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Sunday, April 24, 2011

शीला और मुन्नी की बदनाम जवानी से पहले शीला और मुन्नी को तो आने दीजिए!


      देश आजकल बहुत परेशान है. वह कभी मुन्नी की बदनामी से उबल रहा है तो कभी शीला की जवानी से चकरा रहा है. मुन्नी और शीला नामधारिनें सांपिन की तरह बल खा रही हैं. समाज में बसे नेवले उन्हें साबुत निगल जाना चाहते हैं. पता नहीं, मुन्नी और शीला की बदनामी और जवानी देखनेवालों के घर में कोई मुन्नी और शीला है या नहीं.
      कि लो जी, फिर से अलार्म बज गया. ये सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं भी ना! रिपोर्ट निकाल निकाल कर हमें लिखने के लिए उकसाती रहती हैं. अब कल ही एक अखबार की रिपोर्ट में पढा कि लडकियां स्वर्ग में भी सुरक्षित नहीं. हां जी, स्वर्ग में औरतें कैसे सुरक्षित रहेंगी? ईश्वर ने तो पहले ही उन्हें हव्वा बना कर स्वर्ग से निकाल फेंका था. स्वर्ग की कितनी स्त्रियों के बारे में आप जानते हैं? जो हैं, वे सभी किसी न कि सीदेवता की पत्नी बनकर भाभी जी का पद सुशोभित कर रही हैं- लक्ष्मी भाभी, पार्वती भाभी, इंद्राणी भाभी! और जो भाभी जी नहीं बन सकीं, वे रम्भा, मेनका, उर्वशी बनी रह गईं.
      मगर अखबार का आशय इस स्वर्ग से नहीं है. यह तो छम्मकछल्लो के दिमाग का फतूर है, जो उसने अंग्रेजी टाइटल Girls unsafe in paradise too का हिंदी रूपांतर कर दिया है. यहां स्वर्ग का आशय हिंदुस्तान का स्वर्ग माने जानेवाले कश्मीर से है. रिपोर्ट ने कहा है कि अब घाटी में भी लडकियों की संख्या में तेजी से कमी आई है. 2011 की जनगणना में यहां लडकियों का अनुपात 1000 लडकों के अनुपात में 859 का है. 2001 में यह 941 था. कई राज्य पहले से ही कम बेटियोंवाली कतार में हैं. लो जी, अब कश्मीर भी जुड गया. छम्मकछल्लो का भी जी जुडा गया.
      आखिर लोग क्यों पैदा करें बेटियां? क्या देती हैं बेटियां, सिवाय अतिरिक्त बोझ, चिंता, परेशानी के? जन्म से लेकर उसके ब्याह तक और ब्याह के बाद भी गर ससुराल भली ना मिली तो जिंदगी भर तक? कोई इतना माथा क्यों खराब करे? हटाओ यार बेटियों को. दुनिया में ऐसे भी क्या कम गम हैं कि यह भी पालते रहें?
      सरकार, संस्था, प्रशासन क्या करे? घर-घर जाकर पहरेदारी करे? नियम, कायदे, कानून बना देने से क्या सब कुछ सुधर और संभल जाता है? हम इतने कानूनप्रिय हो जाते हैं?ऐसे तो हम धर्म को बहुत मानते हैं, धर्म से डरते हैं, मगर इस मामले में धर्म का डर-वर क्या, उल्टा धर्म को ही हम ठेंगा दिखाते रहते हैं.
      कश्मीर के अधिकारी कह रहे हैं कि लोग जब यहां भ्रूण के सेक्स की जांच नहीं करवा पाते तो पडोसी राज्य में जाकर जांच व गर्भपात करवा आते हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत के 17 राज्यों में 800 मामले डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज किए गए, जिनमें से केवल 55 मामलों में डॉक्टरों को सजा हुई. कानून ने 55 ही सही, डॉक्टरों को सजा दे दी. मगर क्या इन 55 ही सही, मां-बाप को सजा मिली, जो केस लेकर इन डॉकटरों के पास गए थे? ठीक है कि डॉक्टर ने गलत किया. मगर इस गलती के मूल में जो हैं, उनके लिए क्या?
      वे सभी, जो आज की मुन्नी और शीला को हसरत भरी निगाह मारते रहते हैं, क्या वे यह सोचने की ज़हमत उठाएंगे कि कल उन्हीं के बेटे अपने समय की शीलाओं और मुन्नियों को देखने से वंचित रह जाएंगे? कैसी नीरस जवानी वे अपने बेटों को सौंपने जा रहे हैं? आज के मां-बाप सही में नाकारा हैं. अपने बच्चों के लिए न पर्यावरण छोड रहे हैं, न पेट्रोलियम, न खनिज पदार्थ, न जल, न पहाड, न खेत, न बगीचा! और अब उनके जीवन की तरलता के लिए मुन्नी और शीला की पैदावार भी सोख ले रहे हैं. बेटी के मां-बाप क्या करे? बेटे के मां-बाप क्या उन्हें यह भरोसा दिलाएंगे कि भाई साब, आपकी बेटी से जब हम अपने बेटे का ब्याह करेंगे तो हम आपसे कोई तिलक-दहेज नहीं मांगेंगे. बेटे यह भरोसा दिलाएंगे कि ऐ इस देश की बेटियों, तुम सब बेफिक्र घूमो, हम में से कोई भी तुम्हारी ओर बुरी नज़रों से नहीं देखेगा. हमारे राज्य में तुम हमारी ही तरह सुरक्षित हो. तुम भी रहो और अपने घर भी मुन्नियों और शीलाओं को आने दो.   

3 comments:

pratima sinha said...

कमाल विभा दी, इतने संवेदनशील विषय पर ऐसे एंगल से इतना सटीक विश्लेषण सबके बस की बात नही... इसीलिये आप...बस आप हैं.

Unknown said...

क्या बात है विभा जी, "देश आजकल बहुत परेशान है. वह कभी मुन्नी की बदनामी से उबल रहा है तो कभी शीला की जवानी से चकरा रहा है. मुन्नी और शीला नामधारिनें सांपिन की तरह बल खा रही हैं. समाज में बसे नेवले उन्हें साबुत निगल जाना चाहते हैं. पता नहीं, मुन्नी और शीला की बदनामी और जवानी देखनेवालों के घर में कोई मुन्नी और शीला है या नहीं."
बहुत सुंदर !

Pothi said...

विभा जी अच्छा लगा ! भ्रूण हत्या चिंता का विषय है लेकिन अगर मुन्नी और शीला को बदनाम ही होना है तो ......!! आपको नहीं लगता कि इस में पहल मुन्नी और शीला को भी करनी होगी जिससे उनकी चर्चा जवानी और बदनामी के लिए न हो ...कम से कम इतनी सशकस्त तो आज कि मुन्नी और शीला है ही! वक़्त आ गया है ! रुदाली बनने से कुछ नहीं होगा ! अपनी जवानी को इतना बदनाम न कर दो कि लोग शीला और मुन्नी को घर लाने से ही डरने लगे.....अच्छे लेखन के लिए साधुवाद !!!!