आहाह! आज छम्मकछल्लो को मज़ा आ गया. यह मज़े वह होश सम्भालने के बाद से ही लेती आ रही है. यह दीगर बात है कि अब वह होश खो बैठी है. आज वह कई बांस ऊपर उछल गई, जब उसे पता चला कि हमारा प्यारा, न्यारा, महान देश भ्रष्टाचार के मामले में 87वें नम्बर पर है. इसका मतलब यह कि हम इस मामले में भी 86 देशों से पिछडे हैं. हाय रे! सारे जहां से अच्छा, सच्चा हमारा यह देश! सौ में से 90 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महानवाले इस देश में यार! ये क्या बात हुई! कहीं भी लोग हमें आगे नहीं रहने देते. इतनी मेहनत से कॉमनवेल्थ गेम्स में एक मौका बटोरा. उस पर भी पानी फेर दिया? कितना अच्छा मौका था! मेहनत कम और रिजल्ट ज़्यादा. इंस्टैंट का ज़माना है. फटाफट. ईमानदारी में तो जिंदगी घिस जाती है, और तकदीर भी. बेईमानी की तो प्रेस, मीडिया सभी घर, रास्ते, थाने, जेल के आगे लाइन लगाए बैठे रहते हैं. भूल गए तेलगी और हर्षद मेहता को ना? बडी छोटी याददाश्त है आप सबकी भी.
छम्मकछल्लो को अभी भी याद है, अभी कुछ दिन पहले ही देश की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था भ्रष्टाचार के सुरसा रूप पर खीझी थी. दुखी और कातर हुई थी, आम जनता की सोच कर हाल से बेहाल हुई थी. अब छम्मकछल्लो को खुशी है कि अब माननीय लोग परेशान नहीं होंगे. 86 देश हमसे आगे हैं.
इस देश के वासियो! अब आप निश्चिंत रहिए. चिंता की कोई ज़रूरत नहीं. लोग खामखा व्यवस्था को कोसते हैं. व्यवस्था में लोग व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए होते हैं. अगर आपको अपनी वसीयत अपने नाम लिखानी है. जमीन जायदाद खरीदनी बेचनी है, बच्चेका जन प्रमाणपत्र लेनाहै, राशन कार्ड बनवाना है, मसलन पता नहीं, कितने कितने काम करने करवाने हैं. हर काम का एक दस्तूर है जो बिना दस्तूरी के नहीं होता. छोटे से लेकर बडे तक की अपनी अपनी हैसियत है. आपकी नही है तो इसके लिए वे तो ज़िम्मेदार नहीं? लोग नाहक पुलिस और ट्रैफिक पुलिस को बदनाम करते हैं. ट्रैफिक पुलिस तो हमारे द्वारा ट्रैफिक नियम तोडने पर हमें पकडती है. मगर ये जो अलग अलग हैसियतदार लोग हैं, वे तो बस, “कलम से गोली” मारते हैं.
ऊंहू, इनको भी बदनाम मत कीजिए. ये आपका काम करने के लिए बैठे हैं. आपका काम कर भी रहे हैं. छम्मकछल्लो जब अपना घर बेच रही थी, तब उसे एक एजेंट ने आ पकडा. उसने कहना शुरु किया- “ये जो अफसर मैडम है ना, उनकी फीस ही साइन करने की तीन हज़ार है. वो तो मैं आपसे अढाई ही ले रहा हूं. ... वो जो बेचारा तब से आपके 36 पेज के डॉक्यूमेंट पर शुरु से आखिर पेज तक ठप्पा लगा रहा है. कितनी मेहनत कर रहा है आपके लिए? तो उसको उसकी फीस दीजियेगा कि नहीं? और ये जो मैडम है, आपकी फाइल को रिलीज करेंगी, वे खुद से कुछ नहीं लेती. मगर हमारा तो फर्ज़ बनता है कि नहीं उनको देने का. सो आप उनके ड्रॉअर में ये नोट डाल दीजियेगा. अब ये जो मैडम से साइन कराके लाया है. जानती हैं, आज मैडम कितनी बिजी हैं? ये तो अपने ये भाई हैं कि मैडम उनकी बात को कभी खारी नहीं करती. तो उसको कुछ तो दीजियेगा न? बूढा हो गया है, कहां जाएगा बेचारा! ....और अब इन सबके बाद आपको जो लगे, हमको खुशनामा दे दीजिए. हम नहीं होते तो आज आपका काम होता भी नहीं. कौन कराता? मैं आप से जो लिया है, उसमें मुश्किल से दो सौ भी मेरा नहीं बना होगा. आगे आपकी जो खुशी.”
छम्मकछल्लो का बैग खाली हो गया. मन भर गया, लोगों की काम के प्रति निष्ठा और ईमानदारी देखकर. इस बैग के बगीचे में से दसेक हजार पान, पत्ते, फल, फूल के लिए निकल गये तो क्या हुआ? सारी बागवानी आप अपने से तो नहीं कर सकते ना! तो जो करेगा, वह तो लेगा ही ना. बाग के लिए उन्हें नियुक्त किया गया है, इसी अधिकार से तो वे ले रहे हैं. कुर्सी का वह अधिकार नहीं रहता तो आप तो उसे खडे भी नहीं होने देते. इसलिए, पग पग पर पैर पुजाई देनी पडती है तो दीजिए. पैर है तो पूजना ही होगा. नहीं तो अपने पैरों को सालों इस टेबल से उस टेबल तक, इस आसन से उस आसन तक दौडाते रहिए. चप्पल भी घिस जाएगी, तलवे भी, और दिल के साथ दिमाग भी फिर जाएगा. इसलिए, अपने पैरों का ख्याल रखिए, वरना बीमार पडने पर छम्मकछल्लो को मत बताइयेगा. बीमार पडने पर इलाज के लिए जाना होगा और छम्मकछल्लो बताए देती है कि वहां भी अपने पैर और दिल को मज़बूत करके रखना होता है, वरना एक सर्दी खांसी में ही हज़ारो हजार की चपत लगते देर नहीं लगती.
अंत में आप सभी छम्मकछल्लो की तरह ही इस रामनामी चादर में डूब जाइये. डूबने से पहले सोचिए कि आप अपने तई ईमानदार रह सकते हैं, आपको घूस, दहेज नहीं लेने की छूट है. मगर देने पर आपका बस नहीं है. वैसे अपनी भारतीयता में ‘द’ यानी देने, मतलब दान का बहुत महत्व है. घूस, दहेज आदि को दान की श्रेणी में डाल दीजिए और भूल जाइए. मन हो तो कभी कभी प्रार्थना की लाइन की तरह दुहरा लीजिए-
करप्शन की लूट है, लूट सके सो लूट
अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट.
6 comments:
आज तो मातम का दिन है जी..बेचारा हमारा देश कहीं से भी आगे नहीं ना तो ऊपर से ना नीचे से.....मुझे तो इसमें अमेरिका व्मेरिका की कोई साजिस नज़र आती है...
हाँ साजिश इसलिये है कि अब अगली बार हम जी-जान लगा दें...पहला नंबर आने के लिये...
अफ़सोस करने की कोई बात नहीं है विभाजी कोई ज्यादा पदकों का फ़सला नही रहा होगा हमारे देश में और बाकी के ८६ देशों में. आपने ठीक ही फ़रमाया अन्तिम मौके पर भ्रष्टाचार के एक दो मेडल और बटोर लेते तो commonwealth खेलों में जैसे अन्तिम दिन सानिया नेहवाल ने दुसरा स्थान दिला दिया था हम आज top 10 भ्रष्टाचारीयों में तो जरूर आ जाते. ये हमारे नेता भी कमबख्त cricket खिलाड़ीयों जैसे हो गये हैं, अभ्यास में इनका जरा भी मन नहीं लगता और मौके-बेमौके फ़िस्सडी देशों से भी हार जाते हैं. अगर आप competition से पहले मनमोहनजी का ध्यान इस ओर आकर्षित करतीं तो वो देश की लाज बचाने के लिये जरूर कुछ करते.
वैसे पहले-दुसरे पायदान पर वो कौन से महान देश हैं जहाँ अगला जनम लेने की प्रार्थना हमें करनी चाहीये ?
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