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Thursday, December 3, 2009

यू पी के दो भैये से परेशान-ये पूरा हिन्दुस्तान!

परम आदरणीय महोदय साहेब जी लिब्रहान, क्यों हो रहे हैं आप हलकान? जीवन के सत्रह साल का कर दिया नुकसान. सत्रह साल में तो बच्चा जवान हो जाता है, जवान बूढा हो जाता है बूढा स्वर्ग की सीढियां नाप जाता है. सोचिए साहेब जी कि सत्रह साल और उससे भी अधिक समय से, कहें तो सदियों से जिसके लिए अपनी जान देते आए हैं, वे आखिर हैं कौन? यू पी के दो भैया ही ना, जिन्हें जब तब हकाल देने, जान से मार डालने, भीतर घुसने ना देने की बात कही जाती रही है. अब आप सभी ही बताएं कि ये दो भैये कोई आज के हैं क्या कि आपके कहने से वे सुधर जायेंगे और आप जैसा कहेंगे, वैसा वे कर देंगे? अरे, ये बडे चालाक, बडे जुगाडू और बडे मौका परस्त थे. तभी तो वानर सेना भी बना ली और एक भाई को दूसरे के खिलाफ भडका भी दिया. इनकी जडे बहुत गहरे तक धंसी हुई हैं, त्रेता से लेकार द्वापर तक. बात बडी अजीब सी है और नहीं भी. यह आज की बात नहीं भी है, और है भी. कहते हैं ना कि मानो तो देव नहीं तो पत्थर. यह भी कि इस शीर्षक का बीज मेरे एक मित्र ने छम्मक्छल्लो के मन में बो दिया. अब बो दिया तो वह अंकुराएगा ही.

छम्मक्छल्लो ने देखा कि त्रेता का एक भैया बडो बडों की खाट खडी कर गया. सबसे पहले अपने बाप की खाट श्मशान में पहुंचा दी. मां की आज्ञा मान कर. वह भी क्या तो सौतेली मां. फिर छोटे भाई को भिडा दिया, जा भैया, एक रूपसी अपने रूप पर अभिमान ना करे और हम सबका पुरुषत्व बचा रहे, उसकी कुछ तज़बीज़ कर आ. लोग आज कहते हैं कि औरतों पर अत्याचार हो रहे हैं. और देखिए विडम्बना कि इसके लिए उन्हें जो स्थल मिला, नाक कटने के बाद वह स्थान कहलाया -नासिक. जी हां, अंगूर की इस नगरी नासिक में कुम्भ का मेला लगता है और गोदावरी नदी के तट पर राम का अखाडा है, जहां शाही स्नान होता है. वहां सीता गुफा है. कहते हैं कि असली सीता को राम ने अग्नि के हवाले कर दिया था. बहन प्रेमी भाई ने तो बस उसकी छाया का अपहरण किया था. अग्नि परीक्षा के समय अग्नि ने असली सीता को लौटाया था- क्लोनिंग उस ज़माने में भी थी और डबल रोल भी. वहां एक कालाराम का भी मन्दिर है, जिसमें राम सहित सीता, लक्ष्मण सभी की मूर्तियां काले पत्थर की हैं और गोराराम का भी है. सोच लीजिए कि वहां मूर्तियों का रंग क्या होगा?

यू पी का यह भैया इतने पर ही नही रुका. अपनी नगरी, अपना राज्य छोदकर वह दूसरे राज्य में पहुंच गय था. ऐसा तो नहीं था कि यू पी में जंगल ही नहीं था. परंतु नहीं नहीं, भूल हो गई. देशनिकाला में तो अपने राज्य के जंगल भी शामिल रहते हैं. लिहाज़ा, वह तो नासिक की पंचवटी में था अपनी घरवाली के साथ. आज भी वे पांच वट्वृक्ष हैं, जिनके कारण उस जगह का नाम पडा- पंचवटी, जहां नाक कटी बहन के अपमान का बदला लेने भाई पहुंच गया. मामा मायावी था और लोग झूठ ना बुलवाए, अपनी इस मुंबई नगरी को भी मायानगरी ही तो कहा जाता है. कहते हैं कि मामा इसी मायानगरी का था. सीता यहां से हर ली गई. किसी दूसरे देश से किसी की घरवाल्ई चली जाए और वह कुछ ना करे, ऐसा होता है क्या?

बात यहीं नहीं रुकी. किशोरावस्था में ही एक मुनि उनको बिहार के बक्सर ले गए उधार मांगकर ताकि राक्षसी ताडका से उनकी रक्षा की जा सके. सोचिए, कितनी बलशाली होती थीं तब बिहार की महिलाएं कि एक ओर ताडका बन कर मिथकीय दुनिया के सबसे बलशाली मुनि की नाक में दम कर रखा था तो दूसरी ओर फूल से भी कोमल सिया सुकुमारी के भीतर भी इतनी ताक़त कि वह शिव का धनुष खिसका दे. यू पी का यह भैया वहां भी नैन सों नैन नाहीं मिलाओ गाने से बाज नहीं आया. यकीन ना हो तो रामचरित मानस पढ लीजिए, राम सीता के बाग में मिलने की चर्चा, फिर इसके बाद सीता का देवी पार्वती से इसी भैया को पति के रूप में पाने की प्रार्थना और देवी का आशीष कि "सुनु सिय सत्य असीस हमारी, पूजही मनकामना तुम्हारी." तो यू पी के इस भैया ने खुद तो धनुष तोड कर लडकी जीत ही ली, साथ साथ अपने और तीनों भाइयों के लिए भी घरवाली का इंतज़ाम कर लिया. एक ही मंडप पर चार विवाह, राजकुमार हो कर भी इतना खर्चा बचा लेने की सोची. इतनी किफायत आज के लोग सोचें और करें तो?

माता की बात मानकर जंगल चले गए और वहां जो कुछ किया, आपको पता ही है. वानर सेना भी खडी कर ली, भील भीलनी को भी अपने बस में कर लिया, नाक कटी के दूसरे भाई को अपने कॉंफिडेंस में लेकर बडे भाई की म्रृत्यु का राज़ जान लिया और चाचा, बेटे सबको मारकर अपना असर मनवा लिया. और तो और, उसकी विधवा भाभी का भी उसके साथ ब्याह करवा दिया. इतना ही नहीं, अपने छोटे भाई को मरणासन्न दुश्मन से सीख लेने के लिए भी भेज दिया तकि बाद में दुनिया उनके विचार पर अश अश कर उठे.

प्रजा के ताने पर घरवाली को घर से बाहर निकाल दिया. सौतेले भाई से इतना प्रेम किया के एक को साथ रखा तो दूसरे को अपनी खडाऊं दे दी. राज करते रहे. घरवाली को घर से निकाल देने के बाद उसकी मूर्ति बिठा कर यज्ञ किया, बेटों को राजगद्दी सौंप दी और यह सब करने के बाद अंतर्ध्यान हो गए. काश कि ऐसा अंतर्ध्यान होते कि किसी को याद नहीं आते. आते भी तो गुप्त प्रेम की तरह लोगों के मन में ही रहते. मगर अंतर्ध्यान उस समय हुए और अभी तक लोगों को पानी पिला रहे हैं, एक दूसरे को असली नेता की तरह भिडवा रहे हैं. लोग आज कह रहे हैं कि यू पी के भैया ने कहर मचा रखा है, मगर देखिए कि इसने तो त्रेता से ही गदर मचा रखा है.

अब दूसरे भैया! जन्म से पहले ही ऐसी आकाशवाणी करवा दी कि मा-बाप जेल की चक्की पीसने लगे. खुद भी जेल में जन्म लिया. दूसरे के घर पले बढे, मगर प्रेम और ऐसी राजनीति ऐसी रची कि भारत को महाभारत में बदल दिया. हमारे देश में कानून है कि एक हिन्दू आदमी एक पत्नी के रहते दूसरा ब्याह नहीं कर सकता और उसी के भगवान कहे जानेवाले यू पी के इस भैया एक दो क्या कहें, आठ रानी और साठ हज़ार पटरानी के मालिक बन बैठे. इतने पर भी मन रसिया, मन बसिया कहलाने से बाज़ नहीं आए तो एक अदद प्रेमिका भी कर ली. फिर भी चैन नहीं मिला तो महारास रचा रचा कर सारी ब्याही, अनब्याही, बाल बच्चेवाली गोपिकाओं को अपने पास बुलाने लगे. राज्य बनाया तो अपना देश गांव छोडकर दूसरे के यहां बना लिया. जान के लाले पडे तो समुन्दर के भीतर घर बना लिया. कहीं जेल का तो यह सब असर नहीं था? यू पी के एक भैया ने महाराष्ट्र में बहन की नाक काट ली तो यू पी के दूसरे भैया ने पडोस के गुजरात मे अपना दाखिल कबज़ा कर लिया.

और तो और, नेपाल में जनमे सिद्धार्थ को भी कहीं और ज्ञान नहीं मिला और वह युवा राजकुमार जब "गया गया तो ऐसा गया कि गया ही रह गया" और गया को उसने बोधगया बना दिया. यूपी के भैया को भी बिहार या कह लें कि मिथिला की ही छोरी मिली और नेपाल के इस राजकुमार को भी ग्यान बिहार की बाला के हाथों की खीर खा कर ही मिली. ज्ञान के इस केन्द्र की सत्ता को देखने समझने की ज़रूरत बहुत बढ गई है भैया! राजकुमार सिद्धार्थ के ज्ञान की गंगा मैदानी भारत में सबसे ज़्यादा फैली तो अपने बाबा साहेब की छांव तले.

अब जब ये सभी लोग त्रेता, द्वापर से ही रार मचाए हुए हैं और बिहार में ही सुन्दरता के साथ साथ ज्ञान को भी केन्द्र मान बैठे और अपना दबदबा यूपी से लेकर हर ओर जमा लिया, इतना कि उसके नाम पर बडे से बडे स्मारक ढाह दिए जाते हैं, उनके नाम पर बडी से बडी कमिटी बन जाती है, उनके नाम पर पता नहीं कितनी गोटियां कहां, कहां और कैसे कैसे जमा ली जाती हैं. लोगों का पूरा का पूरा कैरियर, नाम-धाम, काम सब कुछ ही यू पी के इन दो भैयाओं पर बस गया हुआ है- देश से विदेश तक. तो प्रेम से गाइए, हरे रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा हरे रामा! रामा रामा, हरे कृष्णा, हरे कृष्णा हरे रामा!

4 comments:

अवधिया चाचा said...

हम भी यू.पी. के हैं, भैयों की गाथा सुनकर हम अपनी यू.पी. पर गौरन्वित हैं, बहुत अच्‍छा लगा, अनुमान है कि बहुत कम की समझ में आएगा, बहुत कम हमारी तरह प्रसन्‍न होंगे, कभी अवध जाना हो तो अवध को हमारा सलाम कहना

अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया

अवधिया चाचा said...

हमारा अनुमान, शत प्रतिशत, आज हमने चटकों में देखा क्‍या पोजिशन है, देखा सब के हाथ काँप गये होंगे,

मुबारक हो इस लेख को सम्‍मान मिला
आज मैं इस निम्‍न लिंक से इस ब्लाग पर आया

व्यंग्य लेखन पुरस्कार आयोजन – विभा रानी का व्यंग्य : यू पी के दो भैये से परेशान-ये पूरा हिन्दुस्तान!
http://rachanakar.blogspot.com/2009/12/blog-post_8158.html


हम कभी अवध गये तो वहाँ इस लेख को जरूर दिखाऐंगे
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया

रेखा श्रीवास्तव said...

kya vyakhya ki hai, maja aa gaya? ye vyangya sabke vash ki baat nahin. ham kush hue isa aalekh ko padhkar. varna vahi har blog par ladai jhagade vali baaten.

pratima sinha said...

मेरी ओर से इस व्यंग्यालेख को सौ में पूरे सौ नम्बर ! हम खुश हुए.
प्रतिमा
from U.P.