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Thursday, January 9, 2014

अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!

मोहल्लालाइव मे छपा एक लेख. अच्छी प्रतिल्रियाएं मिल रही हैं. आपकी भी राय जानना चाहूंगी. लिंक है-
http://mohallalive.com/2014/01/04/vibha-rani-womens-issue/

और लेख ये रहा:
लड़कियो! इससे पहले कि तुमसे मैं कुछ कहूं, मेरे आस-पास घटी कुछ सच्ची घटनाएं सुन लो।
1) मेरे एक पत्रकार दोस्त की पत्नी ने शादी के तुरंत बाद ही पति से लड़-झगड़ कर उसे उस घर से निकाल दिया, जो उसके पति ने लिया था। पति के समझाने-बुझाने पर उस पर दहेज का इल्जाम लगाकर पुलिस में जाने की धमकी देने लगी। थका-हारा पति जब अपनी जान की हिफाजत के लिए पुलिस में रिपोर्ट कराने पहुंचा, तब पुलिसवाले ने ही कहा कि “साब, आप किसके चक्कर में फंस गये? यह तो बाजारू औरत है। इसकी तो तस्वीर हमारे थाने में है। आप जाइए। यह पुलिस में नहीं आएगी।” फिर भी, वह थाने पहुंची और आजतक वह केस में फंसा हुआ है।
2) मेरी एक दोस्त का भाई किसी लड़की के साथ लिव-इन-रिलेशन में था। तीन साल तक वे साथ-साथ रहे। इस बीच किसी बात पर लड़की की बहस उससे हुई। बात ने विवाद का रूप लिया और लड़की ने उस पर तीन साल से लगातार बलात्कार का आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया। जाने कैसे-कैसे वह छूटकर बाहर निकला।
3) मेरी इसी दोस्त के एक पहचानवाले ने अपने बेटे की शादी लाखों रुपये के मेहर की रकम के साथ खूब धूमधाम से की। दुल्हन इस ख्वाब के साथ डोली से उतरी कि यह तो बड़े बिजनेसमैन का घर है, जहां उसके चारों ओर नौकर-चाकरों की फौज रहेगी और अपनी शानो-शौकत से वह दुबई में रह रही अपनी बहन पर रोब गालिब करेगी कि उसका रुतबा उससे किसी दर्जा कम नहीं। लेकिन जब देखा कि घर में नौकर-चाकर और तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद उसकी सास ही खाना बनाती है, तो वह सब छोड़-छाड़ कर मायके लौट गयी, यह कहते हुए कि मेरी सास ने मुझसे आटा सानने को कहा। मैं क्या रोटी पकाने के लिए उस घर गयी थी? ससुराल से पीछा छुड़ाने के लिए उसने उन पर दहेज का आरोप लगा दिया। अंतत: ढेर सारे पैसे और मेहर की रकम लौटाकर ससुरालवालों ने अपना रास्ता अलग किया यह कहते हुए कि हम छोटी जगह में रहते हैं। पुलिस तो तुरंत हमें जेल ले जाएगी और हमारी इज्‍जत और धंधा-पानी सब चौपट हो जाएगा।
4) मेरा एक दोस्त अपनी बेबाक लेखनी और विचारधारा के कारण अपने विरोधियों और मीडिया के नापाक इरादों का शिकार हो असमय ही काल के गाल में चला गया। एक लड़की ने उस पर रेप का आरोप लगा दिया। अब न लड़की सामने आ रही है, न मीडिया न वे लोग, जो उसकी विचारधारा से वाबस्ता न रखते थे और उसे अपनी राह का कांटा समझते थे।
अब आओ, तुम्हारी बात करें। तुम पढ़ रही हो तो पढ़ो। बढ़ रही हो तो बढ़ो। पढ़ाई का हर संभावित क्षेत्र तलाश रही हो तो तलाशो। कैरियर के हर मार्ग को आजमाना चाहती हो तो आजमाओ। यह तुम्‍हारा या तुम्‍हारा ‘ही’ नहीं, तुम्‍हारा ‘भी’ संसार है। इस ‘भी’ पर तनिक ध्‍यान देना ओ लड़कियो। संसार तुम्‍हारा होता तो कोई बात नहीं थी, तुम्‍हारा ही होता, तब तो बल्‍ले-बल्‍ले होता। तुम्‍हारा ‘भी’ है, मतलब तुम बंद दरवाजा ठकठकाकर कह रही हो – “खोलो कि यह विश्‍व तुम्‍हारा भी है।” तुम्‍हारा ‘भी’ जोर-जोर से दस्‍तक दे रहा है – सभी के दिलों के दरवाजे पर। बहुत खलबली मचा रहा है सबके दिमाग पर। बहुत आगे आना चाह रहा है – मतलब सबसे आगे। तुम्‍हारी लड़ाई इसी ‘भी’ के लिए है। इसलिए इस ‘भी’ के साथ आगे बढ़ते हुए अपने वजूद के लिए हर रास्‍ता, कोना, दरो-दीवार, सड़कें, गलियां, आंगन, चौबारा घरती, आकाश तलाशो ओ लड़कियो!
दौड़ने के रास्‍ते बहुत हैं – छोटे भी, संकरे भी, बड़े भी। यह तुम्‍हें तय करना है कि तुम छोटे रास्‍ते पर चलकर झटपट सब हासिल करना या संकरे रास्‍ते पर चलकर वहां के एक-एक कंकड़-पत्‍थर बीनते हुए अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्ग प्रशस्‍त करना या बड़े रास्‍ते पर फर्राटेदार चलना पसंद करोगी? ध्‍यान रहे कि अपने आगे बढ़ने के रास्‍ते पर चलनेवाली तुम कानूनन बालिग हो गयी रहोगी ओ लड़कियो।
तय करते समय खुद ही तय करो कि अपने फायदे या जल्‍दी-जल्‍दी आगे बढ़ने के लिए अपनाये गये छोटे-छोटे रास्‍ते (शॉर्ट कट्स) तुम्‍हें कल किसी बड़ी मुसीबत में न डाल दें। उस समय तुम यह मत कहना कि तुम्‍हारा शोषण हुआ या तुम छली गयी। तीन साल तक तुम किस भ्रम में रही? क्या किसी का बलात्कार लगातार तीन साल तक होता रह सकता है? वह भी तब, जब कि तुम लिव-इन-रिलेशन में रहनेवाली एक आजाद औरत हो?
किसी तरह की साजिश के लिए इस्तेमाल की जाओ तो अपना हश्र भी सोच लेना कि क्या तुम उनके इस्तेमाल के बाद खुद दूध में पड़ी मक्खी की तरह तो नहीं निकाल फेंक दी जाओगी ओ लड़कियो!
अगर तुम जानबूझकर शोषित हो रही हो तो ध्‍यान देना कि इसके पीछे कहीं तुम्‍हारे अपने गणित तो नहीं? चाहे वे मर्जी के हों या मजबूरी के। कार्यस्‍थल पर या काम या कैरियर के बहाने तुम्‍हारा शारीरिक या मानसिक शोषण इसके तहत बड़ी आसानी से आ सकता है। अगर कोई तुम्‍हें लड़की होने के नाते फेवर कर रहा है तो यह खतरे की घंटी है। इसे अगर समझ रही हो तो उस पर अपनी काबिलियत का झूठा कोट मत पहनाओ ओ लड़कियो! हम सबको अपनी लियाकत का पता अच्छी तरह से रहता है।
अगर तुम्‍हें लगता है कि बेवजह तुम्‍हारा शोषण हो रहा है तो अपनी भी व्‍याख्‍या करो और अपने आसपास को भी देखो। क्‍या इस शोषण की तुम्‍हीं एक शिकार हो या अन्‍य भी! अपने सिक्‍स्‍थ सेंस के द्वारा इसे जानना कोई मुश्किल काम नहीं होता।
अपने शोषण के खिलाफ खुद लड़ना सीखो और इसके लिए सोच-समझकर रास्‍ता चुनो। अखबार, मीडिया, सोशल साइट्स यहां-वहां पर सभी तुम्‍हारे खुदाई खिदमतगार मिलेंगे, लेकिन तुम्‍हारे साथ-साथ चलने के लिए शायद ही कोई आए। चाहो तो आजमा भी लेना ओ लड़कियो!
हम तुम्‍हारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने की किसी भी आजादी के खिलाफ नहीं। लेकिन कब, कहां और कैसे खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना, घूमना-फिरना है, इसे तुम्‍हें ही तय करना होगा, जैसे किसी शोक सभा में हंसते हुए या शादी-ब्‍याह में रोते हुए नहीं जाया जाता।
अपने दिल-दिमाग-देह को कभी किसी के इतना हवाले मत कर दो कि तुम्‍हारा अपना कुछ बचा ही न रह जाए। विश्‍वास करो, अंधविश्‍वास नहीं। भक्ति करो, अंधभक्ति नहीं। प्रेम करो, अंधा प्रेम नहीं। और सबसे महत्‍वपूर्ण कि अपने स्त्रीपन को साजिश का जामा मत पहनाओ – चाहे वह दहेज हो या रेप। ध्‍यान देना! चार जंगली, वहशी मर्द तुम्‍हें जलाएंगे तो चालीस पुरुष तुम्‍हारे साथ खड़े भी होंगे। लेकिन, अपने सत्‍य-असत्‍य की जांच तुम्‍हें खुद करनी होगी। यह तो तुम जानती हो कि अच्छे काम में युग बीत जाते हैं, पर बुरे को बनते, बिगड़ते, फैलते देर नहीं लगती। एक झूठ को बचाने को लिए सौ झूठ बोलने होते हैं और इन झूठों से अपनी सच्‍चाई की परतें उधड़ने लगती है।
मुझे बरसों पहले पढ़ी सुदर्शन की कहानी ‘हार की जीत’ याद आती है, जिसमें डाकू खड़ग सिंह द्वारा अपंग बन कर बाबा भारती का घोड़ा छीन लिये जाने के बाद बाबा भारती डाकू खड़ग सिंह से कहते हैं कि ‘इस घटना की चर्चा किसी से मत करना, वरना लोगों का गरीबों पर से विश्‍वास उठ जाएगा।’
तुम भी अपने जुल्‍म के खिलाफ लड़ो, खूब लड़ो। लेकिन साथ-साथ अपने झूठ-सच की कुंजी अपने पास रखो, उससे किसी और का ताला न खोलो, न अपने ताले को खोलने की इजाजत दो, वरना कल को सचमुच में गरीब, मायूस, मजबूर, हालात की सतायी लड़कियों पर से लोगों का विश्‍वास उठ जाएगा और इसका सारा दोष भी तुम्‍हारे ही मत्‍थे आएगा। वैसे ही, जैसे बड़ी चालाकी से यह आरोपित कर दिया गया है कि ‘औरतें ही औरतों की दुश्‍मन हैं’ या ‘चूड़ि‍यां कायरता की निशानी है।’ इसलिए, अपना इस्‍तेमाल होने देने से पहले अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!

Saturday, December 29, 2012

पैदा करना बेटियों को है रेयरेस्ट ऑफ रेयर जुर्म!


आज भी लोग बलात्कार के लिए ठहरा रहे हैं लड़कियों को दोषी।
कोई उनकी नज़रों को
कोई छोटे, खुले, तंग कपड़ों को
कोई घूँघट को,
कोई पर्दे को,
कोई साड़ी को,
कोई बिकनी को,
कोई दोस्ती को,
कोई प्यार को,
कोई उनके खुले व्यवहार को,
कोई उनके बंद जकड़न को,
कोई मोबाइल को
कोई नेट को।
अब हम थक गए हैं अपने लिए बचाव करते-कराते।
अब हम भी मानते हैं, हम हैं सबसे दोषी।
हे इस समाज के इतने महान विचारक,
नियामक
एक ही उपाय कर दें आपलोग,
निकाल दें ऐसा कानून,
जुर्म है बेटियों का पैदा होना,
उससे भी बड़ा जुर्म है उसके माँ-बाप का
उसे धरती पर लाने का दुस्साहस करना
आप हे हमारे माई-बाप!
घोषित कर दें पैदा करना बेटियों को
है रेयरेस्ट ऑफ रेयर जुर्म!
हम अभी गला घोंट आते हैं अपनी बेटियों का
साथ-साथ अपना भी।
क्या करेंगे हम जीवित रहकर,
जब हमारी बेटियाँ ही नहीं रहेंगी इस धरती पर।
रहो साफ, पाक, पवित्र बेटी-विहीन धरा पर,
लेकिन, यह धरती भी तो है बेटी ही,
कैसे रहोगे इस पर,
इसलिए बसेरा बनाओ कही और, किसी और खगोलीय दुनिया में,
चाँद, मंगल, शनि, बुध, सूरज- कहीं भी
बस, अब छोड़ दो हमें और हमें धारण करनेवाली धरा को।

Wednesday, April 27, 2011

रेप करो, शेप करो.


      अखबार में छपी खबर के मुताबिक पाकिस्तान की मुख्तार माई को उसके गैंग रेप पर न्याय नहीं मिला. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को आगे बढाते हुए छह में से 5 को बरी कर दिया. एक उम्र कैद की सजा में है. 2002 में एक ट्राइबल काउंसिल द्वारा गैंग रेप की शिकार मुख्तार माई पाकिस्तान में स्त्री अधिकार की एक प्रतीक के रूप में उभरी थी.
      छम्मक्छल्लो का दिल बाग बाग हो उठा. आखिर अपना ही पडोसी देश है, अपने ही जिगर का एक टुकडा. अलग हो गया तो क्या रवायतें भी छोड देगा? वह भी औरतों के मामले में? पता है, भाई लोग बमकेंगे छम्मक्छल्लो पर. पाकिस्तान से हिंदुस्तान की तुलना कर दी? इतनी बडी हिमाकत?
      छम्मक्छल्लो भी क्या करे? मुख्तार माई हिंदुस्तान में ही होती तो क्या हो जाता? उसे न्याय मिल जाता? भंवरी बाई को मिल गया था? प्रियदर्शिनी मट्टू को मिल गया था? रुचिका को मिल गया था? निठारी कांड में गई बच्चियों के मां बाप को मिल गया था? गोधरा कांड में हुई बर्बरता की शिकारों को मिल गया था? शाहबानो को मिल गया था? निरुपमा पाठक को मिल गया? दिन दहाडे बलात्कार, दहेज, यौन उत्पीडन की शिकार हिंदुस्तानी महिलाओं को मिल जाता है?
      बलात्कार तो हथियार है. सभी इसे हम औरतों पर आजमाते हैं. हर्र लगे ना फिटकरी, रंग चोखा आए. न गला कटे, न खून बहे, ना अंग कटे, न मांस का दरिया, न खून का दरिया, और बदला इतनी आसानी और सफलता से कि भाई वाह! मन के कटने की चिंता करेंगे तो रेप कैसे होगा? आप भी न! 
      एक ने छम्मक्छल्लो से कहा, “यह तो पुरानी कहावत है कि “इफ यू कांट प्रोटेस्ट रेप, एंजॉय इट”. आप इसके आगे जोड सकते हैं, “इफ यू कांट गेट जस्टिस, फॉरगेट इट”. भूल जाने में बडा भला है. मगर हमारा समाज दोहरा चौकन्ना है. वह बलात्कारियों को तो भूल जाता है, बलात्कृता को उंगली दिखा दिखा कर कहता है कि देखो, देखो, इसी का रेप हुआ है.
      गोधरा कांड के समय लोगों ने कहा था, “हम रेप थोडे करते हैं, हम तो शेप करते हैं.” आखिर को राज हमारा, सत्ता हमारी, नशा हमारा, नशेमन में चूर हम! हमारे हरम की तुम. तुम पर हम जैसा चाहें अपनी इच्छाओं, आवेगों के उद्दाम लहर उछाल सकते हैं. अहसान मान कि हमने तुम्हें इस लायक समझा.
      कम्बख्त ऊपरवाला बहुत नासमझ निकला. इन खातूनों को भी दिमाग दे दिया. मिले न कमीना ऊपरवाला, उसी का रेप कर डालेंगे, इतनी बार कि वह तंग आकर इन औरतों के माथे से दिमाग और सीने से दिल नाम के टुकडे निकाल बाहर कर दे. न दिल, न दिमाग, केवल देह और केवल हम! तब न रेप रहेगा न शेप. दिल और दिमाग ही नहीं रहेंगे तो ये फालतू बातें आएंगी कहां से इनके दिल और दिमाग में? भई वाह! भई आह!!

Sunday, October 10, 2010

यह “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” क्या है जज साब?

http://mohallalive.com/2010/10/10/vibha-rani-react-on-priyadarshini-mattu-case-verdict/comment-page-1/#comment-15027

ज साब, मैं प्रियदर्शिनी मट्टू। अभी आपके जेहन से निकली नहीं होऊंगी। अभी अभी तो आपने मेरी तकदीर का निपटारा किया है। जज साब, कानून के प्रति मेरी आस्था थी, तभी तो उसकी पढ़ाई कर रही थी। चाहा था कि कानून पढ कर मैं भी लोगों को न्याय दिलाने में अपनी व्यवस्था को सहयोग दूंगी। मेरी अगाध भक्ति और श्रद्धा इस देश पर, इस देश के कानून पर, इस देश के प्रजातांत्रिक स्वरूप पर और इस देश की न्याय व्यवस्था पर है।
लेकिन अपनी तकदीर को ही दोष दूंगी जज साब कि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। इंसान के साथ जब कुछ उसके हिसाब का नहीं हो पाता, तब वह अंतत: अपनी तकदीर को दोष दे कर चुप बैठ जाता है। मैं भी ऐसा ही कर रही हूं।
नहीं पता जज साब कि किसी केस का “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” क्या होता है? शायद किसी काम को कोई बहुत ही क्रूर तरीके से अंजाम देना। शायद इसीलिए रेप जैसे मामले में भी “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की संकल्पना कर ली गयी। जज साब, क्या आपको लगता नहीं कि रेप अपने आप में “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” है? एक ऐसा कर्म, जिसमें तन से ज्यादा मन आहत होता है, जिसकी भरपाई उम्र भर मुमकिन नहीं? मैं तो यह भी मान लेती हूं कि किसी के हाथ से खून अनजाने में हो सकता है, मगर किसी के द्वारा रेप अनजाने में किया गया हो, जज साब, मेरी छोटी सी बुद्धि में नहीं आयी आजतक यह बात। फिर, जो अपराध जान-बूझ कर किया गया हो, वह “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में कैसे नहीं आया साब?
क्या मेरा या मुझ जैसी हजारों अभागनों का मामला तभी “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” माना जाएगा, जब वह दरिंदगी की सारी हदें पार कर दे? मेरे या मुझ जैसियों के अंग-प्रत्‍यंग काट कर अलग अलग बिखेर दिये जाते, उन्हें पका कर किसी पार्टी में परोस दिया जाता, हमारे एक एक अंग की भरे बाजार में नीलामी होती, हमारे एक एक अंग का सौदा किया जाता, या उस पूरे घटनाचक्र की फिल्म बनाकर मंहगे दामों में बेचकर उससे घर की छत तक दौलत का अंबार लगा लिया जाता। तब तो प्रकारांतर से संदेशा जाता है लोगों तक कि ऐ इस देश के वीर वासियों, आओ, और इस देश की लड़कियों से खेलो, तनिक सावधानी के साथ, इतना तक कि उसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में मत आने देना। बस, तुम काम को अंजाम देते रहो और मौज मस्ती भी करते रहो, घर परिवार भी बसाते रहो। अगर कहीं ताकतवर की औलाद हो तब तो और भी फिक्र करने की जरूरत नहीं।
जज साब, हमारी तकदीर की लाल चुन्नियां सजने के पहले ही काली पड़ गयीं। फिर भी, झुलसी नहीं थीं। अब उस काली चुन्नी को मैं खुद ही झुलसा आऊंगी।
अब मुझे उन मांओं पर कोई अफसोस नहीं, जो जन्म से पहले या जनमते ही अपनी बेटियों को मार देती हैं। मैं अपने निरीह पिता की आंखों की बेबसी देख भर पा रही हूं। मेरी काली चुनरी भी तब अगर बची रह जाती, तो शायद उनकी आंखों में एक सुकून आता। हर लड़की के मां-बाप यही कहते दुहराते मर जाते हैं कि रेप के मुजरिमों को ऐसी सख्त सजा दी जाए, ताकि अगला कोई भी इस तरह की जुर्रत करने से पहले दस बार सोचे। मगर हर बार हम ही उसे ऐसी ‘महान जुर्रत’ करने के हौसले और बहाने देते रहते हैं।
क्या मैं यह कहूं कि “जाके नाहीं फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई?” तब तो कई और लड़कियों को मेरी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा और यह मैं कैसे चाह सकती हूं जज साब?
माननीय न्याय व्यवस्था पर मेरा पूरा भरोसा है, मैं उसका आदर करती हूं, तो बस जज साब, एक विनती मेरी सुन लीजिए, रेप को ही “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की संज्ञा दे दीजिए और हम प्रियदर्शिनी, प्रतिभा, रुचिका जैसी जाने कितनी अभागनें हैं इस धरती पर भी और इस धरती से ऊपर भी, उन्हें सुकून की एक सांस दे दीजिए। एक भरोसा तो दीजिए कि उनकी पीर को समझनेवाला भी कोई है। बाकी हम परमादरणीय न्याय और न्यायालय की आदर रेखा से अलग तो हैं नहीं।
हां, हमारे जजमेंट के दिन हमारे शहर में बारिश हुई जज साब। यह बारिश नहीं, हम अभागनों के आंसू थे। इसमें मेरे मां-बाप और हमारे शुभचिंतकों के भी सम्मिलित हैं।

Thursday, October 22, 2009

रेप हथियार है! फौज़ तैयार करें!

http://janatantra।com/2009/10/22/vibha-rani-article-on-rape-and-women/
आज आप किसी को भी रेप के नाम पर डरा सकते हैं, धमका सकते हैं. रेप के मामले में कौन सच्चा है, कौन झूठा, यह तय करना मुश्किल है. न्याय, धर्म, प्रेम मानवता आदि की बातें इस संदर्भ में ना करें. घटना सामाजिक परिप्रेक्ष्य में घटे कि राजनीतिक. रेप के घिनौने पक्ष से कोई इंकार नहीं कर सकता. सवाल यह है कि इस घिनौने पक्ष का हमारे समाज में बने रहने का क्या कोई औचित्य है? तो जवाब है कि औचित्य है. हर उस कारक का इस समाज में औचित्य है, जिसका आपके अस्तित्व से, आपके मान से, आपके सम्मान से, आपकी निजता से वास्ता है.
बलात्कार का डर दिखाना या बलात्कार करना कोई आज की बात नहीं है. इसे आप अपने मिथकीय पात्रों में भी पा सकते हैं और अपने आज के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और ताक़तवर परिवेश में भी. ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का देवर्षि इंद्र ने बलात्कार किया तो सती वृन्दा का स्वयं भगवान विष्णु ने. दुर्योधन भी पांचाली को नग्न करने में सफल हो जाता तो इसके बाद की परिणति शायद बलात्कार ही होती.
बलात्कार एक मानसिक स्थिति है, अपनी ताकत को, अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने की स्थिति. सामनेवाले को अपने से कमतर देखने की जुगुप्सा भरी तालिबानी खुशी और संतोष. सभी को मालूम है कि यह गलत है, मगर नागासाकी, हिरोशिमा की तरह इस पर अणुबम का इस्तेमाल हो रहा है. नागाशाकी, हिरोशिमा तो दो जगहें हुईं और इनके परिणाम से दुनिया वाकिफ है और अभी तक कम से कम फिर से इस घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई है. हर नारी देह एक नागाशाकी, एक हिरोशिमा है, उस पर जबर्दस्ती करने का तालिबानी आतंक है, मगर इस नागाशाकी, हिरोशिमा पर बलात्कार के अणुबम गिराए और गिराए चले जा रहे हैं.
दुर्भाग्य से इसे मन से कम और शरीर से अधिक जोड दिया गया है, वह भी स्त्री देह से. बलात्कार शब्द आते ही सबसे पहले नारी की ही परिकल्पना सामने आती है. किसी पुरुष पर बलात्कार जैसी अवधारणा अभी विकसित नहीं हुई है. प्रार्थना कीजिए कि ऐसी स्थिति आए भी नहीं, क्योंकि खराब हर हालत में खराब है, उसका भोक्ता चाहे जो भी हो. आप स्वयं देखें कि किसी काम को अगर हमसे बलात करवाया जाता है तो हमारा मन कितना क्षुब्ध होता है. कई कई दिनों तक हम उस स्थिति के घेरे में रहते हैं. मगर चूंकि उसमे शरीर और यौनजनित प्रक्रिया नहीं है तो उसे काम, काम की अनिवार्यता, जीवन जीने की मज़बूरी, समझौता और पता नहीं क्या क्या नाम देकर उसे भूल जाने की सलाह दी जाने लगती है.
एक दुर्भाग्य यह भी है कि बलात्कार को व्यक्ति के स्व सम्मान पर आघात से अधिक उसे घर, परिवार, समाज, देश की प्रतिष्ठा के रूप में देखा जाता है. ऐसे में यह केवल एक अपराध या एक शारीरिक या यौनजनित प्रक्रिया भर नहीं रह जाती, बल्कि यह एक अमोघ हथियार हो जाता है. एक जाति, समाज, धर्म, देश का किसी दूसरी जाति, समाज, धर्म, देश के साथ बदला लेने का सबसे अमोघ हथियार. युद्ध की तो यह अघोषित नीति है और इसके लिए सैनिकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती. प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आज तक विश्व में जितने भी युद्ध हुए हैं, पराजित देश की स्त्रियों को बलात्कार की नारकीय पीडा से गुजरना पडा है. अब इस क्षेत्र में थोडी से सुगबुगाहट आई है. राजाओ, महाराजाओं के समय में भी औरतें लूट के माल के रूप में विजेता राजाओं के रनिवास में, सैनिकों के खेमों में और सामान्य नागरिकों के लिए वेश्यालयों में भेज दी जाती थीं. सनद रहे कि उनसे कोई सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता था. आज भी सवर्ण अवर्ण की लडाई में महिलाओं के साथ पाशविकता का यह नंगा खेल खेला जाता है. विरोधी पक्ष इसमें अपनी विजय समझते हैं. यह समझ में नहीं आता कि एक ओर जिस स्त्री को कमजोर, अबला की संज्ञा दी जाती है, उसी के तन पर जबरन कब्ज़ा करके विजय के किस भाव को व्यक्त किया जाता है. पर सोचने के बाद लगा कि विजय का भाव आता है, क्योंकि यह विजय नारी देह के मर्दन के भाव से नहीं है, यह विजय भाव अपने दुश्मन के विशिष्ट सम्मान के मर्दन से है. औरत को घर की मर्यादा मानना बंद कर दीजिए, उसका बलात्कार होना बंद नहीं तो कम अवश्य हो जाएगा.
मज़बूत से मज़बूत लडकी और स्त्री भी आज अणु बम विस्फोट से उतना नहीं डरती होंगी, जितना बलात्कार शब्द से. इसके पीछे वही लगातार चलने वाली मानसिक अशांति, पीडा, दुख और क्षोभ की त्रासदी है. एक सामाजिक अवहेलना, पुरुष ताक़त का जबरन स्थापन उसके अस्तित्व को खंगाल डालता है. एक अजाने डर और अविश्वास से वह जीवन भर जूझती रहती है और उस पर से समाज के लम्पटों के कुत्सित इशारे और हाव भाव कि अब तो एक मन लकडी झेल ही आई, दस मन और उठा लोगी तो तुम पर क्या फर्क़ पडेगा. तुम्हारा तो जो जो होना था, हो गया, जो जाना था, चला गया. रेप या बलात्कार हथियार है और हर कोई इस हथियार का प्रयोग अपने रक्षार्थ करना चाहता है. प्रतिपक्षी अगर लडकी है तो इस आधार पर उसे डराना धमाकाना और आसान हो जाता है. सत्ता का मद इस भाव पर मोटा रेशमी पर्दा डाल देता है. उस पर्दे के भीतर सनीली सरसराहट होती है. सनीली सरसराहट सांप की भी होती है. सत्ता के आस्तीन में सांप हमेशा छुपा बैठा होता है. अपनी सुविधा के हिसाब से कभी वह उस सांप की लपलपाती जीभ दिखा देती है, कभी उसकी फुंफकार सुना देती है और इतने से भी बात नहीं अगर बन पाती है तो वह आस्तीन के अपने दोस्त को आगे के काम को अंजाम देने के लिए छोड देती है. सत्ता की ज़बान या ताक़त में नर या मादा का भेद नहीं देखा जाता. बलात्कार करना या करवाना सदा से ताक़तवरों का प्रिय शगल रहा है और जो आपके तन, मन, सब पर भारी पडे, वह भी बिना हर्र फिटकरी के तो उस चोखे रंग के लिए कौन आगे आना पसंद नहीं करेगा?

रेप हथियार है! फौज़ तैयार करें!

http://janatantra।com/2009/10/22/vibha-rani-article-on-rape-and-women/
आज आप किसी को भी रेप के नाम पर डरा सकते हैं, धमका सकते हैं. रेप के मामले में कौन सच्चा है, कौन झूठा, यह तय करना मुश्किल है. न्याय, धर्म, प्रेम मानवता आदि की बातें इस संदर्भ में ना करें. घटना सामाजिक परिप्रेक्ष्य में घटे कि राजनीतिक. रेप के घिनौने पक्ष से कोई इंकार नहीं कर सकता. सवाल यह है कि इस घिनौने पक्ष का हमारे समाज में बने रहने का क्या कोई औचित्य है? तो जवाब है कि औचित्य है. हर उस कारक का इस समाज में औचित्य है, जिसका आपके अस्तित्व से, आपके मान से, आपके सम्मान से, आपकी निजता से वास्ता है.
बलात्कार का डर दिखाना या बलात्कार करना कोई आज की बात नहीं है. इसे आप अपने मिथकीय पात्रों में भी पा सकते हैं और अपने आज के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और ताक़तवर परिवेश में भी. ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का देवर्षि इंद्र ने बलात्कार किया तो सती वृन्दा का स्वयं भगवान विष्णु ने. दुर्योधन भी पांचाली को नग्न करने में सफल हो जाता तो इसके बाद की परिणति शायद बलात्कार ही होती.
बलात्कार एक मानसिक स्थिति है, अपनी ताकत को, अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने की स्थिति. सामनेवाले को अपने से कमतर देखने की जुगुप्सा भरी तालिबानी खुशी और संतोष. सभी को मालूम है कि यह गलत है, मगर नागासाकी, हिरोशिमा की तरह इस पर अणुबम का इस्तेमाल हो रहा है. नागाशाकी, हिरोशिमा तो दो जगहें हुईं और इनके परिणाम से दुनिया वाकिफ है और अभी तक कम से कम फिर से इस घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई है. हर नारी देह एक नागाशाकी, एक हिरोशिमा है, उस पर जबर्दस्ती करने का तालिबानी आतंक है, मगर इस नागाशाकी, हिरोशिमा पर बलात्कार के अणुबम गिराए और गिराए चले जा रहे हैं.
दुर्भाग्य से इसे मन से कम और शरीर से अधिक जोड दिया गया है, वह भी स्त्री देह से. बलात्कार शब्द आते ही सबसे पहले नारी की ही परिकल्पना सामने आती है. किसी पुरुष पर बलात्कार जैसी अवधारणा अभी विकसित नहीं हुई है. प्रार्थना कीजिए कि ऐसी स्थिति आए भी नहीं, क्योंकि खराब हर हालत में खराब है, उसका भोक्ता चाहे जो भी हो. आप स्वयं देखें कि किसी काम को अगर हमसे बलात करवाया जाता है तो हमारा मन कितना क्षुब्ध होता है. कई कई दिनों तक हम उस स्थिति के घेरे में रहते हैं. मगर चूंकि उसमे शरीर और यौनजनित प्रक्रिया नहीं है तो उसे काम, काम की अनिवार्यता, जीवन जीने की मज़बूरी, समझौता और पता नहीं क्या क्या नाम देकर उसे भूल जाने की सलाह दी जाने लगती है.
एक दुर्भाग्य यह भी है कि बलात्कार को व्यक्ति के स्व सम्मान पर आघात से अधिक उसे घर, परिवार, समाज, देश की प्रतिष्ठा के रूप में देखा जाता है. ऐसे में यह केवल एक अपराध या एक शारीरिक या यौनजनित प्रक्रिया भर नहीं रह जाती, बल्कि यह एक अमोघ हथियार हो जाता है. एक जाति, समाज, धर्म, देश का किसी दूसरी जाति, समाज, धर्म, देश के साथ बदला लेने का सबसे अमोघ हथियार. युद्ध की तो यह अघोषित नीति है और इसके लिए सैनिकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती. प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आज तक विश्व में जितने भी युद्ध हुए हैं, पराजित देश की स्त्रियों को बलात्कार की नारकीय पीडा से गुजरना पडा है. अब इस क्षेत्र में थोडी से सुगबुगाहट आई है. राजाओ, महाराजाओं के समय में भी औरतें लूट के माल के रूप में विजेता राजाओं के रनिवास में, सैनिकों के खेमों में और सामान्य नागरिकों के लिए वेश्यालयों में भेज दी जाती थीं. सनद रहे कि उनसे कोई सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता था. आज भी सवर्ण अवर्ण की लडाई में महिलाओं के साथ पाशविकता का यह नंगा खेल खेला जाता है. विरोधी पक्ष इसमें अपनी विजय समझते हैं. यह समझ में नहीं आता कि एक ओर जिस स्त्री को कमजोर, अबला की संज्ञा दी जाती है, उसी के तन पर जबरन कब्ज़ा करके विजय के किस भाव को व्यक्त किया जाता है. पर सोचने के बाद लगा कि विजय का भाव आता है, क्योंकि यह विजय नारी देह के मर्दन के भाव से नहीं है, यह विजय भाव अपने दुश्मन के विशिष्ट सम्मान के मर्दन से है. औरत को घर की मर्यादा मानना बंद कर दीजिए, उसका बलात्कार होना बंद नहीं तो कम अवश्य हो जाएगा.
मज़बूत से मज़बूत लडकी और स्त्री भी आज अणु बम विस्फोट से उतना नहीं डरती होंगी, जितना बलात्कार शब्द से. इसके पीछे वही लगातार चलने वाली मानसिक अशांति, पीडा, दुख और क्षोभ की त्रासदी है. एक सामाजिक अवहेलना, पुरुष ताक़त का जबरन स्थापन उसके अस्तित्व को खंगाल डालता है. एक अजाने डर और अविश्वास से वह जीवन भर जूझती रहती है और उस पर से समाज के लम्पटों के कुत्सित इशारे और हाव भाव कि अब तो एक मन लकडी झेल ही आई, दस मन और उठा लोगी तो तुम पर क्या फर्क़ पडेगा. तुम्हारा तो जो जो होना था, हो गया, जो जाना था, चला गया. रेप या बलात्कार हथियार है और हर कोई इस हथियार का प्रयोग अपने रक्षार्थ करना चाहता है. प्रतिपक्षी अगर लडकी है तो इस आधार पर उसे डराना धमाकाना और आसान हो जाता है. सत्ता का मद इस भाव पर मोटा रेशमी पर्दा डाल देता है. उस पर्दे के भीतर सनीली सरसराहट होती है. सनीली सरसराहट सांप की भी होती है. सत्ता के आस्तीन में सांप हमेशा छुपा बैठा होता है. अपनी सुविधा के हिसाब से कभी वह उस सांप की लपलपाती जीभ दिखा देती है, कभी उसकी फुंफकार सुना देती है और इतने से भी बात नहीं अगर बन पाती है तो वह आस्तीन के अपने दोस्त को आगे के काम को अंजाम देने के लिए छोड देती है. सत्ता की ज़बान या ताक़त में नर या मादा का भेद नहीं देखा जाता. बलात्कार करना या करवाना सदा से ताक़तवरों का प्रिय शगल रहा है और जो आपके तन, मन, सब पर भारी पडे, वह भी बिना हर्र फिटकरी के तो उस चोखे रंग के लिए कौन आगे आना पसंद नहीं करेगा?