"नेट ने हो राम जी, बड़ा दुख दीना।
दिन भर गायब रहकर मोरा सुख छीना।"
इस देरी के लिए छम्मकछल्लो की ओर से सिर-से पैर तक की बार-बार मुआफ़ी। बहरहाल, ज़्यादा वक़्त ने लेते हुए आज सलमान हैदर की कविता, जो पाकिस्तान
के “फातिमा जिन्ना महिला विश्वविद्यालय, रावलपिंडी के जेंडर स्टडीज़ विभाग में पढ़ाते हैं।
उर्दू में इनका ब्लॉग dawn.com में प्रकाशित होता
है। कवि, व्यंग्यकार, नाट्य लेखक व
रंगमंच अभिनेता हैं। “सियासत @ 8 pm”
इनका लिखा राजनीतिक व्यंग्य नाटक है। “दगाबाज” और
“वेटिंग फॉर गोदो” में अभिनय किया है।
सलमान हैदर की एक कविता "काफिर-काफिर" छम्मकछल्लो ने पेश की थी, जिसे आप सबने बहुत पसंद किया। यहाँ उनकी एक और कविता पेशे-खिदमत है। उम्मीद है, यह भी आपको उतनी ही पसंद आएगी। आए, तो एक लाइन का कमेन्ट देते जाइयेगा। हम लिखनेवालों का यही सबसे बड़ा इनाम है।
मुल्ला का क्या है
एजेंडा!
हर औरत की
आठ साल की उम्र में
शादी,
बाक़ी उम्र, सिरों पर बुर्के,
पेट में बच्चे,
बुर्के पहने, बच्चे थामे,
एक दूजे के आगे-पीछे,
चलता-फिरता, गिरता-पड़ता,
अंधा रैवर
फूले पेटोंवाले
उस रैवर के आगे
इक रखवाला, पगड़ीवाला,
दाढ़ीवाला,
हर बंदे का एक हाथ
नेफे के अंदर
कंधे पर बंदूक,
बदन बारूद,
और दूसरे हाथ में,
मुल्ला का क्या है
एजेंडा!
घुटनों से कुछ नीचा
कुर्ता
टखनों से ऊंची शलवार
पीठ पे कोड़े,
हलक पे छुरियाँ,
सिर पर हैबत की तलवार
रोज सड़क पर बम धमाका
फौज की चौकी, पुलिस का नाका
बच्चे लंगड़े,
भूख के भंगड़े,
जंगों के मैदान गरम
और चूल्हा ठंढा,
मुल्ला का क्या है
एजेंडा!
-सलमान हैदर
3 comments:
वहाँ का कड़वा सच है ...एक सच यह भी है कि ऐसे ही कुछ लोग बहुत ग़रीब भी होते हैं जो अपना सब कुछ बेचबाच कर खाड़ी देशों में पैसा कमाने आते हैं.. हज़ारों दर्दभरी कहानियाँ यहाँ दफ़न है.
सलमान हैदर ने अपने मुल्क की हकीकत बयां कर दी है , काश वहां की सरकार सामाजिक चेतना जागृत कर समाज के उथ्थान व कल्याण की सोचती
सरकार का हाल तो अपने यहाँ का भी वही है महेंद्र जी। हम अपनी चेतना जगाएँ, बहुत कुछ संभव है।
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