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Wednesday, September 1, 2010

तुम भूल न जाना थूकने को.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. तुम यह मत देखो कि जगह कितनी साफ है, बल्कि यही देखो कि जगह कितनी साफ है और उसे अपने महान थूक से और भी थूकीकृत कर दो.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. तुम यह मत देखो कि तुम्हारे थूकने से जगह गंदी होती है. ये मुंसीपालटीवाले आखिर हैं किसलिए? पगार पाते हैं कि नहीं ये सब के सब हरामखोर? इन्हें रखा किसलिए गया है? साफ सफाई के लिए ना! तो जब हम थूकेंगे नहीं तो जगह गंदी कैसे होगी? जगह गंदी नहीं होगी तो फिर सफाई कैसे होगी? सफाई नहीं होगी तो उनकी नौकरी जस्टीफाई कैसे होगी? जस्टीफाई नहीं होगी, फिर तो छंटनी करनी पड जाएगी ना कामगारों की. और आप तो साहब जानते हैं कि आजकल वैसे ही नौकरी के लाले पडे हुए हैं. ठेकेदार, नौकरीदार सब एक न एक बहाने से लोगों की काम पर से छुट्टी कर रहे हैं. अब तुमने थूकने से भी छुटी कर दी तो इनकी नौकरी चली नहीं जाएगी? इसलिए इनकी नौकरी बचाने के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो ये निकम्मे मुंसीपाल्टीवाले काम नहीं करेंगे. बैठे बैठे खाने से इनकी देह पर धूल जम जम कर बडी बडी तोंद और मोटी मोटी चमडी में बदलती जाएगी. इससे इनकी सेहत पर बडा खतरा आयेगा. आजकल तो इंशुरेंसवाले भी बडी ढीलमढील चलने लगे हैं हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में. तो काम नहीं करने से ये बीमार पडेंगे. ठीक से इंश्योरेंस नहीं हुआ तो घर के पैसे दवा दारू में भस्म होने लगेंगे. दारू तो फिर भी ठीक है, इससे मन को, तन को किक मिलती है, मगर दवा पर पैसे? लाहौल विला कूवत. इसलिए लोगों की सेहत बुलंद रखने के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो लोगों को कैसे पता चलेगा कि हमारे अंदर कितनी बडी बडी ताकतें छुपी हैं. एक ताकत तो थूक कर किसी को बेइज़्ज़त करने की है. लोग मुंह पर थूक देते हैं. एक ताकत शान जताने की है. कई लोग शान से कहते हैं कि वे तो उसके दरवाज़े थूकने भी नहीं जाएंगे. एक ताकत है अपने अहम के प्रदर्शन की. कई लोग कहते हैं कि वे उनकी चीज़ लेंगे? उनके मुंह पर थूक ना देंगे लेने से पहले? भाई लोग बडे बडे तालिबानी रास्ता अपनाते हैं बदला लेने का. देखिए अपने यहां कितना शुद्ध शाकाहारी तरीका है बदला लेने का. ना कोई खून ना कोई कत्ल. बस थूको और बदला ले लो. बदला लेने के इस सस्ते, सुलभ और शाकाहारी तरीके के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो पता कैसे चलेगा कि हमारे मुंह के अंदर ही कितना धन छुपा है. कम्बख्त न जाने कौन कौन से देश हैं जो सडक और सार्वजनिक स्थानों पर थूकनेवाली अपनी जनता पर जुर्माने ठोक देती है. इस हिसाब से तो हम लाखों करोडों का रोजाना थूक देते हैं. सरकार की वित्त व्यवस्था को हमारी इस थूक सम्पदा पर गर्व करना चाहिए और अपने बजट में इस सम्पदा से आय का भी प्रावधान कर देना चाहिए. सरकार की आय बढाने के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो गंदगी नहीं फैलेगी. इससे बीमारियों के कीडे मकोडों पर कितना संकट आ जाएगा? हमारा देश तो अहिंसा का हिमायती है ना? संकट सिर्फ इन कीडों मकोडों पर ही नहीं, इस बहाने से इस देश की चिकित्सा व्यवस्था पर भी मुसीबत आ जाएगी. डॉक्टर, कम्पाउंडर, नर्स, नर्सिंग होम, अस्पताल, दवाइयां सभी के धंधे चलने चहिए कि नहीं? इनके धंधे बंद होंगे तो देश के बेरोजगारी में फिर से कितना इज़ाफा हो जाएगा, लभी सोचा भी है? इसलिए, देश के बीमारों का इलाज करनेवालों को बेरोजगारी से बचाने के लिए और देश मेके कीडों मकोडों की सुरक्षा के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो देश की कई- कई स्वयंसेवी संस्थाओं का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा. ये संस्थाएं, स्वास्थ्य, जनता, गरीब और पता नहीं किन किन मुद्दों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करती रहती हैं. इनसे मुद्दों को वहीं जस का तस बने रहने में मदद मिलती है, मगर संस्थाओं का उन्नयन होता चला जाता है. इन संस्थाओं के ऊन्नयन के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो हमारे देश की थूकने और थूक कर जगह लाल कर देने की सबसे बडी परम्परा का निर्वाह नहीं हो पाएगा. लोग सफेद थूक फेंकते हैं, जिसका कोई रंग नहीं होता. यह फिर दिखता नहीं. इसी दिखने के पीछे तो दुनिया तबाह है. इसलिए अपनी थूक दिखाने के लिए हम पान का इस्तेमाल करते हैं. ‘ये लाल रंग, कभी नहीं छोडेगा. पान की बिक्री भी रोजगार से जुडी हुई है. मेंहदी भी लाल रंग छोडती है, मगर वह यह कभी नहीं कहती कि लाल रंग छोडने के लिए वह घरों, दफ्तरों की दीवारें रंगेगी या सडक को लाल कर देगी. गनीमत है कि ये सिर्फ पान की लाली से सडक को रंगने की बात कर रहे हैं, खून की लाली से नहीं. इसलिए जन कल्याण और जीवन रक्षा के लिए पान खा खा कर हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको.

हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको. कि अगर तुम थूकोगे नहीं तो इस देश के सभी धर्मों के देवताओं को भी रोजगार मिलना बंद हो जाएगा. आपने देखा है ना कि लोगों के थूकने की इस कला से कुछ नासपीटे लोग खब्त खा खा कर घरों, दफ्तरों की दीवारों पर भगवानवाली टाइल्स चिपका देते हैं. यहीं और सिर्फ यहीं पर सर्व धर्म सम भाव दिख जाता है. राम, शिव, साईंबाबा, गुरु नानक देव, सभी, मतलब सभी. अब राम पर थूकोगे तो गुरु नानक देव पर भी छींटा गिरेगा, ईशू मसीह पर थूकोगे तो मक्का मदीना पर भी थूक की फुहारें पडेंगी. इसलिए, कोई किसी पर नहीं थूकता. जगह भी साफ, साम्प्रदायिक सद्भावकी भी स्थापना और देवी देवताओं को रोजगार भी. स्वर्ग में बैठे बैठे अपनी देह पर जंग लगा रहे थे. बिना काम धंधे के इन्हें रोज छप्पन भोग चाहिये. बहुत तंगी का ज़माना है भाई. बच्चे लोग बडे होने तक मा-बाप का खाते हैं, बुढापे में जब उन्हें खिलाने की बात आती है तो वे बोझ हो जाते हैं. मा-बाप ने खिलाया, तब भी बदले में खिलाने के लिए बच्चों के पास पैसे नहीं हैं, और तुम तो भगवान हो. रोज रोज बिना काम के कैसे खिलाएं भाई? इसलिए, भगवान को रोजगार देने के लिए हे इस देश के महान थूकनहारो, तुम थूको और जी भर कर थूको.

इसके बावज़ूद अगर आपमें से कुछ भले मानुसों की मति फिर गई हुई हो और वे थूकने से सकुचा रहे हों तो उनके लिए छम्मकछल्लो का यह स्नेह भरा आमंत्रण है, ठुकराइयेगा मत, प्लीज़!!!!!!!!!

“भेज रही हूं नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हें थुकाने को,

हे मानस के राजहंस, तुम भूल न जाना थूकने को.”

4 comments:

Manish aka Manu Majaal said...

हे माता थुकेश्वरी ! आपके इन प्रवचनों से मुझे परम बोधी की प्राप्ति हुई है तथा थूक के प्रति मेरी असमंजसता का निवारण हो चुका है. मैंने 'थूक महान' की महिमा को पहचाना है, और मैं आपको वचन देता हूँ की थूकने की इस महान परम्परा का मैं अपनी अंतिम साँस तक पालन करूंगा.
आक थू !

Vibha Rani said...

सुखी रहो पुत्र. अपनी महान परम्परा का पालन करते रहो.

आपका अख्तर खान अकेला said...

vhaa bhayi asbhy ogon ko sikh dene kaa achchaa rchnaatmk triqaa nikaala he. akhtar khan akela kota rajsthan

प्रशान्त said...

१ सितंबर का post और मैं तीसरा ही हूं विभाजी. आमंत्रण स्वीकार नहीं किया ज्यादा ’थूकनहारों’ ने. हो सकता है आपके blog का निमंत्रण ज्यादा ’थूकनहारों’तक पहूंचा ही न हो. आप कहें तो इसे दो-चार पान की गुमटीयों पर चिपका आऊँ ?
इसका print मेरे office जरूर पहुँचेगा.

- अफ़सोस की मैं अब इस समारोह में शामिल होने के काबिल न रहा - ठहाके लगाने के बाद गले की थूक को भी निगल बैठा हूँ. क्षमा चाहुंगा.