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Wednesday, July 29, 2009

हे भीष्म पितामह! काश कि यह नपुंसक भीड़ आपने खड़ी न की होती!

मोहल्ला लाइव पर पढ़े एक छाम्माक्छाल्लो का एक और आलेख। लिंक है-http://mohallalive.com/2009/07/29/dialog-with-mr-bhishm-pitamah/
हे भीष्म पितामह, आपने बहुत से काम किये। अपनी खिलती जवानी में अपना यौवन पिता को दे दिया। आप तो पितृभक्त बन गये, मगर इस तरह से एक बुड्ढे, खूसट को जवानी के और अधिक उपभोग के लिए, उसे खुला खेल फर्रुखाबादी के लिए छोड़ दिया। पता नहीं, यह कारण है या क्या कि आज छेड़खानी के जितने भी मामले आते हैं, उनमें से अधिकतर अधेड़, बूढों द्वारा की गयी छेड़खानी के मामले आते हैं। यह इस देश की लगभग हर स्त्री का, हर लड़की का अनुभव है। मुझे लगता है कि अगर आपने अपना यौवन अपने पिता को न दिया होता, तो बुढ़ापे में काम-भाव को ज़रूरत से अधिक भुनाने की कोशिश न की गयी होती। और तब से चली आ रही इस परंपरा से हमारी आज की कितनी लड़कियों का बचाव हो गया होता।
हे भीष्म पितामह, काश कि आप माता सत्यवती के कहने पर उनके रोगग्रस्त पुत्र के लिए एक तो छोड़‍िए, तीन-तीन कन्याओं का अपहरण कर न लाये होते कि भाई, जिसे मर्जी, उसे चुन लो। आखिर मर्द हो। और जब उनमें से एक अंबा ने कह दिया कि वह तो पहले ही किसी को वरण कर चुकी है, तब अपनी महानता दिखाते हुए उसे छोड़ भी आये। हे भीष्म पितामह, आपको अपने ही इस महान आर्यावर्त की परंपरा का नहीं पता कि नारी एक बार घर से निकली क्या कि बस वह दूषित, जूठन और न जाने क्या-क्या हो जाती है? उसमें भी अपहृत नारी? अपने भावी पति से दुत्कारे जाने के बाद जब वह आपके पास आयी, तब आपने भी उसे अस्वीकार कर दिया। आप तो अपने वचन के पक्के थे, सो कह दिया कि भई, मैं तो अपनी प्रतिज्ञा के साथ जियूंगा, मरूंगा। इसे गांव की भाषा में कमर कस के या लंगोट कसके रहना कहा जाता है। पर हे भीष्म पितामह, इस परंपरा पर आपका ही समय बीतते न बीतते उस पर धूल छा गयी।
हे भीष्म पितामह, काश कि आपने तथाकथित वंश परंपरा की रक्षा के लिए, हस्तिनापुर की गद्दी की रक्षा और अपने वचन की पूर्ति के लिए अपने जीवन की बलि न दी होती। इस सत्ता से बंधे रहने का लाभ भारत देश को कितना मिला, यह तो सभी देख ही रहे हैं, मगर इस सत्ता से बंधे रहने के तर्क के कारण सही-ग़लत की परिभाषा ही समाप्त हो गयी। यह स्थापित हो गया कि राजा जो करे, सब सही, और उसके सभासदों का यह दायित्व है कि वह उसके हर हां और ना में अपना सर हिलाता रहे।
नतीजा, आज का सता-प्रबंध भी आपके ही चरण-चिन्हों पर चल रहा है। विश्वास न हो तो कभी आकर देख लें।
हे भीष्म पितामह, यह सत्ता से कैसा बंधना हुआ कि आपके और आपके समस्त सभासदों, बड़ों और आदरणीयों के बीच आपकी ही कुलवधू द्रौपदी आपके ही घर के एक सदस्य के हाथों नग्न की जाती रही और आप समेत आपकी पूरी सभा मूक बनी रही। इससे तो अच्छा आज का समय है कि आज लोग स्त्रियों को नग्न तो करते हैं, मगर दूसरे के घरों की।
हे भीष्म पितामह, काश कि द्रौपदी को नग्न करते समय आपने अपनी ज़बान खोली होती, अपना विरोध दर्ज़ किया होता तो एक नपुंसक भीड़ की परंपरा का जन्म न हुआ होता। आज उस नपुंसक भीड़ का खामियाज़ा हर देशवासी को भुगतना पड़ रहा है। आज किसी को खुलेआम मारा-पीटा जाता हो, उसकी दिन-दहाडे़ हत्या की जाती हो, उसे सरे बाज़ार नग्न किया जाता हो, मारा-पीटा जाता हो, पूरी की पूरी जनता ख़ामोश खड़ी तमाशा देखती रह जाती है। पितामह, उसे एक डर व्यापे रहता है कि अगर उसने मुंह खोला, तो कहीं उसी की जान पर न बन आये। हे भीष्म पितामह, कहीं आपने भी तो उसी डर से मुंह् बंद नहीं रखा था? दुर्योधन के गुस्से का आपको तो पता था ही। अब वह दुर्योधन गली-गली में मौजूद है। जिसमें जितनी ताक़त, वह उस स्तर का दुर्योधन।
हे भीष्म पितामह, काश कि आपने भाई-भाई के बीच के झगडे़ को पनपने न दिया होता। धृतराष्ट्र लाख राजा थे, मगर थे तो आपसे छोटे। आप उन्हें समझा सकते थे। और उसके बाद दुर्योधन को तो आप डांट-फटकार सकते थे। अब देखिए कि इस परंपरा के कारण आज भाई-भाई में कोई एका नहीं रही। भाई-भाई की यह दीवार हस्तिनापुर् के तख्त तक पहुंची और इस देश के दो टुकडे़ करा गयी।
हे भीष्म पितामह, काश कि अपने भावी पति द्वारा दुत्कारे जाने पर लौटी अंबा को आपने पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया होता। तब शायद आज लड़कियां सामान और भोजन की तरह उपभोग की वस्तु ना मानी जातीं। उन्हें घर की इज़्ज़त के नाम पर कहीं भी डूब मरने को विवश न किया जाता।
हे भीष्म पितामह, इन सबसे ऊपर यह कि काश, जिस देश की सता से बंधे रहने को आप जीवन भर विवश रहे, उसी देश के रक्षार्थ आपने अपने वचन को तोड़ दिया होता। जिस माता सत्यवती के कारण आपने आजन्म अविवाहित रहने का वचन अपने पिता को दिया था, उसी माता सत्यवती के आग्रह पर आपने अपना वचन भंग कर दिया होता और माता की आज्ञा से विवाह कर लिया होता। आपकी महानता पर तब भी कोई आंच ना आती, क्योंकि तब आप अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे होते, जिस माता की आज्ञा पर श्री राम वन को चले गये थे। परंतु, तब यह होता कि आप देश के प्रहरी भर न होते, इस देश के राजा होते। देश पर आपका राज होता। आपकी कर्मठता, कुशलता की छाप से यह देश और समृद्ध और बलवान हुआ होता। तब आपकी अपनी संतान हुई होती, जो निश्चित रूप से आपकी ही तरह स्वस्थ, बलवान और अधिक विवेकशील होती। तब इस आर्यावर्त का स्वरूप कुछ दूसरा होता। तब महाभारत न हुआ होता, तब किसी दूसरे ही भारतवर्ष की नींव रखी गयी होती और उस नींव पर खडे़ भारतवर्ष की कोई दूसरी ही तस्वीर हम सबके सामने होती।

7 comments:

रेखा श्रीवास्तव said...

मत घसीटों इन महापुरुषों को इस कीचड़ में , वे खुद ही तो आदर्श बनकर रास्ता दिखा कर गए हैं. वे तो आदर्श बन गए और उन के आदर्शों को लोगों ने भुना लिया. भीष्म तो हस्तिनापुर के सिंहासन से बंधे थे और मूक दर्शक थे. कुछ भी हुआ बोल नहीं पाए उनसे अच्छे तो विदुर थे कम से कम अन्याय के प्रति प्रतिरोध तो दर्शा सके.
जब दुर्योधन जैसे इतिहास पुरुष जो कर गए , इतिहास अपने को ही तो दुहरा रहा है. अब कितने दुर्योधन है गिना नहीं जा सकता है. तब तो सिर्फ अपना अपमान ही था , अब तो अपमान किसी ने किया और बदला किसी से लिया. न किया तब भी लिया. शिकार तो वही बनी न.
राम अपने सिंहासन से चिपके रहे और सीता को त्याग दिया. ये कैसा न्याय है? लोग कहें अपनी पत्नी को घर से निकल दो और निकाल दिया . ये लोगों के कहने कि त्रासदी ने ही तो नारी को खिलौना बना रखा है. लोग क्या कहेंगे तो बेटी को जिन्दा जला दिया. गैर जाति में शादी नहीं कर सकते , लोगों ने तब भी कहा कैसे कसाई घर वाले हैं, क्या नाम मिला ? तमगे मिले? अपनी अक्ल का प्रयोग नहीं कर सकते हैं. उनको नहीं जीने देते हैं जिनका जीवन , उनके जनक होने की कीमत चाहिए और वसूल कर लेते हैं.

शोभना चौरे said...

ghre bhav .aknya andaj .kb tk khokhle aadrsh ki duhai dega smaj
मै ही सीता हूँ
जिसे
अपनी मर्यादा को
बचाने केलिए
वन भेज दिया

मैही शूर्पनखा हूँ
जिसे तुमने
प्रणय निवेदन करने पर
क्षत विक्षत कर दिया

मै ही द्रोपदी हुँ
जिसे तुमने
अंधे के दरबार में
दाव पर लगा दिया

कभी तुमने मर्यादा का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पुरूष होने का
अहंकार किया
कभी तुमने
अपने पद का अंहकार किया
मुझे क्षत विक्षत
करके भी तुमने
मेरा ही अपहरण किया ?

मेरा चीर हरण
करके
मुझे महाभारत का
निमित्त बनाया ?

मैंने ही
तम्हें रचा ,तुम्हारा सरजन किया

तुमने मुझे

कभी बिह्डो में छोडा

कभी बाजार में बेचा

एक

सुंदर ससार की सहभागी बनू

ये समानता थी मेरी

कितु तुमने ही

मुझे कैकयी बनाया

मन्थरा बनाया

अपने ग्रंथो में


मै चुप रही

आज तुमने मुझे

फिरसे

आदमियों के जंगल में

खड़ा करदिया है

बिकने के लिए


नही?

अब कोई मेरा
अपहरण nhi करेगा
न ही मेरा चीर हरण करेगा

न ही मुझे धरती में समाना होगा

न ही मुझे किसी की
जंघा पर बैठना होगा
मालूम है ?
तुम्हे
क्यो ?
क्योकि !
शक्ति ने
स्वीकार ली है,
नर- बलि |
shobhana

Unknown said...

Bhishm pitamah ek mahapurush the
aaj ke kalyugi samaj se unhe mat jodo, are bhishm pitamha ki achhiya yaad nahi rahti,
samaj ka bada garg huva to mahan purosho ki vagha se....
kahne vaale to shri krishn se bhi tulna karne me nahi chukte hai, kahte hai 'krishna ki kitni patraaniya thi' vo ye nahi gaante ki un sabhi ladkiyo(patraaniyo)ko shri krishna ne ek raakshas se bachya tha, kya hai tumme vo sahas ki aaj ke kalyugi rakshs se tum kisi ki raksha ker sako-- ?

VIJAY KUMAR GARG said...

जिस किसी मानसिक रूप से वीभत्स, कायरपूर्ण अज्ञान के सागर मे डूबकर ये लेख लिखा है पहले वो गीता को जीवन मे उतार कर देखे पुनः गंगापुत्र देवव्रत को भीष्म के रूप मे देखे तब समझ आएगा की गंगापुत्र ने जो किया वो सही था या नहीं ...इस प्रकार की कूपमंडूकी भाषा से ये परिलक्षित होता है की लेखक मानसिक रूप से वीभत्स है .....

धर्म संसार said...

किसी के बारे में आलोचना करना आसन है. भीष्म ने ये किया होता तो ये हो जाता. हम लोगों को अंदाजा भी नहीं है की उस समय परिस्थिति क्या हुई होगी. आज कौन ऐसा व्यक्ति है जिसमे असली प्रतिज्ञा करने का समर्थ हो? दूसरों पर कीचड उछालना आसान है लेकिन उनके पद चिन्हों पर चलना मुश्किल. आश्चर्य है की कोई व्यक्ति भीष्म जैसे महापुरुष का भी अपमान कर सकता है जिसका अपमान स्वयं कृष्ण नहीं कर सके.

Anonymous said...

कठिन आलोचना

RAHUL said...

मानसिक रूपभीष्म