यार लोग परेशान हैं कि किसी ने अपनी नवजात बेटी को मार दिया, क्योंकि उसे बेटी नहीं चाहिये थी. कमाल है, अरे नहीं चाहिये थी तो नहीं चाहिये थी. अब इसमें इतना शोर या मातम मचाने की क्या ज़रूरत? उसका बच्चा, उसकी मर्ज़ी! उसने आपसे पूछकर तो बाप बनने की प्रक्रिया नहीं शुरु की थी ना! अब उसकी इच्छा! आखिर बेटी थी उसकी.
बेटियों को मारने का सिलसिला कोई आज का है क्या? गंगा तो इससे भी महान थी. भीष्म के पहले के सात सात बेटों को जनमते ही मार दिया. सोचिए, आज का कोई मां-बाप इतना बडा कलेजा दिखाएगा कि बेटों को मार दे? गंगा के उन सात बेटों ने अपनी मौत का बदला शायद इस तरह से लिया है कि उन्होंने सभी के मन में भर दिया कि बेटियां ही सभी संताप की जड हैं, इसलिए जनमते ही छुटी पा लो. बाद की आह और वाह से बचे रहोगे. गंगा भी तो बेटी ही थी न!
अब बताइये, बेटियां जनम कर ही कौन सा तीर मार लेंगी? एक किरण बेदी, या कल्पना चावला या सुनीता विलियम्स बन जाने से क्या कोई क्रांति आ जाएगी? सभी बेटियां अपने अधिकार भाव से पैदा होने लग जाएंगी? अपनी मर्ज़ी से पढने लग जाएंगी? अपनी मर्ज़ी से ब्याह कर लेंगी? ब्याह के बाद पति या ससुराल के अत्याचार से बच जाएंगी? दहेज़ के बदले उन्हें लड्डू दिए जाने लगेंगे? ब्याह के समय् उनसे शील, सुभाव, चरित्र, रूप, गुन की बात नहीं की जाने लगेंगी? इतने सारे झंझट किसलिए भाई? बेटियों के कारण ही ना? जीवन कितना सुखी, शांत, सरल हो जाएगा, अगर बेटियां नहीं हुई तो?
कितने फायदे हैं ना बेटियों के ना होने से. घर में किसी को रखवाली नहीं करनी पडेगी. पढाने के लिए उसे कहीं भेजा जाए, इस पर सोचना नहीं पड़ेगा, कहीं आने जाने के लिए उसके साथ एक अदद संरक्षक की ज़रूरत पर बल नहीं देना पड़ेगा, उसके साथ कोई छेड़छाड़ ना करे, वह हर रोज अपने घर सुरक्षित पहुंच जाया करे, इस पर मगजमारी नहीं करनी पडेगी, शादी के बाद वह सुखी है कि नहीं, दहेज की प्रताड़ना या अन्य प्रताड़ना दी तो उसे नहीं जा रही है, इस आशंका में आपकी नींद हराम तो नहीं हुई रहेगी, दफ्तर में कोई उस पर बिना वज़ह छींटाकशी कर रहा है, यह देख कर आपकी जान तो नहीं सूखती रहेगी, उसका किसी तरह का कोई यौन शोषण तो नहीं हो रहा है, इससे आपकी आत्मा कनछती तो नहीं रहेगी? वह कहीं अपने मन से किसी जात कुजात में शादी कर के आपकी इज़्जत को बट्टा ना लगाए और अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए आप उसका उसके प्यार समेत खात्मा ना कर दें.
यह सब कुछ भी नहीं होगा और हम सभी चैन और आराम की नींद सो सकेंगे, अगर बेटियां नहीं होंगी. सबसे बड़ी बात तो यह कि तब इंसानों की पैदवार रुक जाएगी, बेटियां ही नहीं होंगी तो बच्चे कैसे पैदा होंगे और जब बच्चे ही पैदा नहीं होंगे तो ये सब काम भी नहीं होंगे और जब ये सब काम नहीं होंगे तो इन सब पर सोचने और परेशान होने की ज़रूरत भी नहीं रहेगी. इसलिए, आइये, सब मिल जुलकर एक दूसरे का आह्वान करें और इस धरती पर से सभी बेटियों को नेस्तनाबूद करें.
3 comments:
सादर वन्दे!
क्या कहे इस पोस्ट पर,
इस पोस्ट पर सिर्फ सोचा जा सकता है, और समझ में आये तो इसके सार्थक पहलु को अंगीकार भी किया जा सकता है,
व्यंग ही सही लेकिन आपने बेटियों के न होने पर वीभत्स समाज का आइना दिखाया है, इस विषय पर आप कि लेखन शैली बहुत ही प्रभावित करती है.
रत्नेश त्रिपाठी
बेटियां डरपोकों के लिए नहीं होती.
"भीष्म के पहले के सात सात बेटों को जनमते ही मार दिया."
बहनजी, कम से कम भीष्म को तो बख़्शो :)
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