लोग कुछ भी कहें, मगर ई सच है कि अपने देश में लोग स्त्री की बहुते इज़्ज़त करते हैं. काहे कि घरवाली की महिमा बहुते बडी है. लोग कहते फिरते हैं कि भाई, हम तो ‘उनकी मर्जी’ के बगैर कुछ भी नहीं करते. गृहमंत्री तो वही हैं.
वही गृह मंत्री जब अर्थमंत्री बनने लगती हैं, सलाह देने लगती हैं, तब स्त्री की इज्जत करनेवाले का सत्त, टेक आ अभिमान जागता है. आ ठीको है भाई! औरत लोग के दिमाग में ई काहे नहीं घुसता है कि जब औरत हो कर जन्मी हो तो औरते के तरह काहे नहीं रहती हो? इससे ई तो साबित होइये न जाता है कि औरत लोग को दिमाग नहीं होता. और जो जादे ही पुन्न परताप किए रहती तो ऊपरेवाला तुमको मरद बना के धरती पर भेजता कि नहीं? सो पहिले से ही काहे नहीं समझ लेती हो कि ऊपरोबाला दू नजर रखे रहता है अपने ही सृष्टि पर.
औरत लोग ठहरी झोंटैला पंच. सो उसको एक दूसरे का झोंटा खींचने से फुरसते नहीं मिलता है. आ बात ई है कि हम लोग भी तो ईहे चाहते हैं कि उनका ई झगडा-झोटा चलता रहे. इससे हमको अपना ‘लाइफ’ गुजारने में आसानी हो जाता है और ई भी कहने का आराम मिलता है कि औरते लोग औरत का दुश्मन होती है. सबसे मजा तो तब आता है, जब ई मूरख औरत लोग भी पतिया जाती है आ राम नाम की तरह ऊ सब भी ईहे उचारने लगती है.
छम्मकछल्लो को सब कुछ बहुते अद्भुत लगता है. ऊ समाज के सभी बडका लोग को परनाम करती है. ई बडका लोग के पास बडका- बडका सत्त है, शील है, ईमान है, धरम है, आन है, बान है, शान है. उनका ऊ सब शान, जो और कहीं नहीं निकल सकता है, ऊ सब निकलता है अपना अपना घरवाली पर. घरवाली चाहे जितनी भी समझदार हो, ऊ यही कहेंगे कि अरे औरत लोग का अक्किल तो ठेहुन में होता है. ऊ बडका बडका लोग के घर में चाहे जितनी प्रतिभावान बेटी, बहू, बीबी हो, ऊ सबको एक्के लाते लतियाते हैं. कोई अपना प्रतिभा का उपयोग करना चाहेगी और कुछो सलाह –मशिविरा देगी तो सबसे पहले कह देंगे कि तुमसे कौनो कुछो पूछा है कि बेंग जैसा टर्रा रही हो. या जब जेतना पूछें, ओतने बोले. बेसी बोलने का जरूरत नहीं है. और कोई काम करने की बात सोचेगी तब तो पूरी देहे मे आग लग जाता है- “अब तुम काम करोगी? पढ लिख गई, यही बहुते हुआ.” आ मामिला अगर घरवाली का है तब तो पूछबे मत करिए. ऊ सीधे सीधे कह देंगे- “घरवाली का कहा मानेंगे? या कि घरवाली का कमाई खाने से नीमन है कि चार आना का जहर खरीदकर मर जाएं. अब छम्मकछल्लो कैसे कहे कि चार आना में आजकल कुछो नहीं मिलता है और लोग जहर खरीदने से नहीं, खाने से मरते हैं.
3 comments:
ये पुरुष का अहम् , अपने धर्म का प्रसाद है. जहाँ केन्हू जाईये , देवी , देवा के चरणों में लिप्टल है. धन की मालकिन पैर दाबती खुश है. अपना देवा स्वर्ग से आकर भोग लगाता है. औरतिया से डर लागल रहता है सो ऐसा नाटक तो होते रहता है. कोनो पुरुष कहाँ है. सब तो रटल फितंत हैं ओनली सेक्स एजेंट हैं..
हा हा सुजीत. बढिया. लिखने का तरीका पसंद आया.
कही गयी बातें
मननीय हैं ..... !
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