhe to dudh se nahlaya jata hai.jab ji chahe balti bhar bhar ke shivling pe daal diya.

phir chahe lakho karoro nanhe shishu dudh bhukh se bilakhte rahe aur unke mata-pita tarapte rahe...lekin hum to bas itna keh sakte hain ki desh mein dudh ka utpadan kam hai aur bhagwan ka abhishek shishu ki bhukh se jyada jaruri.hum 51 kilo ke laddu bhagwan ko chadhayenge aur bhikhari aur anath bachcho rulayenge.