chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Thursday, January 9, 2014

अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!

मोहल्लालाइव मे छपा एक लेख. अच्छी प्रतिल्रियाएं मिल रही हैं. आपकी भी राय जानना चाहूंगी. लिंक है-
http://mohallalive.com/2014/01/04/vibha-rani-womens-issue/

और लेख ये रहा:
लड़कियो! इससे पहले कि तुमसे मैं कुछ कहूं, मेरे आस-पास घटी कुछ सच्ची घटनाएं सुन लो।
1) मेरे एक पत्रकार दोस्त की पत्नी ने शादी के तुरंत बाद ही पति से लड़-झगड़ कर उसे उस घर से निकाल दिया, जो उसके पति ने लिया था। पति के समझाने-बुझाने पर उस पर दहेज का इल्जाम लगाकर पुलिस में जाने की धमकी देने लगी। थका-हारा पति जब अपनी जान की हिफाजत के लिए पुलिस में रिपोर्ट कराने पहुंचा, तब पुलिसवाले ने ही कहा कि “साब, आप किसके चक्कर में फंस गये? यह तो बाजारू औरत है। इसकी तो तस्वीर हमारे थाने में है। आप जाइए। यह पुलिस में नहीं आएगी।” फिर भी, वह थाने पहुंची और आजतक वह केस में फंसा हुआ है।
2) मेरी एक दोस्त का भाई किसी लड़की के साथ लिव-इन-रिलेशन में था। तीन साल तक वे साथ-साथ रहे। इस बीच किसी बात पर लड़की की बहस उससे हुई। बात ने विवाद का रूप लिया और लड़की ने उस पर तीन साल से लगातार बलात्कार का आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया। जाने कैसे-कैसे वह छूटकर बाहर निकला।
3) मेरी इसी दोस्त के एक पहचानवाले ने अपने बेटे की शादी लाखों रुपये के मेहर की रकम के साथ खूब धूमधाम से की। दुल्हन इस ख्वाब के साथ डोली से उतरी कि यह तो बड़े बिजनेसमैन का घर है, जहां उसके चारों ओर नौकर-चाकरों की फौज रहेगी और अपनी शानो-शौकत से वह दुबई में रह रही अपनी बहन पर रोब गालिब करेगी कि उसका रुतबा उससे किसी दर्जा कम नहीं। लेकिन जब देखा कि घर में नौकर-चाकर और तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद उसकी सास ही खाना बनाती है, तो वह सब छोड़-छाड़ कर मायके लौट गयी, यह कहते हुए कि मेरी सास ने मुझसे आटा सानने को कहा। मैं क्या रोटी पकाने के लिए उस घर गयी थी? ससुराल से पीछा छुड़ाने के लिए उसने उन पर दहेज का आरोप लगा दिया। अंतत: ढेर सारे पैसे और मेहर की रकम लौटाकर ससुरालवालों ने अपना रास्ता अलग किया यह कहते हुए कि हम छोटी जगह में रहते हैं। पुलिस तो तुरंत हमें जेल ले जाएगी और हमारी इज्‍जत और धंधा-पानी सब चौपट हो जाएगा।
4) मेरा एक दोस्त अपनी बेबाक लेखनी और विचारधारा के कारण अपने विरोधियों और मीडिया के नापाक इरादों का शिकार हो असमय ही काल के गाल में चला गया। एक लड़की ने उस पर रेप का आरोप लगा दिया। अब न लड़की सामने आ रही है, न मीडिया न वे लोग, जो उसकी विचारधारा से वाबस्ता न रखते थे और उसे अपनी राह का कांटा समझते थे।
अब आओ, तुम्हारी बात करें। तुम पढ़ रही हो तो पढ़ो। बढ़ रही हो तो बढ़ो। पढ़ाई का हर संभावित क्षेत्र तलाश रही हो तो तलाशो। कैरियर के हर मार्ग को आजमाना चाहती हो तो आजमाओ। यह तुम्‍हारा या तुम्‍हारा ‘ही’ नहीं, तुम्‍हारा ‘भी’ संसार है। इस ‘भी’ पर तनिक ध्‍यान देना ओ लड़कियो। संसार तुम्‍हारा होता तो कोई बात नहीं थी, तुम्‍हारा ही होता, तब तो बल्‍ले-बल्‍ले होता। तुम्‍हारा ‘भी’ है, मतलब तुम बंद दरवाजा ठकठकाकर कह रही हो – “खोलो कि यह विश्‍व तुम्‍हारा भी है।” तुम्‍हारा ‘भी’ जोर-जोर से दस्‍तक दे रहा है – सभी के दिलों के दरवाजे पर। बहुत खलबली मचा रहा है सबके दिमाग पर। बहुत आगे आना चाह रहा है – मतलब सबसे आगे। तुम्‍हारी लड़ाई इसी ‘भी’ के लिए है। इसलिए इस ‘भी’ के साथ आगे बढ़ते हुए अपने वजूद के लिए हर रास्‍ता, कोना, दरो-दीवार, सड़कें, गलियां, आंगन, चौबारा घरती, आकाश तलाशो ओ लड़कियो!
दौड़ने के रास्‍ते बहुत हैं – छोटे भी, संकरे भी, बड़े भी। यह तुम्‍हें तय करना है कि तुम छोटे रास्‍ते पर चलकर झटपट सब हासिल करना या संकरे रास्‍ते पर चलकर वहां के एक-एक कंकड़-पत्‍थर बीनते हुए अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्ग प्रशस्‍त करना या बड़े रास्‍ते पर फर्राटेदार चलना पसंद करोगी? ध्‍यान रहे कि अपने आगे बढ़ने के रास्‍ते पर चलनेवाली तुम कानूनन बालिग हो गयी रहोगी ओ लड़कियो।
तय करते समय खुद ही तय करो कि अपने फायदे या जल्‍दी-जल्‍दी आगे बढ़ने के लिए अपनाये गये छोटे-छोटे रास्‍ते (शॉर्ट कट्स) तुम्‍हें कल किसी बड़ी मुसीबत में न डाल दें। उस समय तुम यह मत कहना कि तुम्‍हारा शोषण हुआ या तुम छली गयी। तीन साल तक तुम किस भ्रम में रही? क्या किसी का बलात्कार लगातार तीन साल तक होता रह सकता है? वह भी तब, जब कि तुम लिव-इन-रिलेशन में रहनेवाली एक आजाद औरत हो?
किसी तरह की साजिश के लिए इस्तेमाल की जाओ तो अपना हश्र भी सोच लेना कि क्या तुम उनके इस्तेमाल के बाद खुद दूध में पड़ी मक्खी की तरह तो नहीं निकाल फेंक दी जाओगी ओ लड़कियो!
अगर तुम जानबूझकर शोषित हो रही हो तो ध्‍यान देना कि इसके पीछे कहीं तुम्‍हारे अपने गणित तो नहीं? चाहे वे मर्जी के हों या मजबूरी के। कार्यस्‍थल पर या काम या कैरियर के बहाने तुम्‍हारा शारीरिक या मानसिक शोषण इसके तहत बड़ी आसानी से आ सकता है। अगर कोई तुम्‍हें लड़की होने के नाते फेवर कर रहा है तो यह खतरे की घंटी है। इसे अगर समझ रही हो तो उस पर अपनी काबिलियत का झूठा कोट मत पहनाओ ओ लड़कियो! हम सबको अपनी लियाकत का पता अच्छी तरह से रहता है।
अगर तुम्‍हें लगता है कि बेवजह तुम्‍हारा शोषण हो रहा है तो अपनी भी व्‍याख्‍या करो और अपने आसपास को भी देखो। क्‍या इस शोषण की तुम्‍हीं एक शिकार हो या अन्‍य भी! अपने सिक्‍स्‍थ सेंस के द्वारा इसे जानना कोई मुश्किल काम नहीं होता।
अपने शोषण के खिलाफ खुद लड़ना सीखो और इसके लिए सोच-समझकर रास्‍ता चुनो। अखबार, मीडिया, सोशल साइट्स यहां-वहां पर सभी तुम्‍हारे खुदाई खिदमतगार मिलेंगे, लेकिन तुम्‍हारे साथ-साथ चलने के लिए शायद ही कोई आए। चाहो तो आजमा भी लेना ओ लड़कियो!
हम तुम्‍हारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने की किसी भी आजादी के खिलाफ नहीं। लेकिन कब, कहां और कैसे खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना, घूमना-फिरना है, इसे तुम्‍हें ही तय करना होगा, जैसे किसी शोक सभा में हंसते हुए या शादी-ब्‍याह में रोते हुए नहीं जाया जाता।
अपने दिल-दिमाग-देह को कभी किसी के इतना हवाले मत कर दो कि तुम्‍हारा अपना कुछ बचा ही न रह जाए। विश्‍वास करो, अंधविश्‍वास नहीं। भक्ति करो, अंधभक्ति नहीं। प्रेम करो, अंधा प्रेम नहीं। और सबसे महत्‍वपूर्ण कि अपने स्त्रीपन को साजिश का जामा मत पहनाओ – चाहे वह दहेज हो या रेप। ध्‍यान देना! चार जंगली, वहशी मर्द तुम्‍हें जलाएंगे तो चालीस पुरुष तुम्‍हारे साथ खड़े भी होंगे। लेकिन, अपने सत्‍य-असत्‍य की जांच तुम्‍हें खुद करनी होगी। यह तो तुम जानती हो कि अच्छे काम में युग बीत जाते हैं, पर बुरे को बनते, बिगड़ते, फैलते देर नहीं लगती। एक झूठ को बचाने को लिए सौ झूठ बोलने होते हैं और इन झूठों से अपनी सच्‍चाई की परतें उधड़ने लगती है।
मुझे बरसों पहले पढ़ी सुदर्शन की कहानी ‘हार की जीत’ याद आती है, जिसमें डाकू खड़ग सिंह द्वारा अपंग बन कर बाबा भारती का घोड़ा छीन लिये जाने के बाद बाबा भारती डाकू खड़ग सिंह से कहते हैं कि ‘इस घटना की चर्चा किसी से मत करना, वरना लोगों का गरीबों पर से विश्‍वास उठ जाएगा।’
तुम भी अपने जुल्‍म के खिलाफ लड़ो, खूब लड़ो। लेकिन साथ-साथ अपने झूठ-सच की कुंजी अपने पास रखो, उससे किसी और का ताला न खोलो, न अपने ताले को खोलने की इजाजत दो, वरना कल को सचमुच में गरीब, मायूस, मजबूर, हालात की सतायी लड़कियों पर से लोगों का विश्‍वास उठ जाएगा और इसका सारा दोष भी तुम्‍हारे ही मत्‍थे आएगा। वैसे ही, जैसे बड़ी चालाकी से यह आरोपित कर दिया गया है कि ‘औरतें ही औरतों की दुश्‍मन हैं’ या ‘चूड़ि‍यां कायरता की निशानी है।’ इसलिए, अपना इस्‍तेमाल होने देने से पहले अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!

5 comments:

संध्या आर्य said...

sarthak lekh

Vibha Rani said...

धन्यवाद सन्ध्या. इसेऔर जगहो प्र और लोगों तक बांटें.

Vibha Rani said...

धन्यवाद सन्ध्या. इसेऔर जगहो प्र और लोगों तक बांटें.

श्याम बाबू शर्मा said...

गागर में सागर. प्रहार. मशविरा.
क्या इस लेख को फारवर्ड किया जा सकता है?

Vibha Rani said...

Shyam जी. इसे कई लोगों ने शेयर किया है. आप भी कर सकते हैं. धन्यवाद.