जज साब, मैं प्रियदर्शिनी मट्टू। अभी आपके जेहन से निकली नहीं होऊंगी। अभी अभी तो आपने मेरी तकदीर का निपटारा किया है। जज साब, कानून के प्रति मेरी आस्था थी, तभी तो उसकी पढ़ाई कर रही थी। चाहा था कि कानून पढ कर मैं भी लोगों को न्याय दिलाने में अपनी व्यवस्था को सहयोग दूंगी। मेरी अगाध भक्ति और श्रद्धा इस देश पर, इस देश के कानून पर, इस देश के प्रजातांत्रिक स्वरूप पर और इस देश की न्याय व्यवस्था पर है।
लेकिन अपनी तकदीर को ही दोष दूंगी जज साब कि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। इंसान के साथ जब कुछ उसके हिसाब का नहीं हो पाता, तब वह अंतत: अपनी तकदीर को दोष दे कर चुप बैठ जाता है। मैं भी ऐसा ही कर रही हूं।
नहीं पता जज साब कि किसी केस का “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” क्या होता है? शायद किसी काम को कोई बहुत ही क्रूर तरीके से अंजाम देना। शायद इसीलिए रेप जैसे मामले में भी “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की संकल्पना कर ली गयी। जज साब, क्या आपको लगता नहीं कि रेप अपने आप में “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” है? एक ऐसा कर्म, जिसमें तन से ज्यादा मन आहत होता है, जिसकी भरपाई उम्र भर मुमकिन नहीं? मैं तो यह भी मान लेती हूं कि किसी के हाथ से खून अनजाने में हो सकता है, मगर किसी के द्वारा रेप अनजाने में किया गया हो, जज साब, मेरी छोटी सी बुद्धि में नहीं आयी आजतक यह बात। फिर, जो अपराध जान-बूझ कर किया गया हो, वह “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में कैसे नहीं आया साब?
क्या मेरा या मुझ जैसी हजारों अभागनों का मामला तभी “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” माना जाएगा, जब वह दरिंदगी की सारी हदें पार कर दे? मेरे या मुझ जैसियों के अंग-प्रत्यंग काट कर अलग अलग बिखेर दिये जाते, उन्हें पका कर किसी पार्टी में परोस दिया जाता, हमारे एक एक अंग की भरे बाजार में नीलामी होती, हमारे एक एक अंग का सौदा किया जाता, या उस पूरे घटनाचक्र की फिल्म बनाकर मंहगे दामों में बेचकर उससे घर की छत तक दौलत का अंबार लगा लिया जाता। तब तो प्रकारांतर से संदेशा जाता है लोगों तक कि ऐ इस देश के वीर वासियों, आओ, और इस देश की लड़कियों से खेलो, तनिक सावधानी के साथ, इतना तक कि उसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में मत आने देना। बस, तुम काम को अंजाम देते रहो और मौज मस्ती भी करते रहो, घर परिवार भी बसाते रहो। अगर कहीं ताकतवर की औलाद हो तब तो और भी फिक्र करने की जरूरत नहीं।
जज साब, हमारी तकदीर की लाल चुन्नियां सजने के पहले ही काली पड़ गयीं। फिर भी, झुलसी नहीं थीं। अब उस काली चुन्नी को मैं खुद ही झुलसा आऊंगी।
अब मुझे उन मांओं पर कोई अफसोस नहीं, जो जन्म से पहले या जनमते ही अपनी बेटियों को मार देती हैं। मैं अपने निरीह पिता की आंखों की बेबसी देख भर पा रही हूं। मेरी काली चुनरी भी तब अगर बची रह जाती, तो शायद उनकी आंखों में एक सुकून आता। हर लड़की के मां-बाप यही कहते दुहराते मर जाते हैं कि रेप के मुजरिमों को ऐसी सख्त सजा दी जाए, ताकि अगला कोई भी इस तरह की जुर्रत करने से पहले दस बार सोचे। मगर हर बार हम ही उसे ऐसी ‘महान जुर्रत’ करने के हौसले और बहाने देते रहते हैं।
क्या मैं यह कहूं कि “जाके नाहीं फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई?” तब तो कई और लड़कियों को मेरी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा और यह मैं कैसे चाह सकती हूं जज साब?
माननीय न्याय व्यवस्था पर मेरा पूरा भरोसा है, मैं उसका आदर करती हूं, तो बस जज साब, एक विनती मेरी सुन लीजिए, रेप को ही “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की संज्ञा दे दीजिए और हम प्रियदर्शिनी, प्रतिभा, रुचिका जैसी जाने कितनी अभागनें हैं इस धरती पर भी और इस धरती से ऊपर भी, उन्हें सुकून की एक सांस दे दीजिए। एक भरोसा तो दीजिए कि उनकी पीर को समझनेवाला भी कोई है। बाकी हम परमादरणीय न्याय और न्यायालय की आदर रेखा से अलग तो हैं नहीं।
हां, हमारे जजमेंट के दिन हमारे शहर में बारिश हुई जज साब। यह बारिश नहीं, हम अभागनों के आंसू थे। इसमें मेरे मां-बाप और हमारे शुभचिंतकों के भी सम्मिलित हैं।
7 comments:
मैंडम जी, रेयरेस्ट आफ रेयर वो हत्या के अपराध हैं जो समाज के निचले तबके द्वारा किये जाते हैं, अभिजात्य द्वारा किये गये अपराध "रेयरेस्ट आफ रेयर" की श्रेणी में नहीं आते...
पहले कहते थे, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, ये भी कुछ उसी तरह का मामला है...
किसी भी निर्दोष की जान ले लेना ( चाहे अधिक क्रूर तरीके से ली गई हो या कम पीडाजनक तरीके से ) किस प्रकार से rarest of rare नहीं कहा जा सकता ?? किसी की जान ले लेना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है परन्तु जान लेने को rarest of rare ना मानने का क्या ये मतलब नहीं की हम किसी व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति की जान लेने को एक normal बात मान रहे हैं ?? और दुर्भाग्य से आजकल हो भी यही रहा है
अनोनिमस की अन्तिम पंक्तियों से असहमति के साथ. सोच समझ कर किसी भी निर्दोष की जान लेना हमेशा ही रेयरेस्ट आफ रेयर है..
समरथ को नहीं दोष गोसाईं..
@ भारतीय नागरिक जी - मुझे यह प्रतीत हो रहा है कि हमारे अनाम मित्र उसे एक कटाक्ष की तरह प्रयोग में लाये हैं..
सरकार,व्यवस्था और कानून से मांग की जानी चाहिये कि रेप हर हालत में रेयरेस्ट ऑफ रेयर है. इसका सबसे बडा आधार यही है कि यह हमेशा सोच समझ कर और पूरे होशो हवास में किया जाता है. आप सब इसके साथ जुडें,यह अनुरोध है.
प्रियदर्शिनी, आज नवरात्रि की सप्तमी को मैं तुम्हारी ये वेदनाभिव्यक्ति पढ रही हूँ और महसूस कर रही हूँ कि यातना भुगतने से ज़्यादा तकलीफ़देह है इंसाफ़ की चौखट पर बरसों सिर पटकते रहने के बाद मायूस हो जाना. ये मायूसी मौत जैसी है अफ़सोस कि तुम्हारी किस्मत में दो बार मरने की यातना लिखी थी.
प्रतिमा, तुमसे सहमत. मन बेहद दुखी और अवसन्न है अभी तक
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