दो माह पहले मैं मुंबई से दिल्ली जा रही थी राजधानी से। यह वह समय था जब राजस्थान गुर्जर आन्दोलन से जल रहा था । उस लाइन की सभी ट्रेनें या तो रद्द थीं, या रूट बदलकर जा रही थीं। एक बुजुर्ग मराठी सज्जन भी दिल्ली जा रहे थे। कुछ विशुद्ध बिहारी, जो इस व्यवस्था में भी लालू की कमी निकाल रहे थे, उन्हें कोस रहे थे, जैसे गुर्जर आन्दोलन का सारा श्रेय उन्हें ही जाता हो। उनका टिकट वेटिंग पर था। राजधानी में वेटिंग पर कोई यात्रा नहीं कर सकता, मगर समय की नजाकत को देखते हुए इसकी इजाज़त दी गई थी। पहले तो वे सज्जन टीटी से बर्थ को लेकर खूब लड़े, फ़िर उन्हें दिल्ली में पहुंचकर उसे देख लेने की धमकी दी गई। बाद में बर्थ मिल जाने पर उन्हें अपने जीवन का ज्यों नया "बर्थ" मिल गया। अब वे पैर फैलाकर आराम से पसरकर लगे बिहार और बिहारियोम को कोसने। उन मराठी सज्जन ने कहा कि "मैंने तो बिहार की काफी तारीफ़ सुनी है।" बिहारी सज्जन ने तुनकते हुए कहा, "आपसे किस (बेवकूफ) ने कह दिया।" फ़िर वे बोले, "मैं लालू के इलाके का हूँ। और मैं जानता हूँ कि लालू ने किस कदर बिहार को मटियामेट कर दिया। " बुजुर्ग ने कहा कि उनके कारण तो रेल के किराए में भी कटौती आई है, गरीब रथ जैसी ट्रेने खुली हैं, रेलवे प्रौफिट में हैं। "बिहारी सज्जन गीता का ज्ञान दे रहे कृष्ण की तरह मुस्काए और उसके बाद लालू क्या हैं, कैसे हैं, यह सब लेकर उनका ज्ञान वर्धन कराने लगे। इन सबका लब्बो- लुबाब यह कि आपने अगर बिहार के बारे मैं कुछ अच्छा सुन भी लिया है तो आप या बिहार इस काबिल नहीं। बुजुर्ग ने बताया कि मेरा बेटा जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता है, वहाँ बिहारी बच्ची भी हैं। मेरा बेटा उनसे सुअकर मुझे बता रहा था। सुनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, पर अब आप कह रहे हैं की ऐसा कुछ भी नहीं है।
बिचारे वे बिहारी छात्र , जो बिहार की छवि अपने तरीके से सही रूप में दिखाना चाहते थे, उनकी कम अकली पर आप भी रोइए। क्यों वे बिहार को बाद से साद मुं पहुंचाना चाह रहे हैं? एक गाना हैं ना की 'कोई दुश्मन घाव लगाए तो मीत जिया बहलाए, मनमीत जो घाव लगाए, उसे कौन बचाए।'
बिहारी ग्रुप के पुष्पक पुष्प का आक्रोश, दुःख मीडिया के प्रति है। भाई मेरे, हम सभी मीडिया हैं, अपने अपने स्टार पर। किसी की भी छवि को संवारने या बिगाड़ने का काम और दायित्व हमारा भी होता है। जबतक सभी बिहारी इस बात को नहीं समझेंगे, अपने बिहारी और भारतीय होने का गौरव अपने भीतर नहीं भरेंगे, तबतक सभी बिहारी इस तरह के भेद-भाव का शिकार होते ही रहेंगे। पहले तो अपने लोगों को यह कहना - समझना सिखाएं कि बिहार का मतलब केवल लालू नहीं है
3 comments:
Aapaki baat se sahamat hoo.
Vase ab dhire-dhire sudhar aane lagaa hai, vishvas rakhie aane vale 5-7 salon me chavi badalegi.
-09868419453
आप के लेख से हम सहमत हे, हम लोग यहां( जर्मन)जब भी इकट्टे होते हे किसी पार्टी पर उत्सव पर ( चाहे कोई पजाबी हो या बिहारी बस भारतीया हो)यानि सिर्फ़ भारतीया, तो हम अपने देश की हालत पर, राज नीति पर भी बात करते हे, ओर दुख भी जाहिर करते हे, बातो मे अपने देश की खराब बाते भी होती हे, ओर जब कभी कोई गोरा हमे भारत के बारे थोडी सी भी बुराई कर दे तो हम से सहन नही होती, लगता हे हमे गाली दे दी, इस लिये जब तक दिल मे प्यार नही आता, अपना पन नही आता, तब तक हमे सिर्फ़ बुराईया ही दि्खेगी,पहले प्यार पेदा करो देश के लिये प्र्देश के लिये बाकी बाते बाद मे.
धन्यवाद
'कोई दुश्मन घाव लगाए तो मीत जिया बहलाए, मनमीत जो घाव लगाए, उसे कौन बचाए।'
--बिल्कुल सही..आपसे सहमत.
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