क्या खूब जवाब था एक बेटी का, जब उससे पूछा गया कि तुम्हारी दुनिया कहाँ पर शुरू होती और कहाँ पर खत्म?
तो बेटी का जवाब था-
"माँ की कोख से शुरू होकर
पिता के चरणों से गुजरकर
पति की खुशियों की गलियों से गुजरकर
बच्चों के सपनों को पूरा करने तक ख़त्म!"
(यानि बेटी की अपनी महत्वाकांक्षा कुछ भी नहीं?)
इसे छम्मकछल्लो उलट दे रही है। अब तनिक पढ़िए-
क्या खूब जवाब था एक बेटे का, जब उससे पूछा गया कि तुम्हारी दुनिया कहाँ पर शुरू होती और कहाँ पर खत्म?
तो बेटे का जवाब था-
"माँ की कोख से शुरू होकर
पिता के चरणों से गुजरकर
पत्नी की खुशियों की गलियों से गुजरकर
बच्चों के सपनों को पूरा करने तक ख़त्म!"
(यानि बेटे की अपनी महत्वाकांक्षा कुछ भी नहीं?)
क्या आपको लगता है कि कोई बेटा ऐसा सोचेगा? अगर नहीं तो बेटियों के लिए ऐसी सोच और ऐसी पोस्ट क्यों? ###
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