किसी ने अपने ब्लॉग पर लिख दिया कि उनका बच्चा ‘साला ’बोलना सीख कर आ गया. कम्बख्त आस पास का माहौल! छम्मकछल्लो को कम्बख्त आस पास के माहौल की बात पर हैरानी हुई. गाली किसी खास कौम, जाति, समाज या मोहल्ले की बपौती है क्या? मां-बहन की शुद्ध देसी गालियों से लेकर लोग साला, कुत्ता, कमीना बोलते हैं. फिर एलीट जबान में बास्टर्ड, बिच, फक यू बोलते हैं, और इसी से अपने अधिक पढे लिखे होने का अहसास भी होता है.
गाली तो हमारी फिल्मों का भी हिस्सा है. ‘शोले’ में वीरु कहता है, ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना.’ किसी और फिल्म में कहा जाता है, ‘कुत्ते, कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा”. लोगों को सम्वाद याद रखने में दिक्कत हुई, इसलिए फिल्मों के नाम ही रख दिए गए- ‘गुंडा’, ‘आवारा’, ‘लोफर’, ‘420’, कमीने, ’बदमाश’ और ‘बदमाश’ से मन नहीं भरा तो ‘बदमाश कम्पनी’ भी. इससे भी आगे निकले तो गाने में भर दिया- ‘साला, मैं तो साहब बन गया.’ इसे तब के हमारे आइकन दिलीप कुमार ने गाया था. तो आज के शाहरुख क्यों पीछे रहें? उन्होंने भी गा दिया ’इश्क़ कमीना.’ शाहरुख आज के बच्चों के भी आइकन हैं. छम्मकछल्लो के एक मित्र के बेटे की शिकायत पहुंची पडोसी द्वारा कि बच्चे को ज़रा समझाइये, बैड वर्ड्स बोलता है. बच्चा मानने को तैयार नहीं कि उसके द्वारा बोला गया शब्द खराब है. उसने अपने पापा से यही सवाल किया कि अगर यह बैड वर्ड है तो शाहरुख ने क्यों गाया- ’इश्क़ कमीना’?
बच्चों पर हैरान मत होइए. पहले स्वयं को देखिए कि कहीं हम खुद ही तो बैड वर्ड्स नहीं बोल रहे? फिर जरा अपने आइकन सब से कहिए कि भई, ज़रा ज़बान संभाल के! बच्चे ना केवल सुन और समझ रहे हैं, बल्कि सवाल खडे कर रहे हैं कि आपके द्वारा बोले जानेवाले शब्द बैड वर्ड्स कैसे हो सकते हैं? खुद को तो हम समझा लें. बच्चों को कैसे समझाएं कि कम औकातवाले बोलते हैं तो यह गाली है, ऊंची औकातवाले बोलते हैं तो यह डायलॉग है. ‘दबंग’ में सलमान बोलते हैं, ‘इतने छेद करूंगा शरीर में कि भूल जाओगे कि सांस किधर से लें और पादें किधर से?” कोई बच्चा इसे दुहरा दे तो वह अकारण डांट खा जाएगा.
चलते चलते एक लतीफा- “एक आदमी ने दूसरे आदमी से पूछा कि भाई साब, शहर में कौन कौन सी पिक्चर लगी है?
आदमी ने जवाब दिया- ‘गुंडा’, ‘आवारा’, ‘लोफर’, ‘420’, कमीने, ’बदमाश’
पहले आदमी ने उसे कसकर झांपड लगाया और कहा- ‘मैने फिल्मों के नाम पूछे, अपना परिचय नहीं.”
3 comments:
सही बात है ...खुद बोलें तो ध्यान नहीं जाता ..बच्चे तो वही बोलेंगे जो वो सुनेंगे ...
ठीक कहा जी आपने
हम खुद या कोई बडा बोलता है तो पता नहीं चलता और बच्चे तेजी से शब्दों को पकड जाते हैं और याद कर लेते हैं। फिर हम कहते हैं कि बच्चा बैड वर्ड्स बोलना सीख गया है।
प्रणाम
चलते चलते एक लतीफा- “एक आदमी ने दूसरे आदमी से पूछा कि भाई साब, शहर में कौन कौन सी पिक्चर लगी है?
आदमी ने जवाब दिया- ‘गुंडा’, ‘आवारा’, ‘लोफर’, ‘420’, कमीने, ’बदमाश’
पहले आदमी ने उसे कसकर झांपड लगाया और कहा- ‘मैने फिल्मों के नाम पूछे, अपना परिचय नहीं.”
wah..hi hi hi/.......
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