बहुत दिन बाद फिर से मुखातिब! आज आपको सुना रही हूँ एक निर्गुण। इसका प्रयोग मैंने भीष्म साहनी की कहानी "समाधि भाई रामसिंह" पर तैयार अपने सोलो नाटक में किया है। पूरे नाटक के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं- gonujha.jha@gmail.com पर !
आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।
अम्मा कहे मोरे पूत को भेजो
ढोए मोरे कान्हे की गठरिया रे,
बहना कहे मोरे बीरन को भेजो
झीनी झीनी बीनी जिन चदरिया
बेटी कहे मोरे बाबुल को भेजो,
रंगेंगे लगन की चुनरिया रे,
सांवर ड्योढ़ी से टुक-टुक निहारे
छोड़ गयो हिया की नगरिया रे।
आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।
https://www.youtube.com/watch?v=_TyFGWFChFE
आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।
अम्मा कहे मोरे पूत को भेजो
ढोए मोरे कान्हे की गठरिया रे,
बहना कहे मोरे बीरन को भेजो
झीनी झीनी बीनी जिन चदरिया
बेटी कहे मोरे बाबुल को भेजो,
रंगेंगे लगन की चुनरिया रे,
सांवर ड्योढ़ी से टुक-टुक निहारे
छोड़ गयो हिया की नगरिया रे।
आए जोग सिखावन, मोरी नगरिया गुजरिया रे।
https://www.youtube.com/watch?v=_TyFGWFChFE
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