आभार आप सबका!
बोले विभा आज आप सबके प्रेम, सहयोग और समर्थन के बल पर अपने 60वें एपिसोड में पहुंचा। आगे भी आपका सहयोग, समर्थन, प्रेम और विश्वास मिलता रहेगा, यह आशा है।
इस हीरक अवसर को आपके साथ हम साझा कर रहे हैं मंटो पर लिखे अपने नाटक "मंटो-इस्मत: दोस्त दुश्मन" के कुछ अंशों के साथ। आप सब जानते हैं, 11 मई को उनका जन्मदिन था। आप सबके श्रद्धा सुमन उनके प्रति। उनकी कहानियों से इतर मंटो के कहे सतरों को यहाँ सुनें। अपनी राय दें।
मंटो के साथ मेरा असोसोएशन बहुत पुराना है। बचपन में कहा गया- ये गंदा लिखते हैं। और मैं इस 'गंदे' लेखक को पढ़ना शुरू कर दिया। समझ में आने लगा कि कितना गंदा लेखक है यह। लोगों की गंदगी जब आप उन्हें दिखाएंगे तो वेयपनी गंदगी तो नहीं ही देखेंगे, उल्टा आप पर ही तोहमत लगाएंगे।
दिल्ली से 1989 में मुंबई आई कुछेक असाइनमेंट्स के साथ। इसमें एक था- मंटो पर कवर स्टोरी। इस क्रम में मिली- दादा मुनि यानी अशोक कुमार से, इस्मत चुगताई आपा से और आली सरदार जाफरी से, जिंका लिखा हुआ यह मुझे बेहद प्सनाद था-
जाने क्या बात है बंबई तेरी शबिस्ता में,
हम शाम-ए-अवध, सुबह-ए- बनारस छोड़ आए हैं।
तीनों की बातें, तीनों के अपने प्रसंग और उन सबके बीच में मंटो को और भी जानने-समझने के कोशिश करती मैं!
इस बीच मंटो को लेकर रंगकर्म एकदम जाग्रत हो उठा। हर कोई मंटो की खानी का मंचन करने लगा। मंटो का साहित्य जन जन तक पहुँचने लगा।
मैं! मैं मंटो पर लिखना चाहती थी एक नाटक! लेकिन, उनकी कहानियों पर नहीं। वह तो पहले से ही सब जगह है।
तो तय किया कि मंटो ने इस्मत पर और इस्मत ने मंटो पर जो कहा है, उसे नाटक बद्ध करूँ।
किया। "मंटो-इस्मत: दोस्त दुश्मन"। पहला शो महाराष्ट्र राज्य सरकार की उर्दू नाट्य अकादमी के ड्रामा फेस्टिवलमें हुआ।
आगे..... यहाँ देखिये, सुनिए, राय दीजिये...
https://www.youtube.com/watch?v=ykVXfHMuZTc&t=2s
बोले विभा आज आप सबके प्रेम, सहयोग और समर्थन के बल पर अपने 60वें एपिसोड में पहुंचा। आगे भी आपका सहयोग, समर्थन, प्रेम और विश्वास मिलता रहेगा, यह आशा है।
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मंटो के साथ मेरा असोसोएशन बहुत पुराना है। बचपन में कहा गया- ये गंदा लिखते हैं। और मैं इस 'गंदे' लेखक को पढ़ना शुरू कर दिया। समझ में आने लगा कि कितना गंदा लेखक है यह। लोगों की गंदगी जब आप उन्हें दिखाएंगे तो वेयपनी गंदगी तो नहीं ही देखेंगे, उल्टा आप पर ही तोहमत लगाएंगे।
दिल्ली से 1989 में मुंबई आई कुछेक असाइनमेंट्स के साथ। इसमें एक था- मंटो पर कवर स्टोरी। इस क्रम में मिली- दादा मुनि यानी अशोक कुमार से, इस्मत चुगताई आपा से और आली सरदार जाफरी से, जिंका लिखा हुआ यह मुझे बेहद प्सनाद था-
जाने क्या बात है बंबई तेरी शबिस्ता में,
हम शाम-ए-अवध, सुबह-ए- बनारस छोड़ आए हैं।
तीनों की बातें, तीनों के अपने प्रसंग और उन सबके बीच में मंटो को और भी जानने-समझने के कोशिश करती मैं!
इस बीच मंटो को लेकर रंगकर्म एकदम जाग्रत हो उठा। हर कोई मंटो की खानी का मंचन करने लगा। मंटो का साहित्य जन जन तक पहुँचने लगा।
मैं! मैं मंटो पर लिखना चाहती थी एक नाटक! लेकिन, उनकी कहानियों पर नहीं। वह तो पहले से ही सब जगह है।
तो तय किया कि मंटो ने इस्मत पर और इस्मत ने मंटो पर जो कहा है, उसे नाटक बद्ध करूँ।
किया। "मंटो-इस्मत: दोस्त दुश्मन"। पहला शो महाराष्ट्र राज्य सरकार की उर्दू नाट्य अकादमी के ड्रामा फेस्टिवलमें हुआ।
आगे..... यहाँ देखिये, सुनिए, राय दीजिये...
https://www.youtube.com/watch?v=ykVXfHMuZTc&t=2s
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