"CAN: Cancer and Nightingale" इस शीर्षक से कविताओं की शृंखला शुरू कर रही हूँ। उद्देश्य- कैंसर के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना और इसके प्रति अतिरिक्त डर को समाप्त करना है। कैंसर से निजात पाया जा सकता है, अगर आप पहले से सचेत रहें, अपने शरीर पर ध्यान देते रहें, शरीर में आई किसी भी असामान्यता पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। कैंसर अगर हो ही गया है तो घबड़ाइए नहीं, वैसे ही डटकर उसका मुक़ाबला कीजिए, जितना सीमा पर मौजूद हमारे जवान दुश्मनों का करते हैं। और सबसे ऊपर है आपकी सकारात्मक सोच। आप ही खुद को अपनी सोच से ठीक कर सकते हैं और अपने घर व आसपास के माहौल को ज़िंदादिल बनाए रख सकते हैं- कैंसर के बावजूद। तो आइये, कहें कि Yes! I can. and lets celebrate Cancer.
You will get these poems in Hindi and English both. Your views, experiences and opinions are welcome!
क्या फर्क पड़ता है!
सीना सपाट हो या उभरा
चेहरा सलोना हो या बिगड़ा
सर घनबाल हो या गंजा!
ज़िन्दगी से सुंदर, गुदाज़
और यौवनमय
नहीं है कुछ भी।
आओ, मनाओ, जश्न इस यौवन का
सीना सपाट हो या उभरा
चेहरा सलोना हो या बिगड़ा
सर घनबाल हो या गंजा!
ज़िन्दगी से सुंदर, गुदाज़
और यौवनमय
नहीं है कुछ भी।
2 comments:
सुन्दर कदम :)
धन्यवाद रश्मि जी।
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