सलमान हैदर पाकिस्तान के
“फातिमा जिन्ना महिला विश्वविद्यालय, रावलपिंडी के जेंडर स्टडीज़ विभाग में पढ़ाते हैं।
उर्दू में इनका एक ब्लॉग है जो dawn.com में प्रकाशित होता
है। कवि, व्यंग्यकार, नाट्य लेखक व
रंगमंच अभिनेता हैं। “सियासत @ 8 pm” इनका
लिखा राजनीतिक व्यंग्य नाटक है। “दगाबाज” और “वेटिंग फॉर गोदो” में अभिनय किया है।
सलमान हैदर की कविताओं का तंज़ तिलमिला देने के लिए काफी है। बहरहाल, निदा फाजली की गजल का यह शेर, जिसे उन्होने इन दोनों देशों के हालात को देखकर लिखा है:
“इंसान में हैवान, यहाँ भी हैं वहाँ भी
अल्लाह मेहरबान, यहाँ भी हैं वहाँ भी।“
सलमान हैदर की एक कविता
यहाँ है। इस पर आप लंबी बहस चला सकते हैं, राय दे सकते हैं।
काफिर !
मैं भी काफिर, तू भी काफिर
फूलों की खुशबू भी
काफिर
लफ्जों का जादू भी काफिर
ये भी काफिर, वो भी काफिर
फैज भी और मंटो भी
काफिर
नूरजहाँ का गाना काफिर
मैक्डोनल्ड का खाना
काफिर
बर्गर, कॉफी, कोक
भी काफिर
हँसना बे-दाल-ऐन-ते
काफिर
तबला काफिर, ढोल भी काफिर
प्यार भरे दो बोल भी
काफिर
भांगड़ा, अतन, धमाल
भी काफिर
दादरा, ठुमरी,
भैरवी काफिर
काफी और खयाल भी काफिर
वारिस शाह की पीर भी
काफिर
चाहत के ज़ंजीर भी काफिर
ज़िंदा- मुर्दा पीर भी
काफिर
नज़र नयाज़ की खीर भी
काफिर
बेटे का बस्ता भी काफिर
बेटी की गुड़िया भी
काफिर
हँसना- रोना कुफ़र का
सौदा
गम काफिर, खुशियाँ भी काफिर
जींस भी और गिटार भी
काफिर
टखनों से नीचे लटके तो
अपनी ये शलवार भी काफिर
फन भी औ फनकार भी काफिर
जो मेरी धमकी ना छापे
वो सारे अखबार भी काफिर
यूनिवर्सिटी के अंदर
काफिर
डार्विन भाई का बंदर
काफिर
फ्रायड पढ़ानेवाले काफिर
मार्क्स के सब मतवाले
काफिर
मेले-ठेले कुफ़र का धंधा,
गाजे-बाजे सराय फंदा
मंदिर में तो बुत होता
है
मस्जिद का भी हाल बुरा
है
कुछ मस्जिद के बाहर
काफिर
कुछ मस्जिद के अंदर
काफिर
मुस्लिम मुल्क मे अक्सर
काफिर
काफिर, काफिर , मैं भी काफिर
काफिर, काफिर, तू भी काफिर ! ####
1 comment:
जबरदस्त तंज। मज़हबी और फिरकापरस्त लोगों के लिए इसे हजम करना असम्भव है। आभार आपका इसे पढ़ने का अवसर देनें के लिए।
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