chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Monday, April 13, 2015

CAN series poems-4. गाँठ


गाँठ
गाँठ
मन पर पड़े या तन पर
उठाते हैं खामियाजे तन और मन दोनों ही
एक के उठने या दूसरे के बैठने से
नहीं हो जाती है हार या जीत किसी एक या दोनों की।
गाँठ पड़ती है कभी
पेड़ों के पत्तों पर भी
और नदी के छिलकों पर भी।
गाँठ जीवन से जितनी जल्दी निकले
उतना अच्छा ।
पड़ गए शगुन के पीले चावल
चलो उठाओ गीत कोई।
गाँठ हल्दी तो है नहीं
पिघल ही जाएगी
कभी न कभी
बर्फ की तरह।

No comments: