छम्मकछल्लो हैरान है फिर से कि क्या हो गया अगर अदालत ने नंगई के मामले में मिलिंद सोमण और मधु सप्रे को बरी कर दिया? अरे, नंगई तो कुदरती देन है। है कोई ऐसा, जो यह दावा कर ले कि वह पूरे कपड़े पहने पैदा हो गया था? ऊपरवाला तो समदर्शी है। उसने जानवरों, चिड़ियों को भी नंगा पैदा किया और इंसानों को भी। जानवर और पक्षी तो इसे प्रकृति की देन समझ कर चुप बैठ गये और नंगे घूमते रहे। मगर इंसान की वह फितरत ही क्या, जो दूसरों की बात मान ले? ना जी, आपने हमें नंगा पैदा किया तो किया, मगर हम तो कपड़े पहनेंगे ही पहनेंगे। और केवल पहनेंगे ही नहीं, इसे नंगई के ऐसे सवाल से जोड़ कर रख देंगे कि लगेगा कि बस देह की सार्थकता इतनी ही है कि इसे पूरे कपड़े से ढंक कर रखो। नंगा तो मन भी होता है, मगर मजाल है कि मन के नंगेपन पर कोई बोल दे या कोई विवाद खड़ा कर दे। यह मानुस देह मन से भी इतनी बड़ी हो गयी है कि सारी की सारी शुचिता का ठीकरा इसी पर फूटने लगा है।
आप कहते हैं कि इससे और भी व्यभिचार बढ़ेगा। दरअसल इससे नज़रिया और उदार हुआ है। हम बचपन में मेले ठेले में पान की दुकान पर फ्रेम मढ़ी तस्वीरें देखते थे, उन तस्वीरों में एक महिला या तो केवल ब्रा में रहती थी या उसे ब्रा का हुक लगाते हुए दिखाया जाता था। ये तस्वीरें इसलिए लगायी जाती थीं ताकि पान की दुकान पर भीड बनी रहे। लोग भी पान चबाते हुए इतनी हसरत और कामुक भरी नज़रों से उन तस्वीरों को देखते थे कि लगता था कि यदि वह महिला सामने आ जाए तो शायद वे सब उसे कच्चा ही चबा जाएं। मगर अब या तो पश्चिम की देन कहिए या अपना बदलता नज़रिया या महानगरीय सभ्यता, आज लड़कियां कम कपड़े में भी होती हैं, तो कोई उन्हें घूर-घूर कर नहीं देखता। कोई देख ले तो उसे असभ्य माना जाता है। सामने दिखती चीज़ के प्रति वैसे भी आकर्षण कम या ख़त्म हो जाता है। हमारा दावा है कि नंगई खुल कर सामने आ जाए, तो लोग वितृष्णा से भर उठेंगे। अच्छा ही तो है, कम से कम इसको ले कर लोगों के मन की कुंठाएं तो निकल जाएंगी, जिसका खामियाज़ा लड़कियां, स्त्रियां यौन यातनाओं के रूप में भोगती हैं और कभी कभी लड़के और पुरुष भी।
लोग कहते हैं कि नंगई पश्चिम की देन है। तो ज़रा आप अपने महान हिंदू धर्म और उसके देवी-देवताओं को देख लें। पता नहीं, सभी देवताओं को कितनी गर्मी लगी रहती है कि देह पर तो महिलाओं की तरह हज़ारों ज़ेवर चढ़ाये रहेंगे मगर यह नहीं हुआ कि देह पर एक कमीज़ ही डाल लें। उत्तरीय भी ऐसे डालेंगे कि उसमें पूरी की पूरी देह दिखती रहे। देवताओं की इस परंपरा का पालन केवल सलमान खान ही कर रहे हैं। देवियां कंचुकी धारण किये रहती हैं। लेकिन कोई भी हीरोइन देवी की बराबरी आज तक नहीं कर सकी हैं। शायद करने की हिम्मत भी नहीं है। भगवान शंकर या तो नंगे रहते हैं या एक मृगछाला धारण किये रहते हैं। भगवान महावीर तो दिगंबर रहकर दिगंबर संप्रदाय की स्थापना ही कर गये। हम सब बड़े धार्मिक और बड़े सच्चे हिंदू हैं तो क्यों नहीं पूछते इन देवी-देवताओं से कि आपके इस ताना-बाना के पीछे कौन-से जन कल्याण का भाव छुपा था? आज लोग कम कपड़े पहनने लगे तो बुरे हो गये?
इससे अच्छे मर्द तो आज के हैं कि वे पूरे कपड़े तो पहने रहते हैं। अब कोई फिल्मवाला कभी किसी हीरो या हीरोइन को नंगा दिखा देता है तो इसका यह मतलब थोड़े ही न होता है कि वह नंगई का समर्थन कर रहा है। फिल्मवाले तो वैसे भी समय से आगे रहे हैं। वे जान जाते हैं कि लोग क्या चाहते हैं? औरत की नंगई देखते देखते लोग थक गये। फिर दर्शक में महिलाएं भी तो हैं। क्या उनके मन में इच्छाएं नहीं होतीं? तो फिल्मवाले अपना दर्शक वर्ग क्यों खोएं?
आप पोर्न की बात करते हैं तो यह तो भैया शुद्ध व्यवसाय है। बाज़ार का सिद्धांत है कि जिस चीज़ की खपत अधिक होती है, उसकी मांग अधिक होती है। पोर्न साहित्य का धंधा फूल फल रहा है तो हमारी ही बदौलत न? उस नंगई को, जिसे हम सरेआम नहीं देख पाते, अपने एकांत में देख कर अपनी हिरिस बुझा लेते हैं। यह देह व्यवसाय जैसा ही है। अगर लोग इसकी मांग नहीं करेंगे तो क्या यह धंधा चलेगा? लेकिन सवाल तो यह है कि हम अपने को दोष कैसे दें?
रह गयी बात नंगई और कलात्मकता की, तो माफ कीजिए, कितनी भी कलात्मक कृति क्यों न हो, लोगों को उसमें नंगई नज़र आती ही आती है। अगर नहीं आती तो क्या हुसैन की कलाकृति को लोग यूं जला डालते और उन्हें इस क़दर बिना सज़ा के ही देशनिकाला की सज़ा दे दी गयी होती? सच तो यह है कि हम सभी के मन में एक नंगापन छुपा हुआ है, जो गाहे बगाहे निकलता रहता है। हम अपनी कुंठा में इस पर तवज्जो दे कर इसे ज़रूरत से ज्यादा महत्व देने लगे हैं। अरे, जब कोई पागल हो कर कपड़े फाड़कर निकल जाता है, तब आप उस पर कोई ध्यान नहीं देते, तो इस पर क्यों दे रहे हैं?
और एक बात बताऊं? अपना नंगापन भले अच्छा न लगे, दूसरों की नंगई बड़ी भली लगती है। चाहे वह मन की हो या तन की। अब आप ही देखिए न, मिलिंद सोमण और मधु सप्रे के मुक़दमे के फैसले की आड़ में अपने मोहल्ले में क्या सुंदर सुंदर तस्वीरें चिपका दी गयी हैं कि मन में आह और वाह दोनों की जुगलबंदी चलने लगे। कोई मोहल्लेवाले से पूछे कि क्या आप अपनी ऐसी नंगी तस्वीरें इस पर चिपका सकते हैं? दूसरों का नंगापन है न, तो देखो, मज़े ले ले कर देखो, सिसकारी भर भर कर देखो, आत्ममंथन से मिथुन तक पहुंच गये, तो इसमें न तो तस्वीर खींचने या खिंचानेवाले का दोष है न इन तस्वीरों को इस पोस्ट के साथ लगाने वाले का। लोग भी खूब-खूब इस साइट पर पहुंच रहे हैं, इसे देख रहे हैं, जहां से इस लेख को लिया गया है, उस तक पहुंच रहे हैं। और हम नंगई के खिलाफ हैं। जय हो, तेरी जय हो।
5 comments:
ये तो नंगेपन की हद है।
--------
अदभुत है हमारा शरीर।
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा?
bahut sahi aur satik tippani aapne ki hai. kayal ho gaye.
samay ke saath saath najariya badal gaya. devi devataon ke saath aisa nahin tha. tab 21vee sadi nahin thi ki usako isane lalach se dekhate. ab bhi doosaron ki nagai dekhne ke liye jhankenge aur apani chhupa kar rakho koi dekh na le.
dohare maandand ho gaye hain.
bhagwan mahavir digamber raha kar naye sampradya ki stphana nahi kar gaya, yaha sampradya anadhikal se chal raha ha, bhawan mahavir ya unke anuyayi prakrati ne jesa banaya ha vese hi rahane me visvas rakhta ha, bilkul bi kisi tarha ka parigraha nahi rakhta,
कबीर जी कह गये थे, "मन चंगा तो कठौती में गंगा", हम जोड़ दें, "मन में पंगा तो हर कोई दिखे नंगा"? इस विज्ञापनमय बिकाऊ दुनिया में अगर इस तरह के मुद्दे न हों तो देश के विकास में कमी नहीं आ जायेगी? विभा जी, मुझे तो लगता है कि आप कुछ देश द्रोही हैं, जो अक्ल की बात करके भारत के विकास को कमज़ोर करना चाहिती हैं!
Post a Comment