छम्मकछल्लो को वे लोग पसंद नहीं हैं जो लगातार काम करते रहते हैं. आखिर कर्म ही जीवन है. ऐसे कर्मवानों के प्रति वह अगाध श्रद्धा व भक्ति भाव से भर उठती है. छम्मकछल्लो को समझ में नहीं आता कि आखिर ये लोग इतनी मेहनत कर कैसे लेते हैं?
छम्मकछल्लो उन पर वारी वारी जाती है जो काम नहीं करते. आखिर मनुज तन एक बार मिलता है. न कोई अगला जनम जानता है, न पिछला. तो एक जो मानुस तन मिला है, उसे भी काम करके नष्ट कर दें तो जीवन में रह क्या जाएगा? अल्हुआ, सतुआ, घडीघंट?
ऐसे लोग काम नहीं करते, काम की फिक्र करते हैं, इतनी कि उस फिक्र में दूसरे के बदन की हड्डियां दिखने लगती हैं, वे खुद काम की चर्बी से इतने दब-ढक जाते हैं कि उनका बदन मांस का थल थल आगार हो जाता है.
वे काम भले ना करें, मगर काम की फिक्र में जी जान एक किए रहते हैं. चूंकि फिक्र में जी जान एक किए रहते हैं, इसलिए इस फिक्र का ज़िक्र भी ज़रूरी है. सो वे फिक्र का ज़िक्र करते हुए अपना अमूल्य मानुस तन सार्थक करते रहते हैं. पत्नी उनके जीवन का अभिन्न अंग और अर्धंगिनी होती है. इसलिए आधा ज़िक्र वे अपने पूरे तन मन से करते हैं और आधे का भार अपनी प्रियतमा पर छोड देते हैं. पतिव्रता पत्नी पातिवर्त्य धर्म निभाती हुए उनके कार्य के अखंड रामायण से सभी को कृतार्थ किए रहती हैं.
श्री भगवद दास- हमेशा देर तक बैठने के हिमायती. दिन भर पी सी पर लगे रहनेवाले. उनकी पत्नी यह कहते न अघाती हैं कि उनके पति के बल पर ही दास साहब की कम्पनी टिकी है, वरना कब की अधोगति में पहुंच गई होती. वे यह नहीं कहतीं कि देर तक बैठने के कई फायदे हैं. सबसे बडा फायदा, बॉस के गुडविल में आ गए. गुडविल में आ गए तो प्रमोशन पक्का, हर जगह तारीफ पक्की. वे रोल मॉडल हो गए. बॉस कहने लगे, देखिए दास साब को, कितने कर्मठ हैं, देर तक बैठ कर काम करते हैं. मतलब, बाकी आप सब कितने अहमक हैं. ऑफिस का समय खत्म हुआ नहीं कि निकल लिए. वे यह क्यों मानें कि काम के आठ घंटे में अगर आप प्लानिंग करके काम करेंगे तो काम हो जाते हैं. देर तक बैठने के दूसरे फायदे में से एक फायदा अर्थ का है. दास बाबू तब तक बैठते, जबतक देर तक बैठने की तय मियाद पूरी ना हो जाती, ताकि उस दिन का ओवरटाइम पक्का हो जाए. काम आधा घंटा पहले भी खत्म हो जाए तब भी मजाल कि वे पहले निकल लें? मगर गाज़ गिरे कम्पनी के नीति नियामक पर. एक सर्कुलर निकाल दिया कि देर तक बैठने का कोई पैसा नहीं मिलेगा. बस जी, दास बाबू घर के दास हो गए. उनके सारे काम आश्चर्यजनक तरीके से 9-5 के भीतर होने लगे.
श्रीमती खान कहती हैं कि उनके शौहर को तो जी खाने की भी फुर्सत नहीं होती. वे नहीं बतातीं कि खान साब घर का खाना खराब नहीं करते, रेस्तरां आबाद करते हैं. विभाग है, जब तब अधिकारी लोग दौरे पर पहुंचते रहते हैं. खान साब उन्हें रेस्तरां ले जाते हैं. इससे उनकी रिपोर्ट भी अच्छी हो जाती है और घर का अपना खाना भी बच जाता है. एकाध बढिया मेंनू घर के लिए भी बंध जाता है.
झा साब बगैर बोले काम करते रहते हैं. नतीजन, तीन से सात साल हो गए, अगले ग्रेड की बाट जोहते. मोहतरमा खान के दावे पर मैडम झा खीझती हैं और कह देती हैं कि हां जी, मेरे झा जी तो काम ही नहीं करते. यह बात फैल जाती है.
यह हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान में सफल वही होता है, जो काम के बदले काम की फिक्र करता है और फिर उस फिक्र का जिक्र ढोल, नगाडे के साथ करता है.
आप बहुत काम करते हैं? तो, अहमक हैं, चुगद हैं, परले सिरे के बेवकूफ हैं. हज़रत, दास साब से, खान साब से, उनके बॉस से सीखिए. अपनी जिंदगी हलकान मत कीजिए. बस काम की फिक्र कीजिए और फिक्र का ज़िक्र कीजिए. छम्मकछल्लो तबतक औरों को भी धन तेरस के अवसर पर उपदेश का यह धन दे कर आती है.
3 comments:
"काम मत कर, काम की फिक्र कर, फिर उस फिक्र का ज़िक्र कर." realy good quotation.
आपके उपदेश के बाद तो सचमुच मुझे अपने काम की कुछ ज्यादा ही फ़िक्र होने लगी है.
agar kaam nhi hoga to jikr kese kese hogaji.............
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