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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Tuesday, November 2, 2010

तन, मन हमारा, अधिकार तुम्हारा!

छम्मकछल्लो को इस देश की परम्परा पर नाज़ है. सारी परम्पराओं में एक परम्परा है, हम स्त्रियों के तन मन पर आपका अधिकार. हमारे द्वारा घर और पति और ससुराल की हर बात को शिरोधार्य करना. हम क्या खाएंगी, पहनेंगी, पढेंगी, इसका निर्णय हम नहीं, आप करेंगे. यह उस महान परम्परा को भी पोषित है कि हमें या तो अक्ल नहीं होती या होती है तो घुटने में होती है. अब जब अक्ल ही नहीं होती या घुटने में होती है, तो हम खुद से क्या और कैसे कर सकती है कुछ भी. छम्मकछल्लो छुटपन में अपनी हम उम्र लडकियों के जवाब सुनती थी,

“क्या पढना चाहती हो?”

“बाउजी बताएंगे.”

“ क्या बनना चाहती हो?

“बाउजी बताएंगे.”

“क्या पहनना चाहती हो?”

“बाउजी बताएंगे.”

“कहां जाना चाहती हो?”

“ बाउजी बताएंगे.”

और बाउजी, प्राउड फादर होते थे या नहीं, पता नहीं, मगर अपना मौरूसी हक़ समझते थे, बेटी की सांस का एक एक हिसाब रखना.

जमाना बदला नहीं है बहुत अधिक. गांव, शहर, कस्बा, महानगर! कुछ नज़ारे ज़रूर बदले मिलते हैं. मगर गहरे से जाइये तो बहुत कुछ बदला नहीं दिखेगा. ना ना न! इसमें अमीर गरीब, छोटे बडे का कोई मामला नहीं है. छम्मकछल्लो अच्छे अच्छे घरों में जाती रही है. खाते पीते समृद्ध लोग. हर माह एकाध गहने गढवा देनेवाले लोग. हर महीने सोना, टीवी, फर्नीचर, अन्य साजो सामान खरीदनेवाले लोग. हर दिन नया नया और अच्छा अच्छा खाने पीनेवाले लोग. वे सब कभी फख्र से, कभी सलाह से, कभी उपदेश से कहते हैं, “मैंने बेटी को बोल दिया है कि “बेटे, जो मर्ज़ी हो, पहन, मगर जींस, टॉप मत पहनना, स्लीवलेस ड्रेस मत पहनना.”

“ मेरे घर में भाभीजी (छम्मकछल्लो), पत्नी को कह दिया है कि बेटी के लिए ड्रेस खरीदते वक्त यह ध्यान रखे कि गला पीछे से भी गहरा ना हो, आस्तीन कम से कम केहुनी तक हो.”

“अभी कितनी उम्र होगी बिटिया की?” भाभीजी (छम्मकछल्लो) पूछ लेती है.

“अभी तो भाभी जी नौंवा चढा है.”

“अरे, तो अभी तो पहनने दीजिए ना उसे. अभी तो बच्ची है.”

“आप नहीं समझती हैं भाभी जी, अभी से आदत लग जाएगी तो बडी होने पर नहीं सुनेगी. लडकियों को कंट्रोल करके तो रखना ही होता है.”

भाभी जी (छम्मकछल्लो) चुप हो जाती है. बेटियों को दिल से, देह से, दिमाग से कंट्रोल करके रखना ही होता है, रखिए, वरना लडकी हाथ से निकल जाएगी, हाथ से निकली तो इज्जत निकल जाएगी. इज़्ज़त का ठेका उन्हें ही तो दे दिया गया है. ढोओ, बेटी, ढोओ.

छम्मकछल्लो अभी अभी एक बहुत बुजुर्ग सज्जन से मिली. बहुत बडे गांधीवादी हैं, जेपी के बहुत बडे भक्त हैं, आज़ादी की लडाई में जेल जा चुके हैं. अभी अपने बलबूते बहुत कुछ अर्जित किया है, धन, मान, नाम, सबकुछ. बात पर बात निकली तो कहने लगे, बेटे की शादी बगैर सोने के किया, अभी पोते की भी कर रहा हूं. ना मैं सोना ले कर जाऊंगा, न लडकीवालों को सोना लाने दूंगा.”

छम्मकछल्लो का माथा श्रद्धा से झुक गया. ऐसे ऐसे लोग समाज में हो तो दहेज की शिकार होने से ना जाने कितनी बहू बेटियां बच जाएंगी. तभी उन्होंने सोने को संदर्भित करते हुए कहा कि जब हम 7वीं 8वीं में थे, हमसे पूछा गया था कि शादी में तुमलोगों को कितना सोना चाहिये? तब देश आज़ाद नहीं हुआ था. सभी ने कहा कि जब शादी होगी, तब देखा जाएगा. मैंने कहा कि मैं वादा करता हूं कि मेरी पत्नी सोना नहीं पहनेगी. और आज तक उसने सोना नहीं पहना.”

पत्नी की ओर से बगैर उसके मन को जाने समझे, उन बुजुर्ग द्वारा की गई प्रतिज्ञा! छम्मकछल्लो को नहीं पता कि उनकी पत्नी को सचमुच सोने से लगाव था या नहीं, मगर आम औरतों की तरह यदि उन्हें भी लगाव रहा होगा तो सोचिए कि इस प्रतिज्ञा का उनके मन पर कितना असर पडा होगा! गांधी जी भी बा को बस ऐसे ही ‘टेकेन फॉर ग्रांटेड’ लेते रहे, उन्हें शौचालय की सफाई, गहने दान देने पर विवश किया. मन मार कर बा ने भी सब किया. मन मार कर आज भी लडकियां करती हैं, बाउजी के लिए, पति के लिए, बच्चे के लिए, समाज के लिए.

“अभी कौन बनेगा करोडपति” की एक प्रतिभागी ने बताया कि उसे साडी पहनना बिल्कुल नहीं अच्छा लगता. खाना बनाना तनिक भी नहीं भाता. पढाई में उसकी बहुत रुचि है. वह हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढना चाहती थी. शादी के बाद सबकुछ से उसने समझौता कर लिया है, मगर पढाई से नहीं कर पाई है, वगैरा, वगैरा. अपनी क्लिपिंग देखते समय वह रो पडी. उसने यह कहा कि वह क्लिपिंग में अपनी बेटी को देख कर भावुक हो गई, मगर शो के दौरान वह यह कहती रही कि साडी में उसे फ्रीनेस नहीं लगती, वह अभी भी पढना चाहती है, हर दिन साडी पहनते समय वह यह सोचती है कि साडी किसने बनाई?” साथ में पति और पिता आए थे. पति ने यही कहा कि “उन्हें उसके शलवार सूट पहनने से इंकार नहीं है, मगर साडी में वह ज्यादा सुंदर लगती है.” भई वाह! छम्मकछल्लो या कोई स्त्री अपने घर के पुरुषों या पति से कहे कि वे धोती में अधिक सुंदर और पारम्परिक लगते हैं, तो क्या वे सब इसे मानकर धोती पहनने लगेंगे. ना जी ना, माफ कीजिए, इसे तनिक भी नारीवादी नज़रिये से नहीं पूछा जा रहा.

प्रतिभागी अच्छे खाते पीते घर की युवती थी. मन में सवाल यहीं पर खडे होते हैं कि क्या लडकियों को अभी भी अपने मन से पहनने पढने, कैरियर बनाने की आज़ादी नहीं है? क्या उस युवती की जगह उसका भाई हॉर्वर्ड में पढना चाहता, तो उसके पिता उसे भेजते नहीं? भाई जींस पहनना चाहता तो क्या उसे मना किया जाता? भाई घर का काम नहीं करना चाहे तो क्या उस पर दवाब दिया जाता? भाइयो, इतनी तो आज़ादी उसे दे दीजिए कि वह अपने मन की पहन सके, पढ सके. आपका जींस पहनना अगर बुरा नहीं है तो किसी सविता, कविता, सरोज या रिया द्वारा कैसे हो सकता है? कुछ अगर गलत और बुरा है तो सबके लिए है. हां, बडे और ओछे का मामला है, स्त्री धन है और धन पर उसके मालिकों, यानी बाप, भाई, पति, बेटे का अधिकार है कि वह अपने धन का चाहे जैसा इस्तेमाल करे, आप बोलनेवाले कौन?

8 comments:

Arpita said...

अब आप इतना कही हैं तो एक लड्की होने के नाते ये भी जोड दूं कि यदि हम-आप जैसी ऐसे घरों में सहेलियां बन जाये और ऐसी राय जताने लगें तो ’वे’ हम जैसों के लिये अपनी लड्कियों को समझाने लगेंगे...कि फ़लां से मत मिलियो...सच! ये मानसिकता से कब हम उबरेंगे..

anjule shyam said...

छम्मकछल्लो या कोई स्त्री अपने घर के पुरुषों या पति से कहे कि वे धोती में अधिक सुंदर और पारम्परिक लगते हैं, तो क्या वे सब इसे मानकर धोती पहनने लगेंगे. ना जी ना, माफ कीजिए, इसे तनिक भी नारीवादी नज़रिये से नहीं पूछा जा रहा...
सबसे सही सवल तो यही है....इन महान पाती से यह सवाल तो हर हल में किया जाना चाहिए...........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक पोस्ट ...सच है मन पर कहाँ अधिकार होता है स्वयं का ...सब बातें दूसरे ही लोंग तय कर लेते हैं ..

Vibha Rani said...

@अर्पिता, अंजुले, संगीता जी, यह सवाल अपने आप से करें और कम से कम हम अपने तई यह आज़ादी दें, जैसे हमने अपनी बच्चियों को दी है.

abha said...

सही कहा विभा जी ,

हमें भी कहा गया था सदी ही नारी की सुन्दरता होती है ( ये भी मेरे बारे में दुसरे तय करेंगे !) , पर हमने तो उनकी सुन्दरता के पैमाने से ज्यादा अपनी सुविधा को prathmikta di aur aaj khus है

Vibha Rani said...

@आभा जी, बहुत कुछ हम पर भी तय करता है और बहुत कुछ पर हमारा बस नहीं चलता. ढेर सारे लोग मुफ्त सलाह के विक्रेता हो जाते हैं. हमें तो उन महिलाओं से अधिक उनके घरवालों पर अधिक तरस आता है कि आधुनिक कहलाते हुए भी कितने पिछडे होते हैं.

Dream said...

bilkul sahi...samaj ke takladi rivajo ko savarne ki hame jo aadat ho gai he.....,

Anonymous said...

Vibha ji, me maanta hu ki naari ka jivan paramparik samaj k vidhio k karan sankuchit tha. Aj usko aajadi milne ja raha he. Par iska matlab ye nahi k nari ye bhul jaye k wo nari he. Nari apne guno ko bhulna nahi chahiye. Aur khas kar k dress ki baat jo aapne kahi he, me us se sahmat nahi hun. Kya aadhunik ban na ye sikhata he k aap chote kapde pehne k salah dein? Raani Laxmi Bai v shadhi hi pehenti thi, ye baat yaad kijiye. Us samay k samaj k tulna me wo aj k narion se kai guna jyada aadhunik thi. Paramparik paddhati me unnati laiye, na ki usko sampurn virodh karen. Apke kuch baatein paramparik uchch guno ko adhunik jivan saili k saath milane ka Asamarthata suchit karti he.