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Tuesday, May 18, 2010

एयर होस्टेस कितना बतियाती हैं?

छम्मकछल्लो देश की तरक्की से बहुत खुश है. उस दिन उसने अखबार में पढा कि भारत की तरक्की देखकर ओबामा के पसीने छूटे. छम्मकछल्लो के भी पसीने छूट जाते हैं, अपने देश की तरक्की देख कर. अमेरिका कह्ता है कि भारत दूसरी विश्व शक्ति बनने जा रहा है. अमेरिका जो कहता है, सही कहता है. उससे इंकार करने की ज़ुर्रत हममें नहीं है.

छम्मकछल्लो की भी यह ज़ुर्रत नहीं है कि वह किसी भी बात से इंकार करे. तब तो और भी नहीं, जब मामला किसी लडकी, उसके रूप-रंग, उसकी प्रतिभा (?), उसकी काबिलियत से जुडा हो. विमान सेवा भी एक सेवा है. इसे सुंदर बनाए रखने के लिए सुंदर-सुंदर विमान परिचारिकाएं होती हैं. सुंदर तो कुछ भी हो, किसी भी जगह या क्षेत्र में हो, मन को भाती है. ऐसे में हर क्षेत्र में काम करनेवाली महिलाओं का सुंदर होना लाजिमी हो जाना चाहिये, चाहे वह नर्स हो, डॉक्टर हो, वैज्ञानिक हो, इंजीनियर हो. सुंदर तो घर की बहुओं का होना भी लाजिमी है. आखिर अगली संतति सुंदर होनी चाहिये कि नहीं?

छम्मकछल्लो के मूढ मगज़ में नहीं आता कि एयर होस्टेस के लिए तथाकथित सुंदर होना लाजिमी क्यों है? क्या एयरलाइंस उसकी सुंदरता के बल पर चलते हैं? क्या कम सुंदर लडकियों द्वारा दी जानेवाली सेवाएं कुरूप या कम असरकारी होती हैं? एयर होस्टेस का काम आखिर अपने अतिथियों (किंगफिशर एयरलाइन को धन्यवाद कि उसके द्वारा ‘अतिथि’ के प्रयोग के कारण अब सभी एयलाइनों के पैसेंजर, यानी यात्री लोग अतिथि रूप में बदल गए.) को उडान के दौरान आवश्यक सेवाएं देना होता है. और यह सेवा कोई दुर्वासा भाव से न तो करवाता है और ना कोई रम्भा या मेनका भाव से करती है. मगर लोग अपनी मानसिकता ही बदल दे तो कोई क्या करे? पता नहीं राजा राम के समय के पुष्पक विमान की क्या स्थिति थी? सुंदरता के इसी दुराग्रह के कारण छम्मकछल्लो भी एयर होस्टेस बनते- बनते रह गई. उसकी इस इच्छा पर सभी ने छूटते ही कहा था कि “शक्ल देखी है अपनी?”

शकल के साथ साथ अकल भी देख लेने की बात कही गई. और अकल तो अपने देश में उसी के पास होती है, जिसके पास अंग्रेजी की ताक़त होती है. अंग्रेज गए तो शासन की ताक़त ले गए. मगर भाषा की ताक़त यहीं छोड गए. वे जानते थे कि किसी को मन से गुलाम बना कर रखना है तो उसकी ज़बान में घुस जाओ. देश छोड दिया, राजनीतिक ताक़त छोड दी, मगर हमारे मन में बसे रहे- प्रीतम आन बसो मेरे मन में. इतने कि देश के आज़ाद होने के बाद भी हम यह नहीं मानते कि हमारे देश की अपनी एक भाषा है, या हो सकती है. लोग अपने ही देश की भाषाओं पर आपसी लडाई करते हैं, अंग्रेजी के खिलाफ नहीं बोलते. बोलें भी कैसे? आखिर वह अतिथिकी भाषा है और अपने देश में “अतिथिदेवो भव:” होता है. देश गुलाम था तो लोग आज़ादी की बात हिंदी में करते थे. देश अब आज़ाद है तो लोग अपनी बात अंग्रेजी में कहते हैं. देश जब आज़ाद हुआ, तब महात्मा गांधी ने पहला संदेश यह दिया कि बता दो दुनिया को कि गांधी अंग्रेजी भूल गया. कुछ साल पहले देश के एक भूतपूर्व गृह मंत्री ने कह दिया कि अंग्रेजी इस देश से जानेवाली नहीं. लोगों को अंग्रेजी सीखनी चाहिये. जान लें कि भारत सरकार की राजभाषा नीति गृह मंत्रालय के अधीन ही आती है.

हाल में एक खबर आई कि देश में एक लडकी, कहा गया कि वह अनुसूचित जाति से थी, ने अपने कैरियर के रूप में एयर होस्टेस के पेशे को अपनाना चाहा. उसने इसका प्रशिक्षण देनेवाली अकादमी में नाम भी लिखा लिया. प्रशिक्षण पूरा भी हो गया. मगर नौकरी की बात आने पर कहा गया कि ना जी, उसका ‘फिजिकल अपीयरेंस’ एयर होस्टेस के लायक नहीं था और दूसरे यह कि उसकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी. खुशी की बात तो यह है कि ऐसा एयरलाइन के साथ साथ देश की व्यवस्था भी कह गई. अंग्रेजी में भसपन नहीं है ना. हो भी तो हमें पता नहीं. वरना सीधे सीधे कहो ना कि छोकरी बदसूरत है.

छम्मकछल्लो जानती है कि हम अपनी पुरानी परम्परा से बहुत प्यार करते हैं. सौंदर्य प्रेम और अंग्रेजी प्रेम उसी परम्परा में आता है. अब वह क्या करे कि उस लडकी पर ख्याल सवाल बन जाता है कि अगर रूप और अंग्रेजी इस नौकरी के लिए इतना ही महत्वपूर्ण है तो उस अकादमी ने उसे अपने यहां प्रशिक्षण देने के लिए भर्ती ही क्यों किया? उसे क्यों नहीं बताया कि बच्ची, तू मन से अच्छी हो सकती है, दिमाग से तेज भी हो सकती है, मगर तेरा रूप रंग इस पेशे के माकूल नहीं है. अकादमी ने अपने प्रशिक्षण के दौरान उसे इतनी अंग्रेजी की ट्रेनिंग क्यों नहीं दी कि वह सामान्य बातचीत अंग्रेजी में कर सकती? क्या यह कहा जा सकता है कि तब अकादमी का शुद्ध उद्देश्य पैसा कमाना होगा? आखिर क्यों रूप और भाषा से मिसफिट एक लडकी को उसमें भर्ती किया गया?

अब जब नौकरी देने की बात आई तब उसके रूप और भाषा का हवाला देते हुए उसे नौकरी नहीं दी गई? क्या एयर होस्टेसों को विमान में भाषण देना होता है? विमान प्रचालन और तकनीकी जानकारी के लिए उसे जो बोलना होता है, वह लिखा होता है, जिसे वह पढ कर सुनाती है. बाकी समय बमुश्किल वह अपने अतिथियों से 4-5 लाइनें बोलती हैं? तो क्या नौकरी देनेवाली एयर लाइन उसे इतने का भी आत्मविश्वास नहीं दे सकता था? लोग कहते हैं कि “संगत से गुन आत है, संगत से गुन जात.” अंग्रेजी की चाशनी में पगी दूसरी एयर होस्टेसों के साथ रह कर वह इतनी अंग्रेजी तो सीख ही लेती. मगर नहीं. इतनी मेहनत कौन करे? इतना परेशान होकर अकादमी या एयर लाइन चलाने के लिए हम थोडे ना बैठे हैं और ना ही समाज सेवा करने के लिए.

अब एक अधिनियम यह पास हो ही जाना चाहिये कि इस देश में जिसे अपनी प्रतिष्ठा से रहना हो, उसे अंग्रेजी हर हाल में आनी चाहिये. लडकियो! तुम्हारे लिए इसके साथ साथ तुम्हारा सुंदर होना भी अनिवार्य है. अगर तुम सुंदर नहीं हो तो तुम्हारा जीना बेकार है. मन से अच्छी हो तो हो, मन दिखता थोडे ना है. हम तन देखते हैं, उसे देखने, छूने, भोगने की लालसा रखते हैं. इसलिए या तो सुंदर बनकर जनमो, या फिर जनमो ही मत. जनम भी गई तो मर जाने के लिए तुम आज़ाद हो. अपनी आज़ादी का प्रयोग करो इस देश की बदसूरत लडकियो!

8 comments:

विवेक रस्तोगी said...

अब लगता तो यही है कि अंग्रेजी सीखने के लिये अधिनियम जारी कर ही देना चाहिये, नहीं तो जिन्हें हिन्दी नहीं आती है, उनकी कोई औकात गिनी ही नहीं जाती है।

दिलीप said...

sahi kaha english zaruri hai..aur agar ispar ladki khoobsoorat ho to fir safalta pakki...

Vibha Rani said...

@vivek ji, sahi kah rahe hain. @ dilip, agar yah vyangy hai fir to thik hai, anyatha khatarnak hai. mamala english hindi ka nahi hai. kisi ke jivan aur bhavishy ka hai. is poore prakaran mein us ladki ya ys jaise bachchon ka kya dosh?

ZEAL said...

Vibha ji,

To be born as very beautiful is not in our capacity but to make ourselves worthy by education , sports , languages is in our hands. So there is no harm being capable and versatile.

I am grateful to Britishers for leaving English behind. Its indeed a very useful language. It enriches our knowledge and enhances our beauty as well. "Only wearer knows where the shoe pinches". One who doesn't know English is deprived of many valuable texts written in English.

In my humble opinion, one must learn English also to enhance the beauty, personality, knowledge, exposure and so on.

"Survival of the fittest !"

Nice post !

Divya.

Vibha Rani said...

दिव्या, मुझे अंग्रेजी सीखने, जानने से कोई ऐतराज नहीं. हर भाषा की अपनी खूबसूरती होती है, उसके फायदे होते हैं. मगर जो अंग्रेजी नहीं जानते या उसमें कमजोर हैं, क्या वे मात्र इसके कारण नौकरी, सम्मान या अपना दाय पाने से वंचित रह जाएं? अंग्रेजी में ढेर सारी चीज़ें हैं, पता है, मगर बहुत सारा साहित्य और अच्छी किताबें हमारी अपनी भाषाओं में भी हैं. क्या हमें उन्हें अपने जीवन में स्थान देना नहीं चाहिये? यहां अंग्रेजी पर नहीं, इसकी आड में लोगों को वंचित करने, अपमानित करने की मंशा पर बात की गई है.

ZEAL said...

@ Vibha ji-

Your point is valid. I agree with you.

Regards.

Vibha Rani said...

Thanks Divya

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

कहीं न कहीं इस ज़रिये आपने इक दबे सत्य पर प्रकाश डाला है .इस खूबसूरती और अंग्रेजी वाली बात को हम generalize तो नहीं कर सकते ,पर ये नीव कई जगह पुख्ता ज़रूर है .