तो? वियाग्रा की व्यग्रता हम औरतों में नहीं है, ऐसा छम्मकछल्लो क्यों माने भला? हम औरतें क्या इंसान नहीं हैं? शायद नहीं. इसीलिए तो ‘कितने लोग थे?’ पूछने पर जवाब मिलता है- 40 और 3 औरतें. मतलब, औरतें लोग या मनुष्य नहीं हैं. मादा जानवर और पक्षी भी सेक्स से परिचालित होती हैं. हम औरतें इस ओर देख क्या, सोच भी नहीं सकतीं. सोचा, समझा भी तो चरित्रहीन, कुलटा, कलंकिनी के ठप्पे पर ठप्पे. कर लिया, तब तो पता नहीं कौन कौन से विशेषण!!!
हे धीरमना! क्या आपने कभी दो पशु या पक्षी युगल को प्रेमरत नही देखा है और उसमें मादा की भागीदारी नहीं देखी है? तो यह भी देखा होगा महामना कि जबर्दस्ती करने पर ये मादाएं भी अपने साथी को झिडक देती हैं. हम औरतें तो इनसे भी गई बीती हैं. झिडकने, मना करने पर सत्तर उपदेश हाजिर. लब्बोलुबाब कि उनकी संतुष्टि तुम्हारी खुशी है. उनको खुश रखो, वरना तुमसे नाखुश ‘वो’ कहीं और चला गया तो देवी जी, तुम क्या कर लोगी? हां री मैया, सचमुच! और हमारी खुशी-नाखुशी? ये लो. ये भी कोई सवाल है?
छम्मकछल्लो किसको समझाए कि वह सेक्स को अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त, सबसे सुंदर, सबसे कोमल तंतु मानती है. सेक्स खराब हो ही नहीं सकता, क्योंकि इसी से सृष्टि है. क्या भाई लोग सारी सृष्टि को ही खराब कह देंगे? मगर हम औरतें भी ना! हर चीज़ की तरह सेक्स को भी मन से जोड लेती हैं. छम्मकछल्लो का तो पाताल की अतल गहराई तक विश्वास है कि औरतों को अपने सेक्स की अभिव्यक्ति का मौका मिलता ही नहीं. बहुत पहले उसने एक समाचार पढा था कि एक पति ने अपनी पत्नी को इस आधार पर तलाक दे दिया, क्योंकि पत्नी एकांत के कोमल पलों में अपनी अभिव्यक्ति में तनिक आगे बढ जाती थीं. पति को लगा कि उसने यह सब जरूर कहीं और से सीखा होगा. यह पतियों पर लागू नहीं होता. वे कुछ भी एक्सपेरिमेंट करें, सब चलता है. वे शायद जनम से सीख कर आते हैं.
छम्मकछल्लो जानती है कि दैहिक संरचना भले ही स्त्री पुरुष की अलग अलग है, परंतु, मन और तन दोनों के पास हैं. जिनके पास मन अधिक होता है, वे वियाग्रा की व्यग्रता से बच जाते हैं. जिनके पास तन की बेचैनी है, उनके लिए तो दस वियाग्रा भी कम है. छम्मकछल्लो को यही समझ में नहीं आता कि भाई लोगों को हम स्त्रियों के पैरोकार बनने का इतना शौक क्यों चर्राया रहता है? अरे भाई, माना कि बहुत सी स्त्रियों की सेक्सुअल क्षमता अधिक है या उसे अधिक अभिव्यक्त करना चाहती हैं तो उन्हें खुद से उपाय करने दीजिए ना! उसे जाने दीजिए, डॉक्टर के पास, साइकॉलॉजिस्ट के पास. इस्तेमाल करने दीजिए पुरुष के लिए बाजार में उपलब्ध सिगरेट और शराब और वियाग्रा भी. करे आकलन बाज़ार कि कितनी महिलाएं वियाग्रा की व्यग्रता से व्यथित होकर दुकान आती हैं. वियाग्रा की ऐसी भी व्यग्रता नहीं है भाई कि महिलाएं उसके लिए अंधी बन जाएं. सेक्स हमारी भी जैविक समस्या है, पर इतनी भी जैविक नहीं कि मन को छोड सेक्स का भोंपू बजाते रहें.
बाज़ार महिला मुक्ति के नाम पर कुछ भी निकाल दे. उसे तो पैसे कमाने हैं. बहुत पहले एक कंपनी ने महिलाओं के लिए सिगरेट निकाली थी. फेल हो गई. छम्मकछल्लो माथा कूट रही है कि पता नहीं, कौन कौन से महिला संगठन थे जो महिला वियाग्रा बनानेवाले के विरोध में खडे हो गए. क्या कहा जाए इनके भी दिमाग को. एक मुद्दा मिलता है और झंडा उठाकर चल देती हैं. अरे,जीतना ही था तो कमर के नीचे मारकर जीततीं ना! कम्पनी को वियाग्रा बनाने देतीं. सिगरेट की तरह यह भी फेल हो जाती. नुक्सान उठाने देते. माल बिकता नहीं. घाटे के बाद होश ठिकाने आते. पूंजी भी जाती, माल पडा पडा सडता रहता. क्या पता, अपने घर के शादी-ब्याह, छठी-मुंडन में वे सभी को इसी का उपहार दे देते. कम से कम अपने ही घर में इसका कुछ तो सदुपयोग हो जाता.
छम्मकछल्लो दुख से जार-जार है कि नाहक लोगों ने इसे बाजार में आने नहीं दिया. अरे, पश्चिम के रास्ते यह पूरब के भारत में भी आता. तब कितना मज़ा आता. वियाग्रा खरीदने के लिए नहीं, हम स्त्रियों के तथाकथित नैतिक ठेकेदारों की व्यग्रता देखने के लिए. हमारे संस्कारहीन हो जाने के भय से भयभीत, हमारी शुचिता के खो जाने से डरे हमारी देह के रखवाले ये आहत, पराजित, भयभीत लोग!
छम्मकछल्लो ने जब से साध्वी बनने की घोषणा की है, उसकी नज़र काल के पार चली जाती है. इस काल के पार वह देख रही है कि महिलाएं वियाग्रा का सेवन कर रही हैं. वियाग्रा के सेवन से उनकी व्यग्रता बढ रही है. अपनी व्यग्रता वे अपने साथी पर उतारने को आतुर-व्याकुल हैं. बिचारे साथी जान बचाए भागे भागे फिर रहे हैं. उफ्फ नारी संगठनो! यह क्या किया तुम लोगों ने? इतने दिनों से पुरुषों के खिलाफ झंडा ले कर खडी हो और फिर भी उनसे जीत नहीं पाई हो. इस एक वियाग्रा के मार्फत जीत जाती. एक जीती हुई बाजी हार गई तुम सब और तुम्हारे बायस से हम औरतें भी. ओह! सदमाग्रस्त छम्मकछल्लो कहां जाए?##
3 comments:
suche pyar se badhkar kabhi sex nahi hota,
वियाग्रा का स्त्री वर्जन भी आ रहा था बाज़ार में ? और महिला संगठनों ने इसका विरोध किया.... कछु गलती हो रही है छम्मक छल्लो तुहार से. हमका लगे है की जरुर पुरुष संगठनों ने ही इसका विरोध किया होगा. अरे पहले से ही अपने बिखराव से शर्मिंदा पुरुषों के लिए तो और शर्मिंदा होने का एक नया औजार होता वियाग्रा का ये नया वर्जन.
हां वही तो.
Post a Comment