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Wednesday, August 19, 2009

महिलाओं के अंतर्वस्त्र? राम-राम, तोबा-तोबा!

छम्मक्छल्लो के देश में महिलाओं की बात? राम-राम, तोबा-तोबा!.छम्मक्छल्लो ने देख है कि महिलाओं की बात आते ही लोगों के स्वर अपने -आप धीमे हो जाते हैं. सुर धीमा हो तो वह फुसफुसाहट में बदल जाती है. ऐसा लगाने लगता है, जैसे महिला पर नहीं, किसी गलत, अवैध या गंदी चीज़ पर बात की जा रही हो.
बात करते समय यह अक्सर कह दिया जाता है कि "लेडीज़" हैं, बेचारी. यानी लेडीज़ या स्त्री होना एक पूरी की पूरी बेचारगी का बायस है. फलाने जो हैं, अमुक के पिता हैं, या भाई हैं या पुत्र हैं या पति हैं, मगर इसके उलटा जाते ही आवाज़ के तार धीमे पड़ जाते हैं. अंतिम रिश्ते में तो लोग और भी इतने असहज हो जाते हैं, जैसे कोई बड़ी ही गलत बात कहने जा रहे हों.
ऐसे में महिलाओं के अंतर्वस्त्र पर तो बात भी नहीं की जा सकती. जब महिलायें ही इतने धीमे से बात करने लायक बना दी जाती हैं, तब उनके वस्त्रों और अंतर्वस्त्रों पर बात कैसे की जा सकती है? छम्मक्छल्लो बचपन से देखती आई है कि महिलायें बड़ी सकुचाती सी दूकान में घुसती हैं, खरीदारी करती हैं और नज़रें झुकाये वापस हो लेती हैं. उनकी पूरी कोशिश रहती है कि इन सबकी खरीदारी करते समय कोई उन्हें देख ना ले. लोग क्या कहेंगे? आम तौर पर घरों में नहाने के बाद उनके वस्त्र सूखते हैं तो ऊपर से दूसरे वस्त्रों के भीतर. अगर वे वस्त्र उघर गए तब उन्हें झिड़कियां मिलाती हैं- "ये क्या? ऐसे कैसे खुले में कपडे सुखा रही हो? कुछ शर्म-हया है कि नहीं?" आज तक यह परम्परा जारी है.
मुम्बई में आँगन नहीं होते. कमरे की खिड़कियों पर कपडे सुखाये जाते हैं. अब एक भी कपडा उघडा हुआ सूख जाये तो घर के मरद माणूस कहते नज़र आते हैं कि कैसे सुखाती हो कपडे? नीचे से नज़र जाती है इन पर. इतना खराब लगता है."
पुरुषों के अंतर्वस्त्र सूख रहे हों खुले में तो कोई बात नहीं. वे तो कच्छे-बनियान मैं घूमते भी नज़र आ जाते हैं. छम्मक्छल्लो की बिल्डिंग के सामने एक मोटा सा आदमी रहता है. वह केवल हाफ निकर में रहता है. उसे इस रूप में देखने की इतनी आदत हो गई है कि अब जब कभी वह पूरे कपडे पहन लेता है तो पहचान में ही नही आता. बनियान-लुंगी में रहना तो जैसे जन्मजात अधिकार है. घर में घुसते ही मरद मानूस kurta yaa kamiiz बनियान उतार कर घर में बिंदास घूमते रहते हैं. यह बुरा नहीं लगता. मगर स्त्री? हाय राम!
ये ऊपरवाले ने औरत जात बनाई ही क्यों? मगर छम्मक्छल्लो ऊपरवाले को क्यों दोष दे? ऊपरवाले ने स्त्री को बना कर यह तो नही कह दिया था कि वह इस तरह से सात परेड के भीतर रहेगी, या उसे अपने तन, मन तो छोडिये, अपने वस्त्र और अंतर्वस्त्र पर भी सोचने-बोलाने का अधिकार नहीं रहेगा, उस पर सारी की सारी बंदिशें लगाई जाएंगी, सारे घर की मान-मर्यादा का जिम्मा उसके सर डाल दिया जाएगा. ऊपरवाले ने तो सृष्टि और प्रकृति को नारी के रूप में एक अनुपम रचना दी थी. अब हम बैठ कर उस रचना की गर्दन रटते रहें तो ऊपरवाला क्या कर लेगा? छम्मक्छल्लो यही सोच-सोच कर परेशान हो रही है कि यह स्त्री और उसकी चीजें इतनी शर्मसार करनेवाली क्यों बना दी गई है? आपको कुछ सूझे तो छम्मक्छल्लो को बताएं, वरना आप भी इस राम-राम, तोबा-तोबा के दलदल में एक धेला मार आयें. हम स्त्रियों का क्या है? मुर्दे पर आठ मन लकडी कि बारह मन, इससे उसका क्या लेना-देना!

26 comments:

भगीरथ said...

your write up clearly shows gender
bias,it also shows our prejudices
and our morality linked with fair sex.your write will help inchanging
the attitude towards woman.

gyansindhu.blogspot.com

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का कहना सही है।

श्यामल सुमन said...

बातों ही बातों में छमकछल्लो ने स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर एक सच्चा प्रश्न खड़ा किया है। लेकिन यह भी सच है कि हालात बदले हैं और तेजी से बदल रहे हैं। नारियों में जागरण निरन्तर हो रहा है। अतः छमकछल्लो को ज्यादा चिन्तित होने की जरूरत नहीं।

एक विनम्र आग्रह - हो सके तो रचना को सम्पादित कर लें। जैसे - पिटा - पिता, पद - पड़, आनगन - आँगन इत्यादि और कुछ कुछ। खासकर ब्लीडिंग - बिलडिंग तत्काल कर दें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

jayanti jain said...

your experience is right

रंजन (Ranjan) said...

सही कहा..

डॉ महेश सिन्हा said...

मनुष्य न जाने कब से इतना खतरनाक जीव है जिसने इंसानों के बीच भी भेद पैदा कर दिया

उम्मतें said...

आपको पहले भी पढ़ा है ! आप सही मुद्दे चुनती और लिखती है !

योगेन्द्र मौदगिल said...

सटीक चिंतन....

Himanshu Pandey said...

बिलकुल सही । आभार ।

राजीव तनेजा said...

आपका बेबाकपन से अपनी बात कह जाना अच्छा लगता है

Sanjay Grover said...

Bebak aur Satik.

ज्ञान said...

छम्मक्छल्लो की ब्लीडिंग के सामने एक मोटा सा आदमी रहता है. वह केवल हाफ निकर में ?????????????????????????????????

ज्ञान said...

भाषा सुधार कीजिए। मुद्दे से भटक जाते हैं हमारे जैसे

Ganesh Jee "Bagi" said...

Aurat aur merd mey kuch antar to prakriti ney hi kar dee hai jesko to chamakchallo ko bhi manana hi padega,agar nahi manana cahati to unki marji,wo bhi mardo jaisey baniyan nekal kar nikar mey ghumey.
Akhir sawal barabari ka jo hai.

Unknown said...

you are right and keep it.

tuli said...

main puri tarah sahmat hu aap ke vichar se.main ek 21 saal ki bachelar in mass com ki pass out hu. main bachpan se hi apne aas paas ho rahe bhedbhav pe question karne ki kosis karti hu lekin aaj aapka ye write-up padh ke laga ki itne ander tak hai ye bhed bhav ki hum samajh bhi nahi paate ki hamare saah bhed bhav ho raha hai.

dev said...

i just finished reading the newspaper and i found link to yr blog in the paper,and on front page there was a news about rape of 1 year old baby girl.

in some parts of our country girls are killed as soon as they are born, if they survive that they end up being married at tender age, if they survive that,they have to become habitual of eve teasing and molestation.and when they finally get married they become target of a family for all the things she has done and for things which she has not done.

the worst thing...many woman who have faced the dowry and other problems at time of their marriage, forget the pain and at time of their son's marriage they become a monster(ladke wale) and cause the same pain by asking for dowry or treating the "bahu" in the same manner as she faced earlier.is it revenge??i don understand mentality of such women.

finally i wanna thank u from bottom of my heart for yr blog bcoz yr work will bring improvement to society which i and my sisters belong to.

RAKESH said...
This comment has been removed by the author.
RAKESH said...

विभा रानी , आपको नए लेख के लिए शु भकामनायें / आखिल भारतीय स्तर पर आपने एक ज्वलंत बहस को जन्म दिया है / आम तौर पर भारत में समस्या यही है की हम बातें लम्बी चौड़ी करते है लेकिन जब उसका अनुपालन करने की बात आती है तो स्वयं ही चार कोस पीछे भाग खड़े होते है / आपने स्त्री-अधिकार की बात उठाई है , लेकिन सन्दर्भ नितांत निंदनीय है , पाठको की सहानुभूति बटोरने के लिए जान बुझ कर इस उदहारण का चुनाव किया गया है / क्या आपको लगता है यदि महिलाओ के अंत : वस्त्रो को खुलेआम सुखाने या पुरषों की तरह लुंगी या खुले वस्त्र पहनने से पुरषों का नजरिया बदल जायेगा , समाज में महिलाओ को समान अधिकार मिल जायेगा ? मुझे दुःख है काल आप इसकी भी वकालत करेंगी की महिलाओ को भी सरे- आम पुरषों को छेड़ना चाहिए, आखिर अभी तक तो यह पुरुष का ही विशेषआधिकार रहा है !!!!!!!! महिलाये क्यों पीछे रहेंगी !! समाज में आपके लेख में उठाये गए तर्क इसलिए असंगत है क्यों महिलाओ को आज भी सम्मान , हया और लाज का प्रतीक माना जाता है /
राकेश निखज /

Arun Sinha said...

Ab antahvastra ko to antahpuri mein hi rahne dijiye madam, aise bhi akhbar/patrika/tv/radio sab jagah na jane kaise-kaise ashlil vigyapan aa rahein hain. sorry kuchh jyada likh gaya, maaf kijiye.

Ganesh Jee "Bagi" said...

Aurat aur merd mey kuch antar to prakriti ney hi kar dee hai jesko to chamakchallo ko bhi manana hi padega,agar nahi manana cahati to unki marji,wo bhi mardo jaisey baniyan nekal kar nikar mey ghumey.
Akhir sawal barabari ka jo hai.

Vibha Rani said...

Rock Ji,
Chhammakchhallo isi baat ko lekar to ap sabke pas aai hai ki samma, laaj, hayaa ka pratik naari hi kyon? purush kya ghar ki laj, samman, haya nahi ho sakte? Aur agar nahin, to kisi ko kya adhikar hai ki ve striyon se aisi apekshA rakhe. ghar, samaj, sansar stri-purush dono ke bal par chalata hai. isliye striyon ko ab ghar ki laj, haya, samman vagairah ka labada dena band karen.

डॉ महेश सिन्हा said...

अगर पुरुष शारीरिक भौंडा प्रदर्शन करता है तो स्त्री द्वारा भी ऐसा करना उचित जवाब नहीं होगा . पुरुष भी आखिर किसी का बेटा है अगर माँ उसे सही दिशा दे तो वह ऐसा नहीं करेगा . बचपन में तो माँ अपने बच्चे को नंगा नहलाती है लेकिन जैसे ही बच्चा बड़ा होता है उसमे शर्म और हया का भाव पैदा होता और फिर तो वह माँ के सामने नंगा नहीं हो सकता . इसका कारण अशिक्षा भी है . अशिक्षा स्कूली नहीं बल्कि संस्कारों की.

deepak said...

स्त्री और पुरुष का डार्क एनर्जी अलग अलग होती है और इसको ग्रहण करने वाले न्यूरोन भी अलग अलग होते है स्त्रियों की डार्क एनर्जी का वस्त्रो एवं अन्तःवस्त्रो में "स्थैतिज" पुरषों के सापेक्ष ज्यादा होता है इन दो आधार भूत कारणों के कारण प्रभाव अलग अलग होता है परन्तु वर्त्तमान युग में डार्क एनर्जी की भिन्नता परस्पर कम होती जा रही है इसका परिणाम है की....................

Anonymous said...

aap ka kahna bilkul galat hai

qki estri vo hi hai jisme laj saram ho........................
in do cheejo se estri ka nirmar huaa hai

Anonymous said...

sahi kha aapne