आकस्मिक भय या आकस्मिक घटनाएं परेशान करती हैं, मगर पहले से अनुमानित आशंकाएं साँसों पर पहरा बिठा देती है, मन को बेचैन कर देती है. धड़कन को थाम लेती है.
आखिर फैसला आ गया.छम्मकछल्लो वैसे भी दिमाग से कमजोर है, अक्ल से पैदल है.माननीयों के निर्णय के आगे वह नतमस्तक है. मगर वह अपनी अक्ल का क्या करे? उसकी अक्ल में शुरू से यही बात समाती रही कि अगर कहीं कोइ बाँट बखरा है तो उसे वहीं ख़त्म करो. जगह के बंटवारे का मसला है तो उसे सार्वजनिक कर दो, स्कूल, अस्पताल, पार्क बना दो. इन जगहों पर सभी कोइ समान भाव से आते हैं. आखिर किसी निजी संपत्ति का मसला तो है नहीं.
छम्मकछल्लो ने अपनी मंशा ज़ाहिर की. उसे कहा गया कि ऐसा हो सकता है, मगर होगा नहीं.
छम्मकछल्लो को पता नहीं कि क्या होगा? आप ही बताएं. पागल मन अभी भी डरा हुआ है. ये दिल, ये पागल दिल मेरा!
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3 comments:
बेहतर तो ये की आदमी आदमी बना रहे, मिटटी का बना तो मिटटी में ही मिलना है अंततः ....
आप भी ठन्डी सांसें लें, और इत्मीनान से रहे ...
प्यार-मोहब्बत ज़िन्दाबाद !
फिलहाल तो चैन की साँस लें ..
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