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Wednesday, May 21, 2008

फर्क विकसित और विकासशील देशों का

एक कार्यक्रम में थी छाम्माक्छाल्लो थी - इ-लर्निंग, distant learning and Cross Knowledge पर। फ्रांस के एक प्रेजेंतर अपना प्रेजेंटेशन देनेवाले थे। किन्ही तकनीकी कारणों से उनका प्रेजेंटेशन न हो सका। काफी देर वे इस प्रयास में रहे कि प्रेजेंटेशन ठीक हो जाए और वे अपनी बात कह सकें। मगर उसे आज ठीक न होना था, न हुआ। और इसके अभाव में वे एक लाइन भी अपने प्रोजेक्ट के बारे में न बोल सके। केवल इधर-उधर की बातें करते रहे। एकाध सवाल पूछे जाने पर भी वे उसका समुचित उत्तर न दे सके। अंत में वे बैरंग वापस चले गए।
यही वाक़या कल छाम्माक्छाल्लो और उसके अन्य सहयोगियों के साथ हुआ।देश भर के लोग जमा थे। सभी अपना अपना प्रेजेंटेशन इ-मेल के माध्यम से भेज चुके थे। बावजूद इसके, सभी अपने साथ पेन ड्राइव व सी दी लेकर आए थे। कल भी पी सी में कुछ खराबी होने के कारण सेव किया प्रेजेंटेशन नहीं दिखाया जा सका। अंत में सभी की सी दी व पेन-ड्राइव काम आए। वह भी नहीं चलता तो लिखित डाटा व अपने दिमाग में स्टोर किए डाटा से काम चलाया जाता। हमें कल लगा था कि हिन्दी (अभी भी) के कारण यह तकनीकी बाधा है। मगर आज वह भ्रम दूर हो गया था।
छाम्माक्छाल्लो के सामने यह फर्क साफ हुआ कि विकासशील देश अपनी सुविधाओं और तकनीक पर इतने निर्भर और आश्वस्त रहते हैं कि इस तरह की अवांछित स्थिति आ सकती है, ऐसा वे सोच ही नही पाते, जबकि हम जैसे विकासशील देश के लोग हर तरह की आशंकाओं से जूझते हुए पलते-बढ़ते हैं, इसलिए हर स्थिति केलिए तैयार रहते हैं। और सबसे बड़ी बात कि दिमाग से खाली नहीं होते। जिसपर बात करनी है, उसपर पूरी तरह से मानसिक तैयारी रहती है। अपने लक्ष्य को पाने की हर कोशिश करते हैं। छाम्माक्छाल्लो को लगा कि आज यह स्थिति हमारे किसी भी व्यक्ति, अधिकारी के साथ होती तो वह अपने प्रेजेंस ऑफ माइंड से बगैर पावर प्वायंत प्रेजेंटेशन के भी एक सुंदर प्रस्तुति दे सकता था। यह अपने काम के प्रति की जिजीविषा है। अपने को प्रस्तुत कराने की लगन है। वह इस तरह तो बैरंग नहीं ही लौटता।

4 comments:

हर्ष प्रसाद said...
This comment has been removed by the author.
हर्ष प्रसाद said...

Para three. First 'vikaas sheel' should have been 'viksit', as you have said in the title.

Swapnil said...
This comment has been removed by the author.
Swapnil said...

I would suggest to exercise restraint on generalizing something which is one-off.

I have met and seen lots of people from West who do not need any technical support, while speaking on their respective topics.

It may have been that this particular person from 'West' was a lethargic fellow who just copied-pasted stuff from here and there, and made it into a presentation to somehow pass an hour reading from his own slides.

We must refrain from self-appreciation at every little opportunity, especially against the West.

Another view-point into it is - This person from West has a habit of seeing systems which are completely reliable. So, while he is a lazy bum, we may want to put our hats off to the system managers of the West who are so good that their systems are reliable always.

Cheers!

Swapnil