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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Tuesday, July 20, 2010

ये क्या? आदमी पूरे कपडे में और औरतें आधे- अधूरे में?

छम्मकछल्लो से नाराज रहनेवाले भाई लोगो, इस बार आप उससे नाराज़ होने का कोई सबब न पा सकेंगे. बडे दिनों से छम्मकछल्लो अपने भाई लोगों की नसीहतों पर ध्यान दे रही थी. एक दिन अचानक उसे भी बिना किसी पेड के नीचे बैठे ही और बिना किसी के हाथ की खीर खाए ही दिव्य ज्ञान मिल गया. निस्संदेह यह ज्ञान उसे आप भाई लोगों से ही मिला है. इसलिए सारा श्रेय आप भाई लोगों को ही जाता है, सो जानिएगा और इसका मान रखिएगा.

अब इस दिव्य ज्ञान की बात आपको बताई जाए. हुआ यों कि छम्मकछल्लो एक दिन एक सेमिनार में भाग लेने गई. सेमिनार था न, सो बडे बडे लोग बुलाए गए थे. सो भैया, ये बडे बडे लोग वो सूट-बूट और टाई में थे कि क्या कहें! उन लोगों की कंठलंगोट रोबदारी देख कर तो छम्मकछल्लो के होश ही फाख़्ता हो गए. फिर भी होशो-हवास को अपने काबू में रखकर वह वहां के सारे तामझाम देखती रही. अचानक उसके दिमाग़ की घंटी टनटना उठी, जब उसने देखा कि ये सारे के सारे स्वनाम धन्य तो ऊपर से नीचे तक गलेबंद कपडों मे बंद हैं. छम्मकछल्लो को दिव्यज्ञान इसी में मिला कि इसीलिए तो ये सभी के सभी हम औरतों को सात सात कपडों के भीतर रहने की बराबरी की बात करते हैं.

अब आप ही देखिए न! आदमी सूट, टाई से लेकर जूते मोजे तक में सम्पूर्ण रूप से बंधा रहता है. टाई के कारण तो उसका गला ऐसा बंधा रहता है कि जब वे शाम में टाई से मुक्त होते हैं तो राहत की लम्बी सांस छोडते हैं. आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि वह गरदन से लेकर पैर तक ढंका हुआ है. उसके शरीर में केवल सर और हथेलियां खुले हैं. अब महिलाएं ज़रा सोचें. वे जब कपडे पहनती हैं, तब उनके शरीर के कितने हिस्से खुले रहते हैं? लोग कहते हैं कि आदमी औरतों को बराबरी का दर्ज़ा देना नं का. सरासर ग़लत है. वह तो सदा से उसे अपनी बराबरी का दरज़ा देते हुए उसके पूरे कपडे में रहने की चाहत रखता है. और अब शोले के गब्बर सिंह की तरह छम्मकछल्लो का भी सवाल है कि ‘अगर वह ऐसा चाहता है तो क्या गुनाह करता है?” और छम्मकछल्लो कहती है कि नहीं, वह कोई गुनाह नहीं करता.

इसलिए हे इस देश की तमाम देवियो! पुरुषोंकी बराबरी करना चाहती हो तो पहले उनके शरीर ढंकने के रिवाज में ही उनकी बराबरी में आ जाओ. पूरे कपडे में रहो. यह दीगर बात है कि तुम पूरे कपडे में भी रहोगी, तब भी उनमें से कितनों की बेधक नज़रें कपडों की उन सात सात तहों के भीतर भी जा पहुंचेंगी, जिधर आमतौर पर औरतों की नज़रें नहीं जातीं. पर यह तो नज़र और नज़रिया का मामला है. कपडों का उससे क्या लेना-देना!

3 comments:

honesty project democracy said...

अच्छी प्रेरक प्रस्तुती ...शानदार सोच ..

Unknown said...

achhi baat.............

umda post !

Vibha Rani said...

धन्यवाद भाइयो! बहुत दिन बाद दिखे आप अलबेलाजी . कहां हैं? कैसे हैं?