दो दिन से हम टीवी और आज अखबार देखकर भर भर गए. हर अखबार के दो-दो, चार-चार पन्ने आंसुओं से भीगे हुए हैं. एक इतने बडे भगवान की मौत! ना, ना, महापरिनिर्वाण. हाय रे! राम, कृष्ण आज के समय में क्यों ना हुए? कितना लाइव टेलिकास्ट होता राम का वन गमन, सीता का भूमि गमन, कृष्ण की रासलीला, द्रौपदी का चीरहरण! रासलीला और चीरहरण की सीडी तो मुंहमांगे दामों में बिकती. देश श्रृंगार प्रधान है. ....चलिए, श्रृंगार प्रधान नहीं है, भक्ति प्रधान तो है ना. सो, देखिए, सारा देश बाबा के सोग में ऐसा डूबा हुआ है, जैसे सही में इस धरती से भगवान नाम की सत्ता उठ गई है.
क्या ज़माना है! अपने तेज से दूसरों को रोग के चंगुल और मौत के आगोश से बाहर खींच लाने का दंभ भरनेवाले बाबा खुद आधुनिक ईजादवाले अस्पताल में सपोर्ट सिस्टम पर पडे रहे और जीवन-मौत के झूले की एक एक टूटती डोर के साथ अपने मोक्ष का रास्ता खोजते रहे. सम्भवत: स्वर्ग के रास्ते में क्यू लगा होगा. आजकल सभी तो धर्मवादी हैं. जो जितना तगडा दानदाता, वह उतना तगडा धर्मदाता. और देश में ऐसे महान दानदाताओं की कमी है क्या? बोरे में ठूंसकर उनकेदान भरे जाते हैं, दिन रात गिनने के लिए लोग बैठे रहते हैं, तब भी दान की गिनती नहींहो पाती. उस दान से ही देश के लाखों बच्चे ऊंची पढाई कर सकते हैं. लेकिन, इससे अपना परलोक थोडे ना सुधरता है. सुधरता है इन भगवानों, मंदिरों के लिए खुले इनके अक्षय खजाने से. दान देकर ये सब स्वर्ग के लिए डायरेक्ट बुकिंग करा लेते हैं. श्री सत्य साईं बाबा इन्हीं के चक्कर में फंस गए होंगे.
यहां लोग अलग चक्कर में फंस गए हैं. आज के भगवान दूसरों को कहते हैं कि माया तो माया है, इनके पीछे मूरख! मत भाग. पर चमडी के मांसल जबान पर सात्विक लोग विचार नहीं करते. वे दूसरों से माया के त्याग की बात करते हैं. लोग माया त्याग देते हैं. तो उनकी त्यागी इतनी बडी माया की देखरेख कौन करेगा? सो ये बाबा लोग उस माया के संरक्षण में लग जाते हैं. अब बाबा ने जो इतनी बडी माया खडी की, उसका कौन रखवाला? बाबा ने सोचा ही नहीं. भविष्यवाणी की थी ना कि 96 साल तक जियेंगे. तो सोचा होगा कि 95वें साल में कुछ कर लेंगे.
बाबा लोग कहते हैं कि शरीर नश्वर है. लोग इसे नश्वर समझ कर त्याग देते हैं. इनकी नश्वरता से दुखी बाबा लोग अपनी अनश्वरता का इंतजाम करने लगते हैं एके 47 या 56 से. पर, ये जो मौत निगोडी है ना, दोमुंहे सांप की तरह आती है. इधर से पकडो तो उधर से और उधर से मारो तो इधर से काटती है.
छम्मकछल्लो सोचती है कि नाहक वह लेखन और थिएटर मे अबतक झख मारती रही है. खेमेबाजी नहीं की, सो उसका किसी साहित्यिक खेमेबाज ने कोई भला नहीं किया. थिएटर में बडी बडी संस्थाएं लोगों को थिएटर पढाकर उन्हें फिल्म और टीवी के एक्टर बना रहे हैं. छम्मकछल्लो जैसे नॉन एकेडेमिक्स और जीवन से सीखनेवालों को वे क्या, कोई भी घास नहीं डालते. नतीजन, सभी मानकर चलते हैं कि लेखन और थिएटर से भैया, जीवन नहीं चलनेवाला. फिर भी, छम्मकछल्लो ने थिएटर की ताकत से जन-मन को परिचित कराना चाहा, तो पता चला कि जी, लोगों के पास थिएटर के लिए फंड ही नहीं है.
इसीलिए, छम्मकछल्लो अब पूरे होशो हवास से यह घोषणा कर रही है कि अब वह साध्वी या सन्यासिन या माता जी या भगवान या भगवती, श्रद्धालु जो मान लें, बनने जा रही है. अब काहे का थिएटर. अब तो लाइफ में ही थिएटर करते रहना है. अपना एक मंच होगा, अपना कॉस्ट्यूम होगा, अपने कॉस्ट्यूम डिजाइनर होंगे, अपना मेक अप आर्टिस्ट होगा, अपना ग्रुप होगा, अपना गीत- संगीत होगा. आइए, भक्तगण, आइए! यह आपकी नगरी है, आइए, नाचिए, झूमिए, गाइए, माया का त्याग कीजिए, हम हैं ना उसकी रखवाली के लिए. तो एक बार प्रेम से बोलिए, जै सदगुरु परम आनंदमई, ज्योतिर्मई, श्रद्धामई, सुखदामई श्री श्री 108 माता छम्मकछल्लेश्वरी की जय!!!
6 comments:
दीर्घायु हों माता छम्मकछल्लेश्वरी.
आशीर्वाद पुत्र राहुल!. शतायु भव:!! और अपनी सरकारी झोली में से कुछ पत्र-पुष्प इधर डालो.
रो तो मैं भी रहा था, पर आपके इस प्रवचन को पढ़कर और आपके इस नए अवतार को देखकर बरबस हँस पड़ा.
श्री श्री 108 माता छम्मकछल्लेश्वरी की जय!!!
:)
बच्चा रवि रतलामी! भूले बिसरों को याद कराना और रोतों को हंसाना ही हमारा पावन कर्तव्य है. दुनिया तो माया और मोह का डेरा और फेरा है. इसमें कैसा पडना! हां, हमारे लिए बात अलग है, क्योंकि हम अब सामान्य जीव नहीं रहे.
शुभकामनाएं श्री श्री 108 माता छम्मकछल्लेश्वरी को.
धन्यवाद इष्ट देव जी. आपके सत्संग से माता की इष्टपूर्ति सम्भव होगी.
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