क्या है अवितोको? क्या है इसका रूम थिएटर? क्या और कैसे काम करता है यह? कैसे जुड़ सकते हैं आप इससे? जानने-समझने के लिए आइये, देखें इसको।
"1 मई 2001 का दिन। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस।
सफेदपोशी मजूरी कर रहे कुछ सृजनात्मक जुनूनियों के दिलों में बहुत कुछ घुमड़ रहा
था। अपनी सृजनशीलता को लेकर गहरे डूबे हुए, उसमें अपना आकार- प्रकार खोजते हुए। सभी के मन में कई- कई जद्दोजहद!
हम इस समाज में रहते हैं, इस समाज
से सबकुछ लेते हैं, यहाँ तक
कि अपनी रचनाओं के लिए भी समाज के ही लोगों में से अपने पात्र चुनते हैं। ...लेकिन, बदले में हम इस समाज या इन चरित्रों को क्या देते
हैं? फिर तो
हम भी शोषक हुए! .....कई दिनों, महीनों
की आपसी जद्दोजहद, कश्मकश
के बाद जन्म हुआ “अक्षर
विश्व का तोष एवं कोश” यानि अवितोको का। ये बेचैन आत्माएँ
थीं- अजय ब्रह्मात्मज, प्रणय
नारायण, संजय
कुमार, मंजिता
नारायण और ऐसे ही कुछ अन्य लोग!। ...पहले ही तय हुआ कि अवितोको की स्थापना का कोई
प्रचार -प्रसार नहीं किया जाएगा। ....काम करो। लोग हमें हमारे काम से जानेंगे।
.... और शुरू हुआ अवितोको के काम! अपनी स्थापना के दूसरे दिन से ही ज़रूरतमन्द
लोगों के लिए घरेलू उपयोगी वस्तुओं का वितरण, बच्चों, युवाओं के साथ-साथ कॉर्पोरेट सेक्टरों के लिए
विकासात्मक प्रशिक्षण। वृद्धाश्रमों और अनाथालयों के साथ बातचीत। पुस्तकालयों के
लिए पुस्तकें देना।
कुछ संतोष हुआ। मगर, यह
तो बहुत सरल और साधारण से लगनेवाले प्रयास थे। काम में चुनौतियाँ ना हों, तो उसे करने का आनंद कम हो जाता है। रास्तों की
तलाश होती रही और अंतत: यह रास्ता मिला जेलों की दीवार से, जिसके भीतर जिंदगियाँ धड़कती हैं, गुमनाम, सहमी, घर-परिवार और हित-मित्रों से अलग। और सफर शुरू
हुआ जेलों का, बंदियों के लिए। माध्यम थे, कला, साहित्य
और रंगमंच! यह भी तय था - उन्हें कुछ सर्जनात्मक क्षण प्रदान कर उनके ओठों पर
मुस्कान लाएँगे, उन्हें व्यक्ति, संपत्ति और देश की महत्ता से जोड़ना। मुंबई की
भायखला, आर्थर रोड, कल्याण और ठाणे सेंट्रल जेल तथा पुणे की यरवदा
जेल अवितोको की गतिविधियों के केंद्र बने। बंदियों को अवितोको का संग-साथ भाने
लगा। वजह?“आप सब हमसे हमारा अतीत नहीं पूछते, हम सबको ईश्वर का गुण-गान करने को नहीं कहते, यह नहीं कहते कि हमने पाप किया है, इसलिए इसका प्रायश्चित करो, बल्कि, आप
हमारे भीतर की दबी-सोई कलात्मक अभिव्यक्ति को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं।
भीतर की दबी-सोई कलात्मक अभिव्यक्ति को बाहर
निकालने की कोशिश के तहत पिछले साल मार्च में अवितोको ने “रूम थिएटर” शुरू
किया, ताकि हर आयु, वर्ग के लोगों की छुपी हुई प्रतिभाओं को मंच
मिले, अपने क्षेत्र के गुणीजनों की
संगत और उनकी बातें आज के लोगों तक पहुंचे और न्यूनतम खर्च मे अच्छे नाटक देखने को
मिले। साहित्य, फिल्म, नाटक,कविता, कहानी, यहाँ
तक कि संचालन-कला तक पर अवितोको रूम थिएटर ने कार्यक्रम किए और अपनी बात सभी तक
पहुंचाने में कामियाब रहा है।
अवितोको रूम थिएटर अपने एक साल के पूरे होने को
महिला सृजनकारियों के साथ “निषेधों
के पार: सृजन का संसार” के रूप में मना रहा है, जिसमें अपने-अपने क्षेत्र की महिला सर्जक अपनी
कहानी, अपनी यात्रा साझा करेंगी सबके
साथ, ताकि नई पीढ़ी को अपना रास्ता
चुनने में आसानी हो सके। कार्यक्रम का उदघाटन राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित
कलाकार उषा जाधव करेंगी। चर्चा के पहले सत्र “निषेधोएँ के
बीच संवेदनाओं का संरक्षण” में भाग लेंगी, माला डे, अदिति
गुप्ता, उषा जाधव, कानुप्रिया पंडित और निवेदिता बौंठियाल। चर्चा
के दूसरे सत्र “ महिलाएं- अतीत, वर्तमान, भविष्य-
आशाओं का क्षितिज” में भाग लेंगी, मेनका शिवदासानी, पूर्णिमा अवस्थी, सीमा कपूर, शशि
दंभारे, सुदर्शना द्विवेदी और शशि
शर्मा। काव्य-पाठ के सत्र में हैं- अर्चना जौहरी, कविता गुप्ता, मालती जोशी, मनीषा लाखे, मेनका शिवदासानी, नेहा शरद और शशि दंभारे। लोकगीत प्रस्तुत करेंगी
झंकार और मेघा श्रीराम तथा नाट्य प्रस्तुतियाँ होंगी माधुरी भाटिया, मीना सासने और विभा रानी की। आभार ज्ञापन मधु
अरोड़ा करेंगी। यह कार्यक्रम है शनिवार 7 मार्च को सुबह 10 बजे से मणिबेन नानावटी
महिला कॉलेज, विले पार्ले (प), मुंबई में। विशेष जानकारी के लिए संपर्क किया जा
सकता है- 09820619161/gonujha.jha@gmail.com पर।"
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