बात लगभग २० साल पुरानी है. विभा रानी मुंबई आई ही आई थी. १९८९ का साल. १९९० में अजय ब्रह्मात्मज भी आ गए. विभा रानी साहित्य लिखती हैं, अजय ब्रह्मात्मज तब साहित्यानुरागी भी थे. मुंबई के वे संघर्ष के दिन थे. विभा रानी दफ्तर के अलावा लेखन में संघर्ष कर रही थी, अजय ब्रह्मात्मज पत्रकारिता में. तब साहित्य से इतना वैर न हुआ था. साहित्यिक कार्यक्रमों की वे शोभा में वे चार चाँद लगा दिया करते थे.
पहल पत्रिकाऔर उसके सम्पादक ज्ञानरंजन जी. विभा रानी उन दोनों को बहुत सम्मान देती रही है, अजय ब्रह्मात्मज भी. विभा रानी ज्ञानरंजन जी को पात्र लिखा करती थी, अजय ब्रह्मात्मज भी . ज्ञानरंजन जी विभा रानी के पत्रों के उत्तर भी देते थे और अजय ब्रह्मात्मज के भी. विभा रानी तो उनके पात्र पा कर गदगद हो जाया करती थी, अजय ब्रह्मात्मज दुनिया के उन चाँद शख्सियतों में से हैं, जिन्हें लोग पात्र लिखा करते हैं. लोग उनसे संपर्क साधते हैं. यह पता तब चला जब एक पात्र में विभा रानी को ज्ञ्नारंजन जी ने लिखा-" आपके पड़ोस में अजय ब्रह्मात्मज जी रहते हैं. मैंने उन्हें कई पात्र लिखे हैं, मगर वे मेरे पत्रों के जवाब नहीं दे रहे. आप उनसे कहें कि वे मेरे पत्रों के जवाब दें." विभा रानी ने लिखा- "अजय ब्रह्मात्मज जी मेरे पड़ोस में नहीं, मेरे घर में रहते हैं और मेरे पति कहलाते हैं." द्न्यन्रंजन जी का छूटते ही दूसरा पात्र आया- "मैं अपनी मूर्खता पर बड़ी देर तक हंसता रहा. दरअसल, मैंने केवल लोखंडवाला याद रखा, घर का नंबर नहीं. पर चलिए, इसी बहाने आप दोनों के रिश्ते का पता तो चल गया."
विभा रानी व् अजय ब्रह्मात्मज - मुम्बई में भी बहुत दिनों तक लोग अँधेरे में रहे. कई बार किसी समारोह में साथ-साथ देख कर लोग थोडा सोचते, फिर किसी से फुस्फुसाक आर पूछते और फिर तस्दीक हो जाने पर विभा रानी या अजय ब्रह्मात्मज से कहते-"अरे, आपने यह बताया ही नहीं कि आप दोनों क्या हैं?"
तब से प्रश्न का यह ब्रह्म राक्षस विभा रानी और अजय ब्रह्मात्मज के पीछे पडा है. अजय ब्रह्मात्मज के कितने पीछे है, यह तो पता नहीं, मगर विभा रानी के पीछे तो अभी तक यह पडा है. इस ब्रह्म राक्षस की यह खासियत है कि वह आमने-सामने कोई सवाल नहीं करता. सीधे-सीधे नहीं पूछता, बल्कि लक्षणा -व्यंजना के माध्यम से सवाल आते रहते हैं. किसी को अजय ब्रह्मात्मज से कोई काम है और वह विभा रानी को जानता है तो वह सबसे पहले यह पूछेगा कि "क्या आप अजय ब्रह्मात्मज को जानती हैं?" विभा रानी पहले सहज मासूमियत में, कि शायद उन्हें उनके बारे में पता ना हो, झट से सचसच बता देती थी. मगर एक दिन अचानक विभा रानी के ज्ञ्नान चक्षु खुले, जब एक दिन उसकी एक मित्र ने पहले विभा रानी से अजय ब्रह्मात्मज के बारे में पूछ कर फिर बाद में कहा कि उसे पता था कि तुम दोनों क्या हो?" उसके कहने से ऐसा लग रहा था जैसे उसे पता हो कि वे दोनों चोर-उचक्के, भगोडे, गुंडे-बदमाश हों. इतना होने के बाद विभा रानी कीमित्र ने अपनी बात-चीत काम उद्देश्य बताया.
अभी हाल में ही एक और मित्र ने यही सवाल किया. विभा रानी ने पूछा कि आप सीधे-सीधे सवाल करें कि आप क्या जानना चाहते हैं? मित्र ने बताया कि कैसे मैं एक महिला से किसी पुरुष के बारे में यह पूछ लूं कि वह कहीं उसका पति तो नहीं?" विभा रानी ने कहा कि "इसमें असमंजस क्या है? अगर रिश्ता नहीं हुआ तो महिला नकार देगी, हुआ तो स्वीकार कर लेगी." पति-पत्नी का रिश्ता कोई नाजायज तो नहीं कि किसी को कहने में कोई दुविधा हो. मगर पूछानेवालों को होती है. माँ-बाप के, भाई-बहनों के, बेटे-बेटी के रिश्ते पूछने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होती, मगर पति-पत्नी के रिश्ते पूछने में लोगों की जान पता नहीं क्यों कहीं खिसकाने लगाती हैं. आखिर ऐसा क्या है इस रिशेते में? सिर्फ एकाधिकार की ही बात ना? कि सारी दुनिया सारी दुनिया को माँ-बाप, भाई-बहन, बेटी-बेटा कहती रहे तो कुछ नहीं, बल्कि सब स्वीकार्य, मगर कोई किसी को किसी की पत्नी बोल दे, गलत या सही, तो भूचाल? धन्य है प्रभु! प्रभु तेरी लीला अपरमपार.
वैसे अब बता दें, पूरे होशो-हवास में कि विभा रानी व् अजय ब्रह्मात्मज पिछले २६ साल से पति-पत्नी हैं और अभी तक हैं. आगे का भगवान मालिक या वे दोनों खुद ही. अब आप सबसे मेहरबानी है कि यह सवाल पूछ-पुछा कर विभा रानी व अजय ब्रह्मात्मज को बोर ना करें. वैसे भी २६ साल से एक ही रिश्ता बताते- बताते मन बोर हो चला है. अब बार-बार वही सवाल कुछ नया नहीं पैदा करता है. इस ब्लॉग पर यह एक पूरा लेख इसी बोरियत को मिटाने के लिए लिखा गया है कि बस, और नहीं, बस और नहीं, गम के प्याले और नहीं, दिल में जगह नहीं बाक़ी, रोक नज़र अपनी साकी." फिर भी नही मानेंगे तो विभा रानी -अजय ब्रह्मात्मज लिख-लिख कर यह कहते रहेंगे. अब आप अगर बोर नहीं होना चाहते तो बस, आप अब मत पूछियेगा. पूरे होशो-हवास में और गीता, कुरान, बाइबिल, गुरु ग्रन्थ साहब और अन्य जितने भी धार्मिक ग्रत्न होते हों, जिन्हें छू कर कसम खाई जाती है, उसी को छू कर यह कसम खाई जा रही है कि विभा रानी अजय ब्रह्मात्मज वाकई पति-पत्नी हैं. और हाँ, आप सबसे यह गुजारिश कि यह सवाल सीधे-सीधे पूछ लिया करें. उन दोनों से ही नहीं, किसी से भी. यकीन रखें, कोई भी भड़केगा नहीं, अगर उसे आपके सवाल में ईमादारी दिखती है. यह लेख इसी के लिए . बोर करने के लिए माफ़ी. मगर पढाई और परीक्षा अच्छी थोड़े ना लगती है.
7 comments:
अच्छा है...अब अगर कोई इस सवाल को पूछे तो आप उसे इस पोस्ट का लिंक दे दिया करें
दिलचस्प!
वाकई दिलचस्प ..!! उनके रिश्ते को किसी की नजर ना लगे ...!!
हा हा हा... अब चवन्नी चैप से आग्रह करना पड़ेगा कि वे छम्मकछल्लो से हिन्दी टॉकीज संस्मरण लिखवा कर छापें. वो भी बड़ा दिलचस्प होगा...
96 में जब मुंबई आई तो शुरूआत में ये सवाल हमारे ज़ेहन में भी आया होगा । लेकिन जल्दी ही मामला साफ़ हो गया । अजय जी को तो हम तब से पढ़ रहे हैं जब वो चीन-विशेषज्ञ कहलाते थे । और सारिका में धड़ाधड़ थे ।
main to jab bhi apni hum-umra behen k sath kahin nikalta hun to log ghur ghur kar dekhte hain, meri bechari behen to scooter pe baith bhi nahi pati thik se aur hamesha jeans pehen kar ghumne wali meri behen salwar suit pehn leti hai mere sath kahi jate huye,ye soch kar ki kahin usne mere kandhe ka sahara scooter pe chadhte waqt liya ya modern kapde pehen liye to sab hamare rishte ko galat samjh lenge...mansikta hi aisi ho gayi hai.hamesha isi firaak mein rehte hain ki koi khubsurat ladki pat jaye jise insaan nahi balki manoranjan ka jariya bana kar rakhenge, aur gar khud aisi mahla mitra nahi bana pate to dosro k baare mein aisa sochte rehte hain.phir chahe koi apni behen,bhabhi ya dost ke sath ja raha ho,sidhe sidhe maan lete hain ki girlfriend ko ghuma raha hai.lekin puchhne ki himmat nahi karte.
bhai kaise bhi kapde pehen sakta hai aur chahe to shirt ki button khuli rakh kar bhi ghum sakta hai lekin behna ke kapde to shareer dhak lene wale hone chahiye.
हम तो आप दोनों को अलग-अलग पहचान को लेकर जानते हैं। शायद घर आने पर साथ-साथ होने का ख्याल आए।
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