मोबाईल कभी रही होगी लक्जरी
अब है उनकी अनिवार्य ज़रूरत।
केमो के बेड पर लेटी औरतें
चलाती हैं गृहस्थी- मोबाइल से
सब्जी काटने से लेकर कपडे सुखाने तक
बच्चे की फीस से लेकर पति के टिफिन तक
दरजी के नाप से लेकर चिट फंड तक
एकादशी से लेकर सिद्दिविनायक
और वैष्णोदेवी तक
पूजा से लेकर मन्नत तक
हरे से लेकर सफ़ेद तक
दफ्तर की मीटिंग से लेकर इन्स्पेक्शन तक
देश की पोलिटिक्स से लेकर जीवन की राजनीति तक।
जीवन का कोइ कोना नहीं है ऐसा
जो छूटा हो औरतों से- केमो के बेड पर।
जीवन से भरी और ड्यूटी से पगी इन औरतों को
कोई भगा सकता है कहीं?अब है उनकी अनिवार्य ज़रूरत।
केमो के बेड पर लेटी औरतें
चलाती हैं गृहस्थी- मोबाइल से
सब्जी काटने से लेकर कपडे सुखाने तक
बच्चे की फीस से लेकर पति के टिफिन तक
दरजी के नाप से लेकर चिट फंड तक
एकादशी से लेकर सिद्दिविनायक
और वैष्णोदेवी तक
पूजा से लेकर मन्नत तक
हरे से लेकर सफ़ेद तक
दफ्तर की मीटिंग से लेकर इन्स्पेक्शन तक
देश की पोलिटिक्स से लेकर जीवन की राजनीति तक।
जीवन का कोइ कोना नहीं है ऐसा
जो छूटा हो औरतों से- केमो के बेड पर।
जीवन से भरी और ड्यूटी से पगी इन औरतों को
जबतक ये खुद न चाहें भागना।
घर गृहस्थी, पति, बच्चे और
संसार के मोह से होकर पस्त
औरतें - खुश हैं मोह के इस आवरण में
चलाती हैं गृहस्थी- केमो के बेड से
लेटकर, बैठकर, नींद से जागकर।
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