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Friday, February 27, 2015

"नौरंगी नटनी" - मैथिली फोक सोलो- समीक्षा- जितेंद्र नाथ जीतू

"नौरंगी नटनी" - मैथिली फोक सोलो- समीक्षा- जितेंद्र नाथ जीतू की- मैथिली में- मैथिली की वेब पत्रिका "मिथि मीडिया" में। थोड़ा मैथिली का आनंद लीजिये।


http://www.mithimedia.in/2015/02/blog-post_14.html
SATURDAY, FEBRUARY 14, 2015  MITHIMEDIA  


बंबइ : काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवलमे 11 तारीखकें मैथिली साहित्य आ रंगमंचक सशक्त हस्ताक्षर 'विभा रानी'क एकल मैथिली नाटक 'नौरंगी नटनी' केर मंचन भेल. संजीव क हिन्दी उपन्यास सर्कसक एकटा अंश पर आधारित एहि नाटकमे मैथिली आ हिन्दी दुनूक प्रयोग भेल अछि. मुदा एहि नाटकमे नायिका नटनीक संवाद आ गीत मैथिलीमे छल. 

नटनीक बहन्ने नाटक ई समाद देइत अछि जे अपन अधिकार लेल आदमीकें सदिखन जागरूक रहबाक चाही. नाटकक नायिका नटनीक करतबक चर्चा जखन राजा लग पहुचैत अछि त' राजा ओकरा दरबारमे बजबैत अछि. राजा ओकरा कहैत अछि जे तू अपन करतब सं ई दूरी तय क' लेमे त' हम आधा राजपाट तोरा बेटाकें  द' देबौ. पहिने त' नटनी भयभीत भ' जाइत अछि मुदा बेटाक नीक भविष्यक खातिर ओ तैयार भ' जाइत अछि. जखन नटनी अपन लक्ष्य लग पहुचएबला रहैत अछि कि राजा एकाएक चिंतित भ' जाइत अछि जे कहीं नटनी सफल भ' गेल त' ओकर बेटा हमर बेटाक आधा राजपाटक मालिक भ' जाएत. राजाकें ई किन्नो मंजूर नहि जे एकटा अछूतक बेटा राज्यक स्वामी बनै ओकर बेटाक बराबरी करै. राजा रस्सीकें काटि देइत अछि मुदा नटनी जे मंजिल लग पहुचैबला छल से अपन बेटाक अधिकार लेल राजाकें मारि देइत अछि. ई नाटक जातिगत ढाचा आ ऊँच-नीचक परिपाटी पर प्रहार करैत अछि. 

नाटकमे विभा रानी कखनो नटनी त' कखनो राजा त' कखनो सेनापति  त' कखनो कोरस बनैत छथि आ अपन अभिनय सं बाडीक मूवमेंट सं दर्शककें सदिखन लगैत अछि जे कतेक कलाकार मंच पर काज क' रहल अछि. विशेषक' नटनीमे हुनकर अभिनय नीक लगैत अछि. जेना गाम घरमे बौआ सबकें माए-दादी तेल-कूर लगबैत अछि तहिना नटनी अपन बेटाकें तेल-कूर लगबैत अछि एहन-एहन कतेक दृश्य अपन मिथिलाक माटि पानिक याद दिलाबैत अछि. कतहु-कतहु नाटकक स्लो पेस कने अखरैत अछि. शुरूआत मे सेहो नाटकक गति कने धीमा छल मुदा जेना जेना कथा आगू बढैत अछि दर्शक लोकनि नाटकमे रमि जाइत छथि. 


प्रियदर्शन पाठक संगीत आ विभा रानीक गाओल गीत नाटकक कहानीकें आगू बढबैत अछि. नाटकमे बाबा नागार्जुन आ गोरख पाण्डेय केर गीतक सेहो नीक प्रयोग भेल. एहि नाटकक निर्देशक छलाह राजेन्द्र जोशी.


(रिपोर्ट : जीतेंद्र नाथ जीतू)

Thursday, February 26, 2015

सिनेमा मेरी जान की भूमिका- अजय ब्रह्मात्‍मज

सिनेमा एक जुनून है। गाहे-बगाहे हर कोई अपने इस जुनून के बारे में बताता रहा  है। फिल्मों में भी इसका जुनून छलकता रहा है। हाल में आर बाल्की  की फिल्म "षमिताभ" का गूंगा नायक इसी पागलपन का शिकार है। ....बावजूद इसके, लोग सिनेमा के प्रति एक अनासक्ति का भाव दिखाते रहते हैं। अजय ब्रह्मात्मज द्वारा संपादित और चयनित किताब "सिनेमा मेरी जान" कुछ-कुछ "बॉम्बे मेरी जान" की तरह है। इसमें सिनेमा का खुद के साथ का साक्षात्कार है, जिसमें एक जोश है, जुनून है औरचोरी-छुपे  कुछ करने के अतिरिक्त आनद का एहसास भी। अपने को जीने और सिनेमा के अपने गुद्गुदे अहसास के लिए इस किताब का पढ़ना बहुत ज़रूरी है। पढे, राय दें।
सिनेमा मेरी जान आ गयी। इसमें अंजलि कुजूर, अनुज खरे, अविनाश, आकांक्षा पारे, आनंद भारती, आर अनुराधा, गिरींद्र, गीता श्री, चंडीदत्त शुक्‍ल, जीके संतोष, जेब अख्‍तर, तनु शर्मा, दिनेश श्रीनेत, दीपांकर गिरी, दुर्गेश उपाध्‍याय, नचिकेता देसाई, निधि सक्‍सेना, निशांत मिश्रा, नीरज गोस्‍वामी, पंकज शुक्‍ला, पूजा उपाध्‍याय, पूनम चौबे, मंजीत ठाकुर, डॉ मंजू गुप्‍ता, मनीषा पांडे, ममता श्रीवास्‍तव, मीना श्रीवास्‍तव, मुन्‍ना पांडे (कुणाल), यूनुस खान, रघुवेंद्र सिंह, रवि रतलामी,रवि शेखर, रश्मि रवीजा, रवीश कुमार, राजीव जैन, रेखा श्रीवास्‍तव, विजय कुमार झा, विनीत उत्‍पल, विनीत कुमार, विनोद अनुपम, विपिन चंद्र राय, विपिन चौधरी, विभा रानी, विमल वर्मा, विष्‍णु बैरागी, सचिन श्रीवास्‍तव, सुदीप्ति, सुयश सुप्रभ, सोनाली सिंह, शशि सिंह, श्‍याम दिवाकर और श्रीधरम शामिल हैं।
सभी लेखक मित्रों से आग्रह है कि वे अपना डाक पता मुझे इनबॉक्‍स या मेल में भेज दें। प्रकाशक ने आश्‍वस्‍त किया है कि सभी को प्रति भेज दी जाएगी।
बाकी मित्र शिल्‍पायन प्रकाशन से किताब मंगवा सकते हैं। पता है- शिल्‍पायन,10295,लेन नंबर-1,वैस्‍ट गोरखपार्क,शाहदरा,दिल्‍ली-110032
मेल आईडी- shilpayanboks@gmail.com
पुस्‍तक मूल्‍य- 400 रुपए
(किताब पढ़ने पर प्रतिक्रिया अवश्‍य दें। और खुद भी लिखें। मुझे chavannichap@gmail.com पर भेजें।)

भूमिका
सिनेमा मेरी जान
चवननी चैप ब्‍लॉग के लिए सिनेमा से साक्षात्‍कार के संस्‍मरणों के इस सीरिज के पीछे बस इतना ही उद्देश्‍य था कि हमसभी बचपन की गलियों में लौट कर एक बार फिर उन यादों को ताजा करें। भारत में सिनेमा की शिक्षा नहीं दी जाती। अभी तक माता5पिता बच्‍चों के साथ सिनेमा की बातें नहीं करते हैं। अगर कभी चर्चा चले भी तो हम स्‍टारों की चर्चा कर संतुष्‍ट हो लेते हैं। मेरी राय है कि घर-परिवार या स्‍कूल से हमें सिनेमा का कोई संस्‍कार नहीं मिलता। हमारी सोहबत,संगत और सामाजिकता से सिनेमा का संस्‍कार बनता है। ज्‍यादातर खुद सीखते हैं और सिनेमा का भवसागर पार करते हैं। कुछ सिनेमा के मूढ़ मगज छलांग मारते ही डूब जाते हैं।
यह सीरिज मैंने हिंदी टाकीज नाम से शुरु की थी। इस सीरिज में सम्मिलित गीताश्री ने अपने संस्‍मरण खूब मन से लिखे थे। वे बार-बार कहती थीं कि सारे संस्‍मरणों को संकलित कर किताब के रूप में लाएं। सभी लेखकों ने सिनेमा का उल्‍लेख और वर्णन प्रेमिकाओं की तरह किया हैत्र उन्‍होंने ने नाम तय करने के अंदाज में सुझाया सिनेमा मेरी जान। मैंने स्‍वीकार कर लिया। उनके आधिकारिक आग्रह को मैं कभी नहीं टाल सका। इस पुस्‍तक के शीर्षक के सुझाव में सम्‍मोहन था।
इस संकलन के संस्‍मरणों को पढ़ते हुए हिंदी पट्टी से आए पाठक महसूस करेंगे कि उनके बचपन में ही किसी ने झांक लिया है। किसी ने भी फिल्‍मी ज्ञान देने या झाड़ने की कोशिश नहीं की है। यह बचपन के अनुभवों को सहेजती मार्मिक चिट्ठी है,जो खुद के लिए ही लिखी गई है। इसमें से कुछ संस्‍मरण इस सीरिज के लिए नहीं लिखे गए थे। मैंने अधिकारपूर्वक उन लेाकों के ब्‍लॉग से उठा लिए। ऐसे एक लेखक रवीश कुमार हैं। अगर उन्‍हें बुरा लगा तो वे फरिया लेंगे।
हिंदी में सिनेमा पर या तो गुरू गंभीर और अमूर्त्‍त लेखन होता है या फिर अत्‍संत साधारण और फूहड़। हिंदी सिनेमा की तरह ही आर्ट और कमर्शियल किस्‍म का लेखन चल रहा है। यह सीरिज एक छोटी कोशिश है यह बताने की कि लेखन में भी सिनेमा की तरह मध्‍यमार्ग हो सकता है। सभी के संस्‍मरण पर्सनल हैं। उनमें लेखक आज के व्‍यक्तित्‍व का कदापि न खोजें। हिंदी पट्टी में सिनेमा देखना एक प्रकार की गुरिल्‍ला कार्रवाई होती थी। सुना है कि अभी परिदृश्‍य बदला है। 45 से अधिक उम्र का शायद ही कोई उत्‍तर भारतीय होगा,जिसने सिनेमा देखने के लिए मार या कम से कम डांट नहीं खाई होगी। इसके बावजूद हम सभी सिनेमा देखते रहे। सिपेमा हमारा शौक बना। सिनेमा हमारा व्‍यसन बना।
अक्‍सर मैं सोचता हूं कि हिंदी पट्टी से प्रतिभाएं हिंदी फिल्‍मों में क्‍यों नहीं आती ? मेरी धारणा है कि सिनेमा के प्रति हमारे अभिभावकों की असहज घृणा एक बड़ा कारण है। हिंदी समाज सिनेमा देखने के लिए बच्‍चों को प्रेरित नहीं करता। हम सिनेमा की बातें चेरी-छिपे करते हैं। फिल्‍मों और फिल्‍म स्‍आरों के प्रति हिकारत और शरारत का भाव रहता है। नतीजा यह होता है कि सिनेमा का हमारा प्रेम अपराध भाव से दब और कुचल जाता है। भारत के अन्‍य भाषाओं के समाज में कमोबेश यही स्थिति है। ये संस्‍मरण हमारे अव्‍यक्‍त प्रेम की सामूहिक बानगी हैं।
मेरा दावा है कि हर एक संस्‍मरण का अनुभव आप को संपन्‍न करने के साथ सिनेमा के संस्‍कार भी देगा। अगर बारीक अध्‍ययन करेंगे तो कुछ समान सूत्र मिलेंगे,जो सिनेमा के सौंदर्यशास्‍त्र निरूपण के लिए सहायक होंगे।-  अजय ब्रह्मात्‍मज

 

Tuesday, February 24, 2015

Parents do it too!!!- वत्‍सला श्रीवास्तव

वत्सला श्रीवास्तव स्वतंत्र  पत्रकार हैं। पत्रकारिता से पहले रंगमंच में सक्रिय रही हैं। रंगमंच इन्हे विरासत में मिला है। लंबे समय तक एशियन एज, दिल्‍ली में सहायक समाचार संपादक रहीं। पिछले कुछ सालों से कैलिफोर्निया के बर्कले शहर में रिहाइश। उनसे venusvatsala@gmail.com पर संपर्क करें। इस नाटक पर उनके विचार। इस लेख को मोहल्लालाइव से साभार लिया जा रहा है।

http://mohallalive.com/2015/02/22/go-to-your-room-mother/

Parents do it too!!!

Vatsala Shrivastava➧ vatsala shrivastava
Are “we the people of India”, wired to judge morally whenever sexuality unbuttons itself in unconventional settings? Has the era of FIDA (Facebook inbox display of affection) and the virtual paradises nonplussed us? Or, we are just reacting to the time and space of PDQ (pretty damn quick) social change? These questions swaddled me while watching Go to your Room Mother, a comedy play showcasing life after kids – well, after parents have kids for a couple of decades. I turned around to find fellow members of the audience punch drunk, some with laughter and other with thoughts. Vinita Sud Belani’s production captures the mood of “modern” India’s oldies and their desire to explore life in diverse horizons. The play, which opened in the San Francisco Bay Area, comments on the changing equation between parents and their middle-aged children.
An empty-nester couple’s plan to rekindle warmth in their marriage extinguishes when their mothers arrive to live in with them. Rita, a graphic designer, and Rajiv, an advertising executive are ordinary modern-day Delhites. Both the moms, however, are extraordinary; over 60 in age, and under 16 at heart. They fight over petty things like bed and bath but bond over men and partying. The tech savvy mom Sheila is a star of dating sites and the “slut” of gymkhana club. The prim and proper mom Purnima begins her day with a bottle of wine and Begum Akhtar’s ghazals. The story spices up when the moms embark upon a joint date leaving behind an anxious and embarrassed son. Like many young Facebook users who accidently discover their parent’s colorful virtual life, Rajiv is torn between his newfangled perspective and traditional ethos. The moms refuse to move away from their terrific territory like any other free soul of the world. The storyline explores the subterranean emotional struggle of India residing in the post-internet era. This India is far ahead of the India which migrated to the West in the early 70s or 80s with a heavy baggage of conservative values.
“There is a sense of sanctorum attached to us. We aren’t allowed or expected to have fun after we reach certain stage of life. Go to your Room Mother was developed under our ‘theater for a cause’ program. We were fundraising for Maitri, an organization which helps South Asian victims of domestic violence, elder neglect and elder abuse. We wanted to talk about these issues without sounding offensive, so we took refuge in humor. Age is no barrier, it is just a mindset,” says Vinita, the founder and artistic director of EnActe Arts. She feels that this play, written by Sanjiv Desia, will always remain contemporary because we switch roles – from being a child to being a parent – over our lifetimes, and there will always be a disconnect that will need careful sensitive tending.
Vinita started EnActe to bring quality South Asian stories to universal audiences and create a platform where theater professionals could work with aspiring amateurs to foster the growth of local performing talent. She wants to create a space for Indian theater the way Jhumpa Lahiri and Vikram Seth did for Indian literature, and Mira [v1] Nair for Indian films. “I want to bring the richness of our theatrical tradition to this place.” EnActe had quite a high profile opening with Jean-Claude Carriere revisiting Mahabharat for it.
Vinita has lived gypsy-style; moving across 20 countries in 27 years. In the process of life and its paraphernalia, theater was getting short shrift in Vinita’s world. “I was feeling a big void in my life. One day after a job interview, I realized I shouldn’t do anything else but theater. There wasn’t a kind of Indian theater I wanted to do, so I created a business plan to start my own theater company in the US,” she add.
Go to Your Room Mother will be showcased in Delhi soon. It will be interesting to see the audience of Delhi react to their own story. After all, the script was kept away from city audience for over four years, as no one would take it up to bring it alive on stage. May “we the people” sit down to ponder over, and may “we the people” stand up to face the reality.

Saturday, February 21, 2015

Naurangi Natni – A solo musical play by Vibha Rani- Ashutosh Singh

आशुतोष सिंह युवा संगीतकार हैं। भोजपुरी फिल्म "देसवा" में संगीत देने के बाद "कुदेसन" पर बनी फिल्म "वुमेन फ़्रौम द ईस्ट" के गीत लिखे हैं। फिलहाल एक मैथिली फिल्म का संगीत कर रहे हैं। इसके अलावा आशुतोष बच्चों के संगीत के लिए काम कर रहे हैं। इनकी योजना बच्चों के गीतों का अलबम बनाने की है। "नौरंगी नटनी" नाटक देखकर इन्होंने अपने विचार यहाँ लिखे हैं, आप सबके सामने प्रस्तुत हैं।   


(NATNI - A Gypsy woman who earns her living doing acrobatic shows on the roads)
 

Maithili – that’s the language my mother speaks. It’s the language our next film is in. Despite having the language as my “Mother’s tongue”, I never had the opportunity to witness any theater or movie in Maithili.
 

Vibha jee is stubbornly persuasive, in her gentle consistent way. In our several fleeting interactions, she never failed to remind that I should come and watch her play NAURANGI NATNI at Kala Ghoda Festival. 

Natni, the street performer is very pretty, talented and famous – with a huge following. Naurangi Raja - the pompous king hears about the Natni and wishes to see her act. His Ministers warn him not to indulge in cheap lowly people. But King is curious to witness the bewitching act which has mesmerized his people.

The Thanedaar goes to convey the kings message to Natni and is unsettled by her beauty. Natni is a chaste lady, dedicated to her man and infant child. Thanedaar assures her the King is benevolent and a visit to him will yield profitable results for her. Natni agrees to meet Naurangi. 

Naurangi asks her to dance on swords and broken glasses. Natni completes the feat. Naurangi is not impressed. He then tells her to walk a rope tied across three mountains to the dome of his palace – with her child tied to her back. If she manages, the King would give half of his kingdom to the Natni’s Son. The feat is scary and risky. But the reward is too big. Natni, is hopeful that her son will become king. And she takes up the challenge. What happens next? Do catch the play at its next show.

Vibha jee can’t sing. Surely not the way professional or trained singers do. But her singing keeps you glued. Because she sings like a mother does to her child. There is a narrative, a tale which weaves pictures with words. The magic world is created just due to sincerity of the narrator. 

Vibha jee can’t dance. That she acknowledged post the show that whatever good happened, the credit goes to the Dance Director and whatever did not, was her doing. But her dancing works. Her movements are basic and to the point. And yes, graceful. 

At times, I felt Vibha jee did not even act. She lived the character instead. My personal favourite was the expression of hope from the Natni when she thinks her child will be a king. That entire sequence, I observed, moved the audience most. Probably because she is a mother herself, her playing one came naturally. There were difficult sequences when she played two characters interacting with each other. She performed change overs with ease. 

If there were fleeting moments when the act did seem to not fall in place, especially when it started – the initial few minutes – no one remembered that further down the line (except snooty nosed me). Also in the end, the play goes on in a socialist revolutionary tone which to me seemed unnecessary addition. 

All said and done, this was a marvellous experience savouring Naurangi Natni. And certainly would like to see more of plays from Vibha jee and her group Avitoko. 

An accomplished writer herself, I had the fortune to witness her skills when I asked her to write a song for me in Maithili. The result was overwhelming. She is one of the last of the generation which has had the opportunity to experience uncontaminated rural life as well as seamlessly adapted to urban values of today. I convey to her my best wishes for many such super quality work. Congratulations to her entire team.
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Sunday, February 15, 2015

विभा के अभिनव अभिनय से सजी अद्भुत प्रस्तुति "नौरंगी नटनी"-विवेक मिश्र


 11 फरवरी, 2015 को मुंबई के कालाघोड़ा आर्ट फेस्टिवल में मैथिली/हिन्दी एकल फोक नाटक "नौरंगी नटनी" का मंचन हुआ। ठसाठस भरे नैशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट के सभागार में इस नाटक ने धूम मचा दी। दैनिक "दबंग दुनिया" अखबार की रिपोर्ट। साथ में, हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक विवेक मिश्र के इस नाटक पर विचार। ..... नौटंकी को अपने यहाँ बुलाने के लिए संपर्क करें- 09820619161/ gonujha.jha@gmail.com पर।
इस नाटक को आप यूट्यूब पर भी देख सकते हैं। लिंक है- https://www.youtube.com/watch?v=XvsD194tqrQ

कई बार कुछ अवसरों पर आप कला में कुछ शब्दों के सहारे उतरते तो हैं, पर जब उसमें डूबकर उबरते हैं तो आपके पास अपने अनुभव को बयां करने के लिए शब्द नहीं जुटते। विस्मय या आश्चर्य जैसे शब्द छोटे जान पड़ते हैं। ऐसा ही कुछ अनुभव था जब मैथिली  भोजपुरी अकादमी, दिल्ली द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर के सर शंकर लाल सभागार में 26 जुलाई, 2013 को मुंबई से आईं हिन्दी और मैथिली लेखन व रंगकर्म को समर्पित नाट्यकर्मी विभा रानी  द्वारा अभिनीत  एकल नाटक "नौरंगी नटनी की प्रस्तुति देखने का अवसर मिला। विभा ने  "नौरंगी नटनी" के तमाम अंतर्विरोधी चरित्रों को  अपने अभिनय से जीवित ही नहीं किया, बल्कि दर्शकों को उनके साथ जोड़कर उन्हें नटनी के संघर्ष में और उसके माध्यम से एक दलित-आदिवासी स्त्री की व्यवस्था के ख़िलाफ़ उसके विद्रोह में सहभागी बना दिया। शायद ही कोई हो, जो उस प्रस्तुति को भूल सके।

नौरंगी नटनी की कहानी मूलत: हिमाचल, उत्तराखण्ड और राजस्थान में प्रचलित एक लोक कथा का मिलाजुला रूप है, जिसे वरिष्ठ कथाकार संजीव ने अपने उपन्यास सर्कस में एक दलित स्त्री के, एक मां की आंतरिक शक्ति के, भविष्य की एक संभावना के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया है। उपन्यास में वर्णित डेढ पन्ने के इसी अंश को विभा ने एक सम्पूर्ण नाटक का स्वरूप दिया.
नाटक दरअसल राजसत्ता के छल-कपट, लालच और अंधाभिमान की कथा है, जिसमें एक धूर्त राजा अपनी कला में निपुण नटनी के शोषण की कोशिश करता है. और जब वह अपने स्वाभिमान से नहीं डिगती तो अपमान से तिलमिलाया हुआ राजा उसे एक असंभव कार्य देकर छल से उसे एक सुनहरे भविष्य के लालच से बांध देता है. राजा उसे अपने बेटे को पीठ पर बांधकर एक रस्सी पर चलते हुए तीन पहाड़ पार करने का लालच यह कहकर देता है कि ऐसा करने पर वह अपना आधा राज्य नटनी के बेटे को दे देगा. जीवन के प्रति नटनी की अथाह जिजीविषा तथा अपने बालक के सुन्दर भविष्य की चाहत उसे वह चुनौती स्वीकारने के लिए बल देती है। वह अपने बच्चे के साथ-साथ अपने समाज को गरीबी, अशिक्षा, अपमान से मुक्त कराने और उन्हें एक सम्माननीय जीवन देने के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाने को तैयार हो जाती है। पूरा राज्य इस अनोखे करतब को देखने के लिए एकत्र है. बेटे को पीठ पर बांधकर एक रस्सी पर चलते हुए नटनी अपनी मंजिल की ओर बढने लगती है. लेकिन, उसे सफलता से आगे बढते देख राजा अब परेशान होता है. आवेश में बोले गए एक बोल के पीछे अपना आधा राज-पाट गंवाने को वह तैयार नहीं होता. लिहाज़ा, नटनी के आगे बढने से परेशान और अपने ही वादे से मुकरता राजा नटनी द्वारा तीसरा पहाड पार करते न करते उसकी रस्सी काट देता है. बेटे सहित नटनी मौत के मुंह में जा समाती है. मगर, राजा के इस अनैतिक कार्य को वहां उपस्थित जनता जनार्दन सह नहीं पाती. भयंकर जन-विद्रोह होता है, जिसका सामना करने में असमर्थ राजा वहां से भागता है. परंतु, अंत में वह पकड लिया जाता है. जनता अपना बदला लेती है. अपने ही जन से पराजित राजा अन्त में मारा जाता है।
एकल नाटको में लम्बे समय से नए-नए प्रयोग करती आ रही विभा रानी ने इसी कहानी को आधार बनाकर इसकी एकल नाट्य प्रस्तुतिनौरंगी नटनीनाम से की और संघर्ष की इस लोक गाथा को अपनी सशक्त अभिव्यक्ति से एक बार पुन: जीवित कर दिया।
विभा रानी नाटक में पल में चरित्र नटनी का चरित्र धरतीं, जिसकी वेश -भूषा, श्रंगार, आभूषण यहाँ तक चलने की विशेष शैली होती, तो दूसरे ही पल में एक अभिमानी राजा का चरित्र धारण करतीं, जो  बड़े ही सधे हुए और अहंकारी भाव से मंच पर प्रकट होता. विभा अपने अभिनय से राजा के चरित्र में पुरुषवादी मांसल लोलुपता और मन की गहरी मक्कारी जैसे गुणों को बड़ी सहजता से उभारती हैं। जब वह आधा राज्य न देने का फैसला करते हुए अनैतिक तरीके से नटनी की हत्या करता है, वह है- तांडव की मुद्रा पर नागार्जुन की कविता के प्रयोग के साथ नव रस के रौद्र रस को बडी ही सघनता से प्रस्तुत करना! यह दृश्य एक स्त्री कलाकार के द्वारा अभिनीत किया जाना सचमुच एक बड़ी चुनौती जान पड़ती है. राजा और नटनी के परस्पर संवाद के समय दोनों चरित्रों के अनुसार तेज़ी से बदलती भाव भंगिमाएं, एक चरित्र से दूसरे में प्रवेश इतना त्वरित व सहज कि दर्शक देखते रह जाते। राजा और नटनी के इन दो प्रमुख चरित्रों के अलावा नाटक में आए मंत्री, नटी, चोबदार, थानेदार आदि के किरदारों को भी विभा बखूबी निभा जाती हैं।  थानेदार के कॉमिकल स्वरूप को विभा न केवल सम्वाद, बल्कि पूरी भाव भंगिमा के साथ इतने मनोरंजक तरीके से निभाती हैं कि दर्शक मुंह पर आई मुस्कान को रोक नहीं पाते.           
       नाटक में कथ्य को कहने के लिए सम्वाद के साथ-साथ कविताओं और लोकगीतों के प्रयोग से एक अलग ही प्रभाव पैदा हुआ। साथ ही भाषा के प्रयोग भी अद्भुत थे, जिसमें व्यवस्था और क्रूर राजा के संवाद हिन्दी में तथा नटनी और जनसामान्य के संवाद मैथिली में थे. इससे नाटक का परिवेश क्षेत्र विशेष से निकल कर राष्ट्रव्यापी हो जाता है, साथ ही गैर मैथिलभाषी दर्शकों के लिए भी सहज ही ग्राह्य बन गया। जन-विद्रोह को दिखाने के लिए गायन और नाटक में लोक स्वरूप का अच्छा इस्तेमाल किया गया, जिसमें नागार्जुन और गोरख पांडे की कविताओं के प्रयोग से नाटक समाजिक सरोकारों से जुड़कर नए अर्थ और ऊंचाई प्राप्त करता है। नाटक में आए लोकगीतों के अलावा अन्य गीत विभा ने खुद ही लिखे और गाए हैं| नाटक के मुख्य चरित्रों के अलावा कुछ साधारण चरित्रों की बात करना भी यहाँ इसलिए जरूरी लगता है, क्योंकि कम नाटकीयता वाले चरित्रों को एक एकल नृत्य नाटिका में निभाना एक अलग ही चुनौती होती है। यहाँ मैं राजा का संदेश लेकर आए थानेदार की बात कर रहा हूँ जो नटनी के दरवाजे पर पहुँचकर जिस तरह सुरती मलते हुए नटनी को राजा का संदेश सुनाता है, वहाँ लगता है कि विभा मंच पर अपने अभिनय में स्त्री-पुरुष की सीमा से मुक्त हो सिर्फ़ एक कलाकार ही रह जाती हैं। एकल नाटक में लगातार मंच पर उपस्थित इकलौते कलाकार पर ही सैकड़ों आँखें लगी रहती हैं. कलाकार कैसे उन आँखों के सामने एक चरित्र से दूसरे में खुद बार-बार बदलता रहता है, यह किसी जादू जैसा लगता है. और कहना न होगा कि विभा इस कला की जादूगर हैं। नाटक के अन्त  की ओर जाते घटना क्रम में राजा की शर्त के मुताबिक़ नटनी को अपनी दिलेरी और हिम्मत से एक -एक कर तीनों पहाड़ चढते देख घबडाया हुआ राजा जिस बेचैनी से नटनी को पहाड़ से नीचे उतर आने का आग्रह करता है, वहाँ भी विभा अपने अभिनय के चरम पर खड़ी दिखाई देती हैं।                               विभा के अभिनय की कई बारीकियाँ इस एकल प्रस्तुति में नज़र आती हैं। कहना होगा कि प्रस्तुति का असली कमाल तो यह था कि मात्र एक ओढ़नी और एक कमरबन्ध तथा निरंतर माइम के सहारे उन्होंने तमाम पात्रों और घटनाक्रमों को मंच पर उतार दिया और नटनी की लगातार बदलती भाव भंगिमाएं और भिन्न -भिन्न पात्रों की क्षण प्रति क्षण बदलती मुख- मुद्राओं ने, मंच पर बिना किसी साज-सज्जा के अप्रतिमता से भर दिया.
कलाकार की कलाकारी धरी रह जाए, अगर उसे अच्छा निर्देशक ना मिले. नाटक के निर्देशक राजेन्द्र जोशी नाटक की प्रकाश व्यवस्था भी देख रहे थे. आम तौर पर इस तरह के नाटक के लिए चालीस से भी अधिक लाइट्स की जरुरत पडती है. लेकिन राजेन्द्र जी की मास्टरी कम से कम लाइटों के सहारे अतुलनीय प्रकाश सन्योजन है। लोक नाटकों में संगीत की बहुत अहम भूमिका रहती है. प्रियदर्शन पाठक ने फोक के तत्व को पहचान कर बेहद प्रभावी संगीत दिया, जिसने नाटक में एक ही कलाकार और उसके द्वारा निभाए जा रहे विभान रूपों को दर्शकों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. संगीत संचालन प्रेम शुक्ला का था, जिन्होने अपने संगीत संचालन में अपने लम्बे अनुभव का कुशल परिचय दिया। अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित माला डे बांठिया के कॉस्ट्यूम डिजाइन ने पूरी प्रस्तुति को विश्वस्नीय और वास्तविक बनाया।
कुल मिलाकर नौरंगी नटनी को देखना एक विरल अनुभव के विशाल संसार से गुजरने जैसा रहा. ####                                                                                                                                                                                    





Saturday, February 14, 2015

“वसंत के राग, फाग” में डूबा “अवितोको रूम थिएटर”!

8 फरवरी को “अवितोको रूम थिएटर” द्वारा आयोजित“वसंत के राग-फाग” कार्यक्रम ने वहाँ मौजूद सभी के मन को खुशियों से आलोड़ित कर दिया।“अवितोको रूम थिएटर” के प्रेमियों के लिएप्रेमियों के द्वारा और प्रेमियों से सजी इस शाम ने वसंत और होली के रंगों से माहौल को कला और साहित्यमय कर दिया। कविताकहानीव्यंग्यनाटकपेंटिंगगीतलोक गीतहोली गीत! लोग आते गए और अपनी-अपनी कला की छाप छोड़ते गए। वसंत को गानेवाली 7 वर्षीया आरना थी तो अपने नाटक और सालसा नृत्य से सभी को सम्मोहित करनेवाले वरिष्ठ नागरिक और फिल्मटीवीरंगमंच कलाकार राम गिरिधर थे। मनीषा मेहता के व्यंग्य से हॉल ठहाकों से गूंज रहा था तो सुजाता के प्रश्न कि रावण के दर्द को कब लोग समझेंगेलोगों के मन में प्रश्न- प्रति प्रश्न पैदा कर रहा था। प्रभा मुजूमदार और दिल्ली से आई सीमा सिंह की कविताएं सबके मन में उत्सुकता जगा रही थींतो उत्कर्ष और अग्रिमा ने अपनी पेंटिंग के जरिये यह बताया कि वसंत हमारे द्वार पर ठिठका खड़ा हैपेड़ -पौधों का नाश कर हमी उसे आने से रोक रहे हैं। वसंत की महत्ता खेत-खलिहानों के अनाजसरसों के फूलआम की मंजरियों के साथ साथ होली-गीत के बिना संपूर्ण नहीं होती। झूमर और होरी गीत में सभी को सराबोर किया विभा रानी और अविनाश दास ने। गीतनृत्य पर लोगों के कदम थिरकते गएथपकियों से सुर मे सुर मिलते गए और डूबते गए लोग वसंत के मदमाते रंग और रूप में। और इन सबको अपने कुशल संचालन से कड़ी-दर कड़ी में पिरोया डॉ निवेदिता सरकार ने।



मार्च 2014 में आरंभ हुआ अवितोको रूम थिएटर अपने अभिनव स्वरूप के कारण अपने पहले कार्यक्रम से ही चर्चा में आ गया। हर माह के पहले इतवार को आयोजित अवितोको रूम थिएटर का उद्देश्य छुपी हुई प्रतिभाओं को मंच प्रदान कराते हुए रचनात्मकता के हर क्षेत्र के विशिष्टजनों से उनका साक्षात्कार कराना है। इसके अलावा “अवितोको रूम थिएटर में साहित्य और कला के हर पक्ष पर प्रकाश डाला जाता हैताकि कला के हर क्षेत्र को कला-प्रेमी और कला से जुड़े लोग जान सकें। “अवितोको रूम थिएटर” का एक और महत उद्देश्य हैन्यूनतम खर्च में सर्व साधारण के लिए सार्थक थिएटर उपलब्ध कराना।“अवितोको” कलाथिएटर और साहित्य के माध्यम से जेल बंदियोंवरिष्ठ नागरिको, ‘विशेष’ वर्ग के लोगों के साथ-साथ समाज की मुख्य धारा से जुड़े लोगों के लिए नाटकप्रशिक्षणकार्यशालाएँ आयोजित करता है। विशेष जानकारी के लिए 09820619161/ gonujha.jha@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। ###



Avitoko's Room Theatre filled the hearts of all present in the room with the Colors of Vasant and Valentine. An evening made possible just by its people, brought to life the beautiful colors and emotions of spring. The stage was set on fire by performer after performer, be it young Aarna, with poetry or good old Mr Ram Giridhar with enthusiastic salsa moves. The room echoed with laughter during Manisha Mehtas stand up comedy. With every performance one got to experience a new aspect of society linked to spring. A woman's life can be coloured by her dreams and ambitions said Prabha and Seema Singh from Delhi through poetry. Sujata's burning question about Ravan's distress left the audience wondering about the other side of the Ramayan story. Utkarsh and Agrima brought to life a pressing environmental issue of forest depletion. Be it the folk songs sung during Holi in the villages of Bihar brought to life by Vibha Rani and Avinash or the touching story about the life and love of a strong, independent woman after divorce by Rashmi the atmosphere resonated encouragement and appreciation for art and creativity. The clapping, cheering and tapping of feet in rhythm brought together strangers who had one thing in common - a love for expression. Avitoko's Room Theatre has been arranging these stages for the last 12 months on the first Sunday of every month. It is open to everyone. For further details: please contact: 9820619161 or you can email your queries to : gonujha.jha@gmail.com

Friday, February 13, 2015

“Breaking Inhibitions: Creating Path ”अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर रूम थिएटर का आयोजन


"AVITOKO's Room Theatre" is completing its one year in the month of March. March is the month for International Women's Day (8th March) and  World Theatre Day (27th March) We are happy to share that we at AVITOKO are saluting women power and rehearsing theatre on the very first anniversary of "AVITOKO's Room Theatre" A tentative schedule and our activities are placed below. We would be happy to get you there as a part of this event. Our contact details are +91 9820619161/ gonujha.jha@gmail.com

मुंबई कला की नगरी है। यहाँ हर की आँखों में अपनी कला को सामने लाने के सपने रहते हैं। “रूम थिएटर” अवितोको का एक ऐसा ही मंच है, जो आम जन और मुंबई में रह रहे हजारों कलाकारो और कला प्रेमियों को अपनी अभिव्यक्ति के लिए मंच प्रदान करता है।
 

मार्च, 2014 में आरंभ किया गया अवितोको का “रूम थिएटर” का प्रयास मार्च 2015 में अपना एक साल पूरा करने जा रहा है। 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। समाज और विश्व में महिलाओं के योगदान को रेखांकित करने के लिए अवितोको का “रूम थिएटर” शनिवार, दिनांक 7 मार्च, 2015 को सुबह 1000 से शाम 5.00 बजे तक “Breaking Inhibitions: Creating Path”नाम से एक कार्यक्रम महिलाओं के सम्मान में आयोजित कर रहा है।
 

“Breaking Inhibitions: Creating Path”

(A one day program on for the women folk of various fields)
 

Every woman has a dream in her eyes. Some get opportunity to realize them. Others just think, but do not able to gather their courage to move ahead with their dreams. “Breaking Inhibitions: Creating Path” is a program, where women participants may get ideas to actualize their dreams unlimited. The program will give them the space to speak out during the day.

“Breaking Inhibitions: Creating Path” will be a full day program. Participants will be women employees of various offices, students of various institutions and colleges and women from various fields of art and creativity.

 The proposed program is designed as under:

 1.      1000 hrs          Inauguration               

2.                              Key note address          

3.      1030-1130       Panel discussions:        Women in past, present and future: hope &

                                                            horizon

Dignitaries on board (proposed panelists)

i.                    Deepa Gahlot, Veteran Journalist

ii.                  Prachi Pathak,  Theatre, TV Acor

iii.                Sudha Arora, Senior Writer & Social Activist

iv.                Menka Shivdasani, Poet and Publisher followed by Open Forum

 

Tea Break

4.      1145-1300       Panel discussions:        Stigma, safety, security, sensitivity towards

                                                            women

Dignitaries on board (proposed panelists)

v.                  Sudarshna Dwivedi, Senior Journalist

vi.                Kanupriya-  Theatre, TV Acor

vii.              Seema Kapoor, Film/TV Director

viii.            Dr. Rashmi Mittal, Dermotologist followed by Open Forum


Lunch Break

5.      1400-1530       Mahila Kavi Sammelan by participating women along with invitee

Women poets, such as, Manisha Lakhe, Menka Shivdasani, Lata Haya, Dipti Mishra, Archana Johri, Neha Sharad, Malti Joshi etc.

 
Tea Break

6.      1545-1700       Women solo Play         “Naurangi Natni” By Vibha Rani

7.      Concluding ceremony and vote of thanks  ###

  AVITOKO

 
AVITOKO is a socio cultural organization. With the philosophy of Rang Jeevan” (Art and theatre for life), it is working with the goal for “a better world tomorrow.” To achieve this goal, it puts its deep root concern with human being, especially, people, are in distress. And thus, AVITOKO serves male and female jail inmates and children of women jail inmates, senior citizens, ‘special’ children along with the main stream people through art, theatre, literature, culture, education and training for. AVITOKO conducts Corporate Behavioral Training programs, Art and Theatre workshops, Week- end theatre classes, Workshops on creative writing, Art of Anchoring, Public Speech, Presentation skills etc. AVITOKO helps school going children educationally.

AVITOKO has created awareness towards solo play presentation and staging solo play around the world. AVITOKO play production has bagged several awards including “The Best Play Production Award” and “Best Female Actor Award” for its play “Aao Tanik Prem Karein” from the Govt. of Maharashtra.  Some of its important plays are  “Aao Tanik Prem Karein”, Life is not a Dream, Balchanda, Main Krishna Krishn Ki, Ek Nayi Menka, Bimb-Pratibimb, Bhikharin, Naurangi Natni, Mutton Masala-Chicken chilli, Manto-Ismat:Dost Dushman.

To give a thrust upon the creativity among the people, AVITOKO is working with a very unique concept “Room Theatre”, where theatre enthusiasts and other genres talents get a platform to express them. AVITOKO organizes conference, seminars, Kavi sammelans, Goshthi on various subjects and organizes art, poetry, play, playwriting competitions. ###

 
AVITOKO’s Last three years Activities

 Year 2012

1.       Educational Support to needy children.

2.       Production of the play “Bhikharin”, (written by Tagore) and had its shows at Mumbai, Delhi, Kolkata, Bihar etc.

3.       Distribution of utility items to needy sector of the society.

4.       Shows of various plays, such as Life is not a Dream, Balchanda, Main Krishna Krishn Ki, Ek Nayi Menka, Bimb-Pratibimb, Bhikharin across the country.

5.       Organised “Sagari Rati Deep Jaray”, a full night story telling program at Chennai.

6.       Participated in various seminars, conferences etc.

7.       Invited by the Embassy of Abu Dhabi and Consulate of Dubai, Govt. of India with its play “Bimb-Pratibimb”.

8.       Invited by Muktibodh, IPTA, Raipur National Theatre Festival with its play  Main Krishna Krishn Ki.

9.       Invited in National Theatre Festival, Bargadh, Odissa with its play Bimb-Pratibimb.

10.   Invited by the Sutradhar Sanstha, Hyderabad National Theatre Festival with its play Main Krishna Krishn Ki

 Year 2013:

1.        Educational Support to needy children.

2.       Production of the play “Naurangi Natni”, and “Aao Tanik Prem Karein” and had its shows at Mumbai, Delhi, Kolkata, Patna, Hisar, Kurukshetra, Allahabad, Gorakhpur, Varanasi etc.

3.       Distribution of utility items to needy sector of the society.

4.       Shows of other various plays, such as Life is not a Dream, Balchanda, Main Krishna Krishn Ki, Ek Nayi Menka, Bimb-Pratibimb, Bhikharin , Naurangi Natni across the country.

5.       Participated in various theatre festivals, such as Kala Ghoda Art Festival.

6.       Invited by the Delhi Govt. with its play “Naurangi Natni”

7.       Invited by the Govt. of Haryana with its play “Aao Tanik Prem Karein”

8.       Invited by Setu Sanstha, Varansi’s National Theatre Festival with its play “Aao Tanik Prem Karein” and Bimb-Pratibimb.

9.       Invited by the Sutradhar Sanstha, Indore’s National Women Solo Theatre Festival with its play Bhikharin.

 Year 2014:

1.       Educational Support to needy children.

2.       Medical support to needy people.

3.       Production of the play “Mutton Masala Chicken Chilli” and had its shows at Ahmed Nagar, Kala Ghoda Art Festival, Mumbai etc.

4.       Distribution of utility items to needy sector of the society.

5.       Shows of other various plays, such as Life is not a Dream, Aao Tanik Prem Karein, Balchanda, Main Krishna Krishn Ki, Ek Nayi Menka, Bimb-Pratibimb, Bhikharin , Naurangi Natni across the country.

6.       Invited by Sutradhar National Theatre Festival, Ajamgadh for the play “Bhikharin.”

7.       Invited by SRM University, Chennai for its national Seminar on Media and Theatre workshop.

8.       Initiation of “Room Theatre” program.

9.       Initiation of  Week-end Theatre Class for theatre learner.

10.    Voice therapy and voice modeling workshops.

11.    Writing skill workshops.

12.    Multi-lingual Mahila Kavi Sammelan.

13.    Story Telling program of young Hindi Writers.

14.    Experimenting theatre program.

15.    Screening of documentary films on Environment. (On the occasion of World Environment Day)

16.   Program dedicated to great Urdu writer “Saadat Hasan Manto”.

17.   Program on Language and Teachers/Mentors. (on the occasion of Hindi/ Teachers Day)

18.    Program on Riyaz (Practice)

19.    Creative Expressions Program for children (On the occasion of Children’s Day)

20.    Program on “Art of Anchoring”.

21.    Meet the Author- Shri Prem janmejay and performance of his satires.

22.   Stage shows of various plays across the country. ###

 
Year 2015:

1.       ‘New year Natrang!” –A creative program covering new year echoh and youthfulness.

2.       “Vasant and Valentine” – Program based on spring and Holi.