chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Monday, May 4, 2009

जाना निरुपमा सेवती का

जिन लोगों की कहानियां पड़ती छाम्माक्छाल्लो बड़ी हुई है, उनमें से एक नाम निरुपमा सेवती का भी है। तब नीहारिका नाम की कहानियों की पत्रिका निकला करती थी। बड़ी अच्छी होती थी वह पत्रिका। उसमें उनकी कहानियां छपती थीं। छाम्माक्छाल्लो बड़े चाव से उनकी kahaaniyan पड़ती। पाता नहीं, कैसे, यह नाम उसके जेहन में बस गया। बाद में मुम्बई आने पर पाता चला की वे यहीं रहती हैं। बाद में यह भी पाता चला की वे सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार, आलोचक डाक्टर विनय की पत्नी हैं। मगर कभी उनसे मुलाक़ात नहीं हो पाई। sooaraj prakaash द्वारा संपादित "बंबई-१" में उनकी कहानी के साथ फोटो भी थी। उनकी सुन्दरता से छाम्माक्छाल्लो बहुत प्रभावित हुई। मगर सबकुछ बस यहीं तक।

आज निरुपमा सेवती नहीं रहीं। १ मई को, जब सारा बिश्व मजदूर दिवस मना रहा था, कलम की इस मजदूर ने अपनी अन्तिम साँसें लीं। वे asthamaa से पीडित थीं, और जीवन के अन्तिम ८-१० दिन काफी बीमार-सी रहीं। उन्हें विस्मृति दंश भी हो गया था, khaanaa-पीना छूट गया था, जिस कारण काफी कमजोर भी हो गई थीं।

३० अक्टूबर, १९४९ को जन्मी निरुपमा सेवती की उम्र इतनी भी नहीं थी की कह diyaa जाए की चलो, उम्र हो गई। मगर हाँ, काम काफ़ी किया उनहोंने। पढाई-लिखाई देहरादून में हुई। फ़िर पिटा के बंबई आने पर वे भी जाहिर है की मुम्बई आ गईं। १९६८ में इनकी पहली कहानी छपी और छपते ही काफी चर्चा में आ गई। इनके कुल ७ कहानी संग्रह है-"खामोशी को पीते हुए", आतंक बीज", कच्चे makaan", "काले खरगोश", भीड़ में ", "दूसरा ज़हर","नई लड़की-पुरानी लड़की"। ५ उपन्यास हैं-"पतझड़ की आवाजें', बांटता हुआ आदमी", मेरा नरक अपना है", दहकन के पार", "प्रत्याघात"। इनके अलावा जें दर्शन पर इनका बहुत महत्वपूर्ण काम रहा। उनका पूरा काम २ वाल्यूम में आ चुका है।

निरुपमा सेवती कत्थक की बहुत कुशल न्रित्यानागाना थीं। पंडित गोपी कृष्ण से इन्होंने कत्थक सीखा और राधा-कृष्ण नृत्य मालिका में गोपीचंद के साथ raadhaa की भुमिका की। उनके सिखाए शिष्यों में से दो नाम बेहद चर्चित हैं- डिम्पल कपाडिया औअर संगीता बिजलानी।

वर्तमान में निरुपमा जी लेखन की और उन्मुख हो चुकी थीं। हाशूद दर्शन पर बालाशेम के ऊपर पहली किताब hindii में लिखी। ज्ञान पाल सार्त्र के ऊपर इनकी किताब है। प्लेटो की चिंतानामाला का संकलन इनके पास था। "भारतीय भाषाओं की स्त्री-शक्ति की कहानिया" का सम्पादन कर रही थी।

इन सबके अलावा निरुपमा जी होमियोपैथी की प्रैक्टिस किया करती थीं। होमियोपैथी चिकित्सा में भी एस्ट्रो होमियोपैथी में विशेष रूचि थी। दूरदर्शन के "तालियाँ" कार्यक्रम के तहत इनकी कई कहानियों पर तेली फिल्मों का निर्माण हुआ।

उनके जाने से साहित्य को नुकसान तो हुआ ही है, मगर साहित्यिक उदासीनता भी खाली। मुम्बई के सबसे बड़े हिन्दी दैनिक ने उनके निधन की ख़बर तक छपने की ज़हमत नहीं उठाई। तब लगता है, हिन्दी का लेखक होना कितनी बड़ी trasadiyon से गुजरने के समान है।

3 comments:

आभा said...

मेरी श्रद्धांजलि।

दिनेशराय द्विवेदी said...

निरुपमा जी को हार्दिक श्रद्धांजली।
उन की रचनाएँ जब भी अवसर मिला अवश्य पढ़ी। वे जितनी खूबसूरत थीं, जीवन को उतने ही खूबसूरती से अपनी रचनाओँ में उन्हों ने उकेरा।

G.H.LEELA said...

Sir namaskaar .jaise ki yaha preshit kiya gaya hai ki nirupama mam ka nidhan ho gaya hai .uske liye bhaavpurn shradhanjali arpit karti hun.sir kya aap mam ka sahityik jeevan v vyaktigat jeevan ki jaankaari preshit kar sakte hai.mere ph.d shod me sahayata ho jaayegi sir .mai aapki aabhaari rahungi.