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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Saturday, September 1, 2012

क्लोज्ड फ़ाइल


हैलो! हाऊ आर यू? रिकग्नाइज़ नहीं किया? आज पहली तारीख है ना! हर साल इसी मंथ में तो आती हूँ। फुल वन मंथ रहती हूँ। कोई अपने यहाँ मुझे एक दिन के लिए इनवाइट करता है तो कोई वन वीक के लिए तो कोई वन फ़ोर्टनाइट के लिए तो कोई- कोई फुल वन मंथ के लिए।वैसे मेरा दिन इस मंथ का फोर्टींथ डे है। आफ्टर 2 मंथ, एक और फोर्टींथ डे आयेगा। उस दिन जिस अंकल का जन्म हुआ था, उन्होने ही हमारी बैंड बाजा दी। नाऊ, हमारा बैड इस रूप में बजता है कि ऑल न्यूज पेपर्स में मेरे न्यूज एंड फोटो रहते हैं। टीवीवाले भी मेरे एवेंट्स की कवरेज कराते हैं। गवर्नमेंट भी और उनके दर्शन में भी अपने दर्शन होते हैं। ऑल पोएट्स, राइटर्स, जर्नलिस्ट और थोड़ा बहुत भी मुझे जाननेवाले इस फुल मंथ बिजी रहेंगे- अगहन मास में धनकटनी जैसा। सभी को अपने यहाँ के फंक्शन के लिए गेस्ट, चीफ गेस्ट चाहिए होते हैं। एंटरटेनमेंट चाहिए। एंड इन इंडिया, मुझसे बढ़कर एंटरटेनर कौन है? इस मंथ में घूरे के दिन भी लौट आते हैं। मेरे कभी नहीं लौटते, यह एनदर टोपिक है।
अब से एक फुल मंथ तक मैं रहूँगी। मेरे नाम पर कम्पीटीशन्स होंगे, अवार्ड होंगे। पार्टीसिपेट करनेवाले ऐसे पार्टीसिपेट करेंगे, जैसे पार्टीसिपेट करके मुझ पर बड़ा एहसान किया है। मैं वेरी हम्बली उनके आने पर स्माइल पास करूंगी, उन्हें थैंक्स बोलूँगी। मेरे लिए सभी आका लोग स्पीच देंगे। सब सालों भर हमारी सेवा में लगे हमारे सेवकों से कहेंगे- इट्स योअर डेज नो। सालो भर अपने काणे पूत की तरह हमारी देखभाल करनेवाले इस बात के लिए रोएँ या हंसें, समझ नहीं पाएंगे।
जो हमें नहीं समझ पाते, वे एक मंथ के लिए हमारे एडमायरर्स बन जाते हैं। हार्ट से नहीं, ड्यूटी से। बड़े लोग सैंक्शन में थाउजेंड क्वेरीज़ निकालेंगे। रिव्यू करते समय कहेंगे- ये नहीं हुआ। वो नहीं हुआ। यू पीपल आजस्ट डुइंग नथिंग। हमारे सेवक सबसे कहते रहेंगे, सबके लिए ग्रेटीट्यूड फील करते रहेंगे। उनके लिए, जिन्होंने हमारी कम्पीटीशन में पार्टीसीपेट किया। उनके लिए, जिन्होंने अवार्ड जीता, उनके लिए, जिनके अप्रूवल से प्रोग्राम्स हुए, उनके लिए, जो जोक्स जैसे पोएम्स सुनाकर सबको हंसा गए, उनके लिए, जो हमारे ताबेदार के हाथों लिखे स्पीच पढ़ कर सुना गए, उनके लिए, जो हमारे गरीब ताबेदारों को धमका गए- “आई शुड बी सिम्पल”। मेरी समझ मे ही नहीं आता कि मैं कितनी सिम्पल बनूँ। ज्यादा बनती हूँ तो बहन जी टाइप हो जाती हूँ। फिर सब मुझ पर हँसते हैं। तनिक सँवरने का ट्राइ करती हूँ तो सभी कहते है - टू टफ! हमारे सेवकों के ऊपर एवरी 2-3 ईयर्स में नए आका आ जाते हैं। वे भले मुझे नही जानते, कभी मेरी खोज खबर नहीं ली, कभी मुझे तवज्जो नहीं दिया, मगर मेरे सेवक के आका बनते ही उन्हें हम पूरे शीन- काफ के साथ नज़र आने लगते हैं। आई रीयली डोंट नो कि मेरा क्या होनेवाला है! मैं केवल बाहरवाली से ही नही भगाई जाती, अपनी बहनों के नाम पर भी सब मुझी पर तलवार चलाते हैं। आई नो कि हमारी बहनें हमसे प्रेम करती हैं और हम भी उनसे उतना ही। मगर आजकल इस कंट्री का रूप ही बदल गया है।
जो मेरे साए में पैदा हुए, पले, बढ़े, वे भी मेरी ओर से मुंह फेर लेते हैं। मैं उनके भीतर बनाना, एप्पल, मदर, फादर बनकर जर्मिनेट होने लगती हूँ। मैं कहने लगती हूँ, कहती रहती हूँ, कहती रहूँगी- फॉरगेट मी नॉट। बट वे हमें फॉरगेट करते रहेंगे। मैं भी उन सबको फॉरगिव कहती रहूँगी और नेक्स्ट ईयर इसी मंथ के लिए फिर से क्लोज्ड फ़ाइल हो जाऊंगी।  

Monday, November 1, 2010

‘ताकत’ की भाषा

हमारा देश विद्वानों का देश है. पहले विद्वानों के लिए कोई भाषा निर्धारित नहीं थी. कालिदास, चरक, पाणिनी, सूर, तुलसी, मीरा, महात्मा फुले, तुकाराम, शरत, बंकिम, प्रेमचंद, सुब्रमणियम भारती, सभी विद्वान थे. आज के समय में ये सब विद्वान की सीढी से खींचकर उतार दिए जाते. क्यों? क्योंकि उनको आज के भारतीय विद्वानों की जबान जो नहीं आती. और जिसे यह ज़बान नहीं आती, वह अनपढ कहलाता है या कम अक्ल का. यह इस महान देश की नई बुद्धिजीवी अवधारणा है. देश की सारी बहसें ये सभी बुद्धिजीवी करते हैं और अंग्रेजी में करते हैं. इतने बडे देश में 28 संविधान मान्यता प्राप्त भाषाओं के बावजूद हमारा देश इतना दरिद्र है कि वह अपनी भाषा में बहस नहीं कर सकता, काम नहीं कर सकता, नीति नहीं बना सकता. करेगा, इसे बस योगा उअर अम्र्त्य सेन की तरह पश्चिम से आने दीजिए. यह पश्चिम का पुरस्कार है और उधर से समादृत होनेके बाद ही हम अपनों का आदर करते हैं.

हमारे महान बुद्धिजीवी देश से भारतीयता के खत्म होने की चिंता में दुबले हो रहे हैं. वे इस पर विचार करते हैं, बहस करते हैं, सेमिनार करते हैं, सभी अंग्रेजी में करते हैं, अखबारों में कॉलम दर कॉलम लिखते हैं, अंग्रेजी में लिखते हैं, मगर कहते हैं कि अंग्रेजी उनकी सभ्यता, संस्कृति को खाए जा रही है. इन बुद्धिजीवियों को यही समझ में नहीं आ रहा है कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए, जैसे कालिदास को कहते हैं कि यह समझ में नहीं आया था कि जिस पेड की डाल पर बैठे हैं, उसे क्यों ना काटा जाए?

छम्मकछल्लो को एक कहावत याद आती है- सोए को जगाया जा सकता है, जगे हुए को कैसे जगाया जाए?” इतने बडे बडे विद्वान और बुद्धिजीवी और एक इतनी छोटी सी बात नहीं समझ पा रहे? सभी देश की अन्य तमाम भाषाओं की बात करते हैं. हिंदी से सभी भारतीय भाषाओं को खतरा है, इसलिए सभी भाषा, बोलियां अपना अपना अस्तित्व ले कर सामने आ खडी हुई हैं. अभी अभी छम्मकछल्लो ने एक बहुत बडे पत्रकार के लेख से फिर पढा. हिंदी से देश की भाषाओं को खतरा है, इसकी चिंता है, वाजिब है. वे महान नेता के कामराज का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि उन्होंने जीवन भर तमिल के अलावा एक भी शब्द अन्य भाषा के नहीं बोले, मगर वे सबसे अधिक पॉवरफुल नेता थे.

छम्मकछल्लो को यही नही समझ में आया कि पॉवर का भाषा से क्या ताल्ल्कु? छम्मकछल्लो जब पढती थी तो उसका छात्र नेता महाविद्यालय, विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों को बडे ठसके के साथ कहता था कि वह तो हिंदी में ही बोलेगा. समझना आपका काम है. हे प्रखर पत्रकार जी, ताकत की केवल एक ही भाषा होती है- “ताकत”.

छम्मकछल्लो ने कई फोरम में यह बात रखी कि अगर हिंदी से देश को खतरा है, अगर अंग्रेजी देश की सभ्यता, संस्कृति को खाए जा रही है तो इसका उपाय तो दीजिए. आखिर सुझाव बुद्धिजीवी ही दे सकते हैं. सभी बडे लोग यह तपाक से कहते हैं कि क्या ज़रूरत है हिंदी को सभी पर थोपने की? और अंग्रेजी? यह तो ज़रूरी है. यह ना आई तो हम विश्व से बाज़ी नहीं मार सकते. मारिए, बाज़ी. इसके लिए अगर अपना घर होम करना पडे तो कीजिए, अपनी भाषा, संस्कृति, सभ्यता को लात मारनी पडे तो मारिए. हमें यह देखना है कि हम पॉवरफुल हो रहे हैं कि नहीं? पॉवर यानी ताकत तो फिरंगी रूप रंग, वेश भूषा, हाव भाव, अकडन, जकडन, तकडन से ही आता है.

Monday, December 14, 2009

I will try my level best-का मतलब? कभी नहीं जी कभी नहीं!

http://janatantra.com/2009/12/14/i-will-try-my-level-best/

छम्मकछल्लो को अंग्रेजी आती नहीं. मगर अंग्रेजी अच्छी बहुत लगती है. अब अंग्रेजी न आने और पसन्द आने के बीच अप कोई तालमेल ना खोजें. हाथ तो चांद भी नहीं आता और हीरे का हार भी. तो इसका यह मतलब तो नहीं कि आप चांद या हार को पसन्द करना बन्द कर दें? आप यक़ीन कीजिए, अंग्रेजी भाषा सचमुच कभी कभी बडी अच्छी लगती है. ऐसे ऐसे शब्द और भाव इसमें हैं कि इनकी कोई काट आपके पास नहीं मिलेगी. जभी तो अंग्रेज हम पर इतने साल राज कर गए और अभी भी अपनी भाषा के बल पर हम पर अमिट राज कर रहे हैं और करते रहेंगे. यह छम्मकछल्लो की भविषवाणी है, जोकभी झूठी साबित नहीं होगी. आप शर्त लगा कर देख लीजिए.

अंग्रेजी बडी शिष्ट और क़ायदेदार ज़बान है. अब देखिए, बडी से बडी गलती करने पर भी आप महज एक शब्द बोल देते हैं "सॉरी" और लोग बाग कायल हो जाते हैं. वे उसके आगे कुछ बोल ही नहीं सकते. आपके सॉरी के बाद भी किसी ने अगर कुछ कहा तो उल्टा लोग उसी का बंटाधार करने लगेंगे कि "अरे भाई, क्यों पीछे पडे हो बिचारे के? बोला न उसने सॉरी. अब क्या चाहिए आपको?"

इसी तरह से एक शब्द है "थैंक यू" अब इसके लिए आप लाख धन्यवाद बोलिए, शुक्रिया कहिए, वह मज़ा नहीं जो थैंक यू में है. इसकी महिमा तो इतनी न्यारी है कि धन्यवाद, शुक्रिया बोलने के बाद भी जबतक लोग थैंक यू नहीं बोलते हैं, तबतक बोलने या शिष्टाचार की प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जाती है. आप किसी से भी कभी भी कहें कि आप आ रहे हैं, लोग तपाक से कहेंगे, यू आ' मोस्ट वेलकम". कुछ अच्छा बोल दिया तो फटाक से कहेंगे, "सो नाइस ऑफ यू" छम्मकछल्लो इसकी हिन्दी खोजती रह गई, समझ में ही नहीं आया. अंग्रेजी तो अंग्रेजी, जो थोडी बहुत हिन्दी आती थी, उस पर भी आफत!

छम्मक्छल्लो जब दिल्ली में थी, तब डीटीसी की बस से सफर करती थी. उसकी एक बस के ड्राइवर को थैंक यू शब्द इतना अच्छा लगता था कि वह हमेशा चाहता था कि लोग उसे थैंक यू बोलें. एक लडकी उसे बोलती भी थी. एक दिन वह बोलना भूल गई. उसके बाद तो उसने ऐसी ड्राइविंग की गुस्से में कि लगा कि बस आज बस बस नहीं, विमान बन जाएगी. दूसरे दिन जब वह लडकी चढी, तब पहले तो उसने उससे कोई बात ही नहीं की. लडकी भी अपनी बेख्याली में फिर से उतरने लगी. इस बार उससे रहा नहीं गया. उसने कहा "ओये जी, आज भी बेगर थैंक यू के ही जाओगे?" लडकी मुस्कुरा पडी. उसने थैंक यू बोला. और जी लो, बस फिर से विमान बन गई.

इसी तरह से एक और शब्द है- "I will try my level best." हिन्दी में भी है- "मैं पूरी कोशिश करूंगा या करूंगी" मगर जो मज़ा आता है अंग्रेजी के इस वाक्य में, इतनी मासूमियत, इतनी गंभीरता, इतनी सिंसियेरिटी के साथ कि कोई समझ ही नहीं पाता है कि कहनेवाला आपको कितना उल्लू बना रहा है. छम्मक्छल्लो ने यह अक्सर देखा है कि जब भी कोई यह लाइन बोलता है, समझिए कि उसकी नीयत में खोट है. वह आने के मूड या मन में नहीं है. कभी आजमाकर देख लीजिए.

इसलिए आप मेहरबानी से उस शख्स की बात का कभी भी यकीन ना करें. उसके लिए अगर आप कोई इंतज़ामात करनेवाले हों तो वह कभी न करें, क्योंकि वह शर्तिया कभी भी आपकी तरफ का रुख नहीं करेगा. आनेवाला रहेगा तो वह एक्दम कहेगा तपाक से कि वह आएगा ही आएगा. खुदा ना खास्ता नहीं पहुंच पाएगा तो आपको इत्तला कर देगा. ख़बर नहीं कर पाया, उस समय तो बाद में बताएगा. माफी मांगेगा. आप कभी उसकी शिकायत भी न करें, क्योंकि जब भी आप दुबारे उससे मिलेंगे और उससे न आने की बात पूछेंगे, वह अगला पिछला कुछ नया बहाना बनाएगा, खोजेगा, उसे आप पर चस्पां करेगा और निकल जाएगा. तो क्यों आप उसकी और अपनी मिट्टी पलीद करते करवाते हैं. उसे झूठ पर झूठ बोलने पर मज़बूर करते हैं.

आपको अगर उसकी मिट्टी पलीद करनी ही है तो उससे सचमुच कुछ मत पूछिए. बन्दा समझदार होगा तो आपकी खामोशी उसे बहुत भारी पडेगी और वह आपको खुद ब खुद अपनी सफाई दे देगा. अब उसका सच या झूठ उसका अपना सच या झूठ होगा. छम्मक्छल्लो के एक नाट्य पाठ में यहां की एक बहुत नामचीन लेखक पूरा पूरा वादा करने के बाद भी नहीं आईं. छम्मक्छल्लो के नाट्य पाठ के बादवाले कार्यक्रम में वे दिखीं. पहले तो वे बडी बोल्ड सी बनी छम्मक्छल्लो के आसपास घूमती रहीं. उससे ही चाय मांगकर पी, पीकर अपना अपनापा दिखाती रहीं. कार्यक्रम के बाद कार्यक्रम की गुणवत्ता पर चर्चा करती रहीं. छम्मक्छल्लो भी उनके साथ पूरे अपनापे व आदर के साथ पेश आती रहीं. वे शायद यह अपेक्षा कर रही थीं कि छम्मक्छल्लो उनसे अपने कार्यक्रम में ना आने की शिकायत करे तो वे कुछ बोलें. उन्होंने तो यह भी नहीं कहा था कि I will try my level best बल्कि एक रात पहले कहा था कि मिलते हैं कल सुबह, तुम्हारे कार्यक्रम में. बाद में वे खुद ही कहने लगीं कि वे तो छम्मक्छल्लो का नाटक पढ सुन देख चुकी थीं. छम्मक्छल्लो ने बस विनम्रता से जवाब दिया कि यह नाटक न तो अभी तक कहीं छपा है, न पढा गया है और ना ही मुंबई में खेला गया है.

तो बस, कल्पना कीजिए और साथ में यह मानकर चलिए कि कोई कह रहा है कि "I will try my level best." तो बस उसे मान लीजिए, चाहें तो हल्के से मुस्कुरा भर दीजिए. बोलनेवाले को पूरा यकीन दिलाइये कि उसे आपकी कोशिश पर पूरा भरोसा है और उसे भूल जाइये, जैसे वह यह कहकर भूल जाता है.- इस रूप में कि उसकी यह कोशिश कभी भी सफल नहीं होगी, क्योंकि उसके लिए वह न तो नौ मन तेल का जुगाड करेगा और न अपने मन की राधा को नाचने के लिए अर्थात उसे आपके पास आने के लिए कहेगा. यह मन का वह दर्पण है, जिसमें वह झलकता है, जो नहीं है, और वह नहीं दिखता है, जो वह है.