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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Saturday, April 30, 2011

चंदा – स्विस बैंक की खातिर.



छम्मकछल्लो नाम नहीं
, काम की बात कर रही है- चंदा रे, चंदा रे, कहीं से जमीं पर आ, बैठेंगे, बातें करेंगे...! गीत गाने के लिए नहीं और न ही किसी चंदा नाम की किसी लडकी पर मरने के लिए. भाई असांजे ने जब से यह कहा है कि भारतीयों के खाते भी स्विस बैंक में है, तब से छम्मकछल्लो की भी महत्वाकांक्षा को पंख लग गए हैं. अपने पंख के बलबूते तो वह आसमान के चंदा तक तो पहुंच सकती है, मगर धरती पर बसे स्विस बैंक में खाता खोलने के लिए धरती का चंदा जरूरी है.
छम्मकछल्लो को इस देश के लोगों की नादानी पर बडी हैरानी होती है कि बाहर से कुछ आने पर ही हम उसे गम्भीरता से लेते हैं, सबकुछ शीशे की तरह साफ होने के बावज़ूद. सभी जानते हैं, भ्रष्टाचार क्या है. माननीय सुप्रीम कोर्ट तक इसपर अपने विचार जब तब देती रही है. फिर भी, इसकी सुनामी आने तक लोग अपने शब्दकोश में भ्रष्टाचार का दाखिला ही नहीं मान पा रहे थे. अचानक भ्रष्टाचार की हवा चली. सभी उसमें उड लिए. लगा कि एक ही आंदोलन में भ्रष्टाचार की जड में ऐसा मट्ठा पड जाएगा कि आगे कभी यह अंकुराएगा ही नहीं. फलने-फूलने की बात ही जाने दीजिए.
एक विकीलीक्स ने देश के बारे में कुछ खुलासा कर दिया. सभी ऐसे उछले, मानो इसे कभी जानते ही नहीं थे. अभी असांजे भाई साब ने खुलासा कर दिया कि भारतीय पैसे भी स्विस बैंक में हैं. सभी ऐसे चौंके, जैसे यह जापान के सुनामी की तरह एकदम नई बात हो. देश भर में मोबाइल मेसेज के तहत खबर चल रही है कि अगर सभी भारतीय के जमा पैसे भारत में वापस आ जाएं,तो देश गरीब रहेगा ही नहीं.
छम्मकछल्लो की समझ में एक ही बात आ रही है कि अब बुढापे की ओर बढती उसकी उम्र में पैसे की बहुत ज़रूरत पडेगी. अबतक जो कमाया, उसे घर, गृहस्थी में लगा दिया. काश कि कुछ पैसे यहां भी डाले होते. लेकिन उसके लिए तो इतनी आमदनी चाहिए ना कि वह अपनी जरूरत से ऊपर हो.
छम्मकछल्लो को बडा बनने का भी बडा शौक है. यहां पैसे हमारे जैसे भुक्खड तो डालते नहीं होंगे. वह नाम, दाम दोनों चाहती है. इसलिए, सभी से निवेदन कर रही है कि सभी उसकी कामना के हवन में धन की समिधा भेजें, ताकि वह भी हवन का प्रसाद स्विस बैंक में रख सके और अपने आपको बडे लोगों की गिनती में शुमार कर सके, साथ ही, अपने बुढापे में होनेवाले अतिशय खर्च के भय से भी मुक्त हो जाए. अभी दो दिन पहले ही उसने अपने साध्वी बनने की घोषणा अपने ब्लॉग पर, फेसबुक पर  कर दी है. तो माते छम्मकछल्लेश्वरी के लिए अपनी संचित निधि का दान करो. माया तो महाठगिनी है, यूं ही आनी है जानी है, उसका क्या!  अब क्या माया रखना और उसके लिए क्या लोभ करना. दान से इहलोक और परलोक दोनों सुधरते हैं. इसलिए, ओ ब्लॉगिए, ओ ई-मेलिए, ओ वेबसाइटिए, ओ फेसबुकिये फ्रेंडस! जल्दी से भेजो, जल्दी जल्दी सुधरो और सुधारो, क्योंकि स्विस बैंक की लूट है, लूट सके से लूट, अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट.

Wednesday, April 27, 2011

रेप करो, शेप करो.


      अखबार में छपी खबर के मुताबिक पाकिस्तान की मुख्तार माई को उसके गैंग रेप पर न्याय नहीं मिला. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को आगे बढाते हुए छह में से 5 को बरी कर दिया. एक उम्र कैद की सजा में है. 2002 में एक ट्राइबल काउंसिल द्वारा गैंग रेप की शिकार मुख्तार माई पाकिस्तान में स्त्री अधिकार की एक प्रतीक के रूप में उभरी थी.
      छम्मक्छल्लो का दिल बाग बाग हो उठा. आखिर अपना ही पडोसी देश है, अपने ही जिगर का एक टुकडा. अलग हो गया तो क्या रवायतें भी छोड देगा? वह भी औरतों के मामले में? पता है, भाई लोग बमकेंगे छम्मक्छल्लो पर. पाकिस्तान से हिंदुस्तान की तुलना कर दी? इतनी बडी हिमाकत?
      छम्मक्छल्लो भी क्या करे? मुख्तार माई हिंदुस्तान में ही होती तो क्या हो जाता? उसे न्याय मिल जाता? भंवरी बाई को मिल गया था? प्रियदर्शिनी मट्टू को मिल गया था? रुचिका को मिल गया था? निठारी कांड में गई बच्चियों के मां बाप को मिल गया था? गोधरा कांड में हुई बर्बरता की शिकारों को मिल गया था? शाहबानो को मिल गया था? निरुपमा पाठक को मिल गया? दिन दहाडे बलात्कार, दहेज, यौन उत्पीडन की शिकार हिंदुस्तानी महिलाओं को मिल जाता है?
      बलात्कार तो हथियार है. सभी इसे हम औरतों पर आजमाते हैं. हर्र लगे ना फिटकरी, रंग चोखा आए. न गला कटे, न खून बहे, ना अंग कटे, न मांस का दरिया, न खून का दरिया, और बदला इतनी आसानी और सफलता से कि भाई वाह! मन के कटने की चिंता करेंगे तो रेप कैसे होगा? आप भी न! 
      एक ने छम्मक्छल्लो से कहा, “यह तो पुरानी कहावत है कि “इफ यू कांट प्रोटेस्ट रेप, एंजॉय इट”. आप इसके आगे जोड सकते हैं, “इफ यू कांट गेट जस्टिस, फॉरगेट इट”. भूल जाने में बडा भला है. मगर हमारा समाज दोहरा चौकन्ना है. वह बलात्कारियों को तो भूल जाता है, बलात्कृता को उंगली दिखा दिखा कर कहता है कि देखो, देखो, इसी का रेप हुआ है.
      गोधरा कांड के समय लोगों ने कहा था, “हम रेप थोडे करते हैं, हम तो शेप करते हैं.” आखिर को राज हमारा, सत्ता हमारी, नशा हमारा, नशेमन में चूर हम! हमारे हरम की तुम. तुम पर हम जैसा चाहें अपनी इच्छाओं, आवेगों के उद्दाम लहर उछाल सकते हैं. अहसान मान कि हमने तुम्हें इस लायक समझा.
      कम्बख्त ऊपरवाला बहुत नासमझ निकला. इन खातूनों को भी दिमाग दे दिया. मिले न कमीना ऊपरवाला, उसी का रेप कर डालेंगे, इतनी बार कि वह तंग आकर इन औरतों के माथे से दिमाग और सीने से दिल नाम के टुकडे निकाल बाहर कर दे. न दिल, न दिमाग, केवल देह और केवल हम! तब न रेप रहेगा न शेप. दिल और दिमाग ही नहीं रहेंगे तो ये फालतू बातें आएंगी कहां से इनके दिल और दिमाग में? भई वाह! भई आह!!

Tuesday, April 26, 2011

श्री श्री 108 माता छम्मकछल्लेश्वरी की जय!!!


       दो दिन से हम टीवी और आज अखबार देखकर भर भर गए. हर अखबार के दो-दो, चार-चार पन्ने आंसुओं से भीगे हुए हैं. एक इतने बडे भगवान की मौत! ना, ना, महापरिनिर्वाण. हाय रे! राम, कृष्ण आज के समय में क्यों ना हुए? कितना लाइव टेलिकास्ट होता राम का वन गमन, सीता का भूमि गमन, कृष्ण की रासलीला, द्रौपदी का चीरहरण! रासलीला  और चीरहरण  की सीडी तो मुंहमांगे दामों में बिकती. देश श्रृंगार प्रधान है. ....चलिए, श्रृंगार प्रधान नहीं है, भक्ति प्रधान तो है ना. सो, देखिए, सारा देश बाबा के सोग में ऐसा डूबा हुआ है, जैसे सही में इस धरती से भगवान नाम की सत्ता उठ गई है.
      क्या ज़माना है! अपने तेज से दूसरों को रोग के चंगुल और मौत के आगोश से बाहर खींच लाने का दंभ भरनेवाले बाबा खुद आधुनिक ईजादवाले अस्पताल में सपोर्ट सिस्टम पर पडे रहे और जीवन-मौत के झूले की एक एक टूटती डोर के साथ अपने मोक्ष का रास्ता खोजते रहे. सम्भवत: स्वर्ग के रास्ते में क्यू लगा होगा. आजकल सभी तो धर्मवादी हैं. जो जितना तगडा दानदाता, वह उतना तगडा धर्मदाता. और देश में ऐसे महान दानदाताओं की कमी है क्या? बोरे में ठूंसकर उनकेदान भरे जाते है, दिन रात गिनने के लिए लोग बैठे रहते हैं, तब भी दान की गिनती नहींहो पाती. उस दान से ही देश के लाखों बच्चे ऊंची पढाई कर सकते हैं. लेकिन, इससे अपना परलोक थोडे ना सुधरता है. सुधरता है इन भगवानों, मंदिरों के लिए खुले इनके अक्षय खजाने से. दान देकर ये सब स्वर्ग के लिए डायरेक्ट बुकिंग करा लेते हैं. श्री सत्य साईं बाबा इन्हीं के चक्कर में फंस गए होंगे.
      यहां लोग अलग चक्कर में फंस गए हैं. आज के भगवान दूसरों को कहते हैं कि माया तो माया है, इनके पीछे मूरख! मत भाग. पर चमडी के मांसल जबान पर सात्विक लोग विचार नहीं करते. वे दूसरों से माया के त्याग की बात करते हैं. लोग माया त्याग देते हैं. तो उनकी त्यागी इतनी बडी माया की देखरेख कौन करेगा? सो ये बाबा लोग उस माया के संरक्षण में लग जाते हैं. अब बाबा ने जो इतनी बडी माया खडी की, उसका कौन रखवाला? बाबा ने सोचा ही नहीं. भविष्यवाणी की थी ना कि 96 साल तक जियेंगे. तो सोचा होगा कि 95वें साल में कुछ कर लेंगे.
बाबा लोग कहते हैं कि शरीर नश्वर है. लोग इसे नश्वर समझ कर त्याग देते हैं. इनकी नश्वरता से दुखी बाबा लोग अपनी अनश्वरता का इंतजाम करने लगते हैं एके 47 या 56 से. पर, ये जो मौत निगोडी है ना, दोमुंहे सांप की तरह आती है. इधर से पकडो तो उधर से और उधर से मारो तो इधर से काटती है.
      छम्मकछल्लो सोचती है कि नाहक वह लेखन और थिएटर मे अबतक झख मारती रही है. खेमेबाजी नहीं की, सो उसका किसी साहित्यिक खेमेबाज ने कोई भला नहीं किया. थिएटर में बडी बडी संस्थाएं लोगों को थिएटर पढाकर उन्हें फिल्म और टीवी के एक्टर बना रहे हैं. छम्मकछल्लो जैसे नॉन एकेडेमिक्स और जीवन से सीखनेवालों को वे क्या, कोई भी घास नहीं डालते. नतीजन, सभी मानकर चलते हैं कि लेखन और थिएटर से भैया, जीवन नहीं चलनेवाला. फिर भी, छम्मकछल्लो ने थिएटर की ताकत से जन-मन को परिचित कराना चाहा, तो पता चला कि जी, लोगों के पास थिएटर के लिए फंड ही नहीं है.
      इसीलिए, छम्मकछल्लो अब पूरे होशो हवास से यह घोषणा कर रही है कि अब वह साध्वी या सन्यासिन या माता जी या भगवान या भगवती, श्रद्धालु जो मान लें, बनने जा रही है. अब काहे का थिएटर. अब तो लाइफ में ही थिएटर करते रहना है. अपना एक मंच होगा, अपना कॉस्ट्यूम होगा, अपने कॉस्ट्यूम डिजाइनर होंगे, अपना मेक अप आर्टिस्ट होगा, अपना ग्रुप होगा, अपना गीत- संगीत होगा. आइए, भक्तगण, आइए! यह आपकी नगरी है, आइए, नाचिए, झूमिए, गाइए, माया का त्याग कीजिए, हम हैं ना उसकी रखवाली के लिए. तो एक बार प्रेम से बोलिए, जै सदगुरु परम आनंदमई, ज्योतिर्मई, श्रद्धामई, सुखदामई श्री श्री 108 माता छम्मकछल्लेश्वरी की जय!!!    

Sunday, April 24, 2011

शीला और मुन्नी की बदनाम जवानी से पहले शीला और मुन्नी को तो आने दीजिए!


      देश आजकल बहुत परेशान है. वह कभी मुन्नी की बदनामी से उबल रहा है तो कभी शीला की जवानी से चकरा रहा है. मुन्नी और शीला नामधारिनें सांपिन की तरह बल खा रही हैं. समाज में बसे नेवले उन्हें साबुत निगल जाना चाहते हैं. पता नहीं, मुन्नी और शीला की बदनामी और जवानी देखनेवालों के घर में कोई मुन्नी और शीला है या नहीं.
      कि लो जी, फिर से अलार्म बज गया. ये सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं भी ना! रिपोर्ट निकाल निकाल कर हमें लिखने के लिए उकसाती रहती हैं. अब कल ही एक अखबार की रिपोर्ट में पढा कि लडकियां स्वर्ग में भी सुरक्षित नहीं. हां जी, स्वर्ग में औरतें कैसे सुरक्षित रहेंगी? ईश्वर ने तो पहले ही उन्हें हव्वा बना कर स्वर्ग से निकाल फेंका था. स्वर्ग की कितनी स्त्रियों के बारे में आप जानते हैं? जो हैं, वे सभी किसी न कि सीदेवता की पत्नी बनकर भाभी जी का पद सुशोभित कर रही हैं- लक्ष्मी भाभी, पार्वती भाभी, इंद्राणी भाभी! और जो भाभी जी नहीं बन सकीं, वे रम्भा, मेनका, उर्वशी बनी रह गईं.
      मगर अखबार का आशय इस स्वर्ग से नहीं है. यह तो छम्मकछल्लो के दिमाग का फतूर है, जो उसने अंग्रेजी टाइटल Girls unsafe in paradise too का हिंदी रूपांतर कर दिया है. यहां स्वर्ग का आशय हिंदुस्तान का स्वर्ग माने जानेवाले कश्मीर से है. रिपोर्ट ने कहा है कि अब घाटी में भी लडकियों की संख्या में तेजी से कमी आई है. 2011 की जनगणना में यहां लडकियों का अनुपात 1000 लडकों के अनुपात में 859 का है. 2001 में यह 941 था. कई राज्य पहले से ही कम बेटियोंवाली कतार में हैं. लो जी, अब कश्मीर भी जुड गया. छम्मकछल्लो का भी जी जुडा गया.
      आखिर लोग क्यों पैदा करें बेटियां? क्या देती हैं बेटियां, सिवाय अतिरिक्त बोझ, चिंता, परेशानी के? जन्म से लेकर उसके ब्याह तक और ब्याह के बाद भी गर ससुराल भली ना मिली तो जिंदगी भर तक? कोई इतना माथा क्यों खराब करे? हटाओ यार बेटियों को. दुनिया में ऐसे भी क्या कम गम हैं कि यह भी पालते रहें?
      सरकार, संस्था, प्रशासन क्या करे? घर-घर जाकर पहरेदारी करे? नियम, कायदे, कानून बना देने से क्या सब कुछ सुधर और संभल जाता है? हम इतने कानूनप्रिय हो जाते हैं?ऐसे तो हम धर्म को बहुत मानते हैं, धर्म से डरते हैं, मगर इस मामले में धर्म का डर-वर क्या, उल्टा धर्म को ही हम ठेंगा दिखाते रहते हैं.
      कश्मीर के अधिकारी कह रहे हैं कि लोग जब यहां भ्रूण के सेक्स की जांच नहीं करवा पाते तो पडोसी राज्य में जाकर जांच व गर्भपात करवा आते हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत के 17 राज्यों में 800 मामले डॉक्टरों के खिलाफ दर्ज किए गए, जिनमें से केवल 55 मामलों में डॉक्टरों को सजा हुई. कानून ने 55 ही सही, डॉक्टरों को सजा दे दी. मगर क्या इन 55 ही सही, मां-बाप को सजा मिली, जो केस लेकर इन डॉकटरों के पास गए थे? ठीक है कि डॉक्टर ने गलत किया. मगर इस गलती के मूल में जो हैं, उनके लिए क्या?
      वे सभी, जो आज की मुन्नी और शीला को हसरत भरी निगाह मारते रहते हैं, क्या वे यह सोचने की ज़हमत उठाएंगे कि कल उन्हीं के बेटे अपने समय की शीलाओं और मुन्नियों को देखने से वंचित रह जाएंगे? कैसी नीरस जवानी वे अपने बेटों को सौंपने जा रहे हैं? आज के मां-बाप सही में नाकारा हैं. अपने बच्चों के लिए न पर्यावरण छोड रहे हैं, न पेट्रोलियम, न खनिज पदार्थ, न जल, न पहाड, न खेत, न बगीचा! और अब उनके जीवन की तरलता के लिए मुन्नी और शीला की पैदावार भी सोख ले रहे हैं. बेटी के मां-बाप क्या करे? बेटे के मां-बाप क्या उन्हें यह भरोसा दिलाएंगे कि भाई साब, आपकी बेटी से जब हम अपने बेटे का ब्याह करेंगे तो हम आपसे कोई तिलक-दहेज नहीं मांगेंगे. बेटे यह भरोसा दिलाएंगे कि ऐ इस देश की बेटियों, तुम सब बेफिक्र घूमो, हम में से कोई भी तुम्हारी ओर बुरी नज़रों से नहीं देखेगा. हमारे राज्य में तुम हमारी ही तरह सुरक्षित हो. तुम भी रहो और अपने घर भी मुन्नियों और शीलाओं को आने दो.   

Saturday, April 23, 2011

शाइना नेहवाल के रैकेट और शटल कॉर्क नहीं, देखिए उसकी उछलती स्कर्ट!


http://hamaranukkad.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html
छम्मक्छल्लो का उन सबको प्रणाम, जो हमें सेक्स ऑबजेक्ट बनाने पर आमादा हैं. पोर्न साहित्य देखें, पढें तो आप अश्लील. छम्मक्छल्लो उन्हें अधिक ईमानदार मानती है. छम्मक्छल्लो उनकी बात कर रही है, जो आम जीवन के हर क्षेत्र में हमारी आंख में उंगली डाल डालकर ये बताने में लगे रहते हैं कि ऐ औरत, तुम केवल और केवल सेक्स और उन्माद की वस्तु हो. भले ही तुममें प्रतिभा कूट कूट कर भरी हो, तुम सानिया हो कि शाइना, हमें उसका क्या फायदा, जब हम तुम्हारे हाथों की कला के भीतर से झांकते तुम्हारे यौवन के उन्माद की धार में ना बहें? हाथों की कला तो बहाना है, हमें तो तुहारे यौवन के मद का लुत्फ उठाना है.
आज (22/4/2011) के टाइम्स ऑफ इंडिया के चेन्नै टाइम्स में विश्व के तीसरे नम्बर की बैडमिंटन खिलाडी शाइना नेहवाल द्वारा रुपम जैन को दिए इंटरव्यू में शाइना नेहवाल कहती है कि वह बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन के इस फैसले से खुश नहीं है कि खेल के दौरान महिला खिलाडी शॉर्ट्स के बदले स्कर्ट पहने. मगर, फेडरेशन मानता है कि इससे खेल और पॉपुलर होगा. भाई वाह! समाज में जो दो चार अच्छे पुरुष हैं, इस मानसिकता के खिलाफ आप तो आवाज उठाइए. कामुकों की कालिख की कोठरी में आप पर भी कालिख लग रही है. शाइना कह रही है कि लोग खेल देखने आते हैं, खिलाडियों की पोशाक नहीं. पर फेडरेशन यह माने, तब ना!
अब भाई लोग यह फतवा न दें मेहरबानी से कि ऐसे में शाइना को विरोध करना चाहिये, उसे खेल छोड देना चाहिए. जो भाई लोग स्त्रियों के सम्मान के प्रति इतने ही चिंतित हैं, जिसका ठेका कुछ ने लिया हुआ होता है तो उनसे छम्मक्छल्लो का निवेदन है कि बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन पर दवाब डालें. शाइना मानती है कि ड्रेस का फैसला खिलाडियों पर छोड दिया जाना चाहिए. उसने स्वीकारा है कि अकेला चना भाड नहीं फोड सकता. वह इंतज़ार में है कि अन्य खिलाडी भी स्कर्ट से होनेवाली असुविधा के खिलाफ बोलेंगे और तब सामूहिक स्वर उठेगा, जिसको फायदा खिलाडियों को होगा. मगर तबतक बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन की भोगवादी मानसिकता के प्रति शत शत नमन कि वह विश्व की महिला खिलाडियों के खेल का आनंद तो आगे-पीछे, इसके बहाने उनकी देह, यौवन और यौन का आस्वाद आपको कराएंगे.
अब यह न कहिएगा कि यह फैसला बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन में बैठी किसी महिला अधिकारी ने लिया होगा, क्योंकि महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बडी दुश्मन होती हैं.

Friday, April 22, 2011

क्या आपको पता है मंसूर अली खान पटौदी कौन हैं?


      क्या आपको पता है मंसूर अली खान पटौदी कौन हैं? आप हंसेंगे छम्मक्छल्लो के कूढ मगज पर. छम्मक्छल्लो को खेल-खिलाडी का ककहरा भी नहीं मालूम. लेकिन उसे यह मालूम है कि आप सभी को मालूम है कि मंसूर अली खान पटौदी कौन हैं? नवाब पटौदी, टाइगर पटौदी, क्रिकेट की आन, बान और शान.
      टाइगर पटौदी के क्रिकेट काल में छम्मक्छल्लो बहुत छोटी थी. तब सीरीज का और रेडियो का जमाना था. भाई रेडियो से चिपके रहते और रेडियो की कमेंट्री से वह तनिक मनिक क्रिकेट समझने लगी थी.
      तब फिर आप पूछेंगे कि इस सवाल का मतलब? सीरीज का जमाना गया, रेडियो का जमाना गया, नवाब पटौदी का भी ज़माना गया. मगर लोग उन्हें नहीं भूल सकते, जब भी क्रिकेट की बात चलेगी.
      आजकल का समय बदला है. अब लोगों के परिचय इस तरह से नहीं दिए जाते. अब दिए जानेवाले परिचय की एक बानगी देखिए.चेन्नै से निकलनेवाले हिंदी के सबसे बडे अखबार समूह राजस्थान पत्रिका के 21/4/2001 के सम्पादकीय पृष्ठ पर छपे बात-करामात कॉलम के तहत छपे लेख नादान सवाल में नवाब पटौदी का परिचय देखिए- “फिल्म तारिका शर्मिला टैगोर के शौहर, सुंदरी करीना कपूर के अधेड प्रेमी सैफ अली खान के वालिद और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान उर्फ नवाब पटौदी......!
      आप कहेंगे कि इसमें ऐसी क्या बात हो गई? तो भाई, जिसका कर्मणा जो परिचय है, पहले वह तो दीजिए. नवाब पटौदी पहले क्रिकेट के खिलाडी बने, बाद में शर्मिला टैगोर के पति और बाद में सोहा या सैफ के पिता. पर नहीं, हम इतने उदार थोडे ना हो जाएंगे. सुंदरियां जब बूढों, अधेडों पर मरती हैं, तो बाकियों के कलेजे पर चक्कू चलने लगते हैं. पढिए- सुंदरी करीना कपूर के अधेड प्रेमी सैफ अली खान ....! और उसके पिता नवाब पटौदी! भई वाह! क्या परिचय है क्रिकेट के इस लायन का! दूसरे, जब मुसलमानों पर बात आती है तो हमें भले उर्दू ना आती हो, मगर एकाध जुमला ज़रूर छोड देंगे- पढिए- “फिल्म तारिका शर्मिला टैगोर के शौहर, सैफ अली खान के वालिद ....! पति और पिता कहने से लेख का स्तर कुछ कम हो जाता? मगर मन की कुंठा का क्या करें भाई? छम्मक्छल्लो बहुत छोटी थी, जब शर्मिला और पटौदी का ब्याह हुआ था. तब शर्मिला अपने कैरियर से विदा नहीं हुई थीं. छम्मक्छल्लो को याद है, तब भी सभी यही कहते थे, क्या देख कर शर्मिला ने पटौदी से शादी की, या टैगोर का नाम मिट्टी में मिला दिया और ना जाने क्या-क्या?
      कुछ माह पहले एक टीवी चैनल पर जिगोलो पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे एंकर महोदय बार बार यही कह रहे थे- दिल्ली की आंटियां... दिल्ली की आंटियां! क्या कभी ऐसा हुआ है कि सेक्स के अपराध में पकडे गए पुरुषों को अंकल, दादा, बाबा कहकर पुकारा गया हो? छम्मक्छल्लो को तो अब डर लग रहा हि कि कल को कोई यह ना पूछ बैठे कि कौन जवाहर लाल नेहरू? और जवाब आए- राहुल गांधी के परनाना, सोनिया गांधी की सास का बाप.