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Wednesday, July 11, 2012

मेरे पापा!

मेरे पापा,
मैं आपकी आफरीन, फ़लक, रचना, पूजा, आमना, नाजनीन! आप मुझे अपना न मानें, मगर मैं आपको अपना ही समझती हूँ। कितना बड़ा सहारा होते हैं आप हमारे लिए- बरगद के पेड़ की तरह। सुना है कि बरगद अपने नीचे किसी को फलने-फूलने नहीं देता। यह भी सुना है कि बरगद अपनी जड़ें अपनी डालियों से ही फैलाता-बढ़ाता चलता है। हम तो आपकी ही जड़ें हैं न पापा? लोग कहते हैं कि जब जान दे नहीं सकते तो लेने का कोई अधिकार नहीं। यह शायद गैरों के लिए होता होगा! आप तो हमारे अपने हैं, शायद इसीलिए सोचा होगा कि जान देनेवाले आप, तो उसे ले लेने का पूरा अधिकार भी आपका।

लेकिन मेरी समझ में नहीं आया पापा कि आपने हमारी जान क्यों ली? मैं इतनी नन्हीं! आँखें तक खोलना नहीं आया था मुझे। आपको पहचानना भी नहीं। आप तो साइंस को जानते -मानते होंगे पापा। बाकी में भले न मानें, इलाज- बीमारी में तो मानना ही पड़ता है। तो आप यह भी जानते होंगे कि किसी बच्चे का जन्म भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया ही है। विज्ञान ने साबित कर दिया है कि हम बेटियों का जन्म आपके ही एक्स-एक्स से होता है। अब जब आपने ही हमें एक्स-वाई नहीं दिया तो हम खुद से अपने एक्स को वाई में कैसे बदल लेते? काश, साइंस इतनी तरक्की कर गया होता कि आप खुद ही मेरी माँ को एक्स-वाई दे देते या मैं ही उसे एक्स-वाई में तब्दील कर के आपकी बेटी के बदले बेटा बनकर जनमती और आपकी मुराद पूरी कर देती।  

बताइये पापा कि जब आपको ही नहीं मालूम कि आप अपने अंश से क्या रचनेवाले हैं तो उसका खामियाजा हमारे मत्थे क्यो? बताइये पापा कि हम किसलिए आपकी नाराजगी सहें? क्या इसलिए कि आप हमारे पापा हैं, हमसे अधिक ताकतवर हैं, हमारे पालनहार हैं? यदि आप सचमुच ही हमारे पापा और पालनहार हैं, तो कोई भी बाप इतना निर्दय नहीं हो सकता कि वह अपनी ही संतान को माँर डाले और ना ही कोई माली इतना मूर्ख कि अपने ही लगाए पौधे कि जड़ों में मट्ठा डाले!

शायद आप ताकतवर हैं। दुनिया के आगे भले ना हो, हमारे लिए हैं। भूल गए पापा कि सभी धर्म अपने से कमजोर की रक्षा करने को कहता है। आप सब तो धर्म के बड़े- बड़े पैरोकार हैं। इतनी छोटी बात भूल गए? भूलना ही था। धर्म और मजहब या तो उचारने के लिए है या हम निरीहों को उससे बांधने के लिए।  सभी ताकतवर अपने से कमजोर को दबाकर- कुचलकर चलते हैं। सीधी जबान में कहूँ तो अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। माफ कीजिएगा पापा ऐसी तुलना के लिए। लेकिन मैं भी क्या करूँ? कभी हमारा लिंग जानकार पेट में ही हमें मार देते हैं, तो कभी तमाचे और जलती सिगरेट हम पर छोड़ देते हैं। बताइये पापा, क्या आपके मर्दाना थप्पड़ को सहने की ताकत हम आसन्न जन्मी जान में है? सोचिएगा पापा! हम तो विदा ले रही हैं, ले चुकी है, लेती रहेंगी। मगर बेटियाँ और भी आएंगी। आपके ही एक्स- एक्स से आएंगी। पहले अपनी कमजोरी पहचानिए पापा! फिर अपनी ताकत हम पर आजमाइए। 

2 comments:

Pallavi saxena said...

काश आपकी लिखी एक एक बात सभी के पापा समझ पाते... मार्मिक प्रस्तुति।

Piyush Arun Sinha said...

Awesome Post :)