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Wednesday, May 7, 2008

क्या हम सचमुच देश प्रेमी हैं?

जुस्सी- फिनलैंड के हेलसिंकी विश्व विद्यालय में हिन्दी का छात्र, लगभग ८० % दृष्ठीनता का शिकार। भारतीय दर्शन व कला, संस्कृति ने उसे हिन्दी पढ़ने की और भेजा। पिछले साल फिनलैंड में मेरी उसके साथ मुलाक़ात हुई थी। हिन्दी ब्रेल की तलाश में वह यहाँ आया है-पत्नी एवा के साथ। मुंबई आने के पहले ही उसका मेल आ गया था। यहाँ आते ही फोन। मिलाने का समय तय हुआ, दोनों आए। सहारे पर मिलाने की खुशी। मगर आते ही अपने अनुभव बयान किए, उससे सदमा लगा। मोबाइल फोन के बहाने किसी दुकानदार ने उन्हें धोखा दिया और जब एवा उनके यहाँ नेट पर काम कर रही थी, उसने अपना पर्स दुकानदार की डेस्क पर रखा था। उम्मीद तो रही ही हिगी कि सब कुछ ठीक रहेगा। पर, दूसरे दिन जब उसने अपना पर्स खोला तो उसने पाया कि उसमें से उसके २०० यूरो गायब हैं। वे पुलिस के पास गए तो उस इलाके की पुलिस ने उन्हें संबंधित पुलिस स्टेशन जाने को कहा। वे पेशोपेश में थे। मुझसे पूछा। बाद में उनकी भी राय बनी कि पैसे तो वापस मिलाने नहीं तो क्यों इस झंझट में पड़ा जाए।

एवा और जुस्सी की बात ने मुझे इस देश का वासी होने के कारन आहात किया। उनके यहाँ कोरी या इस तरह की वारदातें नहीं होतीं। सुखी, संपन्न देश। मगर हम अपने यहाँ आए मेहमानों को थागेम, उनके साथ धोखाधडी करें तो वे क्या इमेज लेकर जायेंगे हमारे देश किहोना तो यह छाहिये कि ऐसा व्यवहार दें कि वे तो ख़ुद आयें ही, साथ-साथ दूसरों को भी ले कर आयें। पर्यटन को बढावा मिलेगा, देश के खजाने में पैसा आयेगा। इसके लिए हमें कुछ भी अपने जेब से खर्च नहीं करना पडेगा। सिर्फ़ अपने आचरण, आदत मं थोडा बदलाव लाना होगा।

एवा ने यह भी बताया कि यह एक हादसा भले उनके साथ हो गया, मगर यहाँ आकर वे बेहद खुश हैं। उन्हें यहाँ कि सबसे अच्छी बात लगी - लोगों के चेहरों पर खुशी देख कर। हर उम्र, तबके के लोग दिल से ह्नासते हैं। इसका कारण उसने जानना चाहा। इस देश कि संस्कृति- धीरज, संतोष, आशावादिता कि, परिवार और रिश्तों कि मज़बूती कि, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमें प्रभावित करते हैं। उसने इस बात को महसूस किया कि यहाँ पर साथ रहने और अब ७ साल के बाद शादी कराने कू लेकर लोग तनिक चौंकते हैं।

जुस्सी हिन्दी कि ब्रेल सीखा कर हिन्दी ब्रेल में किताब पढ़ना चाहता है। वह हिन्दी बोल लेता है। इसका उसे फायदा मिल रहा है। कहता है- " यह मेरे लिए बहुत सुविधा जनक हो गया कि मुझे हिन्दी आती है। यहाँ बहुत से लोग ऐसे हैं जो अंग्रेजी नहीं जानते, नहीं बोलते।" वह यहाँ के नेशनल असोसिएअशन् फॉर ब्लाइंड गया, जहाँ से लौट कर उसने खुशी महसूस कि। फिनलैंड में मैंने पाया कि लोग भारत के ओप्रती बेहद आकर्षण महसूस करते हैं। यही आकर्षण लाहौर में भी महसूस किया। यहाँ के लिए आज का सबसे बड़ा आकर्षण यहाम कि हिन्दी फिल्में हैं, जिन्हें वे बॉलीवुड फ़िल्म कहते हैं। वहां इन फिल्मों के गीतों कि धुनों पर पागालूँ कि तरह नाचते हुए लोगों को देखा। जुस्सी भी यहाँ कि फिल्मों का आनंद लेना चाहता है, यहाँ कि ढेर सारी बातें जानना चाहता है। हर सैलानी के मन में यह भाव रहता है, मगर, जब उसके साथ धोखा वह अन्य ग़लत हराक़तेम होती हैं तो केवल हमारा नहीं, देश का सर नीचा होता है। क्या हम इअताने लापरवाह या अपने कर्तव्य बोध से रहित हो गए हैं कि देश और देश प्रेम जैसी कोई बात ही ना रह जाए चाँद पैसों के आगे। तो फ़िर काहे को हम देश भक्त यार। काहे को गर्व क्कारें अपनी भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य, धरोहर, मूल्यों, आचारों, विचारों पर?

2 comments:

निशान्त said...

मैं करीब १ साल फिनलैंड में था. और वहाँ की सबसे बड़ी आपराधिक ख़बर जो हेलसिंकी सनोमात (वहाँ की टाईम्स ऑफ़ इंडिया) में आई थी - एक आगजनी की और दूसरी एक दूकान का शीशा किसी ने रात में फोड़ दिया है. भारतीयों के लिए फिनलैंड में एक अलग जगह है. इसे आप ट्राम में या बस में फील कर सकते हैं. नुक्कड़ पर आपको एक इंडियन रेस्तारा मिल जाएगा. मेरे साथ तो कोई घटना नहीं हुई पर एक दोस्त का एक ही पर्स ३ बार गुम हुआ और तीनो बार मिल गया.

Udan Tashtari said...

सहमत हूँ आपसे. देश की नाक कटती है ऐसी हरकतों से और देशवासियों की भी.