इस पितृ पक्ष पर
हे मेरे सभी पितर!
मेरा नमन आप सभी को,
मेरे दादा, जिनको कभी लाठी की टेक नही दी मैंने
लड़खड़कर जब वे गिरते,
मैं बाउजी से कहता, ये बुड्ढे लोग जल्दी मरते क्यों नही?
दादी, जिसके हुक्के की बदबूदार नली
और उसकी गुड़गुड़ी से मैं बेचैन हो उसे गरियाने लगता,
हुक्के की पीनी भी मैं फेक आया करता
पिछवाड़े की गलियों में।
एक ही बार मुझे खुशी हुई थी दादा-दादी से,
मरते वक्त दादा ने अपनी सारी पूंजी
मेरी पढ़ाई के लिए दे दी थी
दादी भी तकिये में सिल कर रखे गए रुपये पर
मेरा नाम लिख गई थी।
मेरे बाउजी,
खुश हुआ था मैं
उनके असमय टीबी से मर जाने पर
बीबी को पहली बार दारू पिलाई थी,
जिस दिन उनकी सारी संपत्ति मेरे हवाले हो गई थी।
मेरी माँ, जिनका जीवन बाउजी के बाद कटा था
मेरे आँखों की धधक सहते,
मेरी बीबी की पुरानी साड़ी पहनते।
मेरी बीबी बड़ी होनहार और कुशल है।
जीते जी उसने ढेर सारी संपत्ति सहेज कर रख दी
माँ को टूटे चावल का भात खिला कर
उसकी दर्द से टटाती टांग पर मालिश के लिए
हफ्ते में एक बार तेल दे कर
बाल धोने के लिए
सोडा या कपड़े धोनेवाला साबुन देकर।
हमने अँग्रेजी बैंड के साथ शवयात्रा निकलवाई थी
सभी की,
आस-पास के कई गांवों को न्यौता था श्राद्ध भोज में
खूब किया था दान, खूब दी थी दक्षिणा।
लगातार, बिना नागा,
हर साल करता हूँ, पितर दान
हर साल विनती करता हूँ उनसे,
बनाए रखें अपनी छाया हमारे सर-माथे।
वे पितर हैं, उनका वहीं स्थान है उन्हें शोभता,
जहां हमने उन्हें पहुंचाया है।
न पहुंचता तो कैसे करता पितृ पक्ष पर पितरों को दान! ###
4 comments:
हमेशा की तरह एक ही बात दिमाग आई " वाह विभा दी , आपका जवाब नहीं." तमाचा इतनी ज़ोर का . असर कर जाए तो दुनिया सुधर जाये.:-)
बहुत बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
बस लोग आगे की नहीं सोचते .... कभी बेटा भी यही कहेगा ...
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