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Thursday, November 4, 2010

जेल की व्यवस्था (व्यथा)- कथा में भी पचास से पचीस सौ का चमत्कार.

जी नहीं. आज छम्मकछल्लो आपको जेल में आयोजित किसी कार्यक्रम की रिपोर्ट देने नहीं जा रही और ना ही वह जेल के बंदियों की दस्तान बताने जा रही है, बल्कि वह जेल की ही व्यथा-कथा कहने जा रही है. जेल को समझने के लिए सबसे पहले तो हिंदी फिल्मों के तथाकथित जेल के खाके से बाहर निकलना ज़रूरी है, जहां जेल का मतलब नर्क का दूसरा द्वार है. अत्याचार के सारे प्रबंध जहां खुली किताब की तरह दिखाए जाते हैं.
जेल देश की एक बेहद सम्वेदनशील संस्था है, जहां दुनिया के वे तथाकथित सबसे खतरनाक लोग रखे जाते हैं, जिन खतरनाक लोगों से देश की कानून व्यवस्था को सबसे बडा खतरा महसूस होता है. उन खतरनाक लोगों को अपने पास रखनेवाली जेल नामधारी इस संस्था से लोगों की बडी बडी उम्मीदें रहती हैं, नियम कायदे, कानून मानने की, मनवाने की, एकदम छक चौबस्त, चुस्त-दुरुस्त. व्यवस्था के शीर्ष पर बैठा हर ओहदेदार यही चाहता है कि उसके यहां, उसके समय में सबकुछ ठीक ठाक रहे. मगर इस ठीक ठाक रहने के लिए जो कुछ करना होता है , उसके नाम पर काम कम और आश्वासन अधिक होते हैं.
जेलों में काम करते हुए छम्मकछल्लो बार बार जेल के कर्मियों और अधिकारियों से दो चार होती रही है, जेल की व्यवस्था पर अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर करती रही है. जेल के अधिकारी, कर्मचारी हंसते रहे हैं- छम्मकछल्लो के इस मासूम सवाल पर. “बच्चा आपका, मगर बच्चा कैसे खायेगा, कैसे पियेगा, कैसे रहेगा, कैसे पलेगा, कैसे बढेगा, यह सब तय करेगा कोई और. आप बस बच्चे के केयेर टेकर बने रहिए. केयर टेकर भी नहीं बने रहने देते. तब कहते हैं कि बच्चे को अपना ब्च्चा मानकर चलिए. अगर अपना बच्चा माना तो मानने के अधिकार भी तो दीजिए. वो नहीं, बस, बने रहिए. अरे मैडमजी, हमारे हाथ में कुछ हो तब तो हम कुछ करें? हाथ पैर बांध कर कहिए कि दौड पडो मैराथन में. हम क्या करें. नौकरी है, सो दौडते रहते हैं, हाथ पैर बांध कर.”
समझ में नहीं आ रहा ना आपको कुछ भी? छम्मकछल्लो को भी नहीं आया था. जब आया, तब वह आपको भी समझाने आ गई है. समझने की कोई जबर्दस्ती नहीं है. दिल में आए तो समझिए, नहीं तो आप भी दो चार जुमले उछाल दीजिए उनके खिलाफ. बोलने की आज़ादी तो आखिर सबको है ही ना!
1 देश की हर जेल में कैदी उसकी क्षमता के दो से तीन गुना अधिक रखे जाते हैं. यानी, अगर एक जेल में 800 कैदी को रखने की क्षमता है तो उसमें दो से ढाई हज़ार कैदी रखे जाते हैं. कैदी को अपनी मर्ज़ी से रखना या जेल की क्षमता के मुताबिक रखना जेलवालों के हाथ में नहीं है. उन्हें तो जब, जिस समय, जितने कैदी भेजे जाते हैं, उन्हें रखना होता है. जेल हमेशा रिसीविंग एंड पर होता है. उसे जितने लोग भेजे जाएंगे, उन्हें रखना ही है. वह विरोध या प्रतिरोध दर्ज़ नहीं कर सकता. क्षमता से तीन चार गुना कैदी हो तो जेल कैसे उस अव्यव्स्था या कुव्यवस्था से निपटे, इस पर कोई नहीं सोचता. आपके अपने दो कमरे घर में अगर चार के बदले चौबीस लोग रहेंगे तो?
2 जेल को हमेशा प्रोटेक्शन या कोर्ट प्रोटेक्शन के लिए स्थानीय पुलिस पर निर्भर रहना होता है. पुलिस के मिलने पर ही वह कैदी को कोर्ट जाने के लिए छोड सकता है.
3 जेल के भीतर कोई हादसा होने पर भी जबतक पुलिस नहीं आती, जेल अपने से कुछ भी नहीं कर सकती.
4 डॉक्टर या स्वास्थ सेवाओं के लिए जेल को सिविल हॉस्पीटल पर निर्भर रहना होता है. वह अपनी मर्ज़ी से किसी भी मरीज का इलाज नहीं करा सकती. किसी का केस बिगड जाने पर भी जेल डॉक्टर पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती.
5 जो भी संसाधन हैं, उन पर क्षमता से कई गुना अधिक दवाब है.
6 जेल के भीतर का सारा निर्माण कार्य पीडब्ल्यूडी के अधीन है. जेल अपनी मर्ज़ी या अपनी जरूरत से एक ईंट भी जेल के भीतर नहीं बिठा सकती.
7 जेलों में जो आवक है, वह लगातार बढ रही है. इसका सीधा सम्बध लॉ एंड ऑर्डर से जुडता है.
8 बेल प्रोसेस में खामी की वजह से लोगों को जमानत मिलने में भी काफी देर हो जाती है. जमानत देने दिलाने में जेल की कोई भूमिका नहीं होती. इस कारण भी कई लोग ज़रूरत से अधिक समय तक भीतर रह जाते हैं, जिनका भार जेल को उठाना होता है.
9  स्टाफ की भर्ती जेल की बंदी क्षमता के अनुसार रहती है, बल्कि उससे भी कम और कैदी क्षमता से ढाई-तीन गुना अधिक होते हैं. लिहाज़ा, हर स्टाफ पर बहुत अधिक बोझ पडता है. यह कैसे सम्भव है कि मुट्ठी भर स्टाफ पूरे जेल की निगरानी कर सकें?
10 खाना बनाना यहां की सबसे बडी समस्या है. अगर एक जेल में दो हजार कैदी हैं तो इसका मतलब कि तीन वक्त का खाना मिलाकर छह हज़ार लोगों के लिए खाना बनाना होता है. मगर यहां रसोइये का कोई पद नहीं है. कैदी ही मिल जुल कर खाना बनाते हैं. जेल कोशिश करता रहता है कि ठीक-ठाक खाना पकानेवालो से खाना बनवाया जाए. मगर हर बार ऐसा तो हो नहीं सकता. नतीज़न, सब कुछ होने के बावज़ूद खाने अच्छा नहीं बन पाता.
11 खाने का वजन तय है. 100 मिली दूध, केला के साथ नाश्ता, फिर दिन का भोजन, शाम की चाय और रात का भोजन. जेल में खाना अधिकारियों द्वारा चख कर ही कैदियों को बांटा जाता है.
12 पांच कैदियों को ले कर पन्च कमिटी बनाई जाती है.
13 अच्छे रेकॉर्डवाले कैदियों की सज़ा कम करने के लिए सरकार से सिफारिश की जाती है. यह नियम के अनुसार होता है. सिफारिश का मंज़ूर होना या न होना जेल के हाथ में नहीं है.
14 दिक्कत सबसे बडी यह है कि जेल के पास बहुत से सुझाव हैं, जेल की स्थिति सुधारने के लिए, इसका भार कम करने के लिए, इसकी प्रशासन व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए. परंतु, किसे फुर्सत है जेल की सुनने की? जेल को सुनाने के लिए सबके पास बहुत कुछ है, मगर जेल की सुनने के लिए?
15 नियम, कायदे, कानून बाबा आदम के ज़माने के बने हुए हैं. समय के अनुसार उनमें बदलाव की ज़रूरत है. पर कौन करे यह बदलाव?
16 जेल आग के गोले के बीच रखी संस्था है. इसके ऊपर सभी की निगाहें लगी रहती हैं. जेल में कुछ बुरा हुआ, प्रशासन सहित प्रेस, मीडिया सभी उसके ऊपर चढने के लिए तैयार बैठे रहते हैं. मगर जब जेल में कुछ अच्छा होता है, कैदी अपने प्रयासों से या एनजीओ आदि की सहायता से कुछ करते हैं तो जेल के पास इसे बताने के लिए कोई साधन नहीं है, क्योंकि जेल मैन्युअल के अनुसार जेल के अंदर की कार्रवाई का प्रचार प्रसार वर्जित है. खोजी पत्रकार और स्टिंग ऑपरेशवालेजाने कहां से कहां पहुंच जाते हैं, उसके लिए उसे व्यवस्था से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं पडती, मगर जेल में अच्छे कार्यक्रम होते हैं तो उनकी भी रिपोर्ट नहीं करने दी जाती. नतीजन, लोगों के पास जेल के केवल नकारात्मक रूप ही सामने आपाते हैं.
17 हर कोई अपने सद्प्रयास प्रेस या मीडिया को बताना चाहता है. मगर जेल यदि अपने सद्कार्यों के लिए मीडिया या प्रेस से सम्पर्क करना चाहे तो वह नहीं कर सकती है. अगर कोई अधिकारी जेल की अच्छाइयां या उसके नियम कानून ही किसी को या मीडिया और प्रेस को बताए तो आन्तारिक व्यवस्था ही उस पर चढ बैठती है कि यह मीडिया सैवी है.
18 इन सबके बावज़ूद कहा जाता है कि जेल सबसे बेहतर निष्पादन दे. ऐसी जगह, जहां सामान्यत: सभी नकारात्मक किस्म के लोग आते हैं, उनके बीच नकारात्मक माहौल में रहते हुए सदैव सकारात्मक परिणाम देते रहने की अपेक्षा हमसे की जाती है.
19 जेल के अधिकारी कहते हैं कि यह तो हमारे लोगों का जादू है कि हम पचास से पचीस सौ को काबू में रख ले पाते हैं. वे तो वीरता का काम करते हैं. जेलकर्मियों को खुद पता नहीं होता कि जेल में राउंड लेते समय या जेल के भीतर काम करते समय कब कोई बंदी उन पर किस बात को ले कर हमला कर दे? आए दिन आप ये खबरें पढते होंगे.
20 अब भी आप कहते हैं कि जेल के लोग कुछ नहीं करते और सारे अनाचार जेलों में ही होते हैं. जेल इनका प्रशिक्षण स्थल है. तो जेल का यही कहना है कि बाहर के सारे अपराध बंद कर दीजिए, उनका यहां आना छूट जाएगा. न वे यहां आएंगे, न वे तथाकथित तौर पर और कुछ सीखेंगे. मगर कैदियों की बढती तादाद कुछ और ही कहते हैं. आप क्या कहते हैं?

1 comment:

सतीश पंचम said...

जेल के बारे में यह खबरें मैने भी सुनी है। आपके इस लेख से और भी जानने को मिला।

वाकई बेहद ही शोचनीय स्थिति है जेलों में।

अलहदा विषय।