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Thursday, January 20, 2011

धुर बुडबक! आंदोलन का माने ई सब थोडे न होता है.

जोत ले भैया जोत ले, जोर लगा के जोत ले, हल चला के जोत ले, बीज लगा के देख ले, माटी कोड के देख ले, पानी पटा के देख ले, निकौनी करा के देख ले. हमरी जमीन, सो खेती हमरी. तुमको क्या लगता है? तुम्हरे घर का खाते हैं? अपने बाप के जनमे हैं. अपने बाप का खाते हैं. आंदोलन में जाते हैं, नारा नारा चिल्लाते हैं. अलग भाषा है, हमरी. अलग इलाका है हमरा. अलग जात है हमरी. अलग बात है हमरी. अलग भात है हमरा. अलग खाट है हमरी.
शिक्षा नहीं है तो? बाल गोपाल पढने दूसरे राज्य जाते हैं तो? वहीं बस जाते हैं तो? लौटना नहीं चाहते तो? लोग उनका मज़ाक उडाते हैं तो? उनको धमकाते हैं तो? उनको अपने राज्य से खदेडते हैं तो? उद्योग धंधा नहीं है तो? जो था उसको भी खा भकोस गए तो? बिजनेस व्यापार नहीं है तो? माटी में सब मिल गया तो? चूडा दही खा खा के हम सेराए रहते हैं तो? कभी किसी आंदोलन में भाग नहीं लिए तो? “भुखले रहब त’ सुतले रहब, सुति के उठब त’ ढेकरैत चलब’ के सच्चे-पक्के चेले चप्पाटी हैं हम.
पर अब हम उठ गए हैं. आंदोलन पहले भी किए, आगे भी करेंगे. मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में ले आए. उससे मैथिली का कौन सा भला हुआ? यह पूछनेवाले आप कौन? एह! आंदोलन किए हम और उसके आंच पर तवा चढाने आए हैं आप, तो ई तो हम कभी नहीं होने देंगे. नहीं होता है मैथिली का विकास तो उसमें हम आंदोलनकारी क्या करेंगे? आपलोग लेखक है, विचारक हैं, नाटककार हैं, गायक हैं, आपे के भीतर दम नहीं है तो हम क्या करें? अरे हमरे भीतर दम था तो भाषा को संविधान में ले आए. उसके बाद? ले बिलैया के. उसका विकास पहिले भी नहीं करने दिए. आगे भी नहीं करने देंगे. न एको ठो पत्र पत्रिका निकाले, ना एको ठो किताब निकाले, न कोनो आयोजन कराए ना कोनो विद्वान बुलाए. काहे के लिए करें ई सब? इससे हमको कोनो फायदा?
अब हम फिर आंदोलन कर रहे हैं. अलग मिथिला राज्य की मांग कर रहे हैं. राज्य बनेगा, तभी न उद्योग होगा, खेती होगी, शिक्षा होगी. बडी बडी योजना बनेगी, उन सब पर बडे बडे पद होंगे, उन पदों पर हम और हमारे लोग होंगे. इतना बडका देश है, समभलबे नहीं कर रहा है. परिवार जब बडा हो जाता है तब सुविधा के लिए उसको बांटकर अलग करते हैं कि नहीं? बंटा हुआ लोग तब पुराना परिवार का भला देखता है कि अपना? आए हैं बात करने. भागिए यहां से. ऐसे ऐसे लोग अपने अपने इलाके के दुश्मन हैं. खिहाड कर भगाइये इन लोगों को. जय मैथिली, जय मिथिला. देश? देश गया तेल लेने.

2 comments:

प्रज्ञा पांडेय said...

bahute sahii vibhaa ji .. gajabe likhin hain .. jai maithili .. jai ho aapki ..

Vibha Rani said...

धन्यवाद प्रज्ञा जी. अपना ईमेल भेजें.